भारतीय टीम में खेलने का शुरुआती समय से ही यह पैमाना रहा है कि आपको रणजी मुकाबलों में बेहतर करना होगा. पिछले कुछ सालों से जिस तरह से प्रिमियम लिग की शुरुआत हुई है उसके बाद से खिलाड़ी इन लिग के आधार पर भी भारतीय टीम में शामिल होने लगे हैं. लेकिन रणजी मुकाबला आज भी वह पैमाना है जिसे पार करने के बाद भारतीय टीम में खेलने का मौका मिलता है. आज हम आपको एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में बताने वाले हैं जिनका रणजी क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन रहा है लेकिन उसके बाद भी उस खिलाड़ी को भारतीय टीम में बहुत ज्यादा खेलने का मौका नहीं मिला. इस खिलाड़ी को आज याद किया जाता है तो उनके एक छोटे के कैरियर के लिए और पाकिस्तान के खिलाफ लगाए गए विनिंग शॉट के लिए. इस खिलाड़ी को उसकी प्रतिभा के अनुकूल अवसर नहीं मिला. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में इस खिलाड़ी को भरपूर मौका मिला और इस खिलाड़ी ने अपनी टीम को जीत दिलाई. राजस्थान की टीम को दो बार रणजी दिलवाने वाला कप्तान. इनकी कप्तानी में राजस्थान की टीम क्रिकेट में एक मुकाम हासिल की थी. इस खिलाड़ी के पिताजी भी भारतीय टीम का हिस्सा रहे हैं. अब तक आपको भी समझ में आ ही गया होगा हम बात कर रहे हैं ऋषिकेश कानिटकर के बारे में…
ऋषिकेश कानिटकर का जन्म 14 नवंबर 1974 को पुणे महाराष्ट्र में हुआ था. कानिटकर को बचपन से ही क्रिकेट के प्रति लगाव था. जैसे–जैसे क्रिकेट में आगे बढ़ते गए उसमें उनकी प्रतिभा आगे बढ़ती गई. समय के साथ उनमें कई बड़े बदलाव देखने को मिले और आखिरी में कानिटकर एक ऑलराउंडर के तौर पर जाने जाने लगे. कानिटकर बाएं हाथ के खतरनाक बल्लेबाज के तौर पर भारतीय टीम में शामिल हुए थे. कानिटकर का घरेल क्रिकेट में जलवा था. इन्होंने रणजी ट्रॉफी में टीम के खुब रन बनाए हैं. यह बात उन दिनों की है जब घरेलू क्रिकेट में 10 हजार रन बनाने वाले गिने चुने खिलाड़ी हुआ करते थे जिसमें एक नाम कानिटकर का भी शामिल था. लेकिन इसके बाद भी उन्हें भारतीय टीम में लंबे समय तक खेलने का मौका नहीं. कानिटकर को रणजी ट्रॉफी में मुंबई की तरफ से सोलापुर के इंदिरा गांधी स्टेडियम में पहली बार संजय मांजरेकर की कप्तानी में साल 1994-95 में खेलने का मौका मिला. यह मैच ड्रा रहा था. इन दिनों मुंबई रणजी कमाल का प्रदर्शन कर रही थी. तब एक बात यह भी कहा जाता था कि भारतीय टीम में इन्ही बड़े बड़े शहरों से खिलाड़ी निकलकर सामने आते थे. लेकिन अब इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिला है.मुंबई रणजी टीम से खेलते हुए कानिटकर को भारतीय टीम में खेलने का मौका मिल गया था.
कानिटकर को साल 1997-98 में श्रीलंका के खिलाफ वन–डे में खेलने का मौका मिला. जिसमें यह मैच पूरा नहीं हो सका था. क्योंकि यहां पिच पर गेंद सीधा बल्लेबाज को हिट कर रही थी. जिसके बाद मैच रोकना पड़ा.
ऋषिकेश कानिटकर को आज हमलोग जिस शॉट के लिए जानते हैं उस शॉट की पूरी कहानी आपको बताते हैं. कानिटकर अचानक से रातों रात स्टार बने थे. पूरा भारत इन्हें जानने लगा था. और हो भी क्यों नहीं भारत की टीम ने पाकिस्तान के मुंह से जीत छिन लिया था. उस दिन मानों भारत में दिवाली मनाई जा रही थी. हर तरफ भारत की जीत की बात हो रही थी और इस खिलाड़ी के नाम की चर्चा हो रही थी.
दरअसल यह मैच बांग्लादेश के आजादी के 25 साल पूरा होने के बाद ढाका में सिल्वर जुबली कप खेला जा रहा था. जिसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की टीमें हिस्सा ले रही थी. ये वो समय था जब पाकिस्तान टीम विश्व क्रिकेट में एक मजबूत और सबसे बेहतरीन टीमों में गिनी जाती थी. इस टूर्नामेंट का फाइनल भी भारत और पाकिस्तान के बीच में हो रहा था. इस सीरीज में बेस्ट ऑफ थ्री फाइनल के कांस्पेट पर मैच खेला जा रहा था. जिसमें भारत और पाकिस्तान की टीमें एक एक फाइनल जीत चुकी थी और आखिरी का मुकाबला हर हाल में दोनों ही टीमों को जीतना था. यह मैच 18 जनवरी को ढाका के नेशनल स्टेडियम में खेला जा रहा था. इस मैच में पाकिस्तान की टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 48 ओवर में 314 रन बना दिया था. उन दिनों 300 से ज्यादा रन बनने का मतलब था कि विपक्षी टीम ज्यादातर मैच हार ही जाती थी. लेकिन मैच भारत पाकिस्तान के बीच हो तो कुछ भी कहना मुश्किल होता है. 314 रन के जवाब में बल्लेबाजी करने उतरी भारत की टीम की शुरुआत बहुत अच्छी नहीं रही. सचिन बहुत रन नहीं बना सके लेकिन गांगुली ने शानदार शतक बनाया. और रॉबिन सिंह की शानदार बल्लेबाजी के बदौलत भारत की टीम जीत के करीब पहुंच गई. लेकिन मीडिल ऑडर लड़खड़ाने के कारण ऐसा लगने लगा जैसे भारत यह मैच हार जाएगी. यह मैच सांस रोकने वाला मैच बन गया था. सातवें नंबर पर बल्लेबाजी करने उतरे ऋषिकेश कानिटकर के ऊपर सारा दारोमदार था. उधर गेंदबाजी की जिम्मेदारी सकलैन मुश्ताक के पास थी. उस दिन मैच समाप्त होते होते शाम भी हो रहा था और मैदान पर लाइट की सुविधा भी नहीं थी. कानिटकर को 2 गेंदों में 3 रन बनाना था. मैच की पांचवी गेंद पर कानिटकर ने बल्ला घुमाया और गेंद सीधा बाउंड्री लाइन के पार चली गई. इस चौके के साथ ही करोड़ों भारतीय का दिल झूम उठा भारत में मानों जश्न का माहौल हो गया. लेकिन इस खिलाड़ी के लिए यह चौका काल बन गया. जिसने इतने बेड़े टूर्नामेंट में टीम को जीत दिलाई थी उस खिलाड़ी को कुछ ही मैचों के बाद टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.जब कानिटकर को इस बात का पता चला कि उन्हें अब टीम से बाहर किया जा रहा है तो वे हैरान हो गए थे. इस पूरी घटना के बारे में मनोज प्रभाकर ने बताया था.
साल 2000 में कानिटकर के टीम से बाहर होने और उस मैच के बारे में मनोज प्रभाकर ने बताया था. उन्होंने एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान बताया कि ढाका में खेला गया मैच पूरी तरह फिक्स था. जिसमें पाकिस्तान की टीम को यह मैच जीतना था. लेकिन कानिटकर ने आखिरी समय में जाकर चौका लगा दिया और यह पूरी तरह से उल्टा हो गया. जिसके कारण उन्हें टीम से हाथ धोना पड़ा था. हालांकि इस मैच के बाद कानिटकर रातों रात स्टार जरूर बन गए थे.
चौके के साथ जिस तरह के कानिटकर ने भारत को जीत दिलाई थी उसी तरह से उन्हें भारतीय टेस्ट टीम में भी शामिल किया गया था. तब कानिटकर इंडिया ए टीम के कप्तान हुआ करते थे और उनकी टीम वेस्टइंडिज के दौरे पर थी. इस दौरान भारत की टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर थी. इस सीरीज के दौरान अजय जडेजा को चोट लग गया जिसके कारण उन्हें रिप्लेस कर कानिटकर को वेस्टइंडिज से ऑस्ट्रेलिया भेजा गया. इसी सीरीज में उनका प्रदर्शन उतना बेहतर नहीं रहा था. पहले टेस्ट मैच की दूसरी पारी में उन्होंने 45 रन बनाए तो वहीं दूसरे टेस्ट मैच में वे नाकाम रहे. इस तरह से कानिटकर का टेस्ट कैरियर यहीं पर समाप्त हो गया. उन्होंने टेस्ट मैच में अपने कैरियर में महज 74 रन ही बना पाए थे. वन–डे में भी कानिटकर ने 30 जनवरी 2000 को अपना आखिरी वन–डे मैच खेला.
इस दौरान कानिटकर घरेलू क्रिकेट खेलते रहे. इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान के लिए क्रिकेट खेला. कानिटकर की कप्तानी में राजस्थान की टीम ने दो बार रणजी मैच जीता था. लेकिन उन्हें भारतीय टीम में दोबारा खेलने का मौका नहीं मिल सका. जिसका नतीजा हुआ कि उन्होंने साल 2015 में क्रिकेट के सभी प्रारुपों से सन्यास की घोषणा कर दी. जिस कानिटकर को एक समय पूरा भारत प्यार करता था. कानिटकर के दिल से दिल मिला रहा था वह कानिटकर कुछ ही मैचों के बाद पूरी तरह से भूला दिया गया. कानिटकर ने संन्यास की घोषणा करने के बाद उन्होंने क्रिकेट में कोचिंग देना शुरू कर दिया. उन्हें सबसे पहले गोवा रणजी टीम का हेड कोच बनाया गया. तमिलनाडु की क्रिकेट टीम भी कानिटकर की कोचिंग में रणजी ट्रॉफी जीती है. कानिटकर कोचिंग के साथ ही कमेंट्री करते हैं रहै हैं. अंडर-19 विश्व कप विजेता टीम के कोच भी रहे हैं. कई बार टीवी के कई अलग अलग शो में भी दिखाई दिए हैं लेकिन इनके बारे में यह कहा जाता है कि वे लाइम लाइट की दुनिया से दूर रहना पसंद करते हैं. कानिटकर साल 2015-16 में रणजी ट्रॉफी सीजन में गोवा क्रिकेट टीम के मुख्य कोच के रूप में रहे हैं.इसके बाद कानिटकर 2016 से 2019 तक तमिलनाडू क्रिकेट टीम के मुख्य कोच रहे हैं. जब वे तमिलनाडु के मुख्य कोच थे उस समय लक्ष्मी पति बाला जी के साथ मिलकर उन्होंने इस टीम को सबसे ऊंचाई तक पहुंचाया था. गेंदबाजी में बाला जी ने भी खुब मेहनत किया था. उसके बाद साल 2023 में ICC महिला टी-20 विश्पकप 2023 से पहले कानिटकर को भारत की महिला राष्ट्रीय टीम का स्टैंडइन मुख्य कोच बनाया गया था.
कानिटकर के क्रिकेट कैरियर की बात करें तो उन्हें महज दो टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला जिसमें इन्होंने 74 रन बनाए तो वहीं 34 वन–डे मुकाबले खेलने का मौका मिला जिसमें उन्होंने 339 रन बनाएं जिसमें एक अर्धशतक शामिल था. गेंदबाजी करते हुए 17 विकेट अपने नाम दर्ज किया था. हालांकि फर्स्ट क्लास क्रिकेट में इन्होंने कमाल दिखाया था 149 मुकाबले खेलने का मौका मिला जिसमें 10 हजार 400 रन बनाए हाई स्कोर 290 रन रहा और जिसमें इन्होंने 33 शतक और 46 अर्धशतक भी शामिल है. गेंदबाजी करते हुए उन्होंने 74 विकेट अपने नाम दर्ज कर लिया. कानिटकर एकलौते ऐसे कप्तान हैं जिन्होंने राजस्थान की टीम को दो बार रणजी ट्रॉफी दिलवाई है. वे एकलौते ऐसे कप्तान हैं जिन्होने एलिट और प्लेट दोनों लीग टाइटन जीते हैं.य वे तीसरे क्रिकेटर हैं जिन्होंने रणजी ट्रॉफी में 8 हजार से ज्यादा रन बनाए हैं. शतक लगाने के मामले में भी तीसरे स्थान पर हैं. टी-20 मैचों का जिक्र करें तो 2 टी-20 मुकाबले खेलने का मौका मिला जिसमें महज 3 रन ही बना पाए थे. इस दौरान इन्होंने दो विकेट भी अपने नाम दर्ज किया है. लिस्ट ए मुकाबलों की बात करें तो 128 मुकाबलों के 116 इनिंग में 3526 रन बनाए जिसमें हाई स्कोर 133 रन रहा इस दौरान इन्होंने 6 शतक और 21 अर्धशतक भी अपने नाम दर्ज किया है. गेंदबाजी करते हुए 70 विकेट अपने नाम दर्ज किया है.
भारतीय टीम का यह हरफन मौला खिलाड़ी साजिस का शिकार हो गया. आपको क्या लगता है कानिटकर अगर साजिस के शिकार नहीं हुए होते तो उन्हें भारतीय टीम में और खेलने का मौका मिलता.