बिहार में जारी सियासी घमासान के बीच में इन दिनों नीतीश कुमार के कार्यों को लेकर खुब चर्चा हो रही है. दरअसल कहा यह जा रहा है कि पिछले दो तीन दिन में जिस तरह से नीतीश कुमार का राजद के मंत्री को लेकर रूख रहा है. उससे कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. खासकर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के बयान को लेकर जदयू ने आड़े हाथ लिया है. और नीतीश कुमार ने भी सदन में उन्हें हंसते हंसते बहुत कुछ कह दिया है. शिक्षा मंत्री का बयान तब चर्चा में आया था जब नालंदा विश्वविद्यालय में उन्होंने रामचरित मानस को लेकर अपना रूख स्पष्ट किया था जिसके बाद पूरे देश से प्रतिक्रिया सामने आई है बिहार के शिक्षा मंत्री चर्चा के केंद्र में आ गए थे. लेकिन दूसरी बार दिये बयान के बाद जदयू और नीतीश कुमार ने शिक्षा मंत्री को आड़े हाथ लिया है.
बिहार के शिक्षा मंत्री से जुड़ा एक मामला और है जिसे हम आपके सामने रखते हैं. दरअसर उस दिन कैबिनेट की बैठक थी और रामचरित मानस का मामला नया नया था उस बैठक में नीतीश कुमार ने चंद्रशेखर से पुछा कि क्या–क्या बोलते रहते हैं, तो उन्होने कह दिया कि कुछ गलत नहीं कहा है. उसके बाद क्या था चंद्रशेखर मुखर हो गए और बोलना शुरू कर दिया. लेकिन उनकी दूसरी गलती हो गई शिक्षक नियुक्ति वाले मामले में. सातवें चरण की शिक्षक नियुक्ति नियमावली का ब्योरा कैबिनेट में प्रस्तुत होना था. लेकिन उससे पहले ही मीडिया के पास पहुंच गया. इस बात का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार ने सदन में कहा कि विभाग की ओर से कैबिनेट मीटिंग के लिए भेजे गये प्रस्ताव के बारे में तब तक चुप्पी साधनी पड़ती है जबतक वह पास न हो जाए. यह चंद्रशेखर के लिए सिर्फ शिक्षक वाले मामले के लिए हिदायत नहीं था. उनका जिस तरह से बयान सामने आ रहा है उन सभी को लेकर उनकी हिदायत थी. ऐसे में यह कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार अब एक्शन में हैं जरा भी गलती होने पर क्लास लगा दे रहे हैं. वहीं राजद के दूसरे मंत्री हैं इसरायल मंसूरी इनका नाम नेता प्रतिपक्ष की तरफ से सामने आया था जिसमें कहा गया कि किसी मामले में ये अभियुक्त हैं इन्होंने उस तरह के कार्य किये है जिसके बाद नीतीश कुमार ने मंत्री इसरायल मंसूरी को अपने चैंबल में बुला लिया था. ऐसे में कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार का पिछले कुछ दिनों से जिस तरह का रवैया रहा है उससे आने वाले दिनों में अगर बिहार कि सियासत में कोई बड़ा उठा पटक देखने को मिले को कोई बड़ी बात नहीं होगी.
जरा याद करिए 2017 को जब नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़कर बीजेपी के साथ आए थे. किसी को भनक तक नहीं लगा था कि पूरा खेल खत्म हो गया था. उस समय नीतीश कुमार इस्तीफा भी देने गए थे और नए सरकार बनाने के लिए दावा भी पेश कर दिया था. ऐसे में यही कहा जा रहा है कि जिस तरह के राजद नीतीश कुमार पर दवाब बनाने की कोशिश कर रही है यह कही पुराने नीतीश कुमार की याद न दिला दें. क्योंकि नीतीश कुमार के बीजेपी से सभी दरवाजे बंद नहीं हुए हैं. और बीजेपी भले ही मंच यह कहती रही है कि एनडीए में आने आने के सभी दरवाजे बंद हो गए हैं. लेकिन नीतीश कुमार ने भी कभी महागठबंधन के लिए इन्ही जुमलों का इस्तेमाल किया था. राजनीति में यह कहा जाता है कि कोई किसी का दुश्मन नहीं होता और न ही कोई किसी का सगा होता है. ऐसे में जिस तरह बीजेपी के पुराने साथी जो उनसे बिछड़ते जा रहे हैं अगर वे फिर से साथ आने लगेंगे तो बीजेपी को इसमें कोई गुरेज नहीं होगा.
इसीलिए कहा जा रहा है कि जिस तरह से बिहार कि सियासत में बयानों और मंत्रियों के क्लास लगाने का दौर चल रहा है उससे यही प्रतित होता है कि आने वाले दिनों में अगर कोई बड़ा बदलाव देखने को मिले तो इसमें कोई बड़ी हैरानी की बात नहीं होगी.