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17 बार जहर देने के बाद भी नहीं गई थी इस संन्यासी की जान, जिन्हें कहा गया अध्यात्मिक राष्ट्रीयता का जनक

Ratnasen Bharti

भारत में अनेक ऐसे संत हुए हैं जो भले ही लोगों की नजर में धार्मिक नजर आते रहे हों लेकिन वस्तुतः वे सन्यासी होते हुए भी किसी योद्धा से कम नहीं थे। एक ऐसे ही सन्यासी योद्धा की आज हम बात करेंगे जिन्होंने समाज की कुरीतियों को मिटाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं स्वामी दयानन्द की। महर्षि दयानन्द का जन्म 12 फरवरी 1824 को हुआ था। वह समाज सुधारक तो थे ही साथ ही अनेक विषयों पर उनके मौलिक चिंतन भी हैं। उनका जन्म गुजरात प्रान्त के टंकारा में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था वही आगे चलकर स्वामी दयानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने आर्य समाज नामक संस्था की स्थापना की थी।

आपको बता दें कि आर्य समाज की स्थापना 1875 में हुई थी। इस संस्था का उद्देश्य समाज की असमानताओं और कुरीतियों को दूर करना है। स्वामी दयानन्द ने लोगों को वेदों की तरफ लौटने का सन्देश दिया था। उनका मानना था कि वेदों में ही जीवन की सत्यता है।

17 बार जहर देने की की गयी थी कोशिश

स्वामी दयानन्द के प्रबल तर्क और ज्ञान के सामने परम्परावादी सोंच के पंडितों और विद्वानों ने भी हार मान ली थी। स्वामी जी ने हिन्दी भाषा को भी बढ़ावा दिया था। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को ख़त्म करने के लिए जो कदम उठाये उसके चलते कई लोग उनके दुश्मन बन गए और उनका अपमान भी किया। बताया जाता है कि दयानन्द को लगभग 17 बार जहर देकर मार डालने की कोशिश की गयी थी लेकिन फिर भी उन्होंने कभी अपने अपराधी को सजा देना ठीक नहीं समझा।

स्वामी जी ने स्वतंत्रता सेनानियों को भी मार्गदर्शन दिया था। उन्होंने सरदार भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह, स्वामी श्रद्धानन्द, लाला लाजपत राय जैसे देशभक्तों में भी देशभक्ति का जज़्बा पैदा किया था।

जहर से ही मौत हुई थी स्वामी दयानन्द की-

1883 ईसवी में वे जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह के बुलाने पर जोधपुर में ठहरे हुए थे। वहां स्वामी जी का प्रतिदिन प्रवचन का कार्यक्रम होता था। कभी कभार महाराज जी भी उनका प्रवचन सुन लिया करते थे। उन्ही दिनों स्वामी जी भी राजमहल में गए। वहां एक नन्ही नाम की वेश्या आया करती थी। महाराज उससे बहुत प्रभावित थे। स्वामी जी को यह अच्छा नहीं लगा। उन्होंने महाराज को इस बारे में बताया तो उन्होंने नन्ही से सम्बन्ध तोड़ लिए।

यह जानकर कि स्वामी जी के कहने पर महाराज ने सम्बन्ध तोड़े हैं, उस वेश्या के मन में क्रोध आ गया। उसने स्वामी जी से बदला लेने की ठान ली। स्वामी दयानन्द सरस्वती से नाराज नन्ही नाम की वेश्या ने छल कपट करके स्वामी जी के रसोइये को अपनी तरफ मिला लिया और स्वामी को धोखे से दूध में कांच का चुरा पिला दिया। इससे स्वामी जी बीमार हो गए और कभी उससे उबर नहीं सके। कुछ दिनों के बाद उनकी मौत हो गयी।

इसलिए कहलाये सन्यासी योद्धा

आर्य समाज की स्थापना के बाद दयानन्द सरस्वती ने समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों जैसे बाल विवाह, सती प्रथा आदि को दूर करने के लिए लोगों के बीच जाने गए। उन्होंने न केवल हिन्दू बल्कि मुस्लिम, ईसाई आदि अनेक धर्म की कुरीतियों पर न केवल खुलकर लिखा और विरोध किया बल्कि उन्हें समाज से दूर करने का प्रयास भी किया। जीवन भर अनेक विरोध को हँसते हँसते झेलने के कारण ही ये संन्यासी योद्धा के रूप में प्रसिद्ध हुए। स्वामी दयानन्द ने वेदों के प्रचार प्रसार के लिए देश भर का भ्रमण किया।

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