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उसने अपने खेल कोच की लाज और नौकरी दोनो बचा ली

Bihari News

गरीबी की धुंध से निकलकर कैसे बना इतना घातक तेज गेंदबाज ?

एक ऐसा खिलाड़ी जिसे खेलते हुए उसके पिता ना देख सके

एक ऑटो ड्राइवर का बेटा कैसे बना करोड़पति

पिता ने ऑटो चलाया और बेटा टीम इंडिया की जर्सी पर नजर आया

जब उसने अपने खेल कोच की लाज और नौकरी दोनो बचा ली

आर्मी में जाने वाला लड़का कैसे बन गया तेज गेंदबाज

गरीबी जिंदगी का एक ऐसा रोग है जिसका समय रहते अगर इलाज ना किया गया तो यह जिंदगी को बद से बत्तर बनाकर ही छोड़ती है। विश्व क्रिकेट के इतिहास में हमने आपको अपने लेख में कई ऐसे खिलाड़ियों के जीवन की दास्तां सुनाई है जिन्होंने गरीबी से लड़कर अपने सपनों को पंख दिए है और क्रिकेटर बनने का सपना नहीं छोड़ा। ऐसी ही एक और कहानी है बिहार के उस लाल की जिसने बचपन से ही गुरबत भरी जिंदगी देखी और देखा एक सपना भी। टीम इंडिया के लिए खेलने का। अपनी गुरबत भरी जिंदगी को ताकत बनाई और बिहार से निकलकर 620 किलोमीटर दूर कोलकाता जाकर अपने सपने पूरे करने चला गया। घर से निकलते वक्त पीछे से उसके पिता ने टोका और कहा तुम्हारे पास एक साल का वक्त है खुद को साबित करो नही तो वापस से आर्मी के लिए तैयारी शुरू कर देना।

हम बात करने वाले है भारतीय क्रिकेट के एक ऐसे खिलाड़ी कि जिसकी जिद्द और हौंसले के आगे खुदा को भी झुकना पड़ा। और अपने सपने पूरे करके ही दम लिया। लेकिन जब उसका सेलेक्शन हुआ तब उसके पिता अपने बेटे के सपने पूरे होते देखने के लिए इस दुनिया में नही थे। अपने सपने को पर होता देख पिता का हाथ कंधे पर ना होते हुए देखकर उस दिन वो बहुत रोया था। हम बात कर रहे है मुकेश कुमार की.. आज हम इस लेख में मुकेश कुमार के जीवन की संघर्ष भरी कहानी को जानने की कोशिश करेंगे।

मुकेश कुमार का जन्म 12 अक्टूबर 1993 को बिहार के गोपालगंज शहर में हुआ था पिता काशी नाथ सिंह कोलकाता में एक टैक्सी ड्राइवर थे और मां हाउसवाइफ। परिवार की दयनीय स्थिति को देखते हुए पिता काशीनाथ काम के सिलसिले में कोलकाता चले आए। मुकेश अपनी मां और चाचा के साथ गांव में ही रह रहे थे। पिता की गैर में मुकेश ने पढ़ाई को दरकिनार कर खेल पर ज्यादा ध्यान दिया। मुकेश को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का खूब शौक था। वो घर से कुछ दूर खेतों भरे मैदान पर दोस्तो के साथ रोज क्रिकेट खेलने चले जाते थे। मां के टोकने पर भी मुकेश उनकी बात को नजरंदाज करते। पिता जब छुट्टी लेकर घर आते तो मुकेश सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देते। 14 , 15 की उम्र के आते आते मुकेश ने खूब टेनिस टूर्नामेंट खेला। जिसमें उन्होंने अपनी शानदार तेज गेंदबाजी से कई ट्राफियां और इनाम जीते। साल 2008 में एक दिन उन्हे खबर मिली कि गोपालगंज में प्रतिभा की खोज के लिए क्रिकेट ट्रायल हो रहे है मुकेश बिना देरी किए ट्रायल देने पहुंच गए। ट्रायल में मुकेश ने अपने हुनर का जौहर दिखाया । ट्रायल ले रहे सेलेक्टरों को मुकेश की गेंदबाजी ने काफी प्रभावित किया और सिर्फ 15 साल की उम्र में उन्हे टीम में शामिल कर लिया।

एक बार उन्हे क्लब क्रिकेट की ओर से खेलने का मौका मिला। मैच 25 – 25 ओवरों का था। मुकेश ने 7 मैचों मे 34 विकेट अपने ना किए। मुकेश को उनके इस शानदार प्रदर्शन का जल्द इनाम भी मिल गया। और कुछ दिन बाद बीसीसीआई के द्वारा होस्ट किए गए एसोसिएट एफिलिएट क्रिकेट टूर्नामेंट में उन्होंने बिहार अंडर 19 टीम को रिप्रेजेंट किया। गोपालगंज के कप्तान अमित सिंह ने मुकेश कुमार की गेंदबाजी को देखा। जिससे वह काफी प्रभावित हुए। मुकेश अपने गांव गोपालगंज से 15 किलोमीटर दूर काकरपुर रोज साइकल चलाकर मैच खेलने आते थे। उन्हे देखते ही अमित समझ गए इस लड़के में कुछ तो बात है। एक दिन अमित से रहा नहीं गया उन्होंने मुकेश से कह ही दिया तुम बस से आया जाया करो अभी छोटे हो थक जाते होगे। मुकेश का एक ही जवाब होता सर मुझे सेना में भर्ती होना है मसल्स मजबूत कर रहा हूं। अमित यह सुनकर हंस देते। मुकेश जितनी मेहनत करते थे उन्हें पता भी नही था कि यह मेहनत एक दिन काम आयेगी। मुकेश का सपना अब जुनून बनने लगा था। मुकेश सेना में इसलिए भर्ती होना चाहते थे कि उनके कजिन सेना में थे। मुकेश के पिता क्रिकेट के खिलाफ थे। इसलिए वो मुकेश से नाराज रहते और यह नाराजगी जायज भी रहती क्योंकि उस दौर में बिहार में क्रिकेट का कोई भविष्य नहीं था।

इस बीच मुकेश ने 3 साल सीआरपीएफ की तैयारी की और 2012 में उनका रिटेन निकल गया। लेकिन फिटनेस टेस्ट में वो रिजेक्ट हो गया। यहां से उन्होंने सेना से ध्यान हटाकर पूरा फोकस क्रिकेट में किया। मुकेश को पता था कि बिहार की कोई रणजी टीम नही है इसलिए बिहार में रहकर क्रिकेट के सपने देखना मुंगेरी लाल के सपने देखने जैसी बात होगी। एक बार मुकेश टेनिस टूर्नामेंट खेलकर वापस लौट रहे थे। तब उनका बाइक से एक्सीडेंट हो गया। पिता ने कहा मुकेश बहुत हो गया। अब तुम मेरे साथ कोलकाता चलोगे और तुम्हे जो भी करना है मेरे साथ रहकर करना होगा। पिता चाहते थे कि मुकेश किसी सरकारी नौकरी करे। मुकेश ने डिजिटल लर्निंग के जरिए ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। और बाकी टाइम क्रिकेट की प्रैक्टिस किया करते थे। पिता ने मुकेश को टोकना बंद कर दिया उन्होंने मन में सोचा अभी इसे अपने मन की कर लेने दो जब इसे पता चलेगा कि क्रिकेट में भविष्य नहीं बन पाएगा तो खुद पढ़ाई करने लगेगा। एक तरफ जहां पिता उसकी चिंता कर रहे थे तो दूसरी तरफ मुकेश की रेड बॉल में दिलचस्पी बढ़ रही थी।

मुकेश एडमिशन के लिए कोलकाता के कालीघाट क्रिकेट क्लब गए। जहां उनसे कहा गया यहां तुम्हे पहले दो साल पानी पिलाना पड़ेगा तब तुम्हे पहला मैच खेलने को मिलेगा। क्योंकि यहां सिर्फ बड़े क्रिकेटर खेलते है। मुकेश ने वानी निकेतन स्पोर्ट्स क्लब ज्वाइन कर लिया जहां उनकी मुलाकात विरेन्द्र सिंह से हुई। उनके अंडर मुकेश ने अपनी ट्रेनिंग शुरू की। जो आगे चलकर उनके मेंटोर भी बने। विरेंदर को मुकेश की काबिलियत का अंदाजा हो गया था। वानी निकेतन की तरफ से खेलते हुए सेकेंड डिविजन के डेब्यू मैच में मुकेश ने 6 विकेट लिए। अच्छी परफोर्मेंस की वजह से उन्हें फर्स्ट क्लास डिविजन टीम में शामिल कर लिया गया। इस बीच मुकेश के पिता की तबियत बिगड़ती चली गई। मुकेश के पिता अभी भी काफी नाराज थे और नौकरी वाली बात पर अड़ गए। तब मुकेश ने समझाया और कहा पापा मुझे बस एक साल दे दो। उनके पिता ने हामी भरी और कहा सिर्फ एक साल। साल 2014 में उस समय बंगाल क्रिकेट के सेक्रेटरी सौरव गांगुली ने विजन ट्वेंटी ट्वेंटी नाम का एक प्रोग्राम लॉन्च किया। जिसमें टैलेंटेड प्लेयर को तलाशकर उन पर काम किया जाएगा। इस प्रोग्राम में वकार यूनुस , मुथैया मुरलीधरन और वीवीएस लक्ष्मण को जिम्मेदारी सौंपी गई। कोच बिरेन्दर के कहने पर मुकेश को ट्रायल के लिए अलाउ किया गया।

करीब 300 खिलाड़ी इस ट्रायल का हिस्सा थे। पूरे दिन ट्रायल चलने के बाद दिन के आखिर में मुकेश कुमार का नंबर आया तो वो टॉयलेट में थे। उनके जवाब ना देने पर उनका नाम रिजेक्ट कर दिया गया। मुकेश वापस आए तो तमाम विनती करने के बाद आखिर उन्हें मौका मिला। मुकेश जानते थे कि उनकी जिंदगी बदलने के लिए सिर्फ 5 बॉल उनके पास है और इन्ही पांच बॉल में खुद को साबित करना है। धूप बहुत तेज थी इसलिए सेलेक्टर दूर खड़े हो गए। किस्मत से कोच रानादेव बोस चाय लेने नेट के पीछे गए और उन्होंने देखा कि मुकेश गेंद को दोनो ओर स्विंग करा रहे है। तब कोच ने वकार यूनुस से कहा की इसे रख लो। मुझे अच्छा लग रहा है वकार ने हामी भर दी। अब मुकेश अच्छे लोगों के बीच पहुंच गए थे जहां वो और चमक सकते थे। जहां एक तरफ मुकेश को खुशी तो दूसरी ओर उन्हे आर्मी ट्रेनिंग से फिटनेस में काफी मदद मिल रही थी। सबकुछ अच्छा चल रहा था तभी मुकेश को एक गंभीर इंजरी हो गई उनके घुटने में पानी जमने लगा। मतलब खून की कमी थी। अब उन्हें ज्यादा वक्त हॉस्पिटल और रिहैब सेंटर में गुजरने पड़ेंगे और आने वाले कई मैच उनसे दूर रहेंगे इस बीच बंगाल क्रिकेट ने उनकी काफी मदद की। साल 2015 में मुकेश ने क्लब क्रिकेट में धमाकेदार वापसी की। तब उनका बंगाल की रणजी टीम में सेलेक्सन हुआ। मैच से पहले टीम के कुछ सदस्य नाराज थे। एक चोटिल खिलाड़ी को कैसे मौका दे सकते है।

अब खुद को साबित करने वाली तारीख मुकेश के सामने थी। 30 अक्टूबर 2015 को हरियाणा के खिलाफ मुकेश ने अपना फर्स्ट क्लास डेब्यू किया। मुकेश ने विरोधी टीम के दोनो ओपनर राहुल दीवान और विरेंदर सहवाग पवेलियन राह दिखा दी। इस मैच में मुकेश ने पांच विकेट हासिल किए। मैच समाप्त होने के बाद कोच बोस ने कहा मुकेश तुमने मेरी लाज और नौकरी दोनो बचा ली। अगले मैच में अनुभवी मोहम्मद शमी और अशोक डिंडा के होने से उनका टीम में जगह बनाना मुश्किल था। इसलिए वो इंतजार करते रहे। साल 2018 – 19 सीजन में मुकेश ने अपनी जगह पक्की कर ली। वापसी ऐसी जबर्दस्त की पांच विकेट लेकर ही माने। और उसी साल अशोक डिंडा ने रिटायरमेंट ले ली। मुकेश अब टीम के पसंदीदा और उपयोगी खिलाड़ी बन गए थे। बंगाल ने अच्छा प्रदर्शन किया और सेमीफाइनल में पहुंच गई। जहां उसके सामने कर्नाटक की टीम थी। एक ऐसी टीम जिसकी बल्लेबाजी को भेद पाना विरोधी टीम के गेंदबाज के लिए कठिन काम था। क्योंकि इस टीम में देवदत्त पाडिकल, करुण नायर, के एल राहुल और मनीष पांडे। लेकिन मुकेश की धारदार गेंदबाजी के आगे ये बड़े बड़े धुरंधर ढेर हो गए। मुकेश ने इस मैच में 6 विकेट लेकर बंगाल को फाइनल में पहुंचा दिया।

पूरे सीजन में उन्होंने 10 मैच में 32 विकेट झटके। मुकेश इस समय डोमेस्टिक क्रिकेट के पीक पर थे। लेकिन अपने बेटे की उपलब्धि देखने के लिए उनके पिता उनके साथ नही थे। क्योंकि उन्हें ब्रेन हेमरेज था। जिंदगी के मोड़ पर मुकेश लिए यह सबसे बड़ा नुकसान था। मुकेश लगातार मेहनत कर रहे थे। रणजी ट्रॉफी में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद उन्हें दिलीप और ईरानी ट्राफी में भी जगह मिली। फिर कोविड महामारी आई और सबकुछ बंद हो गया। साल 2021 में घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करने के बाद मुकेश को इंडिया ए टीम में शामिल किया गया। जहां न्यूजीलैंड के खिलाफ अन ऑफिशियल मैच में पांच विकेट झटक लिए। मुकेश लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे मुकेश पर आईपीएल की टीम दिल्ली कैपिटल की नजर उन पर थी । दिल्ली ने उन्हें बतौर नेट बॉलर उन्हे शामिल किया। मुकेश के लिए अब वो दिन आने वाला था जब उनका सपना सच होने जा रहा था। अक्टूबर 2022 को उन्हे इंडियन टीम के व्हाट्स ऐप ग्रुप में शामिल किया गया।मुकेश उन खिलाड़ियों में शामिल हो गए जिन्होंने बिना आईपीएल खेले इंडियन टीम में जगह बनाई। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्हे नीली जर्सी पहनने का मौका नहीं मिला। इसके बाद जनवरी 2023 में होने वाली श्री लंका की टी 20 सीरीज में उन्हे चुना गया। पर मुकेश को आईपीएल नीलामी में वो मिला जिसे देखने के लिए उनके साथ उनके पिता नही थे।

दिल्ली कैपिटल ने उन्हें 5.5 करोड़ में खरीदकर टीम में शामिल किया। मुकेश आईपीएल में दिल्ली के लिए मैच जिताऊ प्रदर्शन कर रहे हैं. 24 अप्रैल को सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ मुकाबले में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया. अंतिम ओवर में उन्होंने सनराइजर्स के जबड़े से जीत छीन ली. दिल्ली की टीम ने मुकाबले में 145 रनों के टोटल को डिफेंड कर लिया. अंतिम ओवर में सनराइजर्स की टीम को जीत के लिए सिर्फ 13 रनों की जरुरत थी और उनके 4 विकेट बचे हुए थे. दिल्ली के कप्तान डेविड वार्नर ने मुकेश को गेंद थमाई और मुकेश ने कर दिखाया. उन्होंने बल्लेबाजी कर रहे वाशिंगटन सुंदर और मार्को जेंसन को एक चौका तक नहीं लगाने दिया. मुकेश ने ओवर में सिर्फ 5 रन दिए और दिल्ली को 7 रनों से जीत दिला दी. अंतिम गेंद के बाद पूरी दिल्ली की टीम मुकेश से लिपट गई. मुकेश ने बता दिया कि आखिर फ्रेंचाइजियों ने उनके ऊपर साढ़े 5 करोड़ क्यों खर्च किए थे.

आइए मुकेश के डोमेस्टिक करियर पर डालते है मुकेश ने 33 फर्स्ट क्लास, 24 लिस्ट ए और 23 टी 20 मुकाबले खेले है जहां उन्होंने लगभग 175 विकेट हासिल किए है।

दोस्तों प्रतिभावान युवा खिलाड़ी मुकेश कुमार क्या इस आईपीएल के बाद भारतीय टीम में जगह बनाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं ? आप हमें अपनी राय कमेंट करके बता सकते है . 

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