छठ को लोकआस्था का महापर्व कहा जाता है. बिहार के साथ ही देश और विदेश के लोग इस महापर्व को मनाते हैं. बिहार उत्तर प्रदेश झारखंड में छठ महापर्व को लेकर खुब तैयारी चलती है. दीपावली समाप्त होने के साथ ही छठ की तैयारियां शुरू हो जाती है. ऐसे में दूसरे प्रदेशों में रहने वाले लोग अपने अपने घर लौटने लगते हैं. इस ट्रेनों में खुब भीड़ देखने को मिलती है. इन दिनों छठ घाटों की सफाई का कार्य तेजी से चल रहा है. सरकारी अमले से लेकर आम लोग इसमें लगे हुए हैं. इसी तरह के एक ऐसी भी नदी है जहां दो देशों के बीच में छठ महापर्व की तैयारी चल रही है. इस नदी के दोनों घाटों पर दोनों देशों के लोग आकर भागवान भास्कर को अर्ग देते हैं. इस नदी के बारे में आपको पता हैं तो आप हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं…
भारत और नेपाल के बीच में रिश्ता रोटी और बेटी का. दोनों की देशों के लोग एक दूसरे के यहां अपनी बेटियों का विवाह करते हैं और कमाई के लिए भी यहां से वहां और वहां से यहां आते हैं. पिछले कुछ दिनों से नेपाल की सीमा पर सीमा को लेकर विवाद देखने को मिला था. लेकिन समय के साथ दोनों के बीच में अब संबंध बेहतर हैं. भारत और नेपाल की सीमा के बीच में बिहार का एक जिला है सीतामढ़ी जहां बहती है झीम नदी. बता दें कि यह नदी सीतामढ़ी के सोनवरसा प्रखंड में बहती है. झीम नदी पर दोनों ही देशों के लोग आकर छठ महापर्व को मनाते हैं. यहां तैयारियां जोरो से चल रही है. बताया जा रहा है कि यहां पर छठ महापर्व के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु वहां पर पहुंचते हैं. और भगवान भास्कर को इस नदी के तट पर अर्ग देते हैं. इस दिन दोनों देशों के बीच में समरसता देखने को मिलती है.
बिहार से सटे नेपाल के जिलों में छठ महापर्व की खुब आस्था देखे को मिलती है. बिहार की संस्कृति नेपाल की संस्कृति के साथ मिलती हुई दिखाई देती है. पिछले कुछ सालों में नेपाल में छठ व्रतियों की संख्या में इजाफा देखने को मिला है. इसका एक दूसरा कारण यह भी है कि बिहार की बेटियों की शादी नेपाल में हुई है और नेपाल की बेटियों की शादी बिहार में हुई है तो दोनों ही देशों की संस्कृतियों में आदान प्रदान हुआ है. ऐसे में यह कहा जा रहा है कि छठ महापर्व अब नेपाल के लोग भी बड़े ही धूम धाम से मनाने लगे हैं. बिहार के साथ ही पूरे देश में 28 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत हो जाएगी. उसके बाद 29 अक्टूबर को खरना मनाया जाएगा. उसके बाद 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी यानी की डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. उसके बाद 31 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. इसके साथ ही छठ महापर्व की समाप्ति हो जाएगी. कहा जाता है कि यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें डूबते हुए सूर्य की पूजा की जाती है. हम जिस झीम नदी का जिक्र कर रहे हैं. इस नदी के दोनों घाटों पर एक मेला जैसा उत्सव दो दिनों तक देखने को मिलता है. दोनों ही दशों की व्रतियां यहां नदी में खड़ा होकर भगवान भास्कर की पूजा अराधना करती है. इस दौरान दोनों ही देशों के बीच में आपसी भाईचारे आपको देखने को मिल जाएगें. इस दिन घाटों पर चमचमाती रोशनी ऐसा लगता ही नहीं है जैसे दो देशों के लोग किसी एक पर्व को मना रहे हैं. यह महापर्व इसी तरह से दोनों देशों के बीच में समरसता बनाए रखें.