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बिना अन्न जल के माता सीता कैसे जीवित रहीं लंका में ?

Ratnasen Bharti

रामायण में ऐसी बहुत सी रोचक कहानियाँ हैं जिनके बारे में हम सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसी ही एक कथा यह है कि जब सीता जी को रावण चुराकर लंका ले गया तब वहां उन्होंने अन्न जल का त्याग कर दिया। उन्होंने रावण के द्वारा दिए गए किसी भी चीज को खाने पीने से इंकार कर दिया था। और इस तरह वे अपने प्राण त्याग देने का संकल्प ले चुकी थीं। लेकिन सवाल यह उठता है कि फिर इतने लम्बे समय तक सीता माता लंका के अशोकवाटिका में जीवित कैसे रहीं ? बिना अन्न जल ग्रहण किये माता सीता के प्राण की रक्षा कैसे हुई ? इस सम्बन्ध में एक रोचक कथा है आइये जानते हैं।

रावण छल से माता सीता का किया था अपहरण

सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य को लिखा था उसके बाद इस रामायण को अनेक कवियों और लेखकों ने अपने अपने ढंग से लिखा। परन्तु वाल्मीकि रामायण के बाद जिस रामायण को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली है वह है महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस जिसे आज भी घर घर में मंदिरों में पढ़ा और पूजा जाता है। रामायण में विष्णु भगवान के अवतार श्री राम और माता लक्ष्मी की अवतार माता सीता की जीवन लीला पर आधारित है।रामायण में यह विस्तार से वर्णन किया गया है कि श्री हरि विष्णु ने क्यों और कैसे इस धरती पर मनुष्य के रूप में जन्म लिया और कैसे दुष्ट दुराचारी रावण का नाश किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामायण में अनेक गूढ़ और रहस्यमय बातें भी हैं जो सामान्यतः हम और आप नहीं जानते। जब रावण ने माता सीता को छल से अपहरण करके लंका ले गया था उस समय माता सीता बहुत दुखी थीं। श्री राम के विरह वियोग में उनका हृदय अत्यंत व्याकुल हो रहा था। उन्हें श्री राम की विरह ने इतना तोड़ दिया था कि उन्होंने यह संकल्प ले लिया था कि वे अब अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी यानि अब भूखे रहेंगी भले ही उन्हें इस कारण प्राण त्यागने पड़ें। भगवान ब्रह्मा जी अपने लोक में बैठे बैठे इस घटना को देख रहे थे. जब उन्होंने सीता जी के इस निश्चय को जाना तो वो चिंता में पड़ गए और विचार किया कि यदि माता सीता ने अन्न जल का त्याग कर दिया तो उनके प्राण जा सकते हैं और ऐसा होने से भगवान राम के धरती पर अवतरण का उद्देश्य खतरे में पड़ जायेगा।

बिना अन्न जल के माता सीता ऐसे रही थी लंका में 

अगर माता सीता ने प्राण त्याग दिए तो बड़ा भारी अनर्थ हो जायेगा। ऐसा सोंचकर ब्रह्मा जी ने देवराज इंद्र को अपने पास बुलाकर उन्हें बताया कि हे इंद्र !नियति के अनुसार रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया है जिसमे ही तीनो लोकों का हित और असुरों को नाश छुपा हुआ है। लेकिन माता सीता ने जिस तरह श्री राम जी के वियोग में अन्न जल का त्याग कर दिया है वह ठीक नहीं है। इसलिए जैसा मैं कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो और वैसा ही करो .

  • तुम जितना जल्द हो सके लंका पहुंचो। अपने साथ निद्रा देवी को भी साथ ले जाओं ताकि वे वहां पर पहरा देने वाले सभी राक्षस और राक्षसियों को निद्रा निमग्न कर दें। ब्रह्मा जी ने इंद्र को दिव्य खीर सीता माता को खिलाने के लिए दी और कहा कि राक्षसों में से किसी को भी यह मालूम नहीं होना चाहिए की तुम यह दिव्य खीर सीता को खाने के लिए दे रहे हो।
  • ब्रह्मा जी से आदेश पाकर देवेंद्र निद्रा देवी के साथ लंकापुरी में पहुँच गए और देवी निंद्रा ने अपने प्रभाव से सभी असुरों को सुला दिया। फिर इंद्र देवी सीता के पास गए।
  • पहले तो माता सीता ने इंद्र को देवता समझने में थोड़ी देर की और आशंका व्यक्त की लेकिन इंद्र के प्रमाण देने पर फिर वे मान गयीं। तब ब्रह्मा जी दिए हुए खीर को माता सीता को देते हुए उन्होंने कहा कि इसे खा लेने से आपको हज़ारों वर्षों तक भूख प्यास नहीं सताएगी। इंद्र के दिए हुए दूध की बनी दिव्य खीर को माता ने ग्रहण कर लिया और फिर वे जब तक अशोक वाटिका में रहीं उन्हें भूख प्यास ने नहीं सताया और वे अन्न जल के बिना जीवित रह सकीं।

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