केरल राज्य में स्थित कोल्लम की व्यस्त जीवनशैली से दूर मुनरोत्तुरुतु इस राज्य का एक ऐसा द्वीप है जहाँ पर्यटक प्रकृति के खूबसूरती को देखने शांत जीवनशैली के तलाश में यहाँ आते हैं. जिन पर्यटकों को प्राकृतिक खूबसूरती के नज़ारे लुभाते हैं वैसे पर्यटकों को यह जान कर अफ़सोस होगा की इस द्वीप पर रहने वाले लोग अब इस द्वीप को छोड़ के जा रहें. दरअसल यह द्वीप कोल्लम जिले में स्थित अष्टमुडी झील में कल्लड़ा नदी के विलय स्थान पर है. आपको बता दें की अष्टमुड़ी केरल की दूसरी सबसे बड़ी झील है. इसकी लंबाई 16 किलोमीटर लम्बी है और यह अष्टमुड़ी झील कोल्लम शहर के लगभग 30 प्रतिशत हिस्सों को कवर करती है. इसका नाम दो शब्दों अष्ट और मुड़ी शब्द से बना है. दरअसल अष्ट शब्द का अर्थ आठ और मुड़ी शब्द का अर्थ शाखा होता है अर्थात आठ शाखाओं वाली झील. आपको बता दे की यह झील अरब सागर में जाकर मिलती है. विश्व इतिहास में भी इस झील की और उसके बंदरगाह की चर्चा की गयी है.
वर्ष 2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी के बाद से असाधारण ऊँची लहरों के कारण यह जीवन के लिए खतरनाक साबित होता जा रहा है. इसी वजह से लोग इस द्वीप को छोर के जा रहे. गैर शासकीय आंकड़ो के अनुसार द्वीप की आबादी लगभग 12 या 13 हजार से घटकर 8 हजार के करीब हो गयी है. जलभराव और संपर्क सुविधा जैसे परेशानियों से जूझने के कारण यहाँ कई परिवार विस्थापन के लिए मजबूर हो रहे. न्यूज़ एजेंसी द्वारा लिए गये एक इंटरव्यू में वहां की स्थानीय महिला सुशीला देवी ने कहा की पानी हमारे घरों में एक बिन बुलाये मेहमान की तरह है. लगभग प्रत्येक दिन पानी हमारे घरों में आता है और कुछ ही घंटो में वापस चला जाता है. इस खारे पानी की वजह से घरों के कंक्रीट को काफी नुकसान भी पहुँच रहा. आगे सुशीला ने बताया की उनके बच्चो को प्रतिदिन इस गंदे पानी से होकर स्कूल जाना पड़ता है. उन्होंने बताया की एक समय में यह द्वीप नारियल के पेड़ो के लिए भी जाना जाता था. लेकिन खारे पानी के भराव से इन पेड़ो को भी काफी नुकसान हुआ. उन्होंने आगे बताते हुए ये भी कहा की इस क्षेत्र में कुछ हीं महीने में ऊँची लहर उठने की समस्या आम थी पर 2004 में आई सुनामी के बाद ऊँची लहर का उठना काफी ज्यादा हो गया है.
आपको बताते चलें की यह द्वीप आठ छोटे–छोटे द्वीपों से मिलकर बना है और यह लगभग 13.4 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है. वहां के स्थानीय लोगों के कथनानुसार इस द्वीप के निचले इलाकों के डूबने का खतरा कई सालों से मंडरा रहा. विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन से मुनरोत्तुरुतु की समस्या का कारण ढूंढा जा रहा और इस बारे में विशेषज्ञों की राय भी आपस में बंटी हुई है. कुछ लोग इसके असाधारण रूप से उठे ऊँची लहर को जिम्मेदार मानते हैं तो कुछ लोग ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को. लेकिन कुछ लोगों का यह भी कहना है की तीन दशक पहले कल्लडा बांध के निर्माण और द्वीप से गुजरने वाली रेलगाड़ियों से होने वाले कम्पन्न इस चीज के जिम्मेदार हैं. आज के इस विडियो में इतना हीं उम्मीद करते है आपको आज की जानकारी महत्वपूर्ण लगी होगी.