बिहार इन दिनों राजनीति का अखाड़ा बन गया है. लगभग राजनीतिक पार्टियां बिहार में अपने प्रयोग को साधने कि कोशिश कर रही है. और करें भी क्यों नहीं बिहार कि राजनीति ही इसी तरह की है कि आपको इतने सारे प्रयोग करने होंगे. इन दिनों बीजेपी कई बड़े प्रयोग कि ओर अग्रसर है और 2024 और 25 को ध्यान में रखते हुए बीजेपी अपना प्लान तैयार कर रही है. इसी का नतीजा है कि बिहार बीजेपी ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया है. बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बदलने के साथ ही यह कहा जा रहा है कि बीजेपी एक बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश भी कर रही है. बता दें कि बीजेपी ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और सम्राट चौधरी कुशवाहा समाज से आते हैं. ऐसे में अब बीजेपी नीतीश कुमार के आधार वोट बैंक कोयरी कुशवाहा पर अपनी नजर बनाए हुए हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि सम्राट चौधरी कभी जदयू के लिए झंडा बुलंद किया करते थे. नीतीश कुमार के खास माने जाने वाले सम्राट चौधरी को आखिरकार साल 2018 में जदयू से अपने आप को अलग करना पड़ा. इसका एक मात्र कारण बताया जाता है कि महात्वकांक्षा जिसके चलते उन्हें जदयू से नाता तोड़ना पड़ा और बीजेपी के साथ चले गए. खैर बीजेपी ने भी उन्हें खुब तरजीह दी. और बीजेपी ज्वाइन करते ही उन्हें प्रदेश बीजेपी उपाध्यक्ष का पद दिया गया. इतना ही नहीं जब बीजेपी की सरकार सत्ता में आई तो सम्राट चौधरी को मंत्री बनाया गया और अब उन्हें 2023 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है.
नीतीश कुमार साल 2020 से ही लव–कुश थ्योरी पर काम कर रहे थे. हालांकि उस समय उन्होंने अपने संगठन में कई ब़ड़े बदलाव भी किये. जिसमें आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया तो वहीं प्रदेश की जि्मेदारी उमेश कुशवाहा को दी गई थी. यह सबकुछ तब हो रहा था जब बीजेपी और जदयू एक साथ मिलकर बिहार में सत्ता में थे. लेकिन 2022 में जदयू का बीजेपी से मोह भंग हो गया और नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ मिलकर सत्ता के साझेदार बन गए. अब बीजेपी जदयू पर हमलावर हो गई. अब बीजेपी ने जदयू के वोट बैंक पर अपनी नजर गड़ा ली है. ऐसे में अब माना जा रहा है कि बीजेपी जदयू के आधार वोट बैंक कोयरी और कुर्मी पर अपनी नजर गड़ा ली है. जिसका परिणाम है कि आज बीजेपी कुशवाहा समूह से आने वाले सम्राट चौधरी को बिहार की जिम्मेदारी दी है.
बीजेपी को लेकर एक धारणा है कि बीजेपी के पास सवर्णों का वोट आता है. ऐसे में बीजेपी भी यही चाहती है कि आने वाले दिनों में कोयरी और कुर्मी वोट बैंक अगर उसके साथ जुड़ता है तो यह बीजेपी के लिए रामवाण की तरह काम करेगा. हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने इस तरह के प्रयोग किये हों इससे पहले बीजेपी ने राजद को कमजोर करने के लिए यादवों की पूरी फौज उतार दी थी. जिसमें बिहार बीजेपी के प्रभारी से लेकर बिहार प्रदेश अध्यक्ष तक यादव बनाए गए थे. लेकिन यहां बीजेपी को कोई खास सफलता नहीं मिली. उसके बाद बीजेपी ने संजय जायसवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. आपको जानकर हैरानी होगी कि संजय जायसवाल भी कभी राजद के साथ रहे थे. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में संजय जायसवाल ने अपनी पार्टी को बिहार में दूसरे नंबर तक पहुंचा दिया.
ऐसे में अब आपको लग रहा होगा कि जिस पार्टी को लेकर यह कहा जाता है कि इसको सवर्ण जाति के लोग वोट करेते हैं. अब जरा क्रोनोलॉजी समझिए जिस पार्टी का आधार वोट वैंक जिस जाति विशेष या समुदाय विशेष से हैं उसके प्रदेश अध्यक्ष दूसरे समुदाय या जाति विशेष के होते हैं इसका मतलब है कि पार्टी यह चाहती है कि हम दोनों तरफ अपना साध लें. ठीक इसी थ्योरी के आधार पर बीजेपी इन दिनों आगे बढ़ रही है. बिहार की कई राजनीतिक पार्टियां इस थ्योरी पर काम कर रही है. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि बीजेपी इन दिनों पिछड़ा समाज के वोट बैंक पर बीजेपी की पूरी नजर बनी हुई है. यही कारण है कि पहले नीतीश कुमार और अब बीजेपी लब–कुश थ्योरी पर काम कर रहे हैं.
अगर हम जातियों कि स्थिति को देखें तो बिहार में यादव समाज का वोट बैंक 15 प्रतिशत है जबकि कुशवाहा या कोयरी समाज का वोट बैंक 6.4 प्रतिशत है. वहीं कुर्मी समाज का वोट बैंक 4 प्रतिशत है. अगर हम सवर्णों की स्थिति को देखें तो भूमिहार की संख्या 4.7 प्रतिशत है जबकि ब्राह्मण समाज का वोट बैंक 5.7 प्रतिशत है वहीं राजपूत 5.2 प्रतिशत हैं और कायस्त 1.5 प्रतिशत हैं ऐसे में बीजेपी की नजर 10 प्रतिशत वोट बैंक पर है अगर उसे साधने में कामयाब हो गई बीजेपी तो आने वाले दोनों चुनावों में महागठबंधन के लिए काफी मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं.