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इस मंदिर में सचमुच में लड्डू खाती है मूर्ति

Ratnasen Bharti

हिन्दू धर्म में अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है। बताया गया है कि हिन्दू धर्म में देवी देवताओं की कुल संख्या तैंतीस करोड़ है। हनुमान जी को कलियुग में सबसे ज्यादा पूजा जाने वाला देवता माना जाता है। मान्यता है कि रामभक्त हनुमान जी कलियुग में आज भी जीवित है। भारत और अन्य देशों के अनेक शहरों में केसरी नंदन, अंजनी के लाल, पवन पुत्र महावीर रामभक्त हनुमान जी के हज़ारों मंदिर हैं। उन मंदिरों में अनेक मंदिर ऐसे भी जिनके साथ अजीब और रहस्यमय कहानियां , इतिहास या घटनाक्रम जुड़े हुए हैं.

आज हम बात करेंगे हनुमान जी के एक ऐसे चमत्कारी मंदिर की जहाँ वे अपनी उपस्थिति का सभी को एहसास कराते हैं। इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति सजीव रूप में लड्डू खाती है। जिससे उनके मौजूद होने का संकेत मिलता है। आइये जानते हैं इस मंदिर के बारे में विस्तार से

भारत के उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित है यह चमत्कारी मंदिर जिसे पिलुआ वाले हनुमान जी के नाम से जाना जाता है। इटावा जिला में प्रतापनेर के अंतर्गत पड़ने वाले रूरा गाँव में यमुना नदी के किनारे के बीहड़ में बना सिद्धपीठ पिलुआ हनुमान मंदिर अपने आप में अनूठा है . इस मंदिर में मंगलवार और शनिवार को भारी भीड़ लगती है। बुढ़वा मंगल को यहाँ हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु पहुँचते हैं और रामभक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं।

इस मंदिर में स्थापित हनुमान जी के दर्शन पूजन करने और भोग लगाने से भक्तों की मनोकामनाएं तो पूरी होती ही हैं। इसके अतिरिक्त भक्तों को हनुमान जी के सजीव रूप से उपस्थित होने की अनुभूति भी होती है।

इस मंदिर में हनुमान जी की बालक रूप में लेटी हुई अद्भुत और मनोहारी प्रतिमा है। इस प्रतिमा का मुंह खुला हुआ है। सबसे बड़ी बात यह कि यहाँ इस मंदिर में स्थापित मूर्ति सजीव रूप से लड्डू खाती है। बताया जाता है कि श्रद्धालु भक्त जो भी लड्डू या दूध का भोग लगाते है वह सीधा भगवान के पेट में चला जाता है।

हनुमान जी की यह प्रतिमा स्थापत्य और मूर्ति कला की दृष्टि से अत्यंत विस्मयकारी है। वैसे तो देश भर में हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमाएं अनेक प्रमुख मंदिरों में हैं लेकिन इस मूर्ति की खास बात यह है बाल रूप हनुमान जी लेटे हुए हैं और उनका मुख खुला हुआ है। भगवान भक्तों का प्रसाद ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि हनुमान जी की यह मूर्ति अब तक हज़ारो टन लड्डू का प्रसाद ग्रहण कर चुकी है लेकिन आज तक उनका मुंह नहीं भर सका है। उनके मुखारविंद हमेशा जल और दूध से भरे रहते हैं और बराबर बुलबुले भी निकलते रहते हैं। इन बुलबुलों के विषय में मंदिर के पुजारियों का विचार यह है कि हनुमान जी हमेशा राम नाम रटते रहते हैं और वे हमेशा सांस लेते रहते हैं। इसी कारण से हमेशा बुलबुले निकलते रहते हैं।

बताया जाता है कि यहाँ मौजूद मूर्ति के मुंह में जितना भी लड्डू डालो वह कहाँ गायब हो जाता है पता ही नहीं चलता। और हैरत की बात तो यह है कि यह क्रम काफी वर्षों से इसी तरह चला आ रहा है। आज तक किसी को यह पता नहीं चला कि आखिर प्रसाद जाता है तो कहाँ जाता है ?

पुरातत्व विभाग के शोधकर्ता भी आज तक यह पता नहीं कर सके कि आखिर यह चमत्कार क्या है ? पिलुआ हनुमान जी का यह मंदिर केवल स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि देश भर के श्रद्धालुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है और यहाँ दूर दूर से भक्त उनका दर्शन करने और लड्डू का भोग लगाने आते हैं।

पिलुआ वाले हनुमान जी के नाम से विख्यात इस मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। स्थानीय लोगों के अनुसार पिलुआ एक जंगली पेड़ का नाम है। एक राजा को इसी पेंड़ के नीचे एक दिन हनुमान जी की दबी हुई मूर्ति मिली थी। उस राजा ने उस मूर्ति को वहां से निकलवा कर उनके लिए उसी स्थान पर एक छोटा सा मंदिर बनवाया था। पिलुआ के पेंड़ के पास इस मंदिर के बने होने के कारण इस मंदिर का नाम पिलुआ वाले महावीर हनुमान मंदिर प्रसिद्ध हो गया। इस मंदिर को सिद्धपीठ के रूप में मान्यता है। इसका इतिहास लगभग सात सौ वर्ष पुराना माना जाता है। शुरुआत में हनुमान जी की प्रतिमा पिलुआ के पेंड़ के नीचे स्थापित थी लेकिन बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया और आज यह मंदिर काफी भव्य रूप ले चूका है। रूरा गाँव के आस पास पिलुआ के पेंड़ अधिक संख्या में होने के कारण यह मंदिर पिलुआ हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। आज यह प्राचीन मंदिर देश ही नहीं विश्व भर में विख्यात हो चुका है।

इस चमत्कारी हनुमान मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। पुरातत्वविदों के लिए भगवान की यह प्रतिमा आज भी शोध का विषय है। मान्यता है कि इस सिद्धपीठ पर जो भी श्रद्धालु भक्त दर्शन करने और भोग लगाने आते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं हनुमान जी पुरी कर देते हैं।

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