आज हम बात करेंगे भारत के सबसे पुराने जिलों में से एक पूर्णिया जिले के बारे में. बिहार राज्य के पांचवे सबसे बड़े नगर के रूप में पूर्णिया जाना जाता है. यह जिला उत्तर बिहार के क्षेत्रों में हमेशा शिक्षा का केंद्र बना रहा है. ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा यह जिला वर्ष 1770 में हीं अस्तित्व में आया था. इस जिले का नाम दो शब्दों से मिल कर बना है. पूर्ण और अरण्य जहाँ पूर्ण का अर्थ पूरा और अरण्य का अर्थ जंगल होता है. यानी जंगल से पूर्ण क्षेत्र. इसके नाम के उत्पत्ति के पीछे एक और कहानी लोगों के बीच प्रचलित है. जहाँ कुछ लोगों का मानना है की यह शब्द पुर्नेन से लिया गया है. पुर्नेन कमल के फुल को कहा जाता है. लोगों द्वारा ऐसा कहा जाता है की यहाँ पर कोसी और महानंदा नदियों में कमल के फुल को उगाया जाता था.

  • चौहदी और क्षेत्रफल

आइये अब जानते हैं इस जिले के चौहद्दी और क्षेत्रफल के बारे में. यदि इस जिले के चौहद्दी की बात करें तो उत्तर में अररिया और किशनगंज, पूरब में पश्चिम बंगाल का दिनाजपुर, वहीँ पश्चिम की बात करें तो मधेपुरा यदि दक्षिण में देखे तो भागलपुर और कटिहार जिला स्थित है. इस जिले का क्षेत्रफल 3229.31 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. यदि यहाँ के आबादी की बात करें तो यहाँ की कुल आबादी 32,64,619 है. यहाँ कुल 14 ब्लॉक, 246 पंचायत, 8 नगर पंचायत और 1226 गाँव मौजूद हैं.

इतिहास

आइये अब बात करते हैं इस जिले के इतिहास के बारे में. इस जिले का इतिहास बड़ा हीं गौरवशाली रहा है. यह जिला मुग़ल शासन के समय एक निर्जन सैन्य प्रान्त हुआ करता था. बता दें की इस क्षेत्र का अधिकत्तर राजस्व जनजातियों के खिलाफ अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए अधिकत्तर रुपये खर्च किया करती थी. सिराजउददौलाह के खिलाफ वर्ष 1757 में कलकत्ता के कब्जे के बाद उसके स्थानीय गवर्नर द्वारा विद्रोह किया गया. यह जिला बंगाल के बाकि हिस्सों के साथ वर्ष 1765 में ब्रिटिशों के कब्जे में आ गया. दरअसल बिहार के पूर्णिया का इतिहास बंगाल से हीं जुड़ा हुआ है. क्योंकि कभी बिहार और बंगाल एक हीं प्रान्त हुआ करते थे. जब बिहार और बंगाल अलगअलग राज्य बने तब पूर्णिया बिहार के हिस्से में आ गया.

प्रतिष्ठित व्यक्ति

आइये अब हम जानते हैं इस जिले के प्रतिष्ठित व्यक्ति के बारे में. तो इस जिले के प्रतिष्ठित व्यक्ति की सूचि में हम सबसे पहले बात करेंगे सतीनाथ भादुड़ी के बारे में. ये बांग्ला के उपन्यासकार होने के साथसाथ एक राजनीतिज्ञ भी थे. लोग इन्हें चित्रगुप्त के नाम से भी जानते हैं. इनका जन्म पूर्णिया में हीं 27 सितम्बर वर्ष 1906 को हुआ था. वर्ष 1931 में बीएल की डिग्री पूरी हो जाने के बाद इन्होने साल 1932 और 1939 के बीच कानून का अभ्यास पटना में रह कर शुरू किया. इसके बाद वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल होने के बाद पूर्णिया के सचिव बन गये. इन्हें दो बार अपने जीवनकाल में जेल भी जाना पड़ा. फिर आगे चल कर सतीनाथ कांग्रेस से अलग होकर इन्होने सोशलिस्ट पार्टी को ज्वाइन कर लिया. इनके प्रमुख कृतियों में गणनायक, चित्रगुप्तेर फाइल,अचिन रागिनी, आलोक दूरदृष्टि आदि शामिल है. इनका पहला उपन्यास जागरी था. जागीरी के लिए इन्हें रविन्द्र पुरष्कार भी मिला और इसी उपन्यास से इन्हें काफी प्रसिद्धी भी मिली.

कैसे पहुंचे

चलिए अब हम जानते हैं की इस जिले में रेल, सड़क और हवाई मार्ग के जरिये कैसे पहुँच सकते हैं.

  • सड़क मार्ग

चलिए सबसे पहले हम बात करते हैं सड़क मार्ग के बारे में. इस जिले के सड़क मार्ग के जरिये आप बिहार के किसी भी हिस्से में आसानी से पहुँच सकते हैं. चलिए अब हम जानते हैं की पटना से पूर्णिया हम सड़क मार्ग के जरिये कैसे पहुँच सकते हैं. तो चलिए सबसे पहले हम बात करते हैं वाया NH 31 के बारे में. इसकी दूरी लगभग 303 किलोमीटर तक की है. जिसे तय करने में 6 घंटे और 49 मिनट तक का समय लग सकता है. आइये इस सड़क के रूट को विस्तार से जानते हैं. तो बता दें की पटना से NH 31 के जरिये बख्तियारपुर, बाढ़, बेगुसराय, खगड़िया, नौगछिया होते हुए NH 231 के जरिये पूर्णिया पहुँच सकते हैं.

चलिए अब जानते हैं वाया NH322 और NH31 के बारे में. इस सड़क से दूरी 305 किलोमीटर तक की है. जिसे तय करने में लगभग 7 घंटे और 34 मिनट तक का समय लग सकता है. आइये अब इस सड़क के रुट की चर्चा विस्तार से करते हैं. पहले पटना से हाजीपुर महात्मा गाँधी सेतु पुल या दीघा पुल के जरिये पहुचेंगे. फिर यहाँ से शःदुल्लापुर से होते हुए NH322 जरिये जन्दाहा, दलसिंह सराय, बछवारा फिर यहाँ से 122 के जरिये चकदाद, बेगुसराय, साहेबपुर कमाल, खगड़िया और अब यहाँ से NH31 के जरिये मानसी, महेशखूंट उसके बाद आगे चल कर सतीश नगर से NH31 के जरिये नौगछिया, कुर्सेला, कोढ़ा और यहाँ से NH231 के जरिये मरंगा होते हुए पूर्णिया पहुँच जायेंगे.

आइये अब आखिरी में हम बात करते हैं वाया NH27 के बारे में. इस सड़क की दूरी 368 किलोमीटर तक में हैं. जिसे तय करने में कुल 7 घंटे और 38 मिनट तक का समय लग सकता है. आइये इस रुट के बारे में विस्तार से जानते हैं. सबसे पहले तो हम पटना से हाजीपुर गाँधी सेतु पुल या दीघा पुल के जरिये पहुचेंगे. फिर यहाँ से NH22 के जरिये सराय, भगवानपुर, कुर्हानी फिर मुज़फ्फरपुर पहुचेंगे. मुजफ्फरपुर से NH27 के जरिये काकरा चाक, जारंग ईस्ट, सकरी ईस्ट होते हुए फुलपरास फिर यहाँ से सिमराही बाज़ार होते हुए नरपतगंज, फोर्बेस्गंज, सिमराहा, अररिया, जलागढ़, सरौंचिया और फिर यहाँ से गुलाब्बघ होते हुए पूर्णिया आसानी से पहुँच जायेंगे. पटना से पूर्णिया के लिए आप बस या फिर किसी निजी वाहन के जरिये भी जा सकते हैं.

जानकारी के लिए बता दें की यदि आप पूर्णिया सड़क मार्ग के माध्यम से जा रहें हैं और आपको रास्ते में BR11 नंबर के वाहन दिखने लगे तो समझ जाइये की आप पूर्णिया जिले में प्रवेश कर चुके हैं.

  • रेल मार्ग

आइये अब हम आगे की चर्चा में जानते हैं इस जिले के रेल मार्ग के बारे में. इस जिले में कई प्रमुख रेलवे स्टेशन है जो बिहार के कई प्रमुख रेल मार्गों से जुड़ती है. यदि यहाँ से रेलवे स्टेशन की बात करें तो पूर्णिया जंक्शन रेलवे स्टेशन जिसका स्टेशन कोड PRNA है. पूर्णिया कोर्ट रेलवे स्टेशन जिसका स्टेशन कोड PRNC आदि है. यदि आप पटना से पूर्णिया आना चाहे तो सीमांचल एक्सप्रेस है जिसका समय रात के समय 11:25 मिनट पर है. यह ट्रेन सुबह आपको 6:05 मिनट पर पूर्णिया जंक्शन पहुंचा देगी. इसके अलावे पटना जंक्शन से दोपहर के समय 3:40 मिनट पर कोसी सुपर एक्सप्रेस है जो रात के समय 11:55 मिनट पर पूर्णिया कोर्ट तक पहुंचाएगी.

  • हवाई मार्ग

चलिए अब हम बात करते हैं यहाँ के हवाई मार्ग के बारे में. तो बता दें की पूर्णिया में एक एयरफोर्स स्टेशन हवाई अड्डा है जिसे चुनपुर हवाई अड्डा के नाम से भी जानते हैं. यह हवाई अड्डा छावनी क्षेत्र के अन्दर स्थित है. लेकिन बता दें की इस हवाई अड्डे का प्रयोग केवल सैन्य सम्बंधित कार्यों के लिए हीं किया जाता है. लेकिन पूर्णिया में हवाई अड्डे को अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की घोषणा नीतीश कुमार द्वारा की गयी थी. लेकिन अभी इसके लिए काम शुरू नहीं हुआ है. बता दें की इसका नजदीकी हवाई अड्डा बागडोगरा हवाई अड्डा भी है. यह हवाई अड्डा हमारे पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में स्थित है. लेकिन यदि बिहार की राजधानी पटना में आप देश के कई प्रमुखनगरों और महानगरों के जरिये आना चाहते हैं तो पटना हवाई अड्डे पर आ सकते हैं. फिर पटना से आप सड़क या रेल मार्ग के जरिये आसानी से पूर्णिया पहुँच सकते हैं. सड़क और रेल मार्ग के जरिये पटना से पूर्णिया कैसे आना है इसकी चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं.

पर्यटन स्थल

पूर्णिया के पर्यटन स्थल में हम सबसे पहले बात करेंगे जलालगढ़ किला के बारे में.पूर्णिया जिले में स्थित यह दुर्ग लगभग 300 साल पुराना है. यह पूर्णिया शहर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर की दिशा में स्थित है. वैसे तो यह एक मुग़ल काल के समय की हीं सैनिक छावनी है. लेकिन इसे कब और किसने बनवाया था इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है. कई इतिहासकारों का तो यह भी कहना है की इसे बंगाल के नवाब द्वारा बनवाया गया था. हालाँकि अब यह एक खंडहर के रूप में बदल चूका है.

आइये अब एक नज़र दौड़ाते हैं यहाँ के काझा कोठी पर. इसके सौन्दर्यीकरण का काम सरकार कर रही है जहाँ इस परिसर को वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग को हस्तांतरित करने के लिए प्रस्ताव भेज दिए गये हैं. ताकि इसे और भी अच्छे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सके. बता दें की यहाँ पार्क के बीचोबीच 16 एकड़ का तालाब है. इस तालाब में मनोरंजन के लिए बोटिंग भी किया जाता है. यदि पिकनिक के लिहाज से देखें तो यह बेस्ट पिकनिक स्पॉट के रूप में हो सकता है. प्राचीन समय में यहाँ नील की फैक्ट्री भी थी जिसका भवन आज भी मौजूद है.

अब हम बात करते हैं पूर्णिया सिटी के सौर नदी के तट पर स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में जो 200 साल पुराना है. यह मंदिर माँ काली का मंदिर है जहाँ कई लोग दर्शन के लिए आते हैं. इस मंदिर को लेकर लोगों के बीच ऐसी अवधारणा प्रचलित है की जो भी लोग अमावश्या की तिथि को आयोजित होने वाली विशेष पूजा अनुष्ठान से मन्नत मांगते हैं उनकी मन्नत पूरी होती है.

इसके अलावे यहाँ माता स्थान भी जो आदमपुर पूर्णिया में स्थित है. वहीँ पूर्णिया सिटी में माँ पूरण देवी का मंदिर, माँ रानी सती मंदिर और पीर बाबा का मजार जो भवानीपुर पूर्णिया में स्थित है. पर्यटकों के बीच ये सब जगह भी आस्था का केंद्र बना रहता है.

कृषि और अर्थव्यवस्था

इस जिले के अर्थव्यवस्था में कृषि की मुख्य भूमिका है. साथ हीं साथ इस जिले के केनगर प्रखंड में सरकार द्वारा देश के पहले ग्रीन फील्ड ग्रेन बेस्ड एथनोल प्लांट की स्थापना भी की गयी है. जो की मक्का किसानों के लिए एक एक बड़ी सौगात थी. बता दें की इस जिले के 90 हजार हेक्टेयर में केवल मक्के की खेती की जाती है. इसलिए यह क्षेत्र मक्के के खेती के लिए भी काफी चर्चित है. इसके अलावे यहाँ पशु पालन भी यहाँ के लोगों के आय का मुख्य स्रोत रहा है.

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