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श्री हरमंदिर साहिब के रहस्यों को जानकर हैरान रह जाएंगे आप

Ratnasen Bharti

भारत काफी पुराना देश है। इसका इतिहास बहुत पुराना है। भारत की सबसे बड़ी विशेषता उसकी विरासत है। इसी कारण दुनियाभर में भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। भारत में अनेक अद्भुत और आश्चर्यजनक धार्मिक स्थल मौजूद हैं जिनकी अद्भुत शिल्पकारी और बनावट देखकर दांतों तले अंगुली दबानी पड़ती है। उन्ही अद्भुत मंदिरों में से एक है दुनियाभर में प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर जिसे हरमंदिर साहिब भी कहा जाता है। सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर का निर्माण शुद्ध सोने के धातु से हुआ है। यह प्रसिद्ध हरमंदिर साहिब जिसे स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ,भारत के पंजाब प्रान्त में अमृतसर में स्थित है।

 सोने की दीवारों पर है कलात्मक बनावट 

स्वर्ण मंदिर जिसे अंग्रेजी में गोल्डन टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है , वह सिख धर्म के समर्थकों का सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में से एक है। स्वर्ण मंदिर को श्री हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है। पंजाब के अमृतसर में स्थित इस स्वर्ण मंदिर की प्रसिद्धि पूरी दुनिया में इसके चमकदार सोने की दीवारों और कलात्मक बनावट के कारण है। दुनिया के कोने कोने से लाखों की संख्या में लोग इसकी अद्भुत संरचना से खींचे चले आते हैं। वैसे तो यह सिख धर्मावलम्बियों का तीर्थ स्थल है लेकिन यहाँ पर सभी धर्मों के लोग इस मंदिर को देखने और दर्शन भ्रमण करने आते हैं।

स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई अनेक अद्भुत बातें हैं जिन्हे जानकर आप हैरान रह जायेंगे

आइये जानते हैं उन अद्भुत बातों को

स्वर्णमंदिर का निर्माण स्वर्ण मंदिर के निर्माण से सम्बंधित एक रोचक कहानी यह है कि इसी जगह पर सिखों के प्रथम गुरु , गुरु नानक देव जी ध्यान और पूजा किया करते थे। इस मंदिर की नींव एक मुस्लिम सूफी पीर साईं मियाँ मीर ने रखी थी, जबकि सिखों के चौथे गुरु, गुरु रामदास जी ने 1577 में इस मंदिर की नींव डाली थी।

हालाँकि श्री हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य की शुरुआत सिखों के पांचवें गुरु , गुरु अर्जुन देव जी ने शुरू करवाया था। बताया जाता है कि उन्होंने हीं श्री हरिमंदिर साहिब की वास्तुकला की डिजाइन का निर्माण किया था।  इस मंदिर का निर्माण कार्य1581 में शुरू हुआ था यह लगभग 08 सालों में 1589 में बनकर तैयार हो गया था। 1604 में गुरु अर्जुन देव जी ने इस गुरूद्वारे में गुरु ग्रन्थ साहिब को स्थापित किया।

सोने की परत होने के कारण स्वर्ण मंदिर नाम पड़ा

यह स्वर्ण मंदिर शुरू में ऐसा नहीं था जैसा आज दीखता है। शुरू में यह ईंट पत्थरों से निर्मित था। उस समय इसकी दीवारों पर सोने की परत नहीं थी। परन्तु सिखों के प्रसिद्ध गुरु, गुरु गोविन्द सिंह जी की मृत्यु होने के बाद इस गुरूद्वारे पर मुस्लिम शासकों ने कई बार आक्रमण किये और इसे नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया। यह उनलोगों के द्वारा नष्ट भी कर दिया गया था। लेकिन फिर उन्नीसवीं सदी में महाराजा रंजीत सिंह जी ने सफेद मार्बल का उपयोग करके इस गुरुद्वारा का पुनः निर्माण करना शुरू किया था और इसकी बाहरी संरचना या दीवारों पर सोने की एक अच्छे स्तर की परत चढ़वाई और तभी से सोने की परत चढ़े होने के कारण यह श्री हरिमंदिर साहिब अमृतसर के स्वर्णमंदिर के नाम से पुरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया।

चार प्रवेश द्वार

स्वर्ण मंदिर अमृतसर में चार प्रवेश द्वार हैं जो पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं की तरफ से खुलते हैं। इससे यह सन्देश जाता है कि यह मंदिर सभी धर्मों के लिए खुला है।

पवित्र सरोवर

स्वर्ण मंदिर के परिसर में ही एक पवित्र सरोवर है जिसे अमृत सरोवर या अमृत कुंड के नाम से जाना जाता है। इस सरोवर की खुदाई 1577 में गुरु रामदास ने की थी। श्रद्धालु इस पवित्र सरोवर के जल में स्नान करके मंदिर में दर्शन करने जाते हैं।

जमीनी स्तर से नीचे के स्तर पर स्थित है यह मंदिर –

इस विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि इस मंदिर में घुसते समय इसकी सीढ़ियां ऊपर की तरफ न जाकर नीचे की तरफ जाती हैं। जो यह सन्देश देती हैं कि हमें विनम्र होना चाहिए। इसकी सीढियाँ अन्य हिन्दू मंदिरों के विपरीत हैं।

भगवान बुद्ध ने भी स्वर्ण मंदिर में आकर ध्यान साधना की थी

इतिहासकारों के अनुसार इस स्वर्णमंदिर में कभी भगवान बुद्ध भी कुछ देर के लिए ध्यान साधना की थी। उस वक्त उन्होंने जंगलों से घिरी एक झील के किनारे अपना डेरा जमाया था। बुद्ध भगवान के यहाँ ध्यान लगाने के कारण यह स्थान और भी दिव्य हो गया है।

बाबा दीप सिंह की मृत्यु

बाबा दीप सिंह एक ऐसे भारतीय शहीद थे जिन्होंने यह शपथ ली थी कि उनकी मृत्यु हरमंदिर साहिब के परिसर में ही होगी। बताया जाता है कि 1757 में जब अमृतसर पर अफगान सेना द्वारा आक्रमण किया गया था तो बाबा दिप सिंह की पांच हज़ार लोगों के साथ युद्ध हुआ था। मान्यता है कि युद्ध में उनका सिर दुश्मनों ने धड़ से अलग कर दिया था लेकिन फिर भी उन्होंने अपना सिर एक हाथ में पकड़ा और दूसरे हाथ में तलवार पकड़ी और लड़ना शुरू कर दिया. कहते हैं कि युद्ध करते करते वे मंदिर परिधि में पहुँच गए थे और तभी उन्होंने अंतिम सांसें ली थी।

भारतीय और मुग़ल कला का अनूठा उदाहरण

स्वर्ण मंदिर की कारीगरी मुग़ल और भारतीय वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है। इस मंदिर को संगमरमर की मूर्तियों और चित्रों से सजाया गया है जो ताजमहल के समान दीखते हैं। यहाँ भारतीय शिल्पकला का भी अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं।

सबसे बड़ी लंगर सेवा

श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर में दुनिया की सबसे बड़ी लंगर सेवा चलती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर के विशाल परिसर में प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में बिना किसी जाति , धर्म , लिंग भेद के एक साथ जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं। बताया जाता है कि इस लंगर में कभी सम्राट अशोक ने भी भोजन किया था।

स्वयंसेवक

इस मंदिर में दुनिया के कोने कोने से दर्शनार्थी आते हैं। इस प्रतिष्ठित गुरूद्वारे का सञ्चालन और रखरखाव पूर्णतः दान से प्राप्त राशि से होता है। इस मंदिर के प्रायः सभी कार्य जैसे भोजन पकाना और परोसना इत्यादि सबकुछ स्वयंसेवक ही करते हैं जो पूर्णतः निःशुल्क और निःस्वार्थ भाव से काम करते हैं।

अमृतसर का यह स्वर्ण मंदिर भारत का ऐसा दिव्य तीर्थ स्थल हैं जहाँ सभी धर्मों के के लोग बिना किसी भेद भाव के शांति प्राप्त करने के लिए जाते हैं। आपको भी कम से कम एक बार इस मंदिर में जरूर जाना चाहिए।

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