वो क्रिकेटर जिसकी टाइमिंग को देखकर दिग्गजो ने मिस्टर क्रिकेट नाम रख दिया….
मौका को भुनाने की कला जिसे खूब आती थी
एक साइंस टीचर कैसे बना ऑस्ट्रेलिया का दमदार बल्लेबाज
मुसीबत के समय अंगद की तरह क्रीज पर पैर जमाए रखने वाला खिलाड़ी
जिस खिलाड़ी की जिद और खेल ने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट को नया मुकाम दिया
दोस्तों क्रिकेट में किसी भी खिलाड़ी टीम में जगह बनाना जितना कठिन है उससे कहीं ज्यादा कठिन है खुद को प्लेइंग इलेवन में बनाए रखना। क्योंकि मौजूदा समय में लगभग सभी टीमों के पास बेंच स्ट्रेंथ की एक ऐसी लाइन लगी है कि आपका खराब प्रदर्शन बेंच स्ट्रेंथ खिलाड़ी को मौका देने के बराबर समझा जाता है। इसलिए चाहे बल्लेबाज हो ,गेंदबाज हो या फिर विकेट कीपर ही क्यों ना हो खुद को टीम में लंबे समय तक स्थापित करने के लिए लगातार मैचों में शानदार प्रदर्शन करना पड़ता है। क्रिकेट की दुनिया में बहुत कम ऐसे खिलाड़ी आए और गए जिन्होंने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में शानदार प्रदर्शन कर ना सिर्फ खुद को टीम में बनाए रखा बल्कि टीम को जिताने में एक बड़ा योगदान भी दिया। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट का एक ऐसा ही चेहरा सामने नजर आता है जिसने खुद को टीम से ड्रॉप होने का बहुत कम मौका दिया । और टीम के लिए छोटी ही सही लेकिन किफायती पारी खेलकर टीम को मुश्किल परिस्थितियों से बचाया भी है। वो खिलाड़ी कोई और नहीं बाएं हाथ का पूर्व ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी माइक हसी है।
हम बात करने वाले हैं ऑस्ट्रेलिया के एक ऐसे खिलाड़ी कि जिसके पिता उसे साइंस टीचर बनाना चाहते थे लेकिन उसकी जिद्द ने किस्मत में लिखी बात को पहचान लिया और फिर हुआ उसके बाद दुनिया ने देखा। हम बात कर रहे है माइक हसी की…
माइक हसी का जन्म 27 मई 1975 को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मार्ले में हुआ था। इनका पूरा नाम माइकल एडवर्ड किलेन हसी है। माइक के पिता का नाम डेड हसी और मां का नाम हेलेन हसी है। माइक हसी के परिवार में एक छोटा भाई डेविड हसी है जो ऑस्ट्रेलिया के लिए क्रिकेट खेल चुके है। दोनो भाई ने लगभग साथ में ही क्रिकेट की शुरुआत की और ऑस्ट्रेलिया के लिए एक साथ खेला। माइक हसी ने अपनी स्कूली शिक्षा व्हिटफोर्ड कैथोलिक प्राइमरी स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने आगे की शिक्षा हासिल करने के लिए पर्थ के उत्तरी उपनगरों में प्रेंडिविल कैथोलिक कॉलेज में दाखिला लिया। माइक जब 6 साल के साथ तो वो अपने पिता और भाई डेविड के साथ घर के पीछे बने कोरिडोर में क्रिकेट खेला करते थे। माइक के पिता सिर्फ इंटरटेनमेंट के लिए क्रिकेट खेलने देते थे। वो चाहते थे कि उनका बेटा क्रिकेट की जगह पढ़ाई पर ध्यान दे। लेकिन माइक ने क्रिकेट खेलने की जिद्द पकड़ी। एक दिन माइक अपने भाई के साथ रात में प्रैक्टिस कर रहे थे तभी उनके पिता की नजर माइक पर पड़ी। माइक का क्रिकेट के प्रति समर्पण देख पिता ने माइक को खेलने की इजाजत दे दी। लेकिन पिता ने माइक से पढ़ाई को जारी रखने की भी बात कही। ऐसा नहीं है कि माइक पढ़ाई में अच्छे नहीं थे माइक अपनी पढ़ाई को लेकर सीरियस थे। माइक फर्स्ट क्लास क्रिकेटर बनने से पहले साइंस टीचर बनने के लिए पढ़ाई करते थे।
माइक ने जैसे ही स्कूली शिक्षा पूरी की उन्हे ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट एकेडमी की तरफ से स्कॉलरशिप मिल गई। जहां उन्हें क्रिकेट एकेडमी में प्रैक्टिस करने का मौका मिला। जहां पहले से ब्रेटली और जेशन गेलेस्पी ट्रेनिंग कर रहे थे। जो आगे चलकर साथ खेले। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद साल 1994-95 में माइक हसी का चयन वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की फर्स्ट क्लास टीम में हो गया। बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने पहले ही मैच की दोनो पारियों में अच्छी बल्लेबाजी की। माइक ने पूरे सीजन में शानदार बल्लेबाजी करते हुए वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया टीम के लिए हीरो बन गए। माइक की टाइमिंग और कंटेस्टेंसी देखकर हर कोई स्तब्ध रह गया। माइक ने फर्स्ट क्लास मैच में लगभग 6 हजार रन बना लिए थे। उनके इस प्रदर्शन के बावजूद माइक हसी अभी सेलेक्टरों की निगाहों में नहीं आए थे। क्योंकि पहले से ही टीम में गिलक्रिस्ट, पोंटिंग , मैथ्यू हेडन, डेनिम मार्टिन और एंड्रयू साइमंड्स जैसे शानदार खिलाड़ी थे। जो टीम के लिए अच्छा कर रहे थे। टीम में जगह ना मिलने पर भी माइक हसी ने अपने खेल को और निखारने के लिए इंग्लैंड चले गए जहां उन्होंने साउथहैंपटन की तरफ से काउंटी क्रिकेट खेला। जहां उन्होंने एक मैच में 321 रनों की शानदार पारी खेली। माइक की इस पारी ने राष्ट्रीय टीम के लिए दरवाजे खोल दिए।
1 फरवरी 2004 माइक हसी के लिए खास दिन बनने वाला था। वो भारत के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू करने वाले थे। 150 नंबर की कैप पहनकर माइक ने भारत के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला। वो अपने डेब्यू मैच में महज 17 रन बना पाए। फिर भी उन्हें टीम ने बनाए रखा। 3 नवंबर 2005 को वेस्टइंडीज के खिलाफ माइक हसी को टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण करने का भी मौका मिला। लेकिन माइक ने यहां भी निराश किया। डेब्यू टेस्ट की पहली पारी में एक और दूसरी पारी में 29 रन बनाकर चलते बने। माइक हसी को खुद पर भरोसा था। टीम भी उनके साथ खड़ी थी। अगले ही टेस्ट में माइक हसी ने अपने बल्ले से जो तूफान मचाया उससे माइक को एक नई ऊर्जा मिल गई। माइक हसी ने दूसरे टेस्ट की पहली पारी में नाबाद 133 रनों की पारी खेली। दूसरी इनिंग में भी माइक ने 33 रन बनाए और वो टेस्ट ऑस्ट्रेलिया जीत गया। यहां से माइक हसी ने लय पकड़ ली थी और अपनी फॉर्म को जारी रखा। साल 2006 में एक वनडे सीरीज में रिकी पोंटिंग चोटिल हो गए तब सेलेक्टरों ने माइक एक टीम का कप्तान बनाया। अब माइक एक अतरिक्त और बड़ी जिम्मेदारी निभाने जा रहे थे। सभी को ऐसा लगा कि माइक हसी दबाव महसूस कर रहे है लेकिन माइक ने 109 रनों की कप्तानी पारी खेलकर सभी को चौंका दिया। माइक का यह पहला वनडे शतक था। हालाकि यह मैच ऑस्ट्रेलिया हार गई लेकिन माइक के रूप में टीम को एक नया सितारा मिल चुका था। माइक ने यहां से पीछे मुड़कर नहीं देखा।
साल 2006 मौका था एशेज सीरीज का। माइक हसी का एशेज सीरीज में बल्ला ऐसा गरजा कि इंग्लैंड के गेंदबाजों लाइन और लेंथ बिगड़ गई। माइक ने इस सीरीज में एक शतक और चार अर्द्ध शतक लगाए। पूरी एशेज सीरीज में माइक ने 458 रन बनाकर विरिधियो को सचेत कर दिया। माइक को इसी साल icc ओडीआई प्लेयर चुना गया। माइक के लिए अब बुरा समय आने वाला था साल 2007 टी 20 विश्व कप में सभी को उम्मीद थी की माइक का बल्ला खूब गरजेगा लेकिन ऐसा नही हुआ। माइक पूरे विश्व कप में सिर्फ 87 रन ही बना सके। नतीजा यह हुआ की ऑस्ट्रेलिया क्वार्टर फाइनल में भारत के हाथो हारकर टूर्नामेंट से बाहर हो गया। अपने खराब फॉर्म के चलते निराश माइक ने एक बार फिर जबरदस्त वापसी की और इसी साल श्री लंका के खिलाफ पहले टेस्ट में शतक ठोक डाला। जहां उन्होंने 133 रन बनाए । माइक यहीं नहीं रुके दूसरे टेस्ट में भी शतक जमा दिया। माइक की शानदार प्रदर्शन से ऑस्ट्रेलिया ने श्रीलंका को घर में 2-0 से रौंद दिया। माइक ने कई सीरीज में बेहतरीन प्रदर्शन किया। जहां साल 2010 में पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई पारी ने माइक को फिर उभरता हुआ सितारा बना दिया। इस मैच में पाकिस्तान के 191 रनों की पारी का पीछा करने उतरी ऑस्ट्रेलियाई टीम के 5 प्रमुख बल्लेबाज 105 रन पर पवेलियन लौट गए। फिर यहां से पाकिस्तान को जीत सुनिश्चित लगने लगी थी फिर क्रीज पर आए माइक हसी और माइक ने पाकिस्तानी गेंदबाजों को ऐसे धोया की जीत तो दूर गेंदबाज रहम की भीख मांगने लगे।
माइक हसी एक ऐसे खिलाड़ी थे जो किसी भी नंबर पर अच्छा खेलने का माद्दा रखते थे। जब तक वो क्रीज पर रहते ऑस्ट्रेलिया की जीत कायम रहती थी। माइक की टाइमिंग , कैंसेस्टेंसी , और शानदार शॉट सेकेलशन की वजह से इंग्लैंड के एंड्रयू फिलिंटॉफ ने उन्हें मिस्टर क्रिकेट का तमगा दिया था। माइक हसी ने ऑस्ट्रेलिया के अलावा कई देशों की टी 20 लीग में भी शानदार प्रदर्शन किया है। साल 2012 में मेलबर्न के मैदान पर बॉक्सिंग टेस्ट के बाद क्रिकेट को अलविदा कहने वाले माइक ने अपने क्रिकेट करियर में 79 टेस्ट , 185 वनडे मैच खेले है जहां उन्होंने लगभग 12 हजार रन बनाए है। माइक ने 19 टेस्ट शतक और 3 ओडीआई शतक भी लगाए है। वहीं माइक हसी ने 46 IPL मैचों मे 1691 रन बनाए है जिसमें 116 उनका सर्वाधिक स्कोर है। माइक हसी आज भी क्रिकेट में अपनी सेवाएं कोच और कोमेंट्रेटर की भूमिका निभाकर अदा कर रहे है।
दोस्तों, माइक हसी के क्रिकेट करियर को देखते हुए आपको क्या लगता है उन्हे अभी और खेलना चाहिए था?
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