एक खतरनाक ऑलराउंडर, जिसका करियर अपने ही कप्तान ने खत्म कर दिया !
दक्षिण अफ्रीका का बेस्ट ऑलराउंडर, जो अकेले अपने दम पर मोड़ देता था मैच का रुख
ताबरतोड़ बैटिंग से जो बना असली मैच फिनिशर
फौजी बनकर किया 3 सालों तक देश की सेवा, बाद में क्रिकेट में बनाया करियर
खतरनाक ऑलराउंडर, जो अपने समय से था कहीं आगे
आपसी मनमुटाव के कारण खत्म हुआ करियर वरना कहलाते महान ऑलराउंडर
दोस्तों, क्रिकेट हो या जिंदगी आपको नाम बनाने के लिए काफी जद्दोजहद करना पड़ता है लेकिन नाम बिगड़ने में जरा सी मेहनत नहीं लगती. सिर्फ एक छोटी सी गलती से आपके पूरे किए कराए पर पानी फिर जाता है. आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. आज के अंक में बात होगी दक्षिण अफ्रीका के अपने समय के एक बेस्ट ऑलराउंडर की, जिसने अकेले अपने दम पर अफ़्रीकी टीम को कई मुकाबले जितवाए, कई ताबरतोड़ पारियां खेली लेकिन उनको याद किया जाता है असफलताओं के लिए. और यही दुखद है. क्रिकेट में करियर बनाने से पहले इस खिलाड़ी ने फ़ौज में अपनी सेवाएं दी, जो कि एक मिसाल है. कप्तान से मनमुटाव और व्यक्तिगत मतफेद के चलते दमदार ऑलराउंडर को 33 साल की ही उम्र में संन्यास लेना पड़ गया, जबकि उनके अंदर काफी क्रिकेट बची थी. आज के अंक में ऐसे ही बदनसीब खिलाड़ी की बात होगी, जिसके मन में आज भी एक टीस है, अपनी टीम को विश्व कप जीत ना दिला पाने की.
आज के लेख में हम दक्षिण अफ्रीका के दिग्गज ऑलराउंडर और फिनिशर लांस क्लूजनर के जीवन से जुड़ी कुछ जानी–अनजानी और अनकही बातों को जानने की कोशिश करेंगे.
4 सितंबर, 1971 को दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर के नटाल प्रोविंस में लांस क्लूजनर का जन्म हुआ था. क्लूजनर के पिता भी एक स्पोर्ट्सपर्सन थे, वो पोलो के साथ–साथ क्रिकेट भी खेला करते थे इसलिए लांस क्लूजनर के खून में ही क्रिकेट था. क्लूजनर के पिता का एक फार्महाउस था, जहां वो गन्ने की खेती करते थे. वो अपने बेटे लांस को भी अपने साथ ले जाया करते, जहां काम कर रहे वर्कर्स के बच्चों के साथ वो फुटबॉल खेला करते थे. इसके अलावा लांस क्लूजनर को फिशिंग का भी शौक था.
क्लूजनर के पिता के फार्महाउस पर काम कर रहे लोग और उनके बच्चे जुलु में बात करते थे तो क्लूजनर को भी इस भाषा में अच्छी पकड़ हो गई थी, इसी वजह से उन्हें ‘जुलु‘ के नाम से भी जाना जाने लगा. क्लूजनर के पिता ने उनका दाखिला एक बोर्डिंग स्कूल में करा दिया. फाइनल इयर में क्लूजनर अपनी स्कूली टीम से खेलने लगे थे और बतौर बल्लेबाज खेलते हुए उन्होंने अपनी टीम को कई मुकाबले भी जितवाए थे. दोस्तों, लांस क्लूजनर ने पढ़ाई पूरी करने के बाद मिलिट्री की ट्रेनिंग ली और उसके बाद 3 सालों तक फौज में अपनी सेवाएं दी. इसी दौरान खाली वक्त में उन्होंने गेंदबाजी करना भी शुरू कर दिया.
गेंदबाजी करते हुए उन्होंने अपनी एक अलग थ्योरी बनाई. थ्योरी ये थी कि यदि आप बल्लेबाज के विकेट को हिट नहीं कर सकते तो उनके सिर को हिट करें, इससे आपको विकेट जरुर मिलेगा. मिलिट्री की सर्विस पूरी करने के बाद उन्होंने क्रिकेट में ही अपना करियर बनाने का निर्णय ले लिया था. इसके बाद वो कई लोकल टूर्नामेंटों में हिस्सा लेने लगे. ऐसे ही एक मुकाबले में गेंदबाजी करते हुए नटाल फर्स्ट क्लास टीम के मैनेजर डेनियल कर्लस्टीन की नजर उनपर पड़ी. कर्लस्टीन ने अपनी पारखी नजरों से क्लूजनर में छिपे एक बेहतरीन खिलाड़ी को पहचान लिया था और उन्होंने तब क्लूजनर को अपने क्लब के नेट सेशन में बुलाया. क्लूजनर नेट्स में पहुंचे और अपनी बल्लेबाजी और गेंदबाजी से प्रभावित किया. फलस्वरूप उन्हें 1991 में नटाल की तरफ से अपना फर्स्ट क्लास डेब्यू करने का मौका मिल गया. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में क्लूजनर ने अपने ऑलराउंड खेल से कई मैच भी जितवाए और दिल भी जीता. 5 सालों तक घरेलु क्रिकेट में जलवा बिखेरने के बाद आखिरकार 1996 में इंग्लैंड के विरुद्ध एक वनडे मैच से क्लूजनर ने अपना अंतराष्ट्रीय डेब्यू भी कर लिया. अपने डेब्यू मैच में वो बल्ले और गेंद दोनों से फ्लॉप रहे लेकिन करियर के अपने तीसरे मैच में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 88 रनों की मैच–जिताऊ पारी खेली. इसी साल उन्हें भारत के खिलाफ टेस्ट डेब्यू करने का भी मौका मिल गया.
अपने टेस्ट इंटरनेशनल डेब्यू पर वो बल्ले से फ्लॉप रहे थे लेकिन दूसरी पारी में उन्होंने 8 भारतीय बल्लेबाजों का शिकार कर सनसनी मचा दी थी. फिर अगले साल भारत के ही खिलाफ 100 गेंदों पर 13 चौकों, और 1 छक्के की मदद से 102 रनों की पारी खेलकर टेस्ट अंतराष्ट्रीय करियर का पहला शतक जड़ दिया. क्लूजनर की बल्लेबाजी का अंदाज काफी निराला था, जिसे देख विश्व क्रिकेट उनकी मुरीद हो गई थी.
वो डेढ़ किलो का भारी–भरकम बल्ला लेकर उतरते थे और उसपर काफी ऊंचा बैकलिफ्ट और बेसबॉल स्टाइल स्टांस काफी आकर्षित करता था. गेंद को दूर मारने की उनकी क्षमता साथ ही अच्छी लाइन लेंथ वाली गेंद को भी लहराने का उनका हुनर उन्हें बाकी बल्लेबाजों से अलग करता था और उनकी गिनती विश्व क्रिकेट के सबसे खतरनाक बल्लेबाजों में होने लगी थी. इसी साल श्रीलंका के विरुद्ध क्लूजनर ने अपने ऑलराउंड खेल से टीम को एक और मैच जितवाया था. पहले बल्ले से 132 की स्ट्राइक रेट से 54 रन जड़े और फिर गेंद से 6 विकेट चटकाकर कोहराम मचा दिया. इस हरफनमौला प्रदर्शन के लिए उनको ‘मैन ऑफ द मैच‘ अवार्ड से नवाजा गया था.
फिर आया साल 1999 विश्व कप, जब दुनिया ने लांस क्लूजनर का रौद्र रूप देखा था.
इस विश्व कप में क्लूजनर छाए रहे. पहले श्रीलंका के खिलाफ 52 रन बनाकर 3 विकेट लिए, फिर इंग्लैंड के खिलाफ 48 रन और 1 विकेट. केन्या के खिलाफ 5 विकेट, पाकिस्तान के खिलाफ 46 रन और 1 विकेट लेकर वो इन 4 मैचों में ‘मैन ऑफ द मैच‘ बने. खासतौर पर पाकिस्तान के खिलाफ उनकी बल्लेबाजी की खूब सराहना हुई थी क्योंकि काफी क्रंच मैच में क्लूजनर ने अपनी टीम को दबाव से निकालकर वसीम अकरम, अब्दुल रज्जाक और शोएब अख्तर के खतरनाक पेस अटैक को डेथ ओवरों में धो डाला था. लेकिन इस विश्व कप में कुछ ऐसा हुआ जिसका मलाल आज भी क्लूजनर को है. दक्षिण अफ्रीका कप जीतने के अपने सपने के बेहद करीब थी. सेमीफाइनल में अफ्रीकी टीम का सामना ऑस्ट्रेलिया से था.
पहले इस मैच में उनकी गेंद पर स्टीव वॉ का कैच हर्शल गिब्स ने अजीबोगरीब तरीके से ड्रॉप कर दिया, जिसका खामियाजा अफ़्रीकी टीम को आगे भुगतना पड़ा. बाद में 214 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए दक्षिण अफ्रीका ने अपने विकेट नियमित अन्तराल पर गंवाए और अंतिम 4 ओवरों में टीम को 30 रनों की दरकार थी और उनके हाथ में 3 विकेट थे. फिर 49वें ओवर में 2 और विकेट गिर गए. अब अंतिम ओवर में दक्षिण अफ्रीका को 9 रनों की जरुरत थी और 1 विकेट बचा था. पहली 2 गेंदों पर लगातार 2 चौके लगाकर क्लूजनर ने मैच टाई कर दिया था और चौथी गेंद सामने खेलते हुए सिंगल लेने भागे. लेकिन दूसरे छोर पर खड़े एलेन डोनाल्ड गेंद को ही देखते रह गए, भागे ही नहीं और इस वजह से रन आउट हो गए और करोड़ों दिल टूट गए. केवल 0.01 के अच्छे रनरेट के चलते ऑस्ट्रेलिया फाइनल में पहुंची और दक्षिण अफ्रीका को मिला चोकर्स का तमगा.
281 रन बनाकर और 17 विकेट लेकर क्लूजनर ‘मैन ऑफ द टूर्नामेंट‘ तो बने लेकिन ट्रॉफी ना जीत पाने की कसक दिलों में रह गई. क्लूजनर टूर्नामेंट के 8 मैचों में सिर्फ 2 बार आउट हुए थे और अंतिम 10 ओवरों में उनका स्ट्राइक रेट 163 का रहा था.
इस विश्व कप के बाद वो वनडे ऑलराउंडरों की रैंकिंग में टॉप पर पहुंच गए थे. वर्ल्ड कप ना जीत पाने की खीज उन्होंने अपनी बल्लेबाजी में निकाला. उन्होंने इसके बाद कई ताबरतोड़ पारी खेली. चाहे वो इंग्लैंड के खिलाफ 174 रनों की पारी हो या फिर न्यूजीलैंड के खिलाफ 103 रनों की पारी हो, जहां बाकी बल्लेबाज एक के बाद करके आउट होते चले गए थे. इसी वर्ष न्यूजीलैंड के खिलाफ ही एक मैच में गजब का फिनिश किया था, जब उनकी टीम को 14 गेंदों में 27 रनों की जरुरत थी और केवल 3 विकेट बचे थे. क्लूजनर ने वहां अंतिम गेंद पर छक्का लगाकर टीम को जीत दिलाई थी.
इसके बाद क्लूजनर कुछ समय तक चोटों से परेशान रहे जिससे उनके फॉर्म में थोड़ी गिरावट आने लगी थी, जिसके बाद उन्हें टीम से ड्रॉप कर दिया गया. लेकिन कई जबरदस्त पारियां खेलकर क्लूजनर ने साल 2002 में टीम में वापसी की. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक वनडे मैच में क्लूजनर ने उस वक्त 83 रनों की ताबरतोड़ पारी खेली थी जब अन्य खिलाड़ी ताश की पत्तों की तरह बिखर गए थे. ये उस वक्त किसी नंबर-8 पर उतरने वाले बल्लेबाज द्वारा खेली गई सर्वश्रेष्ठ पारी थी. इसके बाद चैंपियंस ट्रॉफी और 2003 विश्व कप में क्लूजनर ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था. 2003 में भी कहानी 1999 विश्व कप जैसी ही रही. अंत में सारा दारोमदार क्लूजनर के ही कंधों पर होता. वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच में उनके ताबरतोड़ 57 रनों की पारी के बावजूद दक्षिण अफ्रीका 3 रनों से हार गई. श्रीलंका के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका के पास सेमीफाइनल में पहुंचने का मौका था लेकिन डकवर्थ लुईस के खराब कैलकुलेशन के चलते अफ्रीकी टीम को मात्र 1 रन से हार का सामना करना पड़ा. इस मैच के बाद धीमी बल्लेबाजी के लिए क्लूजनर की जमकर आलोचना हुई थी. नतीजा ये हुआ कि विश्व कप के बाद इंग्लैंड दौरे के लिए उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था. इसके बाद क्लूजनर ने बोर्ड के खिलाफ अर्निंग लॉस के कारण लीगल एक्शन भी ले लिया, क्लूजनर ने अपने देश के लिए काउंटी क्रिकेट खेलने का ऑफर भी ठुकरा दिया था. हालांकि बाद में मामला शांत हो गया और बोर्ड और उनके बीच सुलह हो गई.
लांस क्लूजनर एक इम्पैक्ट प्लेयर थे, जो अकेले अपने दम पर मैच का रुख पलटने का माद्दा रखते थे. 2004 चैंपियंस ट्रॉफी के लिए वो उपलब्ध थे, टीम में उनका चयन भी हो गया था लेकिन इसके बावजूद टीम के कप्तान ग्रीम स्मिथ ने क्लूजनर को ये कहकर टीम में लेने से मना कर दिया था कि वो टीम में फूट डालते हैं और वो एक टीम–मैन नहीं हैं.
आगे भी स्मिथ ने उनके सेलेक्शन पर काफी आपत्ति जताई. 2004 चैंपियंस ट्रॉफी के बाद क्लूजनर का करियर खत्म हो गया. मात्र 33 साल की उम्र में उन्होंने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास का ऐलान कर दिया. यदि स्मिथ ने अपने व्यक्तिगत मतफेद या मनमुटाव से आपत्ति न की होती तो शायद क्लूजनर 2007 विश्व कप के लिए भी अफ्रीकी टीम का हिस्सा होते.
लांस क्लूजनर ने 8 साल के इंटरनेशनल करियर में कुल 49 टेस्ट और 171 वनडे मुकाबलों में क्रमशः 1906 और 3576 रन बनाए. साथ ही 80 टेस्ट विकेट और 192 वनडे विकेट भी लिए. क्लूजनर ने वनडे क्रिकेट में 90 के स्ट्राइक रेट से बल्लेबाजी की जो दिखाता है कि वो अपने समय से काफी आगे थे. उनके जैसा दमदार खिलाड़ी शायद ही अब अफ्रीकी टीम को मिले. 2016-18 तक क्लूजनर जिम्बाब्वे टीम के कोच रहे और 2019 में वो दक्षिण अफ्रीका के अंतरिम कोच भी रहे. इसके अलावा वो अफगानिस्तान क्रिकेट टीम के भी कोच रह चुके हैं. 2022 के मार्च महीने वो दोबारा जिम्बाब्वे के कोच बने थे.
लांस क्लूजनर के निजी जीवन की बात करें तो 13 मई, 2000 को 28 वर्षीय क्लूजनर ने डरबन में इसाबेले पॉटगिटर से शादी रचाई थी, जिनसे उन्हें 2 बेटे हुए.
लांस क्लूजनर एक दमदार ऑलराउंडर, जिन्होंने अपने खेल से मैच भी जीते और दिल भी, अपने करियर में उन्होंने कई ताबरतोड़ पारी खेली लेकिन इसके बावजूद 1999 और 2003 विश्व कप में वो 1 रन के लिए उनको याद किया जाता है. ये काफी दुखद है. क्लूजनर के योगदान को ना तो भुलाया जाना चाहिए ना हि नजरअंदाज किया जाना चाहिए.
2014 में क्लूजनर एक इंटरव्यू में कहते हैं ‘जो हुआ उसके लिए डोनाल्ड को दोष नहीं देना चाहिए.’
क्लूजनर ने कहा कि वो अधीर हो गए थे और दूसरे छोर तक पहुंचे लेकिन वास्तव में कोई रन नहीं था. वो 1 रन न बना पाने का दुःख आज भी क्लूजनर के मन में है और ये जख्म आज भी उतना ही गहरा है.
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