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छठ से जुड़ी पौराणिक कथा, क्या है इस पर्व का इतिहास…

Bihari News

बिहार वासियों के लिए छठ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक महापर्व है. इस पर्व के दौरान लोगों के घर में काफी चहलपहल होती हैं. जानकारी के लिए बता दे कि इस पर्व की शुरुआत नहायखाय से होती है जो उगते हुए सूरज को अर्ध्य देकर खत्म होती हैं. इस पर्व को साल में दो बार मनाया जाता हैं. जिसमें पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में मनाया जाता हैं. आप सभी में से कई ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस पर्व से जुड़े इतिहास के बारे में जानकारी होगी. की ये पर्व क्यूँ मनाया जाता हैं , इसके पीछे की कहानी क्या हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे भी होंगे जिन्हें इन बातों की कोई जानकारी नहीं होगी. आज हम आपको इस विडियो में छठ से जुड़ी कुछ बातों को बताने वाले हैं , कि ये पर्व क्यूँ मनाया जाता हैं, इसका इतिहास क्या हैं. आपको बता दे कि इस पर्व को इसलिए मनाया जाता है ताकि परिवार में सुखसमृद्धि बनी रहे और उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं.चलिए अब हम आपको बताते है कि इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई. इस पर्व को लेकर कई सन्दर्भ प्रचिलित है. जिनमें से एक प्रसंग रामायण काल से जुड़ा है. एक मान्यता के अनुसार जब रामसीता रावन का वध कर के 14 वर्ष बाद वनवास से लौटे थे तब उन्होंने ऋषि मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया था. इस दौरान सीता मुगदल ऋषि के आश्रम में रह कर 6 दिनों तक सूर्यदेव की आराधना की थी. वहीं छठ से जुड़ी दूसरी मान्यता यह है कि इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. इस पर्व को सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा किया गया था ऐसा कहा जाता है कि कर्ण घंटों पानी में खड़े हो कर सूर्य को अर्ध्य दिया करते थे. सूर्य को अर्ध्य दान देने की परंपरा आज भी चली आ रही हैं. इसके साथ ही महाभारत से ही जुड़ी एक और कथा है. इस कथा में ऐसा कहा जाता है की इस पूजा को द्रौपदी ने रखा था. बता दे कि द्रौपदी ने यह पूजा इसलिए की थी क्योंकी पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे. द्रौपदी की यह पूजा सफल हुई और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया था.इन कथाओं के लावा एक और पौराणिक कथा छठ पूजा से जुड़ी हुई है. पुरानों के कथा के अनुसार , प्रियवत नामक एक राजा था , जिसका कोई संतान नहीं था. उस राजा ने संतान की प्राप्ति के लिए कई कर्म कांड किये लेकिन उसे संतान की प्राप्ति नही हुई. अंत में उस राजा ने महर्षि कश्यप से परामर्श कर पुत्रयेष्टी यज्ञ किया . जिसके बाद महारानी को पुत्र को प्राप्ति हुई, लेकिन उनका वह पुत्र मरा हुआ था. जिसके बाद उस मृत बचे को दफनाया जाने लगा . बता दे कि जब उस बच्चे को दफनाया जा रहा था , तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा . जिसके बाद उस विमान से एक देवी निकली और उस मृत बच्चे को स्पर्श कर उसे जीवित कर दिया. इस घटना के बाद ही राजा ने यह निश्चय किया कि अब उनके राज्य में यह त्योहार मनाया जायेगा और उन्होंने पूरे राज्य में इस पूजा को करने की घोषणा कर दी.

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