जब भी आप सफर करते होंगे, और किसी ब्रिज यानी की पुल से होकर गुजरते होंगे. तो आपके मन में यह सवाल तो जरुर आता होगा कि आखिर ये पुल पानी में सिर्फ एक पिलर के स्गारे कैसे टिका है, और आखिर इस पानी में इस पुल के निर्माण के लिए नीव कैसे दी गयी होगी, पिलर कैसे डाले गए होंगे. अगर आप भी इन सवालों का जवाब जानना चाहते है तो, आज हम आपको इस विडियो में यही बताने पहले है. सबसे पहले हम आपको यह बताते है कि पुल कई प्रकार के होते, जैसे बीम ब्रिज, सस्पेंशन ब्रिज और आर्च ब्रिज है. आपकी जानकारी के लिए बता दे कि जब किसी पुल का निर्माण पानी पर किया जाता है तो सबसे पहले पानी की गहराई, पानी के निचे की मिटटी की क्वालिटी, पानी के बहने की स्पीड और भी कई तरह के रिसर्च किये जाते है. इन सभी चीजों के बारे में जानने के बाद ही पुल के निर्माण की शुरुआत होती है.पुल के निर्माण में इंजीनियर्स के सामने सबसे पहली मुश्किल यह होती है कि जहां पुल के निर्माण के लिए पिलर डालना है वहां से पानी को कैसे हटाया जाए. इसके लिए इंजीनियर्स के द्वारा तिन मेथड निकाले गए हैं. जिसमें सबसे पहला और सबसे पुराना मे कोफर डैम है. यह एक ड्रम के आकर का होता है जो कि स्टील का बना होता है. इसे पानी के अन्दर बीचोबीच रख दिया जाता है जिसके बाद सारा पानी बस इसके चारों ओर होती है. वहीं इसके बीच में जो पानी भरा होता है उसे मशीने के सहायता से बहार निकाल दिया जाता है. जिसके बाद उस स्थान पर पिलर के निर्माण की शुरुआत कर दी जाती है.दूसरा तरीका है कि पहले फाउंडेशन के नीव को जमीन पर बनाया जाता है और फिर उसे शिप की सहायता से पानी में उस स्थान पर डाला जाता है जहां पुल का निर्माण करना होता. इस काम में कभीकभी यह भी परेशानी आ जाती है कि ये ऊपर से तो खुल होती है लेकिन नीचे से ये ढंका होता है जिस वजह से इसे पानी में नॉर्मल तरीके से डालने से कई बार ये पानी के ऊपर तैरने लगता है. इसलिए अगर पानी अधिक गहरा होता है तो इंजीनियर्स शिप के सहायता से पानी के नीचे बड़ेबड़े पत्थर डालते है और उसके ऊपर से उस भरे गए जमीन पर नीव को रख दिया जाता है.तीसरा और अंतिम तरीका में इनजिनीयर्स लोहे का बड़ेबड़े पाईपों को शिप के मद्दत से उस स्थान पर लेकर जाया जाता है और उसे मशीनों की सहायता से पानी के निचे धंसा दिया जाता है. जिसके ऊपर ब्रिज का काम शुरू कर दिया जाता है. यह सभी तरीका सुनाने में तो बड़े आसान लगते है पर करने में इसे कई महीनों का समय लगा जाता है. इन सब तरीकों का इस्तमाल कर के ही पानी के ऊपर ब्रिज यानी की पुल का निर्माण किया जाता हैं.

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