वो धाकड़ बल्लेबाज जिसने बेखौफ बल्लेबाजी करना सिखाया
वो बल्लेबाज जिसके सामने कोई भी गेंदबजी नहीं करना चाहता था….
वो धाकड़ बल्लेबाज जिसने बेखौफ बल्लेबाजी करना सिखाया
मोंगूस बैट का इस्तेमाल करने वाला विश्व का एकलौता बल्लेबाज
2007 विश्व कप में सबसे ज्यादा रन बनाने वाला खिलाड़ी
जिसकी खतरनाक वापसी ने विश्व कप जितवा दिया
क्रिकेट की 22 गज पट्टी पर सबसे ज्यादा रन बनाना या फिर सबसे अधिक विकेट लेना किसी खिलाड़ी की व्यक्तिगत उपलब्धि हो सकती है। क्रिकेट के इतिहास में सिर्फ रन और विकेट के कीर्तिमानों को दर्ज नहीं किया जाता बल्कि कुछ ऐसे भी रिकॉर्ड , उपलब्धियां और कीर्तिमान होते है जिसकी वजह से एक खिलाड़ी इतिहास के पन्नो पर दर्ज होने के बाउजुद उसकी चर्चाएं सदियों तक होती है। एक बल्लेबाज के लिए अपनी क्रीज पर खड़े रहकर खेलना और अधिक समय तक स्थापित रहने के लिए क्रीज के अंदर बैकफुट पर जाकर खेलना उसके लिए परफेक्ट खेल हो सकता है।क्योंकि एक बल्लेबाज को आउट करने के लिए एक गेंद ही काफी है। लेकिन दुनिया का एक ऐसा बल्लेबाज भी रह चुका है जिसने बचपन से ही अपनी बल्लेबाजी में आक्रामकता दिखाई हो और उसी अंदाज को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में भी अपनाया हो। कोच के कहने के बाउजुद उसने अपनी बल्लेबाजी शैली को कभी नहीं बदला , बचपन से लेकर पूरे क्रिकेट करियर तक उसने बेखौफ बल्लेबाजी की। तेज गेंदबाज को आगे बढ़कर खेलना हो या फिर खड़े खड़े गगनचुंबी छक्के जड़ना हो। उसने अपने इसी अंदाज और आक्रामकता की बदौलत ना जाने कितने गेंदबाजों की लाइन और लेंथ बिगाड़ कर रख दी। यही वजह है कि उसके सामने गेंदबाजी करने से हर गेंदबाज खौफ खाता था….
आज हम बात करने वाले हैं ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के एक ऐसे बल्लेबाज की, जिसने क्रिकेट की दुनिया में अपनी बेखौफ बल्लेबाजी से खलबली मचा दी थी। इतना ही नहीं मैदान पर आते ही स्कोर बोर्ड को तेजी से चलाने का हुनुर भी इस बल्लेबाज में बखूबी था। वो कोई और नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया का धाकड़ बल्लेबाज मैथ्यू हेडन है। और आज हम अपने इस लेख में मैथ्यू हेडन की बल्लेबाजी के अलावा उनके जीवन में आए उतार चढ़ाव के बारे में भी जानने की कोशिश करेंगे….
मैथ्यू हेडन का जन्म 29 अक्टूबर 1971 को ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड शहर में हुआ था। इनका पूरा नाम मैथ्यू लॉरेंस हेडन है मैथ्यू हेडन को उनके टीम मेट उनके उपनाम यूनिट और हेडोस कहकर बुलाते थे। मैथ्यू के पिता का नाम लॉरी और मां का नाम मोया हेडन है। हेडन को बचपन से ही क्रिकेट से एक अलग तरह का लगाव था। हेडन जब 3 साल के थे तो वो अपने बड़े भाई गैरी के साथ घर के बैकयार्ड में क्रिकेट खेलते थे। लेकिन पिता लॉरी नहीं चाहते थे कि उनका बेटा क्रिकेट खेले। पिता हमेशा मैथ्यू हेडन को डांटते कि तुम सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो। लेकिन हेडन पिता की बात सुनकर टाल देते थे। एक दिन उनके पिता ने उन्हें घर के बैकयार्ड में क्रिकेट खेलते हुए देख लिया तो उन्होंने मैथ्यू को काफी फटकार लगाई। पिता दोबारा उन्हे खेलते हुए ना देख लें इसके लिए वो अपने भाई के साथ अपने फॉर्म हाउस में जाकर क्रिकेट खेलने लगे। जहां होम मेड टर्फ पिच बनाई हुई थी। हेडन ने अपनी पढ़ाई मैरिट्स कॉलेज एसग्रोव ब्रिसबेन से पूरी की। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान हेडन इंटर कॉलेज क्रिकेट टूर्नामेंट में भाग लिया करते थे। जहां उन्होंने अपने कॉलेज की तरफ से खेलते सिर्फ रन ही नहीं बनाए बल्कि बेखौफ अंदाज में बल्लेबाजी भी किया। हेडन बचपन में जब क्रिकेट की प्रैक्टिस करते तो बेखौफ और अक्रामक बल्लेबाजी ही करते थे।
साल 1991 में जब मैथ्यू हेडन क्वींसलैंड की तरफ से अपना पहला मैच खेलने उतरे तो उन्होंने पूछा कि क्या किसी से अपने डेब्यू मैच में 200 रन बनाए है और खुद जाकर 149 रन ठोक दिए। जो कि अगले 17 सालों तक अपने आपने एक रिकॉर्ड ही रहा। हेडन की इस धमाकेदार एंट्री ने नेशनल चयनकर्ताओ को चौंका दिया। हेडन को लगने लगा था कि उन्हें नेशनल टीम में जगह जरूर मिलेगी । और ऐसा ही हुआ , 19 मई 1993 को इंग्लैंड के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू करने का मौका मिला। अपने पहले ही मैच में हेडन ने शानदार शुरुआत की और 29 रन बनाए लेकिन इस शानदार शुरुआत को हेडन बड़ी पारी में तब्दील नहीं कर पाए। हेडन ने एक अक्रामक बल्लेबाज के अलावा खुद को एक अच्छा स्लिप फील्डर के रूप में भी स्थापित किया। जहां वो मार्क वा, और रिकी पोंटिंग के बगल में खड़े होकर अक्सर गेंदबाजों की हौंसलाफजाई करते देखे जाते थे। हेडन को वनडे क्रिकेट में अधिक मौके नहीं मिल रहे थे। वो ज्यादातर बेंच पर ही बैठे रहते। क्योंकि मार्क टेलर उस समय टीम के प्रथम ओपनर के तौर पर देखे जाते थे। टेलर अच्छा खेल दिखाते गए। और वे मार्क वा के अच्छे जोड़ीदार बन गए। इस बीच हेडन को सेलेक्टरों ने टेस्ट टीम जगह दे दी। 4 मार्च 1994 को जोहानिसबर्ग में साउथ अफ्रीका के खिलाफ हेडन को टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने का अवसर मिला। डेब्यू टेस्ट हेडन के लिए काफी निराशाजनक रहा। पहली पारी में 15 और दूसरी पारी में सिर्फ 5 रन ही बना सके। रही कसी कसर उनकी चोट ने पूरी की। चोट की वजह से हेडन के करियर में उठा पठक जारी रहा। दो साल बाद हेडन को वेस्टइंडीज और साउथ अफ्रीका तीन टेस्ट मैचों में मौका मिला। हालाकि उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ 125 रन बनाकर अपनी पहली टेस्ट सेंचुरी बनाई। लेकिन 6 टेस्ट में उनकी औसत सिर्फ 24 की रही। हेडन चार बार तो खाता तक नहीं खोल सके। यही हाल उनका ओडीआई क्रिकेट में भी था ।
साल 1993 से 1994 तक हेडन को 13 मैच खेलने को मिले जहां उन्होंने सिर्फ निराश किया। यही वजह थी कि हेडन को 1994 के बाद साल 2000 में ओडीआई में जगह मिली। वजह थी उनके फर्स्ट क्लास मैचों में शानदार प्रदर्शन की। हेडन ने न्यूजीलैंड और वेस्ट इंडीज के खिलाफ अच्छी पारियां तो नहीं खेली लेकिन उनकी स्विप और स्लॉग स्वीप के परफेक्शन ने हेडन को 2001 के टूर के लिए जगह दे दी। यह टूर दो खिलाड़ियों के लिए अभूतपूर्व परिवर्तन लेकर आया। एक थे युवा हरभजन सिंह जिन्होंने 3 टेस्ट में 32 विकेट लिए और दूसरे थे मैथ्यू हेडन जिन्होने 3 मैचों मे शानदार 549 रन बनाए। हेडन ने इस सीरीज में जिस तरह से बल्लेबाजी की थी। दुनिया हेडन की बल्लेबाजी की दीवानी हो गई थी। इसके बाद हेडन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हेडन उस सीरीज ने बाद खुद को पक्के तौर पर ओपनिंग स्लॉट पर स्थापित कर लिया। 2001 से लेकर 2005 तक लगातार हेडन टेस्ट में 1 हजार रन के माइल स्टोन को पार कर लिया। जो खुद में एक रिकॉर्ड है। साल 2003 में जिम्बाब्वे के खिलाफ उन्होंने तिहरा शतक ठोक डाला।जहां उन्होंने 380 रनों का व्यक्तिगत स्कोर अपने नाम किया था। इस पारी के बाद उन्हें विजडन के टॉप खिलाड़ियों में चुना गया था। हेडन के 380 रन खुद में कई रिकॉर्ड लिए हुए थे। इसी साल यानी 2003 में होने वाले ओडीआई विश्व कप में उन्हे जगह दी गई। जहां उन्होंने ठीक ठाक प्रदर्शन किया। हेडन ने लीग मैचों में भारत के खिलाफ 45, नामीबिया के खिलाफ 88 और फाइनल में 37 रन। 2004 के अंत में हेडन की फॉर्म गिरने लगी थी। क्योंकि लगातार 16 टेस्ट में एक भी शतक नहीं लगा पाए थे और एशेज सीरीज के 3 मैचों मे हेडन 40 के ऊपर रन नहीं बना पाए थे। लेकिन चौथे टेस्ट में खेली गई 138 रनों की पारी ने उनका बिखरता करियर बचा लिया था। लेकिन इसके बाद भी उनका फॉर्म चला गया।
हेडन अपनी फॉर्म को लेकर बहुत परेशान थे। उन्हे अपने डूबते करियर को बचाने के लिए एक अच्छी पारी की जरूर थी। हालाकि 2006 -07 सीजन में उन्होंने वापसी की। क्योंकि साइमन काटिच और शेन वाटसन बाहर हो गए थे हेडन इस समय अपने करियर के अंतिम पड़ाव में थे लेकिन उनका जज्बा कबीले तारीफ था। हेडन को अपने करियर के दूसरे विश्व कप की टीम में फिर जगह मिली। क्योंकि 20 फरवरी 2007 को विश्व कप से ठीक पहले न्यूजीलैंड के खिलाफ नाबाद 181 रन बनाकर अपने इरादे साफ कर दिए। हेडन को इस पारी ने ना जाने कौन सी संजीवनी दी कि उनकी पुरानी खोई हुई फॉर्म वापस आ गई। और साल 2007 के विश्व कप में मैथ्यू हेडन का बल्ला जमकर बरसा। इस विश्व कप में उन्होंने 669 रन बनाकर सर्वाधिक स्कोरर तो रहे ही तीन शतक भी ठोके। ऑस्ट्रेलिया के विश्व कप जीत में ग्लेन मैकग्रा और हेडन ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। सुपर एट मुकाबलों के पूरे होने से पहले हेडन ने 3 शतक जड़ दिए थे। साउथ अफ्रीका के खिलाफ 66 गेंदों शतक बनाने वाले हेडन को सेंट किट्स के पीएम ने नागरिकता पुरुस्कार से नवाजा था। तब हेडन विश्व के दूसरे खिलाड़ी बने थे जिसने सचिन के बाद विश्व कप में 600 से ज्यादा रन बनाए हो। जबकि आयरलैंड के खिलाफ उन्होंने बल्लेबाजी ही नहीं की।
मैथ्यू हेडन जिस तरह के अक्रामक बल्लेबाज थे उसी दौर में क्रिकेट के एक ऐसे फॉर्मेट ने जन्म लिया जिसके लिए मैथ्यू परफेक्ट थे। टी 20 क्रिकेट। विडंबना यह थी कि हेडन अब अपने करियर के अंतिम पड़ाव में प्रवेश कर चुके थे। इसलिए उनका टी 20 क्रिकेट भले ही छोटा रहा हो लेकिन हेडन ने अपना जलवा टी 20 में भी दिखाना नहीं भूले। यही वजह थी कि साल 2007 के विश्व कप में हेडन 265 रन बनाकर टॉप पर रहे। हेडन को अब आईपीएल का इंतजार था। जहां आईपीएल की चेन्नई सुपर किंग्स ne उन्हें शामिल किया । हेडन तीन सालों तक चेन्नई सुपर किंग्स का हिस्सा रहे। जहां आईपीएल के दूसरे सीजन यानी 2009 में टॉप स्कोरर भी रहे। हेडन अपने देश की फ्रेंचाइजी लीग , यानी बिग बैश लीग में खेलने की चाह में उन्होंने क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया से इस्तीफा दे दिया था। 4 मार्च 2008 को भारत के खिलाफ गाबा के मैदान पर कॉमनवेल्थ सीरीज में उन्होंने आखिरी वनडे मैच खेला। इसके बाद 3 जनवरी 2009 को साउथ अफ्रीका के खिलाफ हेडन ने अपना आखिरी टेस्ट भी खेला। मैथ्यू हेडन जब तक खेले अपने देश के लिए महान ओपनर के तौर पर जाने जाते रहे है।
ओपनिंग के लिए हेडन के जोड़ीदारों में गिलक्रिस्ट उतने असरदार साबित नहीं हुए जीतने जस्टिन लैंगर हुए थे। हेडन और लैंगर की जोड़ी ने कई कीर्तिमान स्थापित किए है। इसकी साधारण सी वजह यह थी कि हेडन जहां एक तरफ अक्रामक तरीके से बल्लेबाजी करते तो दूसरी तरफ लैंगर शांत स्वभाव से रन बटोरते। साल 2006 में जब यह जोड़ी टूटी तो हेडन निराश ने लेकिन किस्मत ने इन दोनो को एक बार फिर जोड़ीदार बना दिया। खिलाड़ी के रूप ने नहीं कोच के रूप में। साल 2021 में हेडन जहां पाकिस्तान के कोच थे वहीं लैंगर ऑस्ट्रेलिया के। आज की युवा पीढ़ी भी हेडन जैसा बनना चाहती है।
मैथ्यू हेडन ने अपने क्रिकेट करियर में 103 टेस्ट में 8625 रन बनाए है जिसमें 30 शतक और 29 अर्द्ध शतक शामिल है वहीं 161 वनडे मैचों में 43 की औसत से 6133 रन बनाए है जिसमें 10 शतक 36 अर्द्ध शतक शामिल है। हेडन ने अंतर्राष्ट्रीय टी 20 और आईपीएल को मिलाकर कुल 41 मैच खेले है। जिसमें लगभग 1400 रन बनाए है
दोस्तों ऑस्ट्रेलियाई टीम के पास वार्नर , और फिंच जैसे अक्रामक बल्लेबाज आए। लेकिन मैथ्यू हेडन जैसी झलक किसी में नहीं दिखती। आपको क्या लगता है, हेडन जैसा बेखौफ बल्लेबाज फिर कभी मिलेगा? आप हमें अपनी राय कमेंट करके बता सकते हैं .