किसानों के हित में सरकार द्वारा जारी किये गये कल्याणकारी योजनाओं को सही समय पर और ईमानदारी के साथ शुरू नहीं करने की वजह से किसानो की मेहनत बेकार हो जाती है. हमें अक्सर यह देखने को मिलता है की किस प्रकार किसान दिनरात एक कर मेहनत करते हैं और फसल उगाते हैं. लेकिन इस मेहनत पर पानी तब फिर जाता है जब उनके मेहनत का बाज़ार में सही दाम नहीं मिल पाता. आपको बता दें की धान की कीमत 2040 रुपये प्रति क्विंटल सरकार द्वारा तय की जा चुकी है. लेकिन इसमें कई तरह के नियम कानून होने के कारण इसका फायदा केवल क्रय केंद्र और विभागीय कर्मियों को ही हो रहा. पर बात यह है की 2040 रुपये प्रति की जगह किसान को 1730 रुपये प्रति क्विंटल का ही भुगतान किया जा रहा. लिहाजा अब सवाल यह है की आखिर 310 रुपये कम कर के भुगतान क्यों किया जा रहा. आखिर इसकी वजह क्या है.

इस सवाल के जवाब की ओर बढ़ने से पहले हम उन बिचौलियों की चर्चा करते हैं जिनके हाथों हमारे किसानों को कम दाम में ही अपने फसल को बेचना पड़ता है. बिचौलियों की चर्चा के बाद ही हम किसानो को 310 रुपये कम मिलने वाली गुत्थी को सुलझा सकते हैं. दरअसल इन सरकारी योजनाओं के समय पर शुरू नहीं होने के कारण हमारे किसान अपनी फसलों को बिचौलियों के हाथों बहुत ही कम कीमत पर बेचना पड़ता है. मिली जानकारी के अनुसार पैक्स अध्यक्ष ने जिले के किसानों का धान लेने में देरी कर दी. यही वजह है की किसानों को मजबूरन अपने धान को बिचौलियों के हाथों बेचना पड़ा. डाढापीपर जो की कुर्साकांटा प्रखंड में पड़ता है वहां के निवासी किसान भूपेन्द्र नारायण सिंह ने बताया की पैक्स या व्यापर मंडल द्वारा उन्ही किसानों से धान लिया जा रहा जो उनके जानने वाले हैं. बाकि वैधानिक अनिवार्यता के लिए न्यूनतम संख्या पूरी करने में लगे हुए हैं. इतना ही नहीं व्यापारियों से व्यापार मंडल और पैक्सों द्वारा 1625 रुपये से लेकर 1675 रुपये तक की धान खरीदी जा रही है.

जबकि जो किसान जिस पंचायत के व्यापर मंडल में रजिस्टर्ड हैं वे किसान अपने धान वहीँ बेचेंगे. लेकिन इससे पहले किसानों को अपने घर से क्रय केंद्र और फिर क्रय केंद्र से मिलर तक धान के ढुलाई का खर्चा, और फिर प्रति क्विंटल 8 किलोग्राम धान की कटौती है जहाँ लगभग 20.40 रुपये किलो के दर के हिसाब से लगभग 163 रुपये की कटौती की जाती है. साथ ही साथ पैक्स द्वारा किसानों के खाते में भेजे जाने वाले 20 रूपए और 80 रुपये मिलिंग चार्ज के रूप में देना ही पड़ता है. यदि इन सभी खर्चों को जोड़ा जाये तो लगभग 310 रुपये के आसपास की कटौती होती है. और यही वजह है की किसानो के हिस्से में 2040 रुपये की बजाये 1730 रुपये ही रह जाते हैं.

रामपुर कोदरकट्टी गाँव के एक किसान ने बताया की पैक्स द्वारा धान बेचने पर पैसे मिलने में समय लग जाते हैं. वहीँ यदि अपने फसल को बिचौलियों के हाथों बेचो तो पैसे हाथोहाथ मिलने की सम्भावना होती है. लेकिन बिचौलियों द्वारा किसानो को प्रति क्विंटल मात्र 1500 रुपये तक का ही फायेदा हो पाता है. लेकिन हाथोंहाथ पैसे मिलने की उम्मीद में किसान इन बिचौलियों पर ही आश लगाये होते हैं. कई बार पैक्स द्वारा भी सरकारी तय दर से कम राशी में धान की खरीद हुई है. कुछ किसानो ने तो यह भी बताया की पैक्स द्वारा धान की खरीद ही नहीं की गयी है, और इस वजह से भी किसान पैक्स या व्यापार मंडल में धान बेचने से वंचित रह जाते हैं. आपको बता दे की इस तरह की कार्यवाई के विरुद्ध यदि किसान शिकायत करते हैं तो तुरंत सम्बंधित व्यापार मंडल और पैक्स के विरुद्ध सख्त कार्यवाई की जा सकती है. आपकी जानकारी के लिए आपको बताते चलें की सरकार की तरफ से ऐसा कोई भी निर्देश जारी नहीं किया गया है जहाँ धान की दर में कटौती कर राशी दी जाये.

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