यह हर कोई जानता है की भारत विविधताओं का देश है. विविधता है तो समस्या है और रहेंगी. मगर आप चारों तरफ देखें है कोई देश जहाँ इतनी विविधताएं हैं. जहाँ इतनी विविध सांस्कृतिक विरासत हो ? जी हाँ आपको अपना देश मिलेगा जहाँ लड़ने भिड़ने और फिर से जुड़े रहने की अकूत क्षमता है. जब आपके ख़राब फ़ोन को ठीक करने के लिए अजय मिस्त्री 500 रूपये मांगता है तो आप आदिम के पास जाते क्यूँ? क्यूंकि आपको पता है आदिम से 200 में ही सौदा पट रहा है. इसलिए देश ठीक है, सब ठीक है, बस आप ठीक रहें. आठवी कक्षा के एक सवाल में पूछा जाता है की भारत अनेकताओं में एकता का देश हैं लेकिन कैसे ? इसका जवाब आज हम आपको अपने अंदाज में देंगे नमस्कार आप देख रहे है बिहारी न्यूज़ बिहारी विहार के आज के इस सेगमेंट में हम आपको लेकर चलेंगे समस्तीपुर जिला स्थित खुद्नेश्वर धाम. आप कंफ्यूज ना हो आप विडियो देखिये इनसब की कड़ी आपको जुडती हुई नजर आएगी, आठवी कक्षा के उस सवाल की भी और इस पर्यटन स्थल के भी. हमेशा से कहा गया है की हमसब एक हैं. नहीं, इसे समझने के लिए सबसे पहले हमें यह मानना होगा की हम एक नहीं हैं. हम एकदूसरे से अलग हैं, भिन्न हैं, जुदा हैं, अलहदा हैं. जब हम अलग हैं तो हमारी सोच अलग है. हमारी विचारधारा अलग होगी जिसका प्रभाव इस वातावरण पर निश्चित रूप से पड़ेगा. हम विचारधारा और धर्म की खिचड़ी से प्रभावित हो रहे हैं. इतना ही नहीं सबसे बड़ी बात तो यह है की इन मुद्दों पर हम उग्र हो जाते हैं. बुढापे में हमें दींन यानी की धर्म की समझ विकसित होनी चाहिए थी और जवानी में दुनिया की इसके उलट हमें दुनियादारी बुढापे में समझ आती है तब तक धर्म और मजहब के झमेले में बुरी तरह पिस चुके होते हैं.
सुने जाने के संसाधनों ने झूठ बुने जाने को और पढ़े जाने के संसाधनों ने झूठ गढ़े जाने को बढ़ावा दिया है. सबसे बड़ी बात हम आधा सुनते हैं उससे भी कम समझते हैं और बोलते इन सब से ज्यादा हैं तो परिणाम क्या निकल सकता है ये बताने वाली बात नहीं है. समस्या कहाँ नही होती हमारे देश हमारे राज्य में भी है. लेकिन स्थिति इतनी भयावह नहीं होती जितनी दिखाई सुनाई और बताई जाती है. इनसब के बीच हमने सोचा की क्यूँ नहीं हम आपको बिहार स्थित उस मंदिर के बारे में बताएं जो विविधताओं में एकता की ऊँची मिसाल पेश करता हैं. यह देशभर में ऐसा कहीं देखने को नहीं मिलता है जो आपके बिहार में स्थित है. बात सिर्फ इतनी सी है की राजधानी पटना से 150 किलोमीटर दूर समस्तीपुर जिला के मोरवा प्रखंड में स्थित खुद्नेश्वर धाम मंदिर इस मंदिर की भव्यता देवघर से कम नहीं है. लेकिन उतनी लोकप्रियता नहीं है. बिहार में ही ऐसे लोगो की संख्या बहुत सारी है जो इस मंदिर के के बारे में नहीं जानते हैं की यह देश का इकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ महादेव के शिवलिंग के पास मजार यानी की एक मुस्लिम का कब्र है जिसकी हिन्दू लोग पूजा करते हैं और यह आज से नहीं बल्कि 14 वीं सदी से ही होता आ रहा है.
खुद्नेश्वर स्थान मोरवा एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो बिहार के समस्तीपुर जिला से 17 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित भगवान शिव को समर्पित मंदिर है. यह मंदिर खुद्नेश्वर धाम मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है। मंदिर का नाम खुदनो नामक एक मुस्लिम महिला के नाम पर है. जो भगवान शिव की भक्त बन गई थी। उसी मंदिर की छत के नीचे शिवलिंग के पास खुदनो के नश्वर अवशेषों को एक गज दक्षिण में दफनाया गया था।
आख्यानों के अनुसार 14 वीं शताब्दी में, मंदिर स्थल घने जंगल से ढंका हुआ था और मुख्य रूप से मवेशियों को चराने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। खुदनो अक्सर अपनी गाय चराने के लिए वहां जाती थी। एक दिन चरने के बाद घर लौटते समय उसने अपनी गाय से दूध निकलने की कोशिश की लेकिन उसे दूध नहीं मिला। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। चरने के दौरान एक दिन गाय ने उसे छोड़ दिया। उसने गाय को पाया और उसकी गाय को दूध बहाते हुए देखकर हैरान रह गई। फिर वो ये बात बताने के लिए गाँव की तरफ भागी. स्थानीय लोगों ने जमीन को साफ किया और खुदाई शुरू कर दी जहाँ से वो शिवलिंग प्राप्त हुआ. और खुदनो की मृत्यु के बाद, उसके अवशेष शिवलिंग के पास दफन कर दिए गए थे। यहाँ एक मंदिर बनवाया जिसका नाम उन्होंने “खुद्नेश्वर अस्थान” रखा जो मुस्लिम महिला खुद्नी बीवी के नाम से विरासत में मिला। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान, नाथन एस्टेट ने 1858 में इस मंदिर का निर्माण किया और एक पुजारी को एक कार्यवाहक के रूप में नियुक्त किया। 2008 में बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष किशोर कुणाल ने बोर्ड से वित्तीय सहायता प्रदान की और इसे पर्यटकों के लिए हिंदू–मुस्लिम एकता का प्रदर्शन करने के लिए विकसित करने की घोषणा की। यहाँ महाशिवरात्री का त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. जिसमें भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग धन से शारीर से इस मदिर की सेवा में योगदान देते हैं. मुस्लिम समुदाय में औरतों को पूजने की प्रथा नहीं है वहीँ हिन्दू धर्म में औरतों को पूजा जाता है. इसलिए उस मंदिर में स्थित मजार की भी पूजा की जाती है. सोच अलग है. कर्म अलग है लेकिन इन विविधताओं में भी एकता की मिसाल पेश ऐसे में कहा जा सकता है की हिन्दू–मुस्लिम का पर्याय झगड़ा, क्लेश द्वेष नफरत और अशांति नहीं हो सकता. और हमें आठवी क्लास के उस सवाल का जवाब भी मिल गया जिसमें पूछा गया था की भारत अनेकताओं में एकता का देश है, कैसे ?
आप हमें बताएं की आप इस मंदिर के बारे में जानने के बाद क्या सोचते हैं?