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वह महिला जिसने रामविलास पासवान को हराकर शुरूकिया राजनीतिक सफर

Bihari News

बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात एक ऐसे बिहारी बेटी के बारे में जिन्होंने देश के लिए कई अहम जिम्मेदारियों का निर्वहन किया. इन्हें राजनीति विरासत में मिली थी. इनके पिता कांग्रेस के बड़े नेता थे लेकिन इसके बाद भी बिहार की बेटी अपनी प्रतिभा के दम पर देश में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया. आज बिहार की बेटियां इन्हें आदर्श मानती है. और इनके नक्से कदम पर चलने की बात कहती है. यह पढ़ने में भी बहुत मेधावी थी. साथ ही इन्होंने भारतीय विदेश सेवा में भी लंबे समय तक काम किया है. इस दौरान वह स्पेन, मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम में काम करने का मौका मिला था. आखिरी समय में इन्होंने नौकरी छोड़कर देश की राजनीति में सक्रिय हो गई थी. इनके बारे में कहा जाता है कि यह पहली ऐसी महिला नेत्री होगी जोकि उत्तर प्रदेश बिहार और दिल्ली तीन राज्यों से लोकसभा का चुनाव जीतकर सदन में पहुंची होगी. अब तक आप भी समझ ही गए होंगे हम बात कर रहे हैं बाबू जगजीवन राम की बेटी और देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के बारे में

मीरा कुमार का जन्म 31 मार्च 1945 को बिहार के सासाराम में हुआ था. इनके पिता का नाम था बाबू जगजीवन राम और माता का नाम था इंद्राणी देवी. इनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई महारानी गायत्री देवी स्कूल में हुई थी. उसके बाद दिल्ली के आईपी और मिरांडा कॉलेज से इनहोंने ग्रेजुएशन की डीग्री हासिल की थी. पीजी लेवल की पढ़ाई भी मीरा ने पूरा किया था. वह इंग्लिश में MA करने के बाद LLB की भी पढ़ाई की थी. लॉ की पढ़ाई पूरा करने के बाद मंजुल कुमार से इन्होंने शादी कर ली. मंजुल कुमार का परिवार राजनीतिक परिवार था इसीलिए बाद के समय में वह भी राजनीतिक में एक्टिव हो गई थी. मंजुल की मां सुमित्रा देवी कांग्रेस की नेता थी. इनकी शादी 29 नवंबर 1968 को हुई थी. बता दें कि इनकी शादी अंतरजातीय विवाह के रूप में हुई थी. हमने पहले ही बताया था कि मीरा पढ़ने में बेहतर थी. पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद साल 1973 में उन्हें IFS मे नौकरी मिल गई. जिसके कारण उन्हें लंबे समय तक स्पेन, ब्रिटेन, और मॉरिशस में उच्चायुक्त के रूप में काम करने का मौका मिला. हालांकि यह अलग बात है कि कुछ सालों तक काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी.

वह दौर था साल 1974 का जब इंदिरा गांधी की मौत के बाद कांग्रेस के प्रति लोगों की सहानुभूति थी और मीरा कुमार बिजनौर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार लोकसभा पहुंची. आपको बता दें कि इस सीट पर मीरा कुमार से पहले साल 1984 में कांग्रेस के गिरधारी लाल जीते थे लेकिन उनके निधन के कारण हुए उपचुनाव में मीरा कुमार को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा तो वहीं लोकदल ने रामविलास पासवान को चुनाव मैदान में उतारा. इस चुनाव में मीरा कुमार की तीन हजार वोटों से जीत हुई. और रामविलास पासवान की हार हुई. इसके बाद साल 1996 और 1998 में दिल्ली के करोलबाग सीट से वह सांसद बनी. उसके बाद साल 2004 में बिहार के सासाराम की सीट से लोकसभा का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची जहं उन्हें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री बनाया गया. मीरा कुमार के अगर हम राजनीतिक सफर की बात करेंगे तो उसमें उनके पिता बाबू जगजीवन राम बड़ा योगदान है. हालांकि यह कहा जा रहा था कि जगजीवन राम अपना राजनीतिक विरासत अपने बेटे को देने वाले थे लेकिन उस समय ऐसा विवाद सामने आया जिसके कारण उन्हें पिछे हटना पड़ा. हालांकि इस पूरे मसले पर राजीव गांधी ने हस्तक्षेत्र किया और मीरा कुमार को राजनीतिक में आने का ऑफर दिया. उसके बाद वह राजनीति में आने को तैयार हो गई. और वह अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आज भी संभाल रही है.

मीरा कुमार जब उच्चायुक्त बनकर विदेश में रह रही थी उस समय उन्होंने कई विदेशी भाषाओं को सीखा था. ऐसे में उन्हें हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत के अलावा भोजपुरी और स्पेनिश का खुब ज्ञान था. मीरा कुमार के अगर हम शौक की बात करें तो वह हमेशा साड़ी पहनना पसंद करती है. साथ ही वह खेल की भी शौकीन रही है. वह निशानेबाजी के साथ ही घुड़सवारी में कई बार मेडल जीत चुकी है. इसके साथ ही उन्हें पढ़ने लिखने का भी खुब शौक रहा है. जिसमें वह कविताओं का पाठ करती रही है. उनकी अगर हम पसंदिदा पुस्तकों का जिक्र करें तो उसमें कालिदास और अभिग्यान शाकुंतलम प्रमुख है. इसके साथ ही वह हस्तशिल्प से जुड़ी चीजों को वह एकत्रित करती रही है.

क्रिकेट की ही तरह राजनीति भी संभावनाओं पर टीका हुआ है. ऐसे में आखिरी समय में हार जीत का फैसला होता है. मीरा कुमार जहां कई बार लोकसभा का चुनाव जीती है तो कई बार हारी भी है. ऐसे में जनता दल के छेदी पासवान से उन्हें पहली बार हार का सामना करना पड़ा था. उसके बाद साल 1999 में दिल्ली के ही करोलबाग सीट से बीजेपी की अनीता आर्या से हार का सामना करना पड़ा है. उसके बाद साल 2014 और 2019 में मोदी लहर उन्हें सासाराम से भी हार का सामना करना पड़ा था.

कांग्रेस पार्टी में रहते हुए मीरा कुमार संगठन का भी काम करती रही है. कहा जाता है कि मीरा कुमार अपने राजनीति के शुरुआती दिनों में पार्टी नेतृत्व के काफी करीब रही है. वह साल 1990 में पहली बार कांग्रेस पार्टी के कार्यसमिति की सदस्य रही है. उसके बाद उन्हें पार्टी में महासचिव का भी पद दिया गया था. उसके बाद उस समय के कांग्रेस के अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा घोषित पार्टी की नई टीम में मीरा कुमार को केंद्रीय कार्यसमिति में स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया था.

साल 2009 में जब मीरा कुमार चुनाव जीती थी उसके बाद उन्हें केंद्र में जल संसाधन मंत्री बनाया गया था लेकिन उसके बाद उन्हें लोकसभा का अध्यक्ष भी बनाया गया था. मीरा कुमार के लोकसभा अध्यक्ष बनने के साथ ही देश की पहली महिला स्पीकर बनी थी. लोकसभा में जब सदन का संचालन करना होता था उस समय उनके द्वारा दोनों ही पक्षों को साथ में रखकर कैसे संचालित करना है वह बहुत ही अच्छी तरह से जानते थे. ऐसे में वह काफी लोकप्रिय लोकसभा अध्यक्ष के रूप में जानी जाती है.

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