दोस्तों, क्रिकेट के मैदान पर अंपायरों द्वारा लिए गए निर्णय बड़े मायने रखते हैं और आज से कुछ साल पहले तो और भी ज्यादा मायने रखते थे. मैदान पर 2 अंपायर होते हैं और एक थर्ड अंपायर होता है, जो मैदान के बाहर से सबकुछ देख रहा होता है. असल में उसका काम मैदान पर खड़े दोनों अम्पायरों को सहायता करना होता है. लेकिन अंतिम निर्णय मैदानी अंपायर का ही होता है. मैदान पर बढ़ते गलत फैसलों के चलते खेल में बदलाव हुए और अब DRS का उपयोग होता है. DRS का मतलब होता है Decision Review System जिसका इस्तेमाल कर टीम के कप्तान या बल्लेबाज, मैदानी अंपायरों के विरुद्ध करते हैं. अगर कप्तान या फिर बल्लेबाज को लगता है कि मैदानी अंपायर ने गलत निर्णय दिया है तो वो DRS की मांग करते हैं. लेकिन आज से 10 साल पहले ऐसा नहीं होता था, मैदानी अंपायर का निर्णय अंतिम निर्णय होता था और कोई भी उसपर विरोध या उंगली नहीं उठा सकता था. इसलिए तब अम्पायरों को सटीक फैसले देने होते थे क्योंकि उनके फैसले पर सबकुछ टिका होता था. अंपायर के एक फैसले से मैच का परिणाम बदल जाता था.
लेकिन दोस्तों, क्या आपको पता है किस वजह से ICC को DRS लाना पड़ा. विश्व क्रिकेट में एक ऐसा अंपायर हुआ जो अपने द्वारा दिए गए गलत निर्णयों के लिए मशहूर है. हम बात करेंगे क्रिकेट जगत के एक ऐसे अंपायर की, जिसके गलत निर्णयों की वजह से कई खिलाड़ियों का भाग्य उनकी भाग्य रेखाओं से मिट गया. जी हां, दोस्तों आज हम अंतराष्ट्रीय क्रिकेट जगत के उस अंपायर की बात करने जा रहे हैं, जिसे विश्व के सबसे बेईमान अंपायर की संज्ञा मिली है. यह अंपायर अपने द्वारा दिए गए गलत निर्णयों की वजह से बदनाम भी हैं और मशहूर भी. हम बात कर रहे हैं स्टीव बकनर की. यूं तो ये नाम सुनते ही भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के सामने बेईमानी की जीती जागती तस्वीर सामने आ जाती है लेकिन स्टीव बकनर की अंपायरिंग से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि समूचे विश्व क्रिकेट को भारी कीमत चुकानी पड़ी और शायद इसी वजह से इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल यानी ICC ने 24 नवंबर 2009 को Decision Review System(DRS) को लाना पड़ा. बावजूद इसके स्टीव बकनर विश्व क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ अंपायरों में शुमार हैं.
31 मई, 1946 को जमैका में जन्मे स्टीव बकनर फुटबॉल में अपना करियर बनाना चाहते थे लेकिन ऐसा करने में सफल नहीं हो पाए तो उन्होंने क्रिकेट अंपायरिंग की राहों को चुन लिया. ज्यादा अनुभव ना होने के बावजूद बकनर ने 1992 वर्ल्ड कप फाइनल में अंपायरिंग की थी यही नहीं इसके बाद वो अगले 4 वर्ल्ड कप फाइनल 1996, 1999, 2003 और 2007 में बतौर अंपायर नजर आए.
स्टीव बकनर ने अपने करियर में 128 टेस्ट मैच और 181 वनडे मैचों में अंपायरिंग की लेकिन इसके बावजूद अपने अंपायरिंग करियर में गलत निर्णयों और अपने बेईमानी वाले रवैये के चलते सुर्खियों में रहे.
अब हम आपके सामने स्टीव बकनर के कुछ ऐसे गलत अंपायरिंग निर्णयों को रखेंगे जिनके कारण उस दौर में बकनर की अंपायरिंग पर खुलकर विरोध हुए थे. पहले नंबर पर आता है साल 2003 में सचिन तेंदुलकर को ब्रिसबेन में दिया गया गलत LBW आउट. दरअसल, उस मैच में ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज जेसन गिलस्पी गेंदबाजी कर रहे थे, और उनकी अधिक बाउंस वाली गेंद को छोड़ते हुए सचिन ने अपना बल्ला पीछे किया और गेंद पैड के काफी ऊपर लगते हुए कीपर के पास गई ,ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों द्वारा अपील की गई और स्टीव बकनर ने तुरंत सचिन को आउट दे दिया. इस दृश्य को देखकर सचिन भौचक्के रह गए थे लेकिन वो बिना कुछ बोले पवेलियन लौट गए. स्टीव बकनर के घटिया अंपायरिंग का दूसरा मामला अआत है साल 2000 के इंग्लैंड बनाम पाकिस्तान फैसलाबाद टेस्ट मैच के दौरान जहां पर बकनर ने पाकिस्तान के सकलेन मुश्ताक की गेंद पर इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासीर हुसैन को गलत LBW आउट दे दिया था. तब बॉल हुसैन के बल्ले में लगने के बाद पैड पर लगी थी. नासीर हुसैन इस निर्णय से इतने आश्चर्यचकित थे कि वो कुछ समय के लिए क्रीज पर खड़े रह गए, वो ये समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें आउट किस बात पर दिया गया है.
स्टीव बकनर का अगला गलत निर्णय साल 2008 में भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया एडिलेड टेस्ट मैच के दौरान आया जब बकनर ने राहुल द्रविड़ को Caught Behind आउट करार दे दिया था, जबकि बॉल तो द्रविड़ के बैट के आसपास भी नहीं थी. बकनर का एक और गलत निर्णय आया साल 2007-08 बॉर्डर–गावस्कर ट्रॉफी में, जिसमें खिलाड़ियों के आपसी समझ के अभाव में मंकी गेट जैसे बड़े विवाद ने जन्म लिया था. दरअसल उस मैच में ईशांत शर्मा की गेंद पर एंड्रयू सायमंड्स का मोटा एज लगा और एमएस धोनी ने कैच करते हुए आउट की अपील की लेकिन इतने मोटे एज लगने के बाद भी बकनर पर कोई असर नहीं पड़ा और उन्होंने सायमंड्स को नॉट–आउट दे दिया. बाद में रिप्ले में अल्ट्रा एज में देखा गया कि बल्ले का एक मोटा बाहरी किनारा बॉल को लगा था. इस सूचि में बकनर एक और बेईमानी भरा निर्णय जुड़ता है साल 2005 में भारत बनाम पाकिस्तान कोलकाता टेस्ट मैच का, जब अब्दुल रज्जाक की गेंद पर बकनर ने सचिन तेंदुलकर को Caught Behind दे दिया था. सचिन के साथ–साथ विकेटकीपर कामरान अकमल को भी पता था कि बॉल बैट के काफी दूर से निकली है, यही कारण था कि अकमल ने अपील भी नहीं की थी लेकिन बकनर तो भई बकनर थे, बिना अपील के ही उन्होंने सचिन को आउट दे दिया.
इसके अलावा भी कई उदाहरण हैं, जिससे बकनर को एक पक्षपाती और बेईमान अंपायर की ख्याति प्राप्त है.
तो आखिर स्टीव बकनर को आखिर सचिन तेंदुलकर से क्या दुश्मनी थी ? सबसे ज्यादा उन्होंने सचिन को ही गलत आउट दिया. शायद आपको पता हो या ना भी हो, रिटायरमेंट के 11 साल बाद बकनर ने सचिन को गलत आउट दिए जाने की गलती को याद किया. बकनर ने सचिन को दिए गए 2 गलत निर्णयों का जिक्र किया, बकनर ने कहा कि वो 2 निर्णय मरते दम तक उनका पीछा नहीं छोड़ेंगे. एक था 2003 गाबा टेस्ट में गिलस्पी की गेंद पर सचिन को एलबीडबल्यू देना और दूसरा 2005 कोलकाता टेस्ट में रज्जाक की गेंद पर कैच आउट देना. बकनर ने इन्हीं 2 निर्णयों पर निराशा जाहिर की.
बकनर ने मेसन और गेस्ट रेडियो प्रोग्राम में कहा था, “तेंदुलकर को दो अलग–अलग मौकों पर आउट दिया गया था जब वे गलतियाँ थीं. मुझे नहीं लगता कि कोई अंपायर गलत काम करना चाहेगा. यह उसके साथ रहता है और उसका भविष्य खतरे में पड़ सकता है.”
बकनर आगे कहते हैं, “गलती करना मानव का स्वभाव है. एक बार ऑस्ट्रेलिया में, मैंने उसे लेग बिफोर विकेट आउट दिया था और गेंद टॉप के ऊपर से जा रही थी. एक और बार, भारत में यह पीछे पकड़ा गया था. गेंद बल्ले के पास से भटक गई लेकिन कोई स्पर्श नहीं हुआ. लेकिन मैच ईडन गार्डन्स पर था और जब आप ईडन में होते हैं और भारत बल्लेबाजी कर रहा होता है तो आप कुछ नहीं सुनते.”
“क्योंकि 1 लाख दर्शक शोर कर रहे होते हैं. वे गलतियां थीं और मैं नाखुश था. मैं कह रहा हूं कि इंसान गलतियां करता है और गलतियों को स्वीकार करना जीवन का हिस्सा है.”
बकनर ने इसके अलावा टेक्नोलॉजी और DRS पर भी बात की. बकनर का मानना है कि DRS ने खेल को बेहतर बनाया है क्योंकि वह अंपायरों के गलत निर्णयों को तत्काल में ही सही कर देते हैं.
बकनर कहते हैं, “मुझे यकीन नहीं है कि यह अंपायरों के आत्मविश्वास को प्रभावित करता है, लेकिन मुझे पता है कि इससे अंपायरिंग में सुधार हुआ है,”
“इसने अंपायरिंग में सुधार किया है क्योंकि एक समय था जब हम कह रहे थे कि बल्लेबाज तथाकथित रूप से नीचे खेल रहा था, इसलिए उसे पहले लेग आउट नहीं दिया जा रहा था, लेकिन अगर तकनीक कह रही है कि गेंद हिट हो रही है, तो आप उसे आउट देना है. इसलिए, हम तकनीक से सीखते हैं.”
बकनर कहते हैं, “अंपायर जो तकनीक का आनंद नहीं लेते हैं, मुझे आशा है कि उनके पास पुनर्विचार होगा. अगर आप गलती करते हैं तो यह क्या करता है इसे मैदान पर सुधारा जा सकता है.
अब जब मैं अंपायरिंग कर रहा था और मैंने एक ऐसे बल्लेबाज को आउट दिया जो आउट नहीं था, उस बारे में सोचते हुए, मुझे एहसास हुआ कि मैंने गलती की है, उस रात सो जाने में काफी समय लगा. अब आप जल्दी से सो सकते हैं क्योंकि सही निर्णय अंततः दिया जाता है.”
दर्शकों, आप स्टीव बकनर द्वारा गलत निर्णयों पर 11 साल बाद दिए गए दलील या स्पष्टीकरण से संतुष्ट हैं या नहीं ? कमेंट करके जरुर बताएं.