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श्रीलंका का वो खिलाड़ी जो टीम की जीत की गारंटी बन जाता था….

Bihari News

श्रीलंका का वो खिलाड़ी जो टीम की जीत की गारंटी बन जाता था….

करियर की शुरुआत के सात सालों तक शतक ना लगा पाने की खुन्नस में अगले सात सालों में 21 शतक ठोक दिए

क्रिकेट को करियर नहीं मनोरंजन के तौर पर खेलता था फिर बना टीम का विस्फोटक बल्लेबाज

महज 16 साल की उम्र में इस्लाम छोड़ अपनाया बौद्ध धर्म फिर सुनने पड़े थे लोगों के ताने

जब पाकिस्तानी खिलाड़ी अहमद शहजाद ने कहा तुम्हे जन्नत नसीब होगी

क्रिकेट के खेल में एक खिलाड़ी अपनी पहचान सभी से अलग बनाना चाहता है फिर चाहे वो बल्लेबाज हो या फिर गेंदबाज। इसके साथ ही विकेट कीपर और फील्डर भी अपनी पहचान को अलग ही रखना चाहता है। जब से क्रिकेट का जन्म हुआ है ना जाने कितने खिलाड़ियों ने अपनी पहचान अलग अलग तरीके से बनाई है। 70 , 80 के दशक में सुनील गावस्कर का स्ट्रेट ड्राइव शॉट, 90 के दशक में वसीम अकरम की स्विंग और 21वीं सदी में विरेन्द्र सहवाग का अपर कट, या फिर महेंद्र सिंह धौनी का हेलीकॉप्टर शॉट हर किसी खिलाड़ी ने क्रिकेट में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए एक अलग शॉट इजाद किया है। इसी कड़ी में एक ऐसा श्री लंकन बल्लेबाज भी हैं जिसने करियर की शुरुआत के सात सालों तक एक भी शतक नहीं लगाया और इसी खुन्नस में उसने खुद का शॉट दिल स्कूप शॉट इजाद कर दिया। जिसे आज की युवा पीढ़ी भी खेलते हुए नजर आती है। आज हम इसी श्री लंकन खिलाड़ी बात करेंगे जो बतौर ओपनर टीम को ठोस शुरुआत ही नहीं देता था बल्कि जीत की गारंटी भी बन जाता था।

हम बात करने वाले है श्रीलंका क्रिकेट टीम के बेखौफ ओपनर बल्लेबाज तिलकरत्ने दिलशान की.. जो अपनी टीम को सिर्फ ठोस शुरुआत ही नही देता था बल्कि जीत की गारंटी भी बन जाता था। आज हम इस लेख में इसी खिलाड़ी के जीवन के कुछ अनसुने पहेलूओ के बारे में जानने की कोशिश करेंगे। साथ ही ये भी जानने की कोशिश करेंगे । और आखिर ऐसा क्या हुआ कि दिलशान की पत्नी ने इन्हे छोड़कर इन्हे के टीम के एक खिलाड़ी का दामन थाम लिया था और क्यों कोर्ट ने उन्हें अरेस्ट वारंट जारी किया था….

तिलकरत्ने दिलशान का जन्म 14 अक्टूबर 1976 को श्री लंका के कालूटारा में हुआ था। इनका पूरा नाम तिलकरत्ने मुदियांसेलेज दिलशान है। इनके पिता जी मुस्लिम जबकि मां सिघली थी। दिलशान ने अपने स्कूली दिनों में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। दिलशान को क्रिकेट में बहुत दिलचस्पी थी। लेकिन उनका परिवार कतई नहीं चाहता था कि वो क्रिकेट खेलें। इसलिए दिलशान क्रिकेट को एक करियर के रूप में नही सिर्फ एक मनोरंजन के रूप में ही खेलते थे। दिलशान जब 16 के हुए तो उन्होंने इस्लाम छोड़ बौद्ध धर्म अपना लिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि दिलशान का पहले नाम तुआन मोहम्मद दिलशान हुआ करता था। उनके कोच बताते है कि उन्होंने और उनके भाइयों ने बचपन में ही बौद्ध धर्म अपना लिया था। लेकिन दिलशान ने अपना नाम आधिकारिक रूप से तब बदला जब उनके माता पिता का तलाक हुआ। एक मैच के दौरान दिलशान के धर्म को लेकर खूब विवाद उठा था। दरअसल श्री लंका के प्रेमदासा स्टेडियम कोलंबो में श्री लंका और पाकिस्तान के बीच वनडे मुकाबला चल रहा था। श्री लंका की पारी समाप्त हुई तब पाकिस्तानी ओपनर बल्लेबाज अहमद शहजाद ने दिलशान से कहा कि अगर तुम गैर मुस्लिम हो और मुस्लिम धर्म अपना लेते हो। तो इससे कोई फर्क नही पड़ता है। कि तुम क्या करते हो। तुम्हे सीधे जन्नत नसीब होगी। लेकिन शहजाद ये भूल गए थे कि उनकी ये बातें कैमरे ने कैद हो रही थी।

दिलशान टीम के उन खिलाड़ियों में थे जो बैटिंग , बोलिंग और विकेट कीपिंग कर लिया करते थे। 90 के दशक में आते आते श्रीलंका टीम में एक ऑल राउंडर खिलाड़ी की कमी खल रही थी। टीम को जरूरत थी ऐसे खिलाड़ी कि जो बल्लेबाजी के साथ साथ गेंदबाजी में भी कमाल कर सके। और दिलशान ये काम बखूबी कर सकते थे। दिलशान की विकेट कीपिंग उनके लिए बोनस साबित हुई। नतीजा यह हुआ कि दिलशान श्रीलंका टीम में चुन लिए गए। दिलशान करियर की शुरुआत में मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज ही थे उन्हें बैटिंग के लिए नंबर तीन से लेकर नंबर आठ तक उतारा गया। दिलशान जैसा विस्फोटक बल्लेबाज वो भी नंबर आठ पर सुनकर आपको हैरानी हो सकती है। लेकिन यह सच है। टीम के कप्तान और कोच उन्हे नंबर 6 पर ज्यादा भेजते। यह जानते हुए कि इस खिलाड़ी में काबिलियत और टैलेंट कूट कूट कर भरा है। दोस्तों दिलशान के करियर का एक सच यह भी है कि दिलशान साल 1999 से लेकर 2005 तक वनडे क्रिकेट में एक भी शतक नहीं लगा सके। हालाकि छठे नंबर पर खेलते हुए किसी भी खिलाड़ी के लिए सेंचुरी बनाना इतना आसान काम नहीं है इसके बावजूद दिलशान कभी अपने टैलेंट के हिसाब से प्रदर्शन नहीं कर पाए। । इस बीच दिलशान को 87 वनडे मैच खेलने को मिले और उन्होंने सिर्फ 2088 रन ही बनाए। इसमें एक भी शतक शामिल नही था। ये आंकड़े ये विस्फोटक और बेखौफ बल्लेबाज के लिए हैरान करने वाले है।

तिलकरत्ने दिलशान को अपने पहले वनडे शतक के लिए लगभग 7 सालों का इंतजार करना पड़ा। साल 2006 में कमजोर टीम नीदरलैंड के खिलाफ अपना पहला शतक जमाया। लेकिन यह मैच खास बन गया था क्योंकि इस मैच में जहां दिलशान ने 117 रनों की पारी खेली थी वहीं सनत जयसूर्या ने 157 रन बनाए थे। इन दोनो के शतको की वजह से ही श्रीलंका ने 444 रनों का विशाल स्कोर बनाया था। इस शानदार पारी के बाद लगने लगा था कि सबको एक नया दिलशान देखने को मिलेगा। लेकिन अफसोस ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। साल 2007 और 2008 तक दिलशान का बल्ला खामोश रहा। उनका लगातार खराब प्रदर्शन उन्हे टीम से बाहर निकालने का जरिया बन गया था। और यही हुआ भी।

2008 में भारत के खिलाफ खराब प्रदर्शन के चलते दिलशान को टीम से बाहर कर दिया गया। लगभग 6 महीने बाद उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ फिर मौका मिला। इस बार दिलशान की किस्मत ने कुछ और ही सोचा था। टीम मैनेजमेंट ने उन्हें बतौर ओपनर भेजा। और फिर यहीं से दुनिया ने एक नया तिलकरत्ने दिलशान देखा। और अपने पहले ही मैच में दिलशान ने 33 गेंदों पर 42 रन बना दिए। दिलशान की ये पारी भले ही छोटी थी लेकिन विश्व क्रिकेट में एक नए तूफान के आने का संकेत था। दिलशान ने दूसरे मैच में 76 तो तीसरे मैच में 137 रन ठोक डाले।इतना ही नहीं इस साल उन्होंने तीन और शतक ठोके। दिलशान से ओपनिंग कराने का फैसला टीम मैनेजमेंट और खुद दिलशान के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। यहां से दिलशान की किस्मत और अंदाज दोनो बदल गया। मतलब दिलशान पहले से भी ज्यादा खतरनाक हो गए थे। दुनिया ने दिलशान का 2.0 वाला क्लेवर देखकर हैरत में पड़ गई। विरोधी टीम दिलशान का विकेट निकालने के लिए अपने तरकश के सभी तीर आजमाने लगे। लेकिन दिलशान जिस काम के लिए मैदान पर आते वो करके ही जाते थे। दिलशान विरोधी गेंदबाजों पर ऐसे बरसते मानो जंग में पूरी तरह से नेस्तनाबूत कर दिया हो। गेंदबाजों में दिलशान का खौफ बढ़ गया था। दुनियाभर के क्रिकेट जानकर और क्रिकेट पंडित हैरान थे कि एक खिलाड़ी की केवल पोजिशन बदलने से इतना कैसे बदल सकता है दिलशान मैदान पर बेखौफ बेधड़क अविश्वसनीय पारियां खेल रहे थे।

दिलशान ने साल 2009 में 55 की औसत से एक हजार से ज्यादा रन बना दिए। इसमें 160 रनों की शानदार और मैच जिताऊ पारी थी। जो दिलशान की अच्छी पारियों में से एक थी। दिलशान यहीं नहीं रुके वो और खतरनाक होते गए। ऐसा लगने लगा कि दिलशान पुरानी असफलताओं का बदला लेना चाहते हो। साल 2010 में उन्होंने तीन शतक बनाए। फिर आया साल 2011 का विश्व कप। भले ही इस विश्व कप के फाइनल में श्री लंका भारत के हाथों हार गया। लेकिन पूरे टूर्नामेंट में दिलशान ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस विश्व कप में उन्होंने 9 मैचों मे 500 रन बनाए थे जिसमें दो शतक और दो अर्द्ध शतक शामिल है। दिलशान ने पूरे टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बनाए थे। दिलशान के लिए तो सुनहरा पल अब आने वाला था साल 2012 और 2013। इन दो सालों में दिलशान ने 7 शतक और 1100 से ज्यादा रन बना डाले। 2011 के विश्व कप की तरह 2015 विश्व कप में भी दिलशान के बल्ले ने खूब आग उगला। इस विश्व कप में उन्होंने 4 शतक शतक 6 अर्द्ध शतक के साथ 1200 से अधिक रन बना डाले। सोचने वाली बात यह है कि जिस खिलाड़ी ने अपने शुरुआती सात सालों में एक भी शतक ना बनाया हो और अगले 7 सालों में 21 शतक ठोक डाले हो वो कोई कमजोर खिलाड़ी की निशानी नहीं है। इसके बाद दिलशान अपने सन्यास तक टीम के लिए ओपन ही करते रहे। दिलशान ने अपना टेस्ट डेब्यू साल 1999 में ही किया था। जहां उन्होंने अपने दूसरे ही टेस्ट में जिम्बाब्वे के खिलाफ शतक ठोक डाला था और मैन ऑफ द मैच खिताब जीत लिया। साथ ही उन्होंने बता दिया कि वो लंबी रेस के घोड़े है। दिलशान के बल्ले से एक शतक निकलने के बाद उनका बल्ला वनडे की तरह खामोश हो गया। नतीजा यह हुआ कि उन्हें टेस्ट टीम से बाहर कर दिया गया। साल 2007 में सनत जयसूर्या के सन्यास के बाद ये अटकलें लगाई जाने लगी कि जयसूर्या के जैसा कौन ऐसा विस्फोटक बल्लेबाज है जो उनकी तरह टीम को शुरुआत दे सके। तब 2009 को दिलशान को रेगुलर ओपनिंग करने की जिम्मेदारी मिली और इस जिम्मेदारी को दिलशान ने बखूबी निभाया। साल दर साल उनका प्रदर्शन निखरता गया। और एक साल में उन्होंने 11 टेस्ट में 6 शतक जमा दिए। साल 2011 के विश्व कप के बाद जब कुमार संगकारा ने कप्तानी छोड़ी तो दिलशान को टीम की कमान मिली।

दिलशान ने रिटायरमेंट के बाद एक इंटरव्यू में कहा कि वो कप्तानी के लिए बिल्कुल ने इच्छुक नहीं थे। लेकिन टीम मैनेजमेंट ने उन्हें 6 महीने के लिए कप्तानी करने को कहा। दिलशान जब कप्तान बने तो टीम की परफोर्मेंट नीचे गिरती चली गई। इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया ,पाकिस्तान और साउथ अफ्रीका से हारने के बाद दिलशान की कप्तानी पर सवाल उठने लगे। जिसके बाद साल 2012 में उन्होंने कप्तानी छोड़ दी। क्रिकेट में एक ऐसा शॉट है जिसे दिलशान ने खुद ईजाद किया था। वो शॉट दिलस्कूप शॉट है। असल में ये साधारण स्कूप शॉट ही था। लेकिन दिलशान ने इसे विकट कीपर के सिर के ऊपर से खेल दिखाया तो उन्हीं के नाम पर यह शॉट पड़ गया। दिलशान ने 2012 टी20 विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिर्फ 57 गेंदों में शतक जमाया था इसमें ज्यादातर शॉट दिलस्कुप ही थे। दिलशान ने 2013 में टेस्ट क्रिकेट से सन्यास ले लिया। लेकिन वो वनडे और टी20 खेलते रहे। लेकिन ज्यादा दिनों तक नहीं साल 2016 में दिलशान ने वनडे क्रिकेट को भी अलविदा कह दिया। दिलशान उस समय क्रिकेट में एक ऐसे खिलाड़ी बन गए थे जिन्होंने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में शतक जमाया था।

दोस्तों दिलशान का निजी जीवन भी काफी विवादों में भी रहा। इनकी पत्नी का अफेयर उन्ही के साथ खिलाड़ी उपुल थरंगा से चला। इसके बाद दिलशान की पत्नी ने उन्हें तलाक दे दिया। इतना ही नहीं बाद में उसकी पत्नी ने गुजारे भत्ते के लिए केस भी ठोक दिया। बाद में इस मामले। दिलशान ने हर महीने भत्ते की रसम को सेट कर लिया। लेकिन साल 2017 में ये केस फिर खुला जब दिलशान रकम देने में नाकाम रहे। और कोलंबो कोर्ट ने अरेस्ट वारंट जारी कर दिया।

वो भी गैरहाजिरी के रूप में। दिलशान ने कुछ महीने दूसरी शादी श्रीलंका की अभिनेत्री मंजुला थिलिनी से की। दिलशान उन खिलाड़ियों में से है जो चमकते तो है मगर देर से।

दिलशान ने अपने क्रिकेट करियर में 87 टेस्ट , 330 वनडे और 80 टी 20 मैच खेले है जिसमें उन्होंने टेस्ट में 16 शतक की बदौलत 5492 रन बनाए है। वहीं वनडे में 22 शतक के साथ 10292 रन। टी 20 में इकलौते शतक की बदौलत 1889 रन बनाए है। दिलशान ने आईपीएल में दिल्ली कैपिटल और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर टीम का प्रतिनिधित्व किया है जहां उन्होंने 57 मैचों मे 1158 रन बनाए है।

दोस्तों, तिलकरत्ने दिलशान के खेल और फिटनेस को देखते हुए आपको नहीं लगता उन्होंने सन्यास समय से पहले ले लिया। आप हमें अपनी राय वीडियो में कमेंट करके बता सकते है .

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