बिहार स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों के MLC चुनाव के परिणाम सामने आ गए हैं. इस परिणाम के बाद से जहां जदयू में जश्न का महौल है तो वहीं बीजेपी के लिए यह उतना सुखद नहीं है. बता दें कि बिहार में पांच सीटों पर शिक्षक और स्नातक स्तरीय चुनाव का परिणाम सामने आया है. जिसमें कई चीजें चौकाने वाली है. एक तरफ जहां कोसी क्षेत्र में बीजेपी के उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए तो वहीं सारण में निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाव रहे हैं. दरअसल यह कहा जा रहा है कि यहां पर प्रशांत किशोर का जादु चला है. जिसमें उन्हें जीत मिली है. गया की दोनों सीटों पर बीजेपी जीतने में कामयाव रही है. लेकिन सारण की दोनों सीटों पर बीजेपी को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है. कहा जा रहा है कि बीजेपी सारण में शिक्षकों और स्नातक मतदातों को समझाने में विफल रही है. इन इलाकों में बीजेपी की पकड़ मजबूत मानी जाती रही है. इन क्षेत्रों से बीजेपी के कई बड़े नेता जीतकर आते हैं. खासकर सांसदों का दबदवा रहा है.

सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी ने धर्मेंद्र कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था. धर्मेंद्र कुमार चुनाव से एक साल पहले से ही खुब पसीना बहा रहे थे. धर्मेंद्र अपने क्षेत्र में जाकर लोगों से मिलते रहे हैं. इतना ही नहीं इस चुनाव को लेकर बीजेपी के कई बड़े नेता भी चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन मतदाताओं को रिझाने में सफल नहीं हो पाए. और नतीजा हुआ कि सारण शिक्षक क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहे. बता दें कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का इसमें अहम योगदान बताया जा रहा है. खैर इस सीट पर महागठबंधन को भी करारी हार का सामना करना पड़ा है. केदार नाथ पांडे के निधन के बाद हो रहे उपचुनाव में महागठबंधन ने सीपीआई के उम्मीदवार आनंद पुष्कर को अपना उम्मीदवार बनाया था. हालांकि प्रशांत किशोर के सामने इनकी एक न चली और आखिर में अफाक अहमद जीतने में कामयाव हो गए. कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर ने राजनीतिक की शुरूआत की और इतिहास रच दिया है. ऐसे में यह बिहार में खासकर सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए खतरे की घंटे के रूप में इसे देखा जा रहा है. सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में जहां अफाक अहमद को 3055 वोट मिले तो वहीं सीपीआई के आनंद पुष्कर को 2381 मत मिले हैं इसके बाद शिक्षक संघ से जुड़े रहे जयराम यादव को 2080 मत मिले जबकि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में रही चंद्रमा सिंह को 1255 वोट मिले रंजीत कुमार को 1008 वोट मिले तो वहीं नवल किशोर सिंह को 552 मत मिले इतना ही नहीं बीजेपी के उम्मीदवार रहे धर्मेंद्र को मात्र 495 मत मिले और वे सातवें स्थान पर रहे. इतना ही नहीं धर्मेंद्र से जिन्हें कम मत मिले हैं उनका वोट 100 से कम है यानी कि तीन अंक में वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों में सबसे आखिरी उम्मीदवार हैं धर्मेंद्र. धर्मेंद्र की इस हार से बीजेपी को एक बार फिर से सोचने की जरूरत हो गई है. जिस इलाके में इनके अपने सांसद हैं विधायक हैं उस इलाके में बीजेपी की इतनी बड़ी हार कैसे हो सकती है. ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी को वहां से शिक्षकों ने नकार दिया है.

जरा चीजों को समझिए की सारण लोकसभा सीट बीजेपी के कब्जे में हैं. यहां से राजीव प्रताप रूढ़ी जीतकर आते हैं. इसी सारण जिले में एक और लोकसभा है महाराजगंज यहां से भी बीजेपी के जनार्दन प्रसाद सिग्रीवाल जीतकर आते हैं. इससे भी नीचे अगर हम चलेंगे तो विधानसभा की स्थिति को देख लेते हैं. इन दोनों ही संसदीय इलाकों को मिला दें तो अधिकांश ऐसे विधानसभा हैं जहां पर बीजेपी के अपने विधायक हैं. इस पूरे इलाके को बीजेपी का एक मजबूत गढ़ माना जाता है. लेकिन इसके बाद भी शिक्षक और स्नातक चुनाव में बीजेपी को कहारी हार का सामना करना पड़ता है.

सारण अगर स्नातक की बात करें तो यहां से भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि यहां विपक्ष की भूमिका है बीजेपी लेकिन हार तो हार ही होता है न. सारण स्नातक क्षेत्र में छपरा, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण का इलाका आता है. इस इलाके में भी बीजेपी की पकड़ रही है. यहां से इनके अपने सांसद और विधायक चुनाव जीतकर आते हैं. लेकिन जदयू के डॉ. वीरेंद्र नारायण सिंह ने दूसरी बार महाचंद्र प्रसाद सिंह को शिकस्त दी है. ऐसे में सारण की दोनों ही सीटों पर हार होने से बीजेपी के सामने एक चिंता की लकीर जरूर आ गई होगी. बीजेपी को इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि आखिर वह कौन सा कारण रहा जिसके चलते सारण जैसे मजबूत गढ़ में बीजेपी को इतना करारी हार का सामना करना पड़ा है.

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