बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात एक ऐसे बिहारी बेटे के बारे में जिसे लोग बड़े ही प्यार से विरल विभूति के नाम से पुकारते थे. इन्होंने देशी की आजादी में पहली पक्ति में खड़ा होकर अंग्रेजों से मुकाबला किया था. वे हमेशा से गांधी को मानने वालों में रहे हैं. इन्हें शोषितों का मसीहा कहा जाता है. इन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में जाति प्रथा का विरोध किया इसे हिंदू धर्म में एक अभिशाप के रूप में मानते रहे हैं. वे हिंदू–मुस्लिमों में एकता और धार्मिक सहिष्णुता की बात करते थे. जब वे बिहार सरकार के मंत्री बने तो बिहार के कई राज्यों में इन्होंने शराबंदी की घोषणा कर दी थी. आपको भी लग रहा होगा कि नीतीश कुमार के अलावा वह कौन सा नेता है जो बिहार में शराबबंदी कानून को लागू किया होगा. तो उस राजनेता का नाम है जगलाल चौधरी…
जगलाल चौधरी का जन्म 5 फरवरी 1895 को सारण जिले के गड़खा प्रखंड के मीटेपुर गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम मुसन चौधरी और माता का नाम तेतरी देवी था. जगलाल बचपन से ही सादा जीवन उच्च विचार की धारा पर चले हैं. जगलाल चौधरी के पिता भले ही अशिक्षित थे लेकिन उन्होंने अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलवाई थी. जब जगलाल चौधरी 15 साल के थे तब उनका विवाह जागेश्वरी देवी से हुआ था. जगलाल बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में बहुत अच्छे तो थे ही साथ ही वे मेहनती भी बहुत थे. उन्हें नौवीं कक्षा में प्रतिमाह पांच रुपये सरकारी वजीफा भी मिला करता था. बता दें कि जगलाल चौधरी की पढ़ाई में उनके बड़े भाई मीसम चौधरी का बड़ा योगदान रहा है. वे सेना में नौकरी करते थे और अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा पैसा भेजा करते थे. जगलाल की शुरुआती पढ़ाई लिखाई गांव के ही सरकारी स्कूल में हुआ था. उनका नामांकन साल 1903 में छपरा जिला के स्कूल में करवाया गया था. वे 17 साल की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा फर्स्ट डिविजन से पास किये थे. उसके बाद साल 1914 में आगे कि पढ़ाई के लिए दाखिला लिया था. जहां से वे ISC की परीक्षा पास किये थे. यहां से पढ़ाई पूरा करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे कलकत्ता चले गए जहां उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई शुरू की. बताया जाता है कि जगलाल चौधरी जब MBBS के अंतिम साल में थे तो उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कुद पड़े. और साल 1921 के असहयोग आंदोलन में वे पूरी तरह से सक्रिय हो गए. इसी दौरान जगलाल चौधरी की राजेंद्र प्रसाद से दोस्ती हुई थी. इन दोनों की दोस्ती की मिसालें आज भी पत्रों में देखने को मिलता है और दोनों के ही परिवार के लोगों एक दूसरे के पत्रों को सहेज कर रखे हुए हैं. जब उन्होंने गांधी से प्रभावित होकर डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ दी तो वे गांधी से मिलने वर्धा आश्रम पहुंचे थे. बाद में वहीं गांधी के साथ रहने भी लगे थे. और गांधी के विचारों के बारे में लोगों को बताने लगे थे. इसी दौरान उन्हें बिहार राज्य कांग्रेस कमेटी का सदस्य भी बनाया गया था और उसके बाद साल 1922 में वे बिहार की राजनीति में एक महत्वपू्र्ण स्थान पर पहुंच गए. इस दौरान वे कुछ दिनों त पुर्णिया के टीकापट्टी आश्रम में रहकर लोगों की समस्याओं को सुना करते थे. और गांधी के विचारों से लोगों को अवगत करवाते रहे हैं.
इस दौरान जगलाल चौधरी देश की आजादी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. इसी दौरान साल 1930 में हुए नमक सत्याग्रह में भी इन्होंने अपनी हिस्सेदारी दिखाई इतना ही नहीं अंग्रेजों के विरोध में इन्होंने नमक का उत्पादन किया था. जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. कुछ दिनों तक जेल में रहने के बाद वे जेल से बाहर आए और उसी तरह से कांग्रेस के साथ जुड़कर काम करते रहे. फिर आया साल 1934 जब गांधी ने मार्गदर्शन में अछूतोद्वार आंदोलन की शुरुआत हुई तो जगलाल चौधरी पटना और दानापुर पहुंचे थे जहां वे डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ मिलकर छपरा, दरभंगा मुजफ्फऱपुर, मधुबनी, सीतामढ़ी कटिहार, अररिया, फारबीसगंज, मुंगेर और भागलपुर की यात्रा की थई. इन दिनों बिहार भुकंप के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. ऐसे में जगलाल चौधरी के साथ जगजीवन राम जैसे बड़े कांग्रेसी नेताओं ने लोगों के बीच में मदद किया था. इस दौरान राजेद्र प्रसाद ने गरीबों की मदद के लिए अंग्रेजों से ज्यादा पैसा जुटाया था. और उनकी मदद की थी.
फिर आया साल 1937 जिसमें अंग्रेजों ने प्रांतीय स्वायत्ता की बात कही गई जिसमें देश में चुनाव की बात कही गई. देश में चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी ने 8 जुलाई 1937 को वर्धा में एक बैठक बुलाई जिसमें यह पारित हुआ कि कांग्रेस पार्टी अपने घोषणापत्रों के साथ चुनाव मैदान में जाएगी. इधर बिहार में बिहार कांग्रेस कमेटी की बैठक सारण जिले के मशरख प्रखंड के एक गांव में हुई. जिसमें उस समय के कांग्रेस के बड़े–बड़े नेता शामिल होने के लिए पहुंचे. जिसमें यह सहमती बनी की कांग्रेस यह चुनाव लड़ेगी. इस चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली और बम्बई, मद्रास, बिहार, उड़िसा आठ प्रांतों में कांग्रेस की सरकार बनी. बिहार में श्री कृष्ण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. जिसमें अनुग्रह नारायण सिंह सैयद महमूद के साथ ही जगलाल चौधरी को कैबिनेट मे जगह मिली. उस समय जगलाल चौधरी पहले दलित नेता के रूप में कैबिनेट मे शामिल हुए थे. उन्हें आवकारी और लोक स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी. उस दौरान अवकारी मंत्री बनने के बाद उन्होंने 6 अप्रैल 1938 को प्रदेश के कई जिलों में शराबबंदी की घोषणा कर दी जिसमें सारण, मुजफ्फरपुर, हजारीबाग, धनबाद और रांची मे मध्यपान निषेध लागू किया गया.
इस दौरान विश्व पटल पर दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ चुका था. ऐसे में अंग्रेजों ने यह निर्णय लिया कि भारत भी इस युद्ध में शामिल होगा. हालांकि कांग्रेस ने इसका पुरजोर विरोध किया. हालांकि इस दौरान कांग्रस लगातार यह मांग कर रही थी अंग्रेज पहले भारत को आजाद कर दे हालांकि कांग्रेस की मांग पूरी नहीं हो पाई. अंग्रेजों का विरोध करते हुए कांग्रेस ने सभी प्रांतों से पदत्याग करने का फैसला कर लिया. इसके बाद उस समय के वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा कर दिया कि भारत द्वितीय युद्ध में शामिल हो रहा है. हांलाकि कि कांग्रेस ने अंग्रेजों पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल से परामर्श लिए बिना ही यह निर्णय ले लिया है. जिसके बाद साल 1940 में गांधी जी ने इसका व्यक्तिगत विरोध किया. इसी दौरान बिहार में भी जगलाल चौधरी ने गांधी के समर्थ में त्यागपत्र दिया और व्यक्तिगत सत्याग्रह करने की घोषणा कर दी. उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया.
जगलाल चौधरी के बारे में सरकारी पत्रों में इस बात का जिक्र है कि इन्होंने स्वयं लोगों को सारण जिला के एक थाना को जलाने के लिए लोगों को उकसाया था. इतना ही नहीं उन्होंने भीड़ से कहा कि दरोगा को बांधकर नदी में फेंक दो. हालांकि इसी घटना को लेकर दूसरे स्त्रोत बताते हैं कि जगलाल चौधरी गांव–गांव में जाकर लोगों को आंदोलन के लिए संगठित करते थे. इस दौरान एक भीड़ ने सीवान और आसपास के जिलों के डाकघर को टारगेट किया और उसे जला दिया था हालांकि इस दौरान जगलाल चौधरी ने वहां काम करने वाले कर्मचारियों को बाहर निकालने में मदद की थी, इन्हीं घटना के बीच में एक दिन खबर आई की पुलिस की गोली से दो जवान शहीद हो गए हैं. जिसमें एक जगलाल चौधरी का बेटे इंद्रदेव चौधरी भी थे. हालांकि कुछ दिनों के बाद जगलाल चौधरी को भी गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस जब इन्हें पकड़कर ले जा रही थी तो उसने बताया कि आपके बेटे की मौत हो गई है वह हमारे कब्जे में हैं. तब उन्होंने पुलिस को कहा कि वे बेटे को देखना चाहते हैं उसके बाद उन्होंने बेटे के पार्थिव शरी को घर वालों को देने के लिए कह दिया.इस पूरी घटना के बारे में जगलाल चौधरी ने बताया था कि मेरे पुत्र की हत्या पड़ोसी के घर पर सीढियों पर गोली लगने से मौत हुई थी. उन्होंने लिखा था कि जब मैं जेल से लौटकर घर आया तो वहां देखने गया था जहां बेटे को गोली लगी थी.
देश में जब आजादी को लेकर जहोजद्द चल रहा था तब एक बार फिर से ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड वेवेल ने केंद्रीय विधायिका गठित करने की बात कह दी और चुनाव की घोषणा भी कर दी. इस दौरान कांग्रेस ने चुनाव में भाग लेने का निर्णय किया. बिहार ने भी चुनाव में भाग लेने की बात कही है. इस चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर से जीत मिली. और श्रीकृष्ण सिंह कि अंतरिम सरकार बनाने का न्योता दिया गया. इस सरकार में एक बार फिर से जगलाल चौधरी के साथ ही चार अन्य नेताओं को शपथ दिलवाया गया था. इस बार जगलाल चौधरी को स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उस समय जगलाल चौधरी बांकपुर जेल में थे. तब श्रीकृष्ण सिंह ने खुद जेल से उन्हें निकालकर अगले ही दिन स्वास्थ्य मंत्री बना दिया था. साल 1951 में मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने कम्युनिस्टों को छोड़कर सभी राजनीतिक बंदियों को छोड़ने का प्रस्ताव रखा गया था. इसपर जगलाल चौधरी ने कैबिनेट में प्रश्न उठाया. उन्होंने कहा कि राजनीतिक बंदियों को छोड़ने के भेदभाव को गलत बताया और मंत्री पद छोड़ दिया. हालांकि उन्हें दूसरे पद पर रहने के लिए कहा गया. हर जगह उनका सिद्धांत आड़े आ जा रहा था. इसी दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने ने उन्हें संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य बनने को कहा. तब उन्होंने कहा था कि अगर आप वेतन के रूप में एक रुपये देंगे तब हम इसके सदस्य रहने को तैयार हैं. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. उसके बाद सारण सुरक्षित सीट से 1957, 1962, 1967, 1969 के चुनावों में वे जीतते रहे. यह राजनेता 9 मई 1975 को इस दुनिया से विदा हो गए. उनके निधन के बाद साल 2000 में डाक टिकट जारी किया गया था. हालांकि साल 1970 में ही छपरा में जगलाल चौधरी कॉलेज की स्थापना की गई थी. साल 2018 में जगलाल चौधरी की आदमकद प्रतिमा का अनावरण पटना के कंकड़बाग में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा किया गया था.