बिहार का एक ऐसा जिला जो त्रेता युग में बना माँ सीता का शरणस्थल

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  • भूमिका

आज हम बात करेंगे बिहार के एक ऐसे जिले के बारे में जहाँ से महात्मा गाँधी ने स्वतंत्रता आन्दोलन की नींव रखी थी. बिहार का एक ऐसा जिला जिसका इतिहास भारत के इतिहास के पन्नों में अपनी एक अहम भूमिका निभाता है. जी हाँ तो आज हम बात करेंगे बिहार के पूर्वी चंपारण के बारे में. जो की बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है.इस जिले का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, चंपा और अरण्य. इसका अर्थ होता है चंपा के पेड़ों से ढका हुआ जंगल. बता दें की वर्ष 1971 में चंपारण को विभाजित कर के पूर्वी चंपारण को बनाया गया था. मोतिहारी में इस जिले का मुख्यालय स्थित है. यदि हम इसके चौहद्दी की बात करें तो इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी यदि पश्चिम में देखे तो पश्चिम चंपारण और वहीँ दूसरी तरफ दक्षिण की दिशा में मुजफ्फरपुर और उत्तर की दिशा में नेपाल स्थित है.

  • जिला एक नज़र में

इस जिले का क्षेत्रफल 3,968 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यहाँ की आबादी 50,99371 है. इस जिले में छह अनुमंडल, 27 प्रखंड और 1344 गाँव तथा 9 शहरी स्थानीय निकाय मौजूद हैं.

इतिहास

आइये अब अपने इस चर्चा में जानते हैं पूर्वी चंपारण के गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में. इसका इतिहास महाकाव्य काल जितना हीं पुराना है. बता दें की यहाँ के तपोवन नामक स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति के लिए यहाँ के राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव द्वारा घोर तपस्या की गयी थी. इसका इतिहास त्रेता युग से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक इतिहास के अमूल्य पन्नो पर देखने को मिलेगा. त्रेता युग के समय चंपारण की धरती पर माता सीता की शरणस्थली होने के कारण यह पवित्र है तो वहीँ भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में महात्मा गाँधी के चंपारण सत्याग्रह के लिहाज से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण रहा. चंपारण मिथिला प्रदेश का राजा जनक के समय एक अहम अंग हुआ करता था. वहीँ तीसरी सदी ईसापूर्व में गौतम बुद्ध ने यहाँ उपदेश भी दिया था. इसी के याद में चंपारण में स्तंभ और स्तूप का निर्माण प्रियदर्शी अशोक द्वारा करवाया गया. आगे चल कर मिथिला के साथसाथ चंपारण भी कर्नाट वंश के अधीन हो गया. कर्नाट वंश के अधीन यह क्षेत्र गुप्त वंश और पाल वंश के पतन के बाद आया. आगे चलकर मुसलमानों ने भी यहाँ शासन किया. मुसलमानों के शासन के बावजूद भी यहाँ पर स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन देखने को मिला. स्वतंत्रता संग्राम के समय महात्मा गाँधी अप्रैल 1917 में चंपारण के रैयत और स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर मोतिहारी आये थे. यहाँ महात्मा गाँधी द्वारा नील की फसल के लिए लागू तीनकठिया खेती के विरोध में पहला सफल सत्याग्रह का प्रयोग हुआ. आज़ादी के लड़ाई में यह पहले चरण की एक सफल शुरुआत देखने को मिली थी. चंपारण को एक स्वतंत्र इकाई वर्ष 1866 में अंग्रेजों द्वारा बना दिया गया था. आगे चलकर उन्होंने चंपारण का विभाजन वर्ष 1971 में पूर्वी और पश्चिमी चंपारण के रूप में कर दिया.

महत्वपूर्ण व्यक्तित्व

आइये अब हम बात करते हैं पूर्वी चंपारण के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के बारे में. यहाँ के प्रतिष्ठित व्यक्ति की सूचि में हम सबसे पहले जानेंगे राजकुमार शुक्ल के बारे में. राजकुमार शुक्ल चंपारण के मुरली भराहावा ग्राम के निवासी थे. ये एक स्वतंत्रता सेनानी थे और इनका स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा. इन्होने महात्मा गाँधी को चंपारण आने का न्योता दिया था. और फिर अपने क्षेत्र में किसानों की पीड़ा और अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे शोषण की दास्ताँ बताई. साथ हीं साथ इसे दूर करने का आग्रह भी किया. इसमें कोई दो राय नहीं की चंपारण के आन्दोलन से महात्मा गाँधी के जुड़ाव का श्रेय राजकुमार शुक्ल को जाता है.

अब दूसरे नंबर पर हम जानेंगे जॉर्ज ऑरवेल के बारे में. जॉर्ज ऑरवेल अंग्रेजी साहित्य के महान लेखक थे और इनका जन्म 25 जून वर्ष 1903 में मोतिहारी में हीं हुआ था. इनके पिता रिचर्ड वेल्मेजली ब्लेयर चंपारण के हीं अफीम विभाग में कार्यरत एक सिविल अधिकारी थे. जन्म के कुछ समय बाद हीं जॉर्ज ऑरवेल इंग्लैंड चलें गये और वहीँ से उन्होंने अपनी पढाई के साथसाथ लेखन आरम्भ किया. इन्होने अपने जीवन काल में कुल नौ किताबें लिखी और वे सभी प्रकाशित भी हुई. इनमे तीन गैर फिक्शन किताबें और छह काल्पनिक पुस्तकें थी. इनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में 1984 और एनिमल फार्म है.

चलिए अब हम जानते हैं रमेश चन्द्र झा के बारे में जो की स्वतंत्रता संग्राम के समय एक सक्रीय क्रन्तिकारी थे. इनका जन्म चंपारण जिले के फुलवरिया गाँव में 8 मई 1928 को हुआ था. रमेश चन्द्र झा स्वतंत्रता सेनानी होने के साथसाथ हिंदी और मैथली के कवि, पत्रकार और उपन्यासकार भी थे. इनके कहानी और कविताओं में देशभक्ति, राष्ट्रीयता की झलक और मानव मूल्यों और जीवन के संघर्ष की अभिव्यक्ति साफ़साफ़ देखने को मिलती थी. रमेश चन्द्र झा ने चंपारण के समृद्ध साहित्यिक विरासत को अपने और सपने: चंपारण की साहित्य यात्रा नाम के एक शोधपरक पुस्तक में बड़े हीं सुन्दरता के साथ सहेजा है.

चंपारण के प्रतिष्ठित व्यक्तिव की सूचि में अब हम जानेंगे राधा मोहन सिंह के बारे में. ये एक राजनीतिज्ञ और भारत के वर्त्तमान केन्द्रीय कृषि मंत्री हैं. इनका जन्म 1 सितम्बर 1949 को पूर्वी चंपारण में हुआ था. अभी ये पूर्वी चंपारण क्षेत्र से हीं लोकसभा सांसद हैं.

चलिए अब हम बात करते हैं अनुरंजन झा के बारे में जो की पेशे से एक पत्रकार हैं. अनुरंजन झा पूर्वी चंपारण के फुलवरिया नामक गाँव के रहने वाले हैं. इन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक इतिहास के विषय में पढाई की. आगे चलकर पत्रकारिता में भारतीय जनसंचार संस्थान से स्नातकोत्तर की पढाई पूरी की.

चलिए अब हम आखिरी में बात करते हैं रविश कुमार की. रविश भी पेशे से एक भारतीय पत्रकार हैं, जिनकी ख्याति देश हीं नहीं विदेशों में भी है. इनका जन्म भी पूर्वी चंपारण के मोतिहारी में हुआ था. इन्होने कई कार्यक्रम होस्ट किये जो लोगों के बीच काफी प्रचलित हुआ. जिसमे हम लोग, रविश की रिपोर्ट और प्राइम टाइम शो के साथ देश की बात शामिल है. ये अब तक पांच पुस्तकें लिख चुके हैं. जिनमे देखते रहिये, इश्क में शहर होना, द फ्री वौइस: ऑन डेमोक्रेसी कल्चर एंड द नेशन, रविशपंती और बोलना हीं है: लोकतंत्र, संस्कृति और राष्ट्र के बारे में. रविश कुमार हाल में हीं रैमौन मैग्सेस पुरस्कार से भी नवाजे जा चुके हैं.

कैसे पहुंचे

आइये अब अपने इस चर्चा को हम आगे बढ़ाते हुए जानते हैं की पूर्वी चंपारण में हम रेल, सड़क और वायु मार्ग के जरिये कैसे पंहुच सकते हैं.

  • रेल मार्ग

तो सबसे पहले हम बात करते हैं रेल मार्ग के बारे में. यहाँ के रेलवे स्टेशन का नाम बापूधाम मोतिहारी है जिसका स्टेशन कोड BMKI है. बता दें की यह भारतीय रेल के पूर्वमध्य रेलवे क्षेत्र में आता है. इस स्टेशन से कई महत्वपूर्ण जगहों के लिए रेलगाड़ियाँ चलती हैं. इन महत्वपूर्ण जगहों में नयी दिल्ली, आनंद विहार, हावड़ा और पाटलिपुत्र जंक्शन जहाँ से राजधानी पटना का जंक्शन कुछ हीं किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बापूधाम मोतिहारी रेलवे स्टेशन के अलावे यहाँ के प्रमुख रेलवे स्टेशनो में जीवधारा जिसका स्टेशन कोड JDR, मोतिहारी कोर्ट जिसका स्टेशन कोड MCO, पिपरा जिसका स्टेशन कोडPPA, चकिया जिसका स्टेशन कोड CAA और मेहसी जिसका स्टेशन कोड MAI है आदि रेलवे स्टेशन भी मौजूद हैं. यदि राजधानी पटना से हम पूर्वी चंपारण के मुख्यालय बापूधाम मोतिहारी आना चाहें तो वहां से कोई ट्रेन नहीं मिलेगी. लेकिन पटना से थोड़ी हीं दूरी पर स्थित पाटलिपुत्रा जंक्शन से यहाँ के लिए आसानी से ट्रेन आपको मिल जाएगी.

  • सड़क मार्ग

आइये अब अपने इस चर्चा में हम बात करते हैं सड़क मार्ग की. यह जिला बिहार के लगभग सभी प्रमुख मार्गों से जुड़ता है. लगभग 160 किलोमीटर की हीं दूरी पर राजधानी पटना से मोतिहारी शहर स्थित है. यह सफ़र हम निजी वाहन, बाइक या निजी अथवा सरकारी बस के द्वारा भी तय कर सकते हैं. पटना से मोतिहारी हम वाया NH 22 और NH 27 के जरिये भी जा सकते हैं. यह सड़क गोबरसही, मुजफ्फरपुर में घोघरडीहा दुर्गास्थान मार्ग/ सीतामढ़ी मार्ग से NH 22 पहुंचेगी. उसके बाद NH 27 NH 527D से बाड़ा बरियारपुर मोतिहारी आइयेगा. फिर स्टेट हाईवे 54 के रास्ते मोतिहारी आ जाइएगा. इस सड़क मार्ग के जरिये 153 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी. इस सफ़र को तय करने में साढ़े तीन से चार घंटे तक का समय लग जायेगा. वहीँ वाया NH 27 के जरिये भी यह सफ़र आप तय कर सकते हैं. यहाँ से आपको 151 किलोमीटर की दूरी को तय करना पड़ेगा. यहाँ से भी आपको साढ़े तीन से चार घंटे तक की दूरी तय करनी होगी.

जानकारी के लिए बता दें की जब भी आप पटना या कहीं से भी पूर्वी चंपारण जिले के लिए जा रहें हैं और आपको रास्ते में BR 05 नंबर वाली गाड़ियाँ दिखाई दें तो समझ जाइये की आप पूर्वी चंपारण जिले में प्रवेश कर चुके हैं.

  • हवाई मार्ग

पूर्वी चंपारण का सबसे निकटतम हवाई अड्डा लोक नायक जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है जो की पटना में स्थित है. इस हवाई अड्डे से भारत के कई महत्वपूर्ण नगरों और महानगरो के लिए विमान उड़ान भरती है. इस एयरपोर्ट से मोतिहारी की दूरी लगभग 160 किलोमीटर है. यहाँ से आप बस, निजी गाड़ी या ट्रेन के जरिये भी मोतिहारी जा सकते हैं.

कृषि और अर्थव्यवस्था

इस जिलें के लोगों के आय का मुख्य स्रोत कृषि है और यहाँ की मुख्य अर्थव्यवस्था कृषि पर हीं निर्भर होती है. यहाँ की मुख्य फसलों में चावल, धान, मसूर, गन्ना, और जुट आदि है. यहाँ कृषि के अलावे पशुपालन भी आय के स्रोत में अपनी अहम् भूमिका निभाता है. इसके अलावे यहाँ छोटे पैमाने पर मोती बटन उद्योग, मत्स्य विकास जैसे उद्योग भी लोकप्रिय हैं. गंडक, बूढी गंडक और बागमती और इसकी सहायक नदियाँ द्वारा जिले के जल निकासी व्यवस्था में नियंत्रित होती हैं. सिंचाई के दृष्टिकोण से भी ये नदियाँ अपना अहम् योगदान देती हैं. साथ हीं साथ यहाँ के अर्थव्यवस्था में पर्यटन का भी अहम् योगदान है.

पर्यटन

चलिए अब आगे के इस चर्चा में हम बात करते हैं पूर्वी चंपारण के पर्यटन स्थलों के बारे में.

  • बौद्ध स्तूप

पर्यटन स्थलों की सूचि में हम सबसे पहले बात करते हैं बौद्ध स्तूप की, जो दुनिया का सबसे बड़ा स्तूप है. यह स्तूप मोतिहारी के पास केसरिया नामक जगह पर स्थित है. जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 51 किलोमीटर पर हीं स्थित है. यह दूरी तय करने में लगभग एक घंटे तक का समय लग सकता है.

  • गाँधी संग्रहालय

अब अपने इस चर्चा में हम जानेंगे गाँधी संग्रहालय के बारे में. यह संग्रहालय सांस्कृतिक गतिविधियों के साथसाथ शैक्षिक गतिविधियों का भी प्रमुख केंद्र है. यहाँ आपको चंपारण सत्याग्रह से सम्बंधित कई स्वतंत्रता सेनानी और महान नेताओं की तस्वीरें और उस समय से जुड़े कुछ चीजों के अंश की झलक देखने को मिलेगी. यह जिला मुख्यालय से म्यूजियम से मात्र एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर हीं स्थित है.

  • जॉर्ज ऑरवेल स्मारक

आइये अब अगले नंबर पर हम बात करते हैं जॉर्ज ऑरवेल स्मारक के बारे में. दरअसल यह स्मारक बीसवी सदी के मशहुर लेखक जॉर्ज ऑरवेल के याद में उनके जन्म स्थान पर बनाया गया था. इस स्मारक की दूरी जिला मुख्यालय से तीन से साढ़े तीन किलोमीटर पड़ेगी.

  • चंपारण सत्याग्रह शताब्दी पार्क

आइये अब हम बात करते हैं चंपारण सत्याग्रह शताब्दी पार्क के बारे में. यहाँ चंपारण सत्याग्रह का स्मारक आपको देखने को मिल जायेगा. यह स्मारक पूर्वी चंपारण के जिला मुख्यालय में ही स्थित है.

  • अशोक स्तम्भ

आइये अब हम बात करते हैं अशोक स्तंभ लौरिया अरेराज की. यह एक 36 फीट ऊँचा स्तम्भ है. इसे सम्राट अशोक के आक्षेप को लेकर एक संरक्षित स्मारक के रूप में यह घोषित है. जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 31 से 32 किलोमीटर की है. इस दूरी को तय करने में लगभग एक घंटे तक का समय लग सकता है.

  • अरेराज

आइये अब आखिरी में हम बात करते हैं मोतिहारी से थोड़ी हीं दूरी पर स्थित अरेराज मंदिर के बारे में. यह मंदिर इस क्षेत्र का काफी लोकप्रिय भगवान शिव का मंदिर है. सावन के महीने में यहाँ भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. जिला मुख्यालय से यदि इसकी दूरी देखे तो 28 किलोमीटर दक्षिण में गंडक नदी के किनारे स्थित है.

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