चक दे क्रिकेट के आज के सेगमेंट चक दे क्लिक में हम बात करेंगे एक ऐसे गेंदबाज के बारे में जो अपनी स्विंग गेंदबाजी के साथ ही यॉर्कर के लिए जाना जाता है. अगर विश्व क्रिकेट के इतिहास में जब तेज गेंदबाजों की जिक्र होती है तो उसमें वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के गेंदबाजों का नाम पहले लिया जाता है. एक दौर वह भी था जब देश के ऑनपर बॉलर स्पीन या फिर मेडियम पेसर हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ इसमें भी बदलाव हुआ और देश को मिला कपिल देव जैसा ऑलराउंडर जो गेंदबाजी के साथ ही बल्लेबाजी में भी हुनर रखता था. कपिल देव के बाद भारत में तेज गेंदबाज एक से एक हुए. जिन्होंने भारत की गेंदबाजी में आक्रमकता लाई. भारतीय टीम के साथ जब जाहीर खान, इरफान पठान श्रीसंथ जैसे गेंदबाज जुड़े तो भारतीय टीम की गेंदवाजी में एक अलग ही धार देखने को मिली है. भारतीय टीम की इसी घाटक गेंदबाजी के बीच में आज हम एक ऐसे गेंदबाज के बारे में बात करने वाले हैं जो अपनी आक्रमक गेंदबाजी से विरोधियों को धाराशाही करने के लिए जाना जाता है. वह अपने गुस्सैल रवैये के लिए जाना जाता है. वह गले में 250 ग्राम सोने की चैन के लिए जाना जाता है… जी हां आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहे हैं स्विंग के जादूगर कहे जाने वाले प्रवीण कुमार के बारे में…
प्रवीण कुमार उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. इनका जन्म शामली जिले के लपराना में हुआ था. इनके पिता सकल सिंह खैवाल पुलिस में कांस्टेबल के पद पर थे. वे अपने बेटे यानी की प्रवीण को पहलवान बनाना चाहते थे. लेकिन जिसकी दिवानगी क्रिकेट हो वो कहा अखाड़े में उतरने वाला था. वह अखाड़े से स्कूल जाने के वहाने क्रिकेट के मैदान में पहुंच जाया करता था. हालांकि प्रवीण कुमार की मां प्रवीण को क्रिकेट खेलने में मदद करती थी. प्रवीण का जब उम्र बढ़ा तो क्रिकेट के प्रति उनकी दिवानगी भी बढ़ती गई. एक बार स्थानीय क्रिकेट खेलने के चक्ककर में उन्होंने दसवी क्लास की परीक्षा तक छोड़ दी थी. जब प्रवीण शाम को घर लौट कर आए तो भाई ने पुछा की पेपर कहां है तुम्हारा. प्रवीण कुछ बोल पाते उससे पहले ही आवाज आई आज छक्का तुम्हारा शानदार था. इस दौरान प्रवीण के भाई ने अपनी मां से प्रवीण के बारे में सबकुछ बता दिया. लेकिन ये बात पिता तक नहीं पहुंच पाई थी. किसी तरह से प्रवीण क्रिकेट में आगे बढ़ रहे थे एक समय तो ऐसा भी आया जब अंडर-19 का ट्रायल चल रहा था और उनके पास जूते नहीं थे. और उस समय प्यूमा के जूते की किमत करीब 3000 रुपये थे. मां ने 1 हजार रुपया दिया था बाकी के पैसे मैंने अपनी साइकिल बेचकर पूरी कर दी. तब जाकर जूता खरीदा था.
गरीबी और क्रिकेट खेलने के जुनून ने उनके हौसले को पत्थर की तरह मजबूत बना दिया था. इसी जुनून का नतीजा था कि साल 2004-05 में विजय हजारे ट्रॉफी में उनका शानदार प्रदर्शन रहा. उस साल प्रवीण कुमार और रणदेब बोस के साथ सबसे ज्यादा विकेट लेने का रिकॉर्ड इनके नाम दर्ज हो गया था. इस साल हुए रणजी ने प्रवीण कुमार ने कुल 41 विकेट अपने नाम कर लिए और 386 रन भी बनाए. प्रवीण कुमार का यह प्रदर्शन जारी रहा और अगले साल इन्होंने 49 विकेट अपने नाम कर लिया. अब वे घरेलु क्रिकेट में चमक रहे थे. लोगों की जुवान पर प्रवीण कुमार का नाम आ रहा था. यह साल था 2007 का जब N.K.P साल्वे चैलेंजर ट्रॉफी में प्रवीण कुमार ने दो मुकावले में 9 विकेट अपने नाम कर लिया था. इसी मैच के बाद से वे चयनकर्ताओं की नजर में आ गए. इसी साल नवंबर महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए जयपुर में खेले गए मुकावले में प्रवीण कुमार का वन–डे क्रिकेट में पदार्पण हुआ. इस सीरीज में वे दो मैच खेले लेकिन उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा. लेकिन भारतीय टीम के चयनकर्ताओं ने उनपर भरोसा किया. और अगले साल होने वाले कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज में इनका चयन हो गया. महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम की फौज तैयार हो गई थी. इस सीरीज में प्रवीण ने 4 मैच खेले और 10 विकेट अपने नाम कर लिया. यही से प्रवीण कुमार भारतीय टीम के प्रमुख गेंदबाज के रूप में देखे जाने लगे और इंटरनेशल क्रिकेट में अपनी धाक जमाने लगे थे.
प्रवीण की नई गेंद से गेंदवाजी एक अलग ही धार देती थी. वे स्विंग के जादूगर कहे जाते थे. समय के साथ प्रवीण ने यॉर्कर गेंद डालकर बल्लेबाजों को खुब परेशान किया था. प्रवीण अपने गेंदबाजी से अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान बना रहे थे. साल 2008 से 10 के बीच में प्रवीण ने 47 एक दिवसीय मैच में 5.02 के इकॉनॉमी से 57 विकेट अपने नाम कर लिया. बता दें कि इस दौरान भारतीय टीम में जहीर खान को अपना एक जोड़ीदार मिला था जिसके साथ मिलकर दोनों विरोधी बल्लेबाजों को धारासाही कर देते थे. प्रवीण की स्विंग करती गेंदवाजी और बल्ले से निकलते रन ने साल 2011 के विश्वकप में खेलने का रास्ता साफ कर दिया था. लेकिन प्रवीण कुमार की किश्मत इतनी अच्छी नहीं थी. प्रवीण पहले डेंगू और फिर बाद में कोहनी के चोट के कारण उवर न सके और विश्वकप 2011 में खेलने का सपना एक सपना ही रह गया. इनकी जगह टीम में श्री संथ को लिया गया. लेकिन प्रवीण कुमार की कहानी यही खत्म नहीं होती है. इस विश्वकप के बाद उन्होंने एक बार फिर से वापसी किया और इंग्लैंड के विरुद्ध लॉर्ड्स के मैदान में पांच विकेट अपने नाम कर लिया. लेकिन प्रवीण कुमार का चोट से पीछा नहीं छूट रहा था. प्रवीण जब जब मैदान में एक लय पकड़ते तब तब वे चोटिल होते चले गए. वे कभी कोहनी तो कभी घूटने के दर्द से परेशान रहते थे.
दक्षिण अफ्रिका के विरुद्ध खेले गए मैच में प्रवीण बूरी तरह से फ्लॉप रहे. उनकी गेंदवाजी में वो धार न दिखी. और वे अपने खराब फॉर्म के कारण बाहर होते चले गए. इसी दौरान रणजी में भुवनेश्वर कुमार शानदार प्रदर्शन कर रहे थे. और चयनकर्ताओं को अपने प्रदर्शन की बदौलत खिंच रहे थे. अब वह समय आ गया था जब देश को प्रवीण कुमार से आगे सोचने की जरूरत थी. साल 2012 के बाद प्रवीण कुमार फिर लौट कर भारतीय टीम का हिस्सा न बन सके हालांकि वापसी की उन्होंने कई कोशिश की लेकिन सफलता हाथ न लगी. भारतीय टीम से बाहर होने के बाद प्रवीण अपने आप से नियंत्रण खोते जा रहे हैं. साल 2013 में कॉरपोरेट ट्रॉफी के दौरान ओएनजीसी और आयकर विभाग के बीच खेले गए एक मैच में प्रवीण कुमार बल्लेबाज अजीत अर्गल से उलझ गए और दोनों के बीच में कहा सुनी होने लगी बीच बजाव के लिए पहुंच अपांयर को भी प्रवीण ने भला बुरा कर दिया. बता दें कि प्रवीण कुमार ने उस ओवर में बल्लेबाज को दो बाउंसर फेकी जिसमें बल्लेबाज ने अपांयर से पुछा कि नो बॉल क्यों नहीं दिया गया. इतने में प्रवीण कुमार बल्लेबाज से भीड़ गए. मैच समाप्त होने के बाद जब इस पूरे मामले की जांच हुई तो प्रवीण कुमार के ऊपर धमकाने और अपमानित करने का आरोप लगा रेफरी ने कुमार को मानसिक तौर पर अनफिट और सिरफिरा क्रिकेटर तक कह दिया था. बीसीसीआई ने एक साल तक विजय हजारे ट्रॉफी खेलने से मना कर दिया. आपको बता दें कि साल 2008 और 2011 में भी इस तरह की घटना प्रवीण के साथ हो चुकी थी.
प्रवीण ने अपने बूरे दिनों को याद करते हुए कहा था कि एक समय ऐसा आया था जब मैंने घऱ से बाहर निकलना बंद कर दिया था. मैं सोचता था कि लोग मुझसे कैसे–कैसे सवाल पुछेंगे, लेकिन मैंने धीरे धीरे बाहर निकलना शुरु किया और सारी नाकारात्मकता समाप्त हो गई. उन्होंने अपना दुःख जाहिर करते हुए कहा कि मैं निराश था कि मुजे ऐसे मंच पर लंबे समय तक खेलने का मौका नहीं मिला जहां मैं काफी समय से हिस्सा था. इंडियन एक्सप्रेस को दिएअपने एक इंटरव्यू में प्रवीण ने तो यह भी बताया था कि एक दिन तो मैंने रिवॉल्वर लेकर हरिद्वार के रास्ते कार इस मकसद से दौड़ा रहा था कि आज खेल ही खत्म कर देते हैं. लेकिन कार में लगी बच्ची की तस्वीर ने मेरा इरादा बदल दिया और मैं सही सलामत घर लौट आया. जीवन में हुए तमाम उतार चढ़ाव के बीच उन्होंने साल 2018 को क्रिकेट के सभी प्रारुप से संन्यास की घोषणा कर दी.
प्रवीण अपने बुरे दिनों से दूर जाने में अपनी पत्नी सपना चौधरी को श्रेय देते हैं. बता दें कि सपना राष्ट्रिय स्तर की खिलाड़ी है. प्रवीण फिलहाल मेरठ में अपना एक रेस्ट्रॉन्ट चलाते हैं. हालांकि उनकी इच्छा है कि वे बोलिंग कोच बने और आने वाली पीढ़ियों को क्रिकेट का गुर सिखाएं.