अपने डेब्यू टेस्ट मैच में 8 विकेट लेने वाला गेंदबाज
टूटे पांव से जिसने लिखी भारत की जीत की कहानी, गावस्कर से तनातनी के बाद खत्म हो गया करियर
जिसने बेबाकी से रखी अपनी बात, 30 साल के बाद मिला डेब्यू का मौका लेकिन फिर भी 100 से अधिक विकेट लेकर बनाया रिकॉर्ड
भारतीय क्रिकेट बोर्ड को आइना दिखाने वाला दिलेर खिलाड़ी, जो भिड गए थे गावस्कर से
वो 1981 भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा था, पहला टेस्ट ऑस्ट्रेलिया ने एक पारी से जीत लिया था. दूसरा टेस्ट ड्रा हुआ था फिर बारी आई मेलबर्न टेस्ट की, जो कई वजहों से काफी मशहूर है. पहली और सबसे बड़ी वजह तो कप्तान सुनील गावस्कर का वाक आउट था. खैर, पहली पारी में 182 रनों से पिछडने के बाद टीम इंडिया ने बेहतरीन खेल का परिचय दिया और मुकाबले को 59 रनों से जीत लिया था. गुंडप्पा विश्वनाथ को ‘प्लेयर ऑफ द मैच‘ चुना गया था, उन्होंने पहली पारी में शतक लगाया था और गेंदबाजों में कपिल देव की जमकर तारीफ हुई थी, उन्होंने दूसरी पारी में 5 विकेट चटकाए थे. लेकिन उस मैच के दौरान जिस खिलाड़ी ने सबसे बड़ा बहादुरी वाला काम किया था, उनका ड्यू आज भी बाकी है. भारत की उस जीत में जिस खिलाड़ी ने वीरता दिखाई थी और जीत में बड़ा योगदान दिया था, उस खिलाड़ी को उसका क्रेडिट कभी नहीं मिला.
आज हम भारत के उसी अनसंग हीरो की बात करेंगे. इस लेख में हम आपको उस खिलाड़ी के जीवन और क्रिकेट करियर के कुछ जानी–अनजानी और अनकही बातों से आपको रूबरू करवाएंगे, जिसका नाम है दिलीप दोषी. तो हम थे 1981 इंडिया वर्सेज ऑस्ट्रेलिया मेलबर्न टेस्ट में, दिलीप दोषी ने पहली पारी में 3 विकेट चटकाए थे जबकि दूसरी पारी में उन्होंने 2 विकेट लिए थे यानी ऑस्ट्रेलिया के एक चौथाई बल्लेबाजों को पवेलियन का रास्ता दिखाया था और भारतीय टीम वह मुकाबला 59 रनों से जीता था लेकिन दोषी को मिलने वाला क्रेडिट आज तक ड्यू है.
इस मैच से जुड़ा एक वाकया शायद ही आपको मालूम होगी. दोषी ने मेलबर्न टेस्ट में कुल 5 विकेट लिए थे, ये तो आपको पता है लेकिन किस कीमत पर वो विकेट आए थे, ये शायद आपको मालूम नहीं होगी. दरअसल, दिलीप दोषी उस मैच में पांव के फ्रैक्चर के साथ खेले थे. इस मैच के कई साल बाद दोषी ने एक इंटरव्यू में कहा था, “मेरे पांव में फ्रैक्चर था लेकिन मैंने कहा कि मैं खेलूंगा. हर शाम मेरे पांव में इलेक्ट्रोड लगाकर झटके दिए जाते थे. इन झटकों से काफी दर्द होता था लेकिन इससे सूजन कम रहती थी. अगली सुबह मुझे अपने पैर बर्फ से भरी बाल्टी में रखने पड़ते थे जिससे वो जूतों में फिट हो सकें. बहुत कम लोग इस बात को समझ पाए कि मैंने वो क्यों किया. मैंने वो इसलिए किया क्योंकि मुझे भरोसा था कि हम जीतने वाले हैं और मुझे इसमें योगदान देना होगा.” ऐसे हिम्मत वाले दिलीप रसिकलाल दोषी भारत के लिए सिर्फ 4 साल ही खेल पाए. दिलीप दोषी उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से हैं, जो इंडिया डेब्यू से पहले इंटरनेशनल स्टार बन चुके थे. वो किसी भी एरा में भारत के लिए 100 टेस्ट खेलने की काबिलियत रखते थे लेकिन दुर्भाग्य देखिए, वो 70 के दशक में खेले, जब भारत के पास इरापल्ली प्रसन्ना, बिशन सिंह बेदी, भगवत चन्द्रशेखर और वेंकटराघवन की चौकड़ी थी. इन चारों से कोई पार पाए तो खड़े मिले रजिंदर गोयल, रजिंदर हंस, पद्माकर शिवालकर और शिवलाल यादव.
सालों तक भारत से लेकर इंग्लैंड तक सैकड़ों विकेट लेने के बाद आख़िरकार दिलीप दोषी को भारत की तरफ से डेब्यू करने का मौका मिला. वो ऑस्ट्रेलिया का 1979 भारत दौरा था, चेन्नई में खेले गए सीरीज के पहले टेस्ट में दिलीप दोषी ने अपना इंटरनेशनल डेब्यू करते हुए जबरदस्त प्रदर्शन किया था. दोषी ने पहली पारी में 6 विकेट और दूसरी पारी में 2 विकेट चटकाए थे. वो मैच ड्रा हुआ था लेकिन दोषी ने 8 विकेट लेकर सनसनी मचा दी थी.
एथलीट की संरचना से पूरे उलट शरीर और मोटे फ्रेम वाला काला चश्मा, दिलीप कहीं से भी समाज के बनाए एथलीट की परिभाषा में फिट नहीं बैठते थे लेकिन टीम में खूब फिट बैठे कम से कम तब तक जब तक उनकी गावस्कर से ठन नहीं गई. इंडिया के लिए वो भले ही 33 टेस्ट ही खेले लेकिन घरेलु क्रिकेट और काउंटी में वे खूब खेले. उनके काउंटी क्रिकेट करियर के दौरान का एक किस्सा है दोस्तों, जो शायद बहुत कम लोगों को पता होगी. एक बार जब दिलीप दोषी काउंटी में नॉटिंघमशायर के लिए खेल रहे थे, तब काउंटी ने उनका खेल देखने के लिए वेस्टइंडीज के महान गैरी सोबर्स को न्योता दिया था. सोबर्स आए और मैच देखा. इस मैच में 7 विकेट लेने के बाद जब दिलीप मैदान से वापस लौट रहे थे तभी उन्होंने काला चश्मा लगाए गैरी सोबर्स को उनकी सिल्वर जैगुआर के पास खड़े देखा. सोबर्स ने जब दिलीप को देखा तो वो उनके पास आए, हाथ मिलाया और बोले – ‘बहुत अच्छे बेटे, तुम बेहतरीन हो.’
सुनील गावस्कर से उनकी तनातनी पर एक इंटरव्यू में दिलीप ने कहा था, ‘सुनील गावस्कर एक मास्टर बल्लेबाज थे. उनके जैसे बल्लेबाज बेहद कम हुए हैं. लेकिन कई मौकों पर हम नजरें नहीं मिलाते थे और वह मेरे कप्तान थे. एक बॉलर उतना ही अच्छा हो सकता है जितना अच्छा उसका कप्तान चाहे या उसे बना पाए.’
इंडिया के लिए खेलते हुए दिलीप को इंडियन टीम से तमाम शिकायतें थी. अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘स्पिन पंच‘ में उन्होंने लिखा, ‘भारतीय टीम को बस एक चीज का जुनून है – पैसा. यह बेहद घिनौना है और BCCI तो सरकार के अंदर सरकार जैसी व्यवस्था है, जो किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है.’ दिलीप दोषी का मानना था कि उनके क्रिकेट करियर के दौरान प्रचार–प्रसार और विज्ञापन अपनी हद पार कर चुके थे. उन्होंने एक वनडे मैच से पहले हालात का जिक्र करते हुए लिखा था “पूरी बातचीत स्पोंसरशिप, प्राइज मनी, लोगो रॉयल्टी और मैच फीस के इर्द–गिर्द थी. क्रिकेट पर तो सबसे अंत में बात होती थी. सुनील गावस्कर आज चाहे जितनी देशप्रेम की बात करें. उस वक्त वह व्यक्तिगत पसंद–नापसंद से बुरी तरह घिरे हुए इंसान थे. और चैलेंज करने पर वह कपटी और बातें घुमाने वाले व्यक्ति हो जाते थे. साल 1981-82 में इंग्लैंड के खिलाफ उन्होंने मुझे बोलिंग में और वक्त लेने के लिए कहा, फिर जब इंडिया के बुरे ओवर–रेट की आलोचना हुई तो मुझे सारी आलोचना अकेले झेलनी पड़ी. गावस्कर किनारे हो लिए.”
दिलीप ने ऐसी तमाम घटनाओं का जिक्र करते हुए इंडियन क्रिकेट के काले सच को सब के सामने लाया था. उन्होंने ऐसे ही एक घटना का जिक्र करते हुए लिखा, ‘युवा पेसर रणधीर सिंह एक टूर मैच में बॉलिंग कर रहे थे. उनकी बॉलिंग पर सीनियर्स ने स्लिप में तीन कैच गिराए. वो लोग स्लिप में सिर्फ इसलिए खड़े होते थे जिससे आपस में बातें करते हुए टाइमपास कर सकें. लगातार कैच गिराने पर माफ़ी मांगना तो दूर, किसी ने इसका नोटिस तक नहीं लिया.’
32 साल की उम्र में अपना इंटरनेशनल डेब्यू करने वाले लेफ्ट हैंड लेग स्पिनर ने भारत के लिए 33 टेस्ट और 15 वनडे मुकाबले खेले. 33 टेस्ट में उनके नाम 114 विकेट दर्ज हैं जबकि 15 वनडे में उन्होंने 22 विकेट चटकाए हैं. 22 दिसंबर, 1947 को गुजरात के राजकोट में जन्मे दिलीप दोषी ने 238 फर्स्ट क्लास मुकाबलों में 898 विकेट हासिल किए हैं. साथ ही उन्होंने 59 लिस्ट–ए मैचों में 75 विकेट अपने नाम किए हैं. दिलीप 30 साल या उससे अधिक उम्र में डेब्यू करने के बावजूद 100 टेस्ट विकेट लेने वाले दुनिया के सिर्फ दूसरे खिलाड़ी थे. क्लारी ग्रिमेट यह कारनामा करने वाले पहले खिलाड़ी हैं. दोषी के बाद सईद अजमल और रेयान हैरिस ने भी ये उपलब्धि हासिल की. चक दे क्रिकेट की पूरी टीम दिलीप दोषी के उज्जवल भविष्य की कामना करती है. आपको क्या लगता है दोस्तों ? किस वजह से दिलीप दोषी का इंटरनेशनल करियर ज्यादा लंबा नहीं चल पाया ? कमेंट में हमें बताएं.