वो गेंदबाज जिसने एक दशक तक अकेले दम गेंदबाजी का भार ढोया …
श्रीलंकन क्रिकेट का वो गेंदबाज जिसने एक दशक तक अकेले दम गेंदबाजी का भार ढोया …
पादरी बनने जा रहा लड़का आखिर कैसे बन गया श्रीलंकन क्रिकेट का सफल गेंदबाज
बांग्लादेश के खिलाफ वनडे मैच के पहले ही ओवर में हैट्रिक लेने वाला गेंदबाज
वनडे क्रिकेट में 8 विकेट लेने वाला एकलौता गेंदबाज
श्रीलंका का वो गेंदबाज जिसके सन्यास लेने के बाद भी 2011 के विश्व कप में सेलेक्टरो ने टीम में रखा
क्रिकेट की दुनिया में बहुत कम ऐसे देश हुए है जो दशकों तक टीम के इक्का दुक्का खिलाड़ियों के बलबूते ही क्रिकेट में सफलता अर्जित करते रहे है। और ऐसे बल्लेबाजों या गेंदबाजों के सन्यास के बाद भी टीम को उनका विकल्प दशकों तक नहीं मिल पाया है जो उस महान खिलाड़ी की फिर से अकेले दम भरपाई कर सके। श्रीलंका एक ऐसी ही टीम है जिसमें शुरू में इस टीम के पास ऐसे ऐसे धुरंधर खिलाड़ी रहे है जिन्होंने श्रीलंका क्रिकेट की तस्वीर बदलने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब इस टीम में एक ऐसा तेज गेंदबाज आया जिसने अकेले दम टीम को उन ऊंचाइयों पर पहुंचाया जहां कई गेंदबाज सोच भी नहीं सकते। दशकों तक श्री लंका का यह गेंदबाज जीत की गारंटी बना रहता था। क्योंकि टीम के काम स्कोर को भी डिफेंड करने की अद्भुत क्षमता और कला इस गेंदबाज में थी। …
आज हम बात करने वाले है श्रीलंका क्रिकेट के एक ऐसे तेज गेंदबाज की जो असल में अपने धर्म के प्रति इतनी श्रद्धा रखता था और उसने जीवन मन बना लिया था कि वो एक पादरी बनेगा। लेकिन ना मालूम उसके साथ ऐसा क्या हुआ कि वह एक क्रिकेटर बन गया। हम बात कर रहे हैं श्री लंका के तेज गेंदबाज चमिंडा वास की.. चमिंडा वास विश्व क्रिकेट का वो तेज गेंदबाज जिनके आंकड़ों और वनडे क्रिकेट में बनाए गए रिकॉर्ड आज तक कोई गेंदबाज नही तोड़ पाया । जिसके सन्यास के बाद भी श्रीलंका इसके योगदान को भूल नही पाया। । आज के लेख में हम इसी नायाब सितारे की बात करेंगे ।
चमिंडा वास का जन्म 27 जनवरी 1974 को श्री लंका की राजधानी कोलोंबो के सरहद पर स्थित वट्टाला गांव में एक रोमन कैथोलिक परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम वार्णकुलसुरिया पटाबेंडिगे उषांथा जोसेफ चामिंडा वास है चमिंडा वास विश्व क्रिकेट इतिहास के इकलौते ऐसे खिलाड़ी है जिनका नाम सबसे बड़ा है। चमिंडा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई वट्टाला के सेंट थोनी कॉलेज से पूरी की। इसके बाद वास आगे की पढ़ाई के लिए कोलंबो के सेंट जोसेफ कॉलेज चले गए। रोमन कैथोलिक परिवार में जन्म का असर वास पर यह हुआ कि अपने आसपास माहौल में वे आध्यामिकता को ही देखते थे। अपने धर्म के प्रति वास बहुत सजग थे। इसलिए उन्होंने बड़े होकर पादरी बनने का विचार बना लिया था। वास को ज्ञात था कि पादरी बनने के लिए पढ़ाई को एक लंबा समय देना जरूरी है और वास इसके लिए तैयार भी थे। लेकिन समय के साथ साथ सबकुछ बदलता चला गया। वास ने जब अपने भाई को क्रिकेट खेलते हुए देखा तो वास इस खेल से काफी ज्यादा प्रभावित हुए। अध्यात्म और चिंतन से भरे वास के मन में क्रिकेट ने भी अपनी एक जगह बना ली। वास अब अपना पूरा समय क्रिकेट को देने लगे थे लेकिन भगवान के प्रति उनकी आस्था और श्रद्धा कभी कम नहीं हुई। यही वजह है कि वास आज भले ही क्रिकेट से सन्यास ले चुके हो लेकिन निजी जीवन में किसी कार्य की शुरुआत करने से पहले वो भगवान के दर्शन करना नहीं भूलते। चमिंडा वास बचपन में अब क्रिकेट को लेकर इतना सीरियस हो चुके थे कि उन्होंने क्रिकेट में करियर बनाने की इच्छा जाहिर की। और इसमें उनका साथ एक मार्गदर्शक के रूप में उनके भाई ने दिया। वास ने अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोल्ट्स क्रिकेट क्लब में एडमिशन ले लिया।
साल 1990 में सिर्फ 16 साल की उम्र में गाले क्रिकेट क्लब की ओर से खेलते हुए वास ने डोमेस्टिक क्रिकेट का आगाज कर दिया था। तब वास के गेंदों में उनकी सटीकता, एकाग्रता और पैनापन देखने को मिला। वास ने घरेलू क्रिकेट में महज 13 मैचों मे ऐसा कमाल दिखाया कि वो श्री लंका क्रिकेट सेलेक्टर की नजरों में आ गए थे। और उन्हे नेशनल टीम की तरफ से बुलावा आ गया था। 15 फरवरी साल 1994 वास के लिए वो दिन रहा जब वास ने भारत के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू किया। हालाकि वो अपने पहले मैच में कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाए। और उन्हे सिर्फ एक विकेट से ही संतोष करना पड़ा था। इसके बावजूद सेलेक्टर वास की प्रतिभा को बखूबी जानते थे। इसलिए उन्हें टेस्ट में भी मौका दिया गया। 26 अगस्त 1994 को पाकिस्तान के खिलाफ वास को टेस्ट क्रिकेट में भी पदार्पण करने का अवसर मिला। लेकिन यहां भी उन्हें वनडे की तरह निराशा ही मिली। वास अपने डेब्यू टेस्ट में एक भी विकेट नहीं ले पाए थे और उनकी खूब पिटाई भी हुई थी। उम्मीद के मुताबिक वास का अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू कुछ खास नहीं रहा। और उनका यह प्रदर्शन आगे भी जारी रहा। वास अपने आपसे निराश थे। उन्होंने अपनी गेंदबाजी पर फिर से काम करना शुरू कर दिया।
और इसका इनाम उन्हे 1995 के न्यूजीलैंड दौरे पर मिला। न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले टेस्ट मैच की दोनो पारियों में वास ने पांच पांच विकेट अपने नाम किए। न्यूजीलैंड के बल्लेबाजों को वास की गेंदे समझ ही नही आ रही थी। पूरी टीम वास के आगे बेबस थी। वास ने इसी टेस्ट में बल्ले से भी अच्छा खासा योगदान दिया था जिसके परिणाम स्वरूप उन्हे मैन ऑफ द मैच मिला। उस टेस्ट में श्री लंका की धमाकेदार जीत इसलिए भी खास थी क्योंकि विदेशी धरती पर श्री लंका को इससे पहले सिर्फ हार ही नसीब हो रही थी। वास ने शानदार प्रदर्शन को जारी रखते हुए अगले टेस्ट में फिर से पांच विकेट झटक लिए। और लगातार मैन ऑफ द मैच पाने वाले वास श्री लंका के दूसरे खिलाड़ी बन गए। वास का उस दौर में डेब्यू हुआ था जब श्री लंका विदेशो में कुछ खास नहीं कर पा रहा था। साथ ही ये उस दौर की भी बात थी जब एशिया की दो टीमें भारत और पाकिस्तान अपने पेस अटैक को मजबूत बनाने में लगे हुए थे इसके अलावा कोई और देश नजर नही आ रहा था। ऐसे में वास की एंट्री के रूप में वास को अपना पहला सफल पेस अटैक गेंदबाज मिला था। यहां से वास श्री लंका के जरूरी खिलाड़ी बन गए थे यही वजह थी कि उन्हें साल 1996 विश्व कप के लिए चुना गया। जहां वास ने 6 मैचों मे अपनी कसी हुई गेंदबाजी की और विश्व के बड़े बड़े बल्लेबाजों को बांधे रखा। ऐसा फायदा यह हुआ कि वास की गेंदबाजी से प्रभावित होकर टीम के अन्य गेंदबाजों ने भी पैनापन दिखाया । और श्री लंका ने फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया को हराकर अर्जुन रणतुंगा की कप्तानी में पहली बार विश्व कप का खिताब अपने नाम किया।
वास उस समय ऐसे गेंदबाज थे जो अपनी सटीक लाइन और लेंथ गेंदबाजी के लिए जाने जाते थे। लेकिन समय के साथ उनको पीठ की इंजरी ने परेशान करना शुरू कर दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि वास को अपनी गति धीमी करनी पड़ी। लेकिन वास ने हिम्मत नहीं हारी और नए एक्शन के साथ फिर से मैदान पर लौटे । और अब वास विरोधी टीम के लिए पहले से ज्यादा खतरनाक बन गए थे। वास का कहर साल 2001 में जिम्बाब्वे और वेस्ट इंडीज जैसी टीमों के उपर गिरा। वास ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज में 26 विकेट हासिल किए थे। तब उन्होंने पाकिस्तान के इमरान खान के 25 विकटों का रिकॉर्ड तोड़ा था। इसके बाद इसी साल जिम्बाब्वे के खिलाफ एक वनडे मैच ने वास ने जिम्बाब्वे के आठ बल्लेबाजों को पवेलियन भेज विश्व क्रिकेट में सनसनी फैला दी थी। इन आठ विकटों में एक हैट्रिक भी शामिल थी। उसके बाद से आज तक वनडे क्रिकेट में आठ विकेट लेने का करनामा कोई भी नही कर पाया है इसी मैच से जुड़ा एक किस्सा यादगार बन गया। दरअसल जिस दिन मैच था उनकी पत्नी का जन्मदिन था उनकी पत्नी ने सुबह उनसे कहा कि तुम मैच में 7 विकेट लेकर मैच को जल्दी समाप्त कर देना। ताकि शाम को हम दोनो बर्थडे पार्टी कर सके। और हुआ कुछ ऐसा ही था। वास की घातक गेंदबाजी के आगे पूरी टीम 38 पर सिमट गई।
वास टीम के लिए इतने उपयोगी थे कि उन्हें एक भी मैच से ड्रॉप नहीं किया जा रहा था। साल 2003 के विश्व कप में वास ने फिर कहर बरपाया और 23 विकेट अपने नाम किए। इस विश्व कप में बांग्लादेश के खिलाफ वास ने जो किया वो आज भी अविश्वसनीय रिकोर्डों में से एक है। हुआ कुछ यूं कि वास ने पहली पारी की पहली तीन गेंदों में हैट्रिक ले ली। वास की शानदार गेंदबाजी की बदौलत श्री लंका ने सेमीफाइनल का सफर तय किया था। इस विश्व कप में वास बड़ी बड़ी टीमों पर कहर बरपाकर अपनी टीम को जीत दिला रहे थे। वास अब श्री लंका के सबसे बड़े खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। इसलिए उन्हें वनडे टीम का कप्तान बनाया गया। लेकिन उन्होंने सिर्फ एक वनडे में कप्तानी कर आगे कप्तान बनने से मना कर दिया था। वास जिसके लिए बने थे उसी पर खुद को फोकस रखना चाहते थे। वास ने गेंदबाजी के साथ बल्लेबाजी पर भी ध्यान दिया और उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ अपना पहला टेस्ट शतक जमा दिया। श्री लंका इसी साल वेस्ट इंडीज दौरे पर गई जहां उन्होंने 12 विकेट हासिल किए। वेस्ट इंडीज के विस्फोटक बल्लेबाज क्रिस गेल को वास की काबिलियत के आगे घुटने टेकने पड़े। वास ने उस दौर में विश्व के सबसे बड़े बल्लेबाज कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, हर्षेल गिब्स, क्रिस गेल, रिकी पोंटिंग को सबसे ज्यादा परेशान किया था 2005 तक अपने वनडे करियर में 300 विकेट लेने वाले वास ने साल 2008 में युवराज सिंह को शून्य पर आउट कर 400 विकेट लेने का आंकड़ा भी छू लिया था। वास ने अपने पूरी करियर में टीम के शानदार स्पिनर मुथैया मुरलीधरन का खूब साथ दिया। इन दोनो की जुगलबंदी ने श्री लंका को कई मैच जिताए।
वास ने साल 2009 में पाकिस्तान के खिलाफ तीसरे टेस्ट के बाद सन्यास ले लिया था इससे पहले वास ने साल 2008 को भारत के खिलाफ आखिरी वनडे खेलकर वनडे क्रिकेट को भी अलविदा कह दिया था। क्रिकेट ने दोनो फॉर्मेट से सन्यास लेने के बाद वास टीम के साथ जुड़े हुए थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि साल 2011 के विश्व कप में श्री लंका की टीम में वास को सेलेक्टरों ने बैकप के रूप में रखा था। इसमें कोई दोहराए नहीं है कि वास ने श्री लंका को कई यादगार पल दिए हैं।
चमिंडा वास ने अपने 15 साल के क्रिकेट करियर ने 111 टेस्ट मैच खेले जिसमें उन्होंने 355 विकेट लिए। वहीं 322 ओडीआई में 400 विकेट अपने नाम किए।वास ने सिर्फ 6 अंतरराष्ट्रीय टी 20 मैच खेले है जिसमें उन्होंने 6 विकेट लिए। चमिंडा वास ने आईपीएल में डेक्कन चार्जर्स की तरफ से खेलते हुए 13 मैचों मे 18 विकेट हासिल किए थे।
दोस्तों, चमिंडा वास ने जो काम श्रीलंका क्रिकेट के लिए किया है शायद ही कोई गेंदबाज उनकी जगह ले पाएगा। आप चामिंडा वास के क्रिकेट करियर को कैसे देखते है आप हमें अपनी राय कमेंट करके बता सकते है .