दोस्तों, कुछ इंसान जिंदादिल होते हैं, जब भी आपको दिखेंगे उनके चेहरे पर मुस्कान दिखेगी ऐसे लोग सबको पसंद आते हैं. इन दुनिया में 2 तरह के इंसान होते हैं, एक हमेशा उदास चेहरा लिए बैठा रहेगा, और दूसरा हमेशा चहकता हुआ मिलेगा. पहला वाला बातें भी वैसी ही करेगा, अपने दुःख बताएगा, सहानुभूति लेने की कोशिश करेगा लेकिन आप ही बताइए कि ऐसे लोगों को कौन पसंद करेगा. किसको फुर्सत है यहां लोगों के दुःख सुनने का इसलिए इंसान को कभी भी अपने दुःख नहीं बताने चाहिए. अगर बांटना ही है तो ख़ुशी बांटनी चाहिए. इस लेख में बात होगी भारत के एक जिंदादिल खिलाड़ी के बारे में, जिसने क्रिकेट को जीया, अपने शर्तों पर जीया. इस खिलाड़ी के जीवन में कई उतारचढ़ाव आए लेकिन खिलाड़ी हर परिस्थिति में एक समान रहा, यही इस खिलाड़ी को सबसे अलग और सबसे खास बनाता है. आज के लेख में हम आपको टीम इंडिया के पूर्व विकेटकीपरबल्लेबाज नयन मोंगिया के जीवन और क्रिकेट करियर से जुड़ी कुछ जानीअनजानी और अनकही बातों को बताएंगे. ये भी बताएंगे कि आखिर किस वजह से इतने जिंदादिल खिलाड़ी का करियर समय से पहले समाप्त हो गया.

दोस्तों, हमेशा हंसतेमुस्कुराने वाले नयन मोंगिया का जन्म 19 दिसंबर 1969 को गुजरात के बड़ौदा में हुआ था. वे नेचुरल विकेटकीपर के रूप में जाने जाते है. स्कूल लेवल पर खेलते हुए नयन मोंगिया का प्रदर्शन बहुत शानदार नहीं था, लेकिन साल 1987-88 में इन्होंने मात्र पांच मैच खेलते हुए 305 रन बनाया था और विकेट के पीछे इन्होंने 17 शिकार भी किया था. उस साल कुच बेहार ट्रॉफी में इन्होंने शानदार बल्लेबाजी की थी, जिसके बाद उनका रणजी में खेलने का रास्ता साफ हो गया. साल 1989-90 सीजन में सौराष्ट्र के खिलाफ नयन मोंगिया ने रणजी ट्रॉफी में डेब्यू मैच खेला था जहां उन्होंने एक कैच लेने के अलावा आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 8 रन बनाए थे. और किस्मत देखिए उस समय बड़ौदा टीम से विकेटकीपर के रूप में किरण मोरे खेलते थे. जब रणजी टीम में किरण मोरे नहीं होते तो इस दौरान नयन मोंगिया को पूरा मौका मिलता था. इस दौरान रणजी में खेलते हुए मोंगिया ने 6 मैचों में 315 रन बनाए. और विकेट के पिछे 15 शिकार भी किया. इसके बाद ही मोंगिया को इंग्लैंड जाने का मौका मिला जहां उनकी विकेटकीपिंग देखकर इंग्लैंड के विकेट कीपर एलन नॉट ने इन्हें नेचुरल विकेटकीपर कहा था. फिर आया 1990 का दौर, जब क्रिकेट भी बदल रहा था. ऐसे में विकेटकीपर के सामने एक चुनौती यह भी थी कि जितना मेहनत उन्हें विकेट के पिछे करना है उतना ही उन्हें विकेट के आगे भी करना है. अब तक नयन मोंगिया विकेट के पिछे तो अपना शानदार दे ही रहे थे. लेकिन अभी उनकी बल्लेबाजी देखनी बाकी था.

1993-94 रणजी ट्रॉफी सीजन में नयन मोंगिया का बल्ला गरजा. उन्होंने पांच मैचो में 555 रन बना कर यह दिखा दिया कि वे विकेट के पिछे जितने तेज हैं उतने ही विकेट के आगे भी रहकर रन बना सकते हैं. मोंगिया की बल्लेबाजी रंग लाई. इस समय तक किरण मोरे ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया था और अब नयन मोंगिया के लिए भारतीय टीम में एंट्री के दरवाजे खुलने ही वाले थे.

साल 1994 के जनवरी महीने में भारत और श्रीलंका के टेस्ट मैच में नयन मोंगिया ने अपने टेस्ट कैरियर का डेब्यू किया था. अपने पहले टेस्ट में मोंगिया ने 44 रन बनाए थे और विकेट के पीछे इन्होंने पांच शिकार भी किया था. टेस्ट डेब्यू के करीब एक महीने के बाद उन्होंने 15 फरवरी 1994 को राजकोट में श्रीलंका के खिलाफ वनडे मैच कैरियर का डेब्यू किया था. इसी साल वेस्टइंडीज की टीम तीन मैचों की टेस्ट सीरीज खेलने के भारत आई थी. जिसमें पहले टेस्ट मैच की पहली पारी में नयन मोगिंया ने 80 रनों की पारी खेली. पूरे सीरीज में मोंगिया का प्रदर्शन बहुत अच्छा तो नहीं लेकिन खराब भी नहीं रहा था. पूरे सीरीज में उन्होंने 183 रन बनाए और यह बताया कि वह भारतीय टीम में आगे इसी तरह से रन बना सकते हैं और विकेट के पिछे बल्लेबाजों का कैच भी पकड़ सकते हैं. इस समय तक नयन मोंगिया नीचे के क्रम में बल्लेबाजी करने आते थे. ऐसे में उनके पास रन बनाने के लिए बहुत मौका नहीं होता था. लेकिन फिर आया साल 1996, इस साल ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत के दौरे पर थी और टेस्ट मैच खेलने आई थी. ऐसी स्थिति बनी कि मोंगिया को भारतीय टीम में ओपनिंग बल्लेबाजी करने का मौका मिल गया. ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का पहला मुकाबला दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में होना था. जिसमें भारतीय टीम तीन स्पिनर के साथ मैदान में उतरी थी और ऐसे में मोंगिया को सलामी बल्लेबाज के रूप में भेजा गया.

मोंगिया ने अवसर को दोनों हाथों से लिया और कमाल की बल्लेबाजी की और अपने कैरियर का पहला शतक ठोक दिया. इस पारी में उन्होंने 152 रन बनाए थे. मोंगिया अपने इस पारी को टेस्ट कैरियर का सबसे बेस्ट पारी मानते हैं. भारत यह मैच जीता और मोंगिया मैन ऑफ द मैचबने थे. ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम के खिलाफ पारी की शुरुआत करते हुए शतक लगाकर मोंगिया छा गए और अब मोंगिया को भारतीय टीम में एक पहचान मिलने लगी थी. ऑस्ट्रेलियासीरीज के बाद उसी साल भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर गई थी. अफ्रीका में खेली गई इस सीरीज में मोंगिया के नाम अनोखा रिकॉर्ड दर्ज हुआ. साल 1996 में भारत और साउथ अफ्रीका के बीच डर्बन में खेले गए मैच में मोंगिया ने आठ कैच लपके थे. साथ ही साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कोलकाता में खेले गए टेस्ट मैच में एक बार फिर मोंगिया ने 8 कैच लिए. रोचक बात ये रही कि दोनों दफा दूर्भाग्यवश भारत को हार का सामना करना पड़ा था. कोलकाता मैच के बाद अगला टेस्ट चेन्नई में हुआ जहां पर कुंबले ने अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी की थी और 10 के 10 विकेट अपने नाम किए थे. अनिल कुंबले के 10 विकेट लेने की कहानी मोंगिया से ही शुरू हुई थी जहां विकेटों के पीछे मोंगिया ने ही कैच लपका था, जो कुंबले के 10 विकेटों में पहला विकेट था.

इसके बाद साल 1994 में भारत में एक त्रिकोणिय सीरीज हुई थी, जिसमें भारत, वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड की टीम खेल रही थी. जिसमें हर टीम को दूसरी टीम से दो दो बार आपस में भिड़ना था. भारत ने न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज को एकएक बार हरा दिया था. लेकिन दूसरे मैच में कुछ ऐसा हुआ कि सभी लोग हैरान रह गए थे. दरअसर टॉस के बाद विंडीज के टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए कुल 50 ओवर में 6 विकेट के नुकसान पर 257 रन बनाए थे. जवाब में बल्लेबाजी करने उतरी भारत की शुरुआत बहुत अच्छी नहीं रही है थी. सलामी बल्लेबाज के रूप में तेंदुलकर और मनोज प्रभाकर आए. तेंदुलकर 34 रन के स्कोर पर आउट होकर पवेलियन चले गए. इसके बाद समय समय पर विकेट का पतन होता रहा. आखिरी स्थिति यह थी कि भारत को जीत के 54 गेंदों में 63 रन की जरूरत थी. यह कोई बड़ा लक्ष्य नहीं था, इसे जीता जा सकता था. वहां मैदान में प्रभाकर और मोंगिया थे. ऐसे में सभी को उम्मीद यह था कि भारत यह मैच आसानी से जीत जाएगा क्योंकि प्रभाकर शुरुआती ओवर से अभी तक मैदान में थे तो सबको उम्मीद था कि भारत यह मुकाबला जीत रहा है. लेकिन भारत की टीम ने आखिरी के 9 ओवर में मात्र 16 रन बनाएं. इस दौरान प्रभाकर का शतक भी पूरा हो गया. ये दोनों खिलाड़ी नवाद पवेलिय चले आए और यह मैच भारत 46 रन से हार गया. इस मैच में मोंगिया ने 14 गेंद में मात्र 4 रन बनाया था. इस जीते हुए मैच में हार मिलने के बाद भारतीय फेंस के साथ ही बोर्ड भी काफी नाराज हुआ और प्रभाकर और मोंगिया को इस सीरीज से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इतना ही नहीं मैच रेफरी ने भारत के दो प्वाइंट भी काट लिए. यह भी कहा गया कि भारत यह मुकाबला जानबुझकर हारा है. परिणामस्वरुप, इस सीरीज के फाइनल में वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड की टीम पहुंची. लेकिन इधर भारत ने इस पूरे मामले पर आईसीसी का दरबाजा खटखटाया. तमाम विवाद के बाद इस सीरीज का फाइनल भारत और वेस्टइंडीज के साथ खेला गया. और फाइनल में भारत ने वेस्टइंडीज को 72 रन से हरा दिया. बाद में उस मैच को लेकर जांच किया गया, जिसमें यह पाया गया कि अजहर, प्रभाकर और मोंगिया के बीच में यह मैच फिक्स हुआ था. जिसके बाद इन तीनों खिलाड़ियों पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड(BCCI) ने बैन लगा दिया गया है. एक मैच के दौरान अंपायर के फैसले पर उंगली उठाने के चलते भी नयन मोंगिया को भारतीय टीम से सस्पेंड कर दिया गया था.

पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष जयवंत लेले ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ को यह पूरा विश्वास था कि मोंगिया इस मैच फिक्सिंग में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं. उन्होंने आगे लिखा कि इसमें कोई भारतीय शामिल नहीं था.

मोंगिया पर कुछ दिनों के बाद लगे सभी आरोप बेबुनियाद साबित हुए और मोंगिया एक बार फिर से घरेलु क्रिकेट में अपना जलवा दिखाने लगे. इस दौरान मोंगिया बेहतर खेल रहे थे. तभी आया साल 2004, जिसमें युवाओं को टीम में शामिल करने के नाम पर बड़ोदरा की टीम ने मोंगिया को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इस दौरान तक चयनकर्ता इन्हें पसंद नहीं कर रहे थे. अब मोंगिया को लगने लगा कि टीम में अब उनकी वापसी संभव नहीं है. और मोंगिया ने तब संन्यास का फैसला कर लिया. दिसंबर 2004 में उन्होंने क्रिकेट के सभी प्रारुप से संन्यास की घोषणा कर दी.

नयन मोंगिया के क्रिकेट कैरियर को देखें तो 44 टेस्ट मैचों में उन्होंने 1442 रन बनाए हैं जिसमें 152 उनका बेस्ट रहा है. टेस्ट फॉर्मेट में उनके नाम एक शतक और 6 अर्धशतक दर्ज हैं. नयन मोंगिया के वनडे करियर पर नजर डालें तो 140 वनडे मैच में उन्होंने कुल 1272 रन बनाए जिसमें उनका वेस्ट स्कोर 69 का रहा है. वनडे में उन्होंने उन्होंने केवल दो अर्ध शतक लगाए हैं. फर्स्ट क्लास क्रिकेट की बात करें तो उन्होंने कुल 183 मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने 353 कैच पकड़ें हैं 43 स्टंपिंग किया और 7 हजार से भी ज्यादा रन बनाए हैं. उनके रिकॉर्ड को देखते हुए यह कहा जाता है कि नयन मोंगिया के साथ न्याय नहीं हुआ है.

हमने पहले ही देखा है कि मोंगिया की बैटिंग निचले क्रम में आती थी ऐसे में उन्हें बहुत बैटिंग करने का मौका नहीं मिला. लेकिन जब उन्होंने संन्यास की घोषणा की तो उस समय के अखबरों में इस बात का जिक्र किया गया था कि मोंगिया को एक मौक और देना चाहिए था. वह भी उपर में बल्लेबाजी करते हुए. मोंगिया का करियर खत्म होने में मैच फिक्सिंग का दाग , टीम में अंदर बाहर होना या फिर मैदान में उनका प्रदर्शन. क्या रहा यह कहना बहुत मुश्किल हैं. लेकिन आज भी वे क्रिकेट के साथ जुड़े हुए हैं. शुरुआती समय में मोंगिया ने थाइलैंड टीम के कोच के रूप में भी काम किया था लेकिन बाद में वे अपने परिवार के साथ रहने लगे थे. नयन मोंगिया इन दिनों एक न्यूज चैनल के साथ जुड़कर क्रिकेट विश्लेषक के रूप में काम कर रहे हैं.

क्रिकेट के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए नयन मोंगिया को भारत सरकार ने अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया था. नयन मोंगिया के निजी जीवन की बात करें तो उनकी पत्नी का नाम तनु मोंगिया है. नयन मोंगिया के बेटे का नाम मोहित मोंगिया है. चक दे क्रिकेट की पूरी टीम नयन मोंगिया के उज्जवल भविष्य की कामना करती है. आपको क्या लगता है ? क्या मैच फिक्सिंग एलीगेशन के चलते नयन मोंगिया का करियर समय से पहले खत्म हो गया ? कमेंट में हमें बताएं.

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