कोसकोस पे बदले पानी, ढ़ाई कोस पे वाणी जितना ये कहावत अपने देश भारत के लिए चरितार्थ होता है उतना ही यह बिहार पर भी सटीक बैठता है. क्योंकि विविधिताओं से भरे इस प्रदेश में हर चार कदम पर कुछ ना कुछ ऐसा है जो लोगों को चौका देता है. चाहे यहां की बोली हो या फिर रहने का अंदाज सबसे बड़ी बात यहाँ के सनातनियों में भगवान के प्रति आस्था और विश्वास का जो भक्त और भगवान् के बीच का मजबूत कड़ी है वो अद्भुत और अविश्वसनीय है. कोणार्कदेवार्क जैसे सूर्य मंदिर की लोकप्रियता और आस्था से तो सभी परिचित हैं लेकिन हमने भी सोचा की क्यूँ ना हम आपको देश के एक ऐसे ही अनुपम धरोहर के दर्शन को लेकर चलें जो इन मंदिरों के बराबर का स्थान रखता है. नमस्कार आप देख रहे हैं बिहारी न्यूज़ बिहारी विहार के आज के इस सेगमेंट में हम आपको लेकर चलेंगे राजधानी पटना से करीब 75 किलोमीटर दूर पूरब की ओर बाढ़ अनुमंडल में पंडारक गाँव स्थित पुन्यार्क सूर्य मंदिर जहाँ ना तो आपको राजगीर जैसे ऊँचेऊँचे पहाड़ों वाली वादियाँ ना ही vtr जैसे जंगल ना रोहतास जैसे मनोरम दृश्य वाले झड़ने और ना ही राजधानी पटना स्थित ऊँचीऊँची और एतिहासिक इमारत देखने को मिलेगी. लेकिन इस जगह की कुछ ख़ास बातें और रहस्मयी किस्से जो आपको चौकाने के लिए काफी हैं.जानकारों की माने तो पंडारक स्थित punyark सूर्य मंदिर करीब 5000 साल पुराना है यह मंदिर द्वापरयुगीन है यानी की भगवान श्री कृष्ण के समय का. जिसका निर्माण भगवान कृष्ण के वंशज साम्ब ने करवाया था. आख्यानों के अनुसार साम्ब एक ऋषि द्वारा मिले श्राप की वजह से कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए थे. लाख मिन्नतें करने के बाद ऋषि ने उन्हें श्राप से मुक्त होने का उपाय बताया तभी उन्हें सलाह दी गई थी की वो सूर्य भगवान की पूजाआराधना करें और उनके लिए मंदिरों का निर्माण करवाएं. क्यूंकि सभी देवताओं में भगवान सूर्य ही हैं जिनकी सेवा से शरीर निरोग रहता है. उन्होंने ठीक वैसे ही किया, साम्ब ने देश के 12 जगहों पर भव्य सूर्य मन्दिर बनवाए और मन से भगवान सूर्य की आराधना की. ऐसा कहा जाता है तब जाकर साम्ब को कुष्ठ से मुक्ति मिली थी. उन्ही 12 मन्दिरो में से एक पुन्यार्क सूर्यमंदिर है. अन्य सूर्य मंदिरो में पुन्यार्क सहित देवार्क, लोलार्क, औंगार्क, कोणार्क, चाणार्क आदि सूर्य मंदिरे शामिल है.

पुन्यार्क मंदिर की ख़ास बात यह है की यह मंदिर देश के उन 12 मंदिरों में इकलौता ऐसा मंदिर है जो उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर स्थित है. इसके बारे में कहा जाता है की राजा साम्ब इसी गंगा में स्नान कर इस स्थल पर जहाँ अब सूर्यमंदिर है वहां उन्होंने यज्ञ का अनुष्ठान किया था. जिसका प्रमाण आज भी वहां स्थित गर्भ गृह को देखकर मिलता है. दरअसल एक अन्य दन्तश्रुतियों के अनुसार आज से कई वर्ष पहले जहाँ गर्भ गृह मौजूद है वहां विशाल पीपल का पेड़ हुआ करता था. स्थानीय लोगो ने उस विशाल पेड़ को काटना चाहा जब वे उसके जड़ तक पहुंचे वहां से तेज आग की लपटे उठी थी जो वहां के लोगो के लिए अद्भुत और अविश्वसनीय अनुभव था. जिसके बारे में लोगो का कहना है की शायद यह सूर्य भगवान का तेज हो, तो वहीँ कुछ लोगो ने कहा शायद राजा साम्ब ने जो हवन किया उसी आग की लपटे हैं क्यूंकि राजा साम्ब आखिरी सूर्य मंदिर बनाने के लिए वैसे जगह की तलाश में थे जो स्थल गंगा तट पर स्थित हो. और यह मंदिर उन 12 मंदिरों में से आखिरी मंदिर है. हालाँकि सच क्या है यह अभी भी एक रहस्य है. यह मंदिर अपने निर्माण के कई चरणों से गुजरा और अब इस मदिर की भव्यता और सुन्दरता देखते बनती है. वहीँ कुछ ही दूर पर बहती गंगा नदी का मनोरम दृश्य बस मोहित कर लेता है. वो विशाल पीपल के पेड़ की छाँव और सामने से कल कल बहती गंगा नदी मन करता है बस यहीं बस जाऊं और ऐसा होता भी है, चार दिवसीय छठ के समापन के बाद नदी किनारे लोग झुग्गी झोपड़ी बनाकर यही गुजर बसर करते हैं जिसे गंगा सेवन कहा जाता है यह लोगो पर निर्भर करता है की वो यहाँ कितने दिनों तक रहते हैं कम से कम 5 दिन लोग यहाँ रहकर माँ गंगा की सेवा करते हैं.वहीँ इस मंदिर के लिए आस्था यहाँ के हर जनजन में हैं. स्थानीय लोगो का मानना है की जो भी भगवान भास्कर के दर पर आता है उसकी मनोकामना कभी खाली नहीं जाती, देरसवेर वो जरुर पूरी होती है. इस मंदिर की एक बहुत बड़ी खासियत जो आप सभी को जानना चाहिए. ग्रामीणों का मानना है कि अब तक कई लोग अपना चर्म रोग लेकर यहां पहुंचे और लगातार श्रद्धा भाव से उन्होंने मंदिर की सेवा और पूजाअर्चना की और गर्भ गृह से निकलने वाले नीर को उस स्थान पर लगाया. इसके उपरांत उन्हें असाध्य रोग से मुक्ति मिल गई.

छठ के समय में इस मंदिर की भव्यता और लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है जब लोकआस्था के महापर्व छठ के दौरान उन चार दिवस में जब हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है. लोगो में इस मंदिर को लेकर इतनी आस्था है की कोसो दूर से यहाँ भगवान् की darshan के लिए आते हैं यही नहीं छठ के दौरान लोग अपने जानने वाले या रिश्तेदारों के यहाँ रूककर गंगा नदी के तट पर छठ करने आते हैं. छठ के समय इस मंदिर की साज सज्जा देखने लायक होती है. छठ की गीत की गूंज और मंदिर की भव्यता से पूरा गाँव चहक उठता है. संध्या अर्घ के दिवस रात में गर्भ गृह को बेहद ही खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है. जो की एक विशेष महत्त्व रखता है. विशेष आरती की जाती है.जिसे श्रींगार आरती कहा जाता है. भोग में पड़ा का प्रसाद मुख्य रूप से चढ़ाया जाता है रात के समय में भी उस श्रृंगार आरती के darshan के लिए लोगो की भारी भीड़ उमड़ती है. आरती के बाद सभी श्रद्धालुयों के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है. छठ के दौरान मंदिर के पास ही भव्य जागरण होता है. जिसमें बाहर से बड़े बड़े कलाकार आते हैं. वहीँ छठ के पारण के दिन यहाँ नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया जाता है. इस नाटक के लिए गाँव के ही अच्छे से अच्छे कलाकार पहले से ही इसके लिए अभ्यास करते हैं और अपनी कला से नाटक के दौरान समाज में अच्छे सन्देश पहुंचाने की कोशिश करते हैं. माना जाता है की यह नुक्कड़ नाटक करीब 35 से 40 वर्षों से लगातार होता आ रहा है. मंदिर के लिए इन सभी खर्चों का वहन स्थानीय लोग खुद एकजुटता के साथ करते हैं लोग अपनी क्षमता के अनुसार मंदिर के कामों में खर्च करने के लिए राशि या खाद्य पदार्थ दान में देते हैं. इतना ही नहीं रुकिए जरा सब्र कीजिये hindi कैलेण्डर के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन भगवान भास्कर के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है. जानकारी के मुताबिक 7 दिनों की विशेष पूजा और अखंड पाठ में कई पंडित शामिल होते हैं इसके बाद पूर्णिमा के दिन मंत्रोचारण और हवन में आहुति देने के बाद यह कर्मकांड संपन्न होता है. जिसके बाद सैंकड़ों ब्राह्मणों को तिखुर का खीर और पूरी का भोजन करवाया जाता है साथ ही श्रधालुयों के बीच यह विशेष प्रसाद वितरित किया जाता है. जो लोग नहीं जानते हैं उन्हें बताना चाहूंगी की तिखुर का खीर खाने में जितना स्वादिष्ट होता है उतना ही औषधीय गुणों से भरपूर होता है.

अब हम जानेंगे इस मंदिर के कुछ रोचक तथ्य

मंदिर कई सारे रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर है. यहाँ कई वर्षों से लगातार नित दिन प्रातः और संध्या आरती की जाती है. जिसका श्रेय यहाँ के एक ब्राह्मण परिवार को जाता है जानकारी के मुताबिक उनकी तीन पीढियां इस परम्परा को आगे बढ़ा रही है. यहाँ की ग्रामीण महिलाएं नित दिन शाम को 3 बजे से 6 बजे तक गीता और रामायण का पाठ करती हैं यानी की सत्यसंग का आयोजन किया जाता है. ये भी निरंतर कई वर्षों से होता आ रहा है. यहाँ कई संस्कार भी संपन्न होते हैं जैसे जनेऊ संस्कार विवाह संस्कार, प्रत्येक रविवार को मंदिर में श्रद्धालुयों की ख़ासा देखी जा सकती है. मान्यता है की रविवार का दिन सूर्य भगवान का दिन होता है. कुछ लोग इस दिन नमक खाते हैं. डॉक्टरों की माने तो अगर आप सप्ताह में एक दिन आप नमक नहीं खाते हैं तो इससे यह आपके शरीर को संतुलित रखता है, शरीर को हाईड्रेटेड रखता है, वजन कम होना , अधिक ऊर्जा , रक्तचाप को कम करना … यह आपको बीमारियों से दूर रखता है … आपकी स्वाद कलिकाओं को मारता है … आपको हृदयाघात से दूर रखता है …अगर आप सारी कड़ियों को मिलाएं तो लोगो द्वारा भगवान के लिए किए गए कर्मों के प्रति विश्वास और वैज्ञानिक तथ्यों सममेलन देखने को मिलेगा. यह मंदिर लोगो के आस्था और विश्वास का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. कई मौके पर यहाँ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई नेता और मंत्री भी यहाँ पहुँचते हैं लेकिन आज तक किसी ने इस स्थल को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने का विश्वास नहीं दिलाया. इस विडियो के माध्यम से हमारी यह कोशिश है की बिहार सरकार की पर्यटन विभाग देश के इस धरोहर को संजोये और इस स्थल को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करे ताकि इस मंदिर की महत्ता दूरदूर तक लोग जान सके और इसका लाभ उठा सके.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *