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इन छोटी पार्टियों के बगैर बिहार फतह करना मुश्किल होगा!

Bihari News

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बिहार में अब लगभग रोड तैयार हो गया है. क्योकि पिछले दिनों जिस तरह से दो बड़ी रैलियों का आयोजन किया गया. उससे तो यही लग रहा है कि दोनों ही तरफ से 2024 के चुनाव का शंखनाद कर दिया गया है. हालांकि अभी इसमें कई तरह के बदलाव देखने को मिलने वाला है. अभी बिहार में छोटी पार्टियों को एक जुट होना है. दोनों ही तरफ से नाराज नेता किस तरफ अपने आप को देखते हैं. क्योंकि बिहार की सियासत में इन नेताओं की बड़ी भूमिका रही है. कई बार तो ये चुनाव हराने में कारगर साबित हुए हैं. खासकर अगर हम 2020 विधानसभा चुनाव की बात करें तो जदयू ने लोजपा का खुले आम आरोप लगाया था और कहा था कि इनके चलते हमारी सीटों में कमी आई है. हालांकि इस बार किस तरह की रणनीति होगी ये अभी से कहना मुश्किल हैं लेकिन नेताओं का पार्टियों की तरफ से ऑफर आना शुरू हो गया है. ऐसे में अब देखना है कि चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी ये वो नेता हैं जिनपर दोनों ही तरफ के नेताओं की नजर होगी.

तो चलिए शुरुआत करते हैं चिराग पासवान सेचिराग पासवान रामविलास पासवान की बनाई हुई पार्टी लोजपा के एक धड़े का नेतृत्व चिराग के पास है जबकि दूसरी पार्टी का नेतृत्व पशुपति कुमार पारस के पास हैं. पशुपति कुमार पारस एनडीए का हिस्सा हैं और केंद्र सरकार में मंत्री के पद पर हैं. हालांकि चिराग पासवान भी एनडीए के साथ ही हैं लेकिन उनके बारे में यह कहा जा रहा है कि वे हमेशा बेहतर की तलाश में रहते हैं ऐसे में अगर बीजेपी के साथ उनकी अनवन होती है तो वे पाला बदल सकते हैं लेकिन वर्तमान राजनीति को देखते हुए इसकी संभावना कम ही बनती है. क्योंकि विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार को बड़ा डैमेज किया था. ऐसे में कहा जा रहा है कि उनके पास छोड़ा जनसमर्थन भले ही है लेकिन वे अपनी विपक्षी पार्टी को हराने की क्षमता रखते हैं.

उपेंद्र कुशवाहाःउपेंद्र कुशवाहा के लिए अभी सभी दरवाजे खुले हुए हैं. जदयू से अलग होने के बाद उन्होंने कहा था कि मैं आजाद हूं इसका मतलब था कि वे कही भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं और लगभग पार्टियों के साथ उनका तालमेल पहले भी रहा है. पिछले दिनों जिस तरह से बीजेपी के नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें सामने आई है उसके बाद यह कहा जाने लगा कि उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के साथ जा सकते हैं. हालांकि कुशवाहा बिहार के दौरे पर निकलने वाले हैं. राजनीतिक जानकार तो ये बताते हैं कि कुशवाहा को बीजेपी के साथ रहने में फायदा हुआ है. अगर वे एक बार फिर से नीतीश के हराने के इरादे से बीजेपी के साथ जुड़ते हैं तो कुशवाहा और बीजेपी को दोनों को फायदा मिल सकता है.

जीतन राम मांझीःजीतन राम मांझी पहले जदयू के सदस्य था उसके बाद उन्होंने अपनी एक अलग पार्टी बनाई और वे नीतीश कुमार के साथ जुड़कर अपनी सरकार का हिस्सा है. लेकिन कई बार इस तरह की स्थितियां आई है जब वे नीतीश कुमार से इतर होकर मुखर होकर बोलते रहे हैं. आपको बता दें कि जीतन राम मांझी दलितों के एक बड़े धड़े का प्रतिनिधित्व करते हैं. अगर हम उनके वर्तमान के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो उन्होंने मीडिया में अपने बेटे को लेकर बयान दिया है जिसमें उन्होंने कहा कि हमारा बेटा बिहार का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकता है. उसमें क्या कमी है वह पढ़ा लिखा है. ऐसे में राजद जिस तरह से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के लिए प्रयोजित कर रहा है ठीक उसी तरह से जीतन राम मांझी अपने बेटे को आगे बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. 2015 में उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. वर्तमान में वे नीतीश कुमार के साथ गठबंधन के साझेदार हैं.

बिहार की सियासत में अगला नाम है मुकेश सहनी का जो बिहार की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं. मुकेश सहनी का नेचर बीजेपी के खिलाफ रहा है. उद्योग से एक राजनेता तक के सफर में मुकेश सहनी कई उतार चढ़ाव को देख चुके हैं. उनकी पार्टी का नाम हा विकासशील इंसान पार्टी. इस पार्टी के तीन विधायक को बीजेपी ने अपने में शामिल कर लिया जिसके बाद बिहार में इस पार्टी के लिए बहुत कुछ बचा नहीं है. हालांकि वे बीजेपी के विरोधियों में गिने जाते हैं लेकिन पिछले दिनों केंद्र सरकार ने मुकेस सहनी को Y श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की है. ऐसे में यह कयास लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में सहनी बीजेपी के साथ हो सकते हैं. हालांकि वे नीतीश कुमार के कार्यों की भी खुब सराहना करते रहे हैं.

बिहार की सियासत को अच्छे से जानने वाले यह मानते हैं कि पाला बदलने वाले नेता चुनाव के दौरान मतदाता पर भी असर छोड़ते हैं. उपेंद्र कुशवाहा कोइरी और कुशवाहा जतियों का प्रतिनिधित्व करने की बात कहते हैं ये पिछड़े समाज से आते हैं. मांझी और सहनी दलित समाज से आते हैं और इन्ही जातियों के प्रतिनिधित्व की बात भी करते हैं. लेकिन चिराग पासवान जिनके बारे में मैंने पहले ही कहा था कि वे महात्वाकांक्षी व्यक्ति हैं. वे दोनों दरवाजों को खोलकर रखते हैं. इधर नीतीश कुमार पर हमला बोलते हैं तो राजद से उनके संबंध बेहतर हैं. इधर अपने चाचा पशुपति कुमार पारस पर हमला बोलते हैं तो बीजेपी से उनके संबंध ठीक होते हैं. ऐसे में चिराग पासवान अपने लिए बेहतर की तलाश कर रहे हैं इसीलिए वे कही टीक नहीं पा रहे हैं. ऐसे में अब देखना है कि चिराग पासवान इस चुनाव में इस तरह की राजनीति को अपनाते हैं.

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