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पंडित जी के यहां नहीं कसाई के घर क्यों रहने लगे थे शालिग्राम भगवान ?

Ratnasen Bharti

हिन्दू धर्म में शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु का साक्षात् स्वरुप माना जाता है। आपने भी पंडित जी को सत्यनारायण भगवान की पूजा करते समय शालिग्राम पत्थर को पूजा की चौकी पर रखकर पूजन करते हुए जरूर देखा होगा। यह अत्यंत पवित्र पत्थर माना जाता है।

शालिग्राम पत्थर से भगवान बनने की पूरी कहानी 

लेकिन शालिग्राम पत्थर से जुड़ी एक ऐसी कथा भी है जिसे सुनकर आप हैरान रह जायेंगे।

प्राचीन काल में एक विष्णु भक्त थे उनका नाम सदन था। वे कसाई का काम करते थे। वे पैसे कमाने के लिए मांस बेचते थे लेकिन वे खुद जानवरों की ना तो हत्या करते थे और ना ही खुद मांस कहते थे। लेकिन फिर भी आजीविका का कोई अन्य विकल्प नहीं होने के कारण वे दूसरे कसाइयों से मांस खरीदकर बेचा करते थे। वैसे वे जीव हिंसा देखकर रोने लगते थे। काफी छोटी उम्र से ही वे भगवान के नाम का जप और हरि कीर्तन किया करते थे। सदन कसाई दिन रात हरि कीर्तन में लगे रहते थे। वे हर घड़ी हर पल लीलामय पुरुषोत्तम भगवान विष्णु जी के नाम जप, गुणगान, चिंतन और कीर्तन में ही व्यस्त और मस्त रहते।

कथा आती है कि जानवर के मृत शरीर के मांस को तौलते समय तराजू पर वह जो बाट का उपयोग करते थे वह एक पत्थर था और वह कोई साधारण पत्थर नहीं वास्तव में शालिग्राम पत्थर था जिससे वे बिलकुल ही अनजान थे। शालिग्राम पत्थर को अत्यंत पवित्र माना गया है और हिन्दू धर्म में इसकी पूजा होती है। इस पवित्र पत्थर को भगवान विष्णु का स्वरुप माना गया है और सत्यनारायण भगवान विष्णु की पूजा के समय इस पत्थर को बड़े ही आदर और श्रद्धापूर्वक पूजा की चौकी पर रखकर उसकी पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन सदन कसाई इस बात से बिलकुल ही अनभिज्ञ थे वह निरंतर इसी पत्थर का उपयोग मांस तौलने के लिए तराजू पर किया करते थे। वे शालिग्राम पत्थर को बस एक साधारण पत्थर समझकर मांस तौला करते थे।

ऐसे पड़ी थी एक ब्राह्मण को शालिग्राम पर नजर

एक दिन की बात है कि एक साधु उनकी दुकान के सामने से गुजर रहे थे। अचानक उनकी नजर सदन कसाई के तराजू में रखे शालिग्राम पर पड़ी। वे ब्राह्मण थे और पूजा पाठ किया करते थे। वे उस पत्थर को देखते ही समझ गए कि यह कोई साधारण पत्थर नहीं है बल्कि शालिग्राम पत्थर है। उन महात्मा जी को शालिग्राम पत्थर को सदन कसाई के तराजू पर देखकर बहुत गुस्सा आया।

उन्होंने सदन कसाई को उस पत्थर की महिमा बताई। उनके समझाने बुझाने पर सदन ने वह पत्थर उन महात्मा जी को सौंप दी। साधु जी ने बड़े आदर के साथ उस पत्थर को अपने घर ले जाकर स्नान कराया और उसकी विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करके अपने पूजाघर में स्थापित किया। इस तरह वे बाबा जी उस पवित्र शालिग्राम पत्थर की प्रतिदिन पूजा करने लगे।

जब ब्राह्मण के सपने में आए थे भगवान

मगर शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान तो सिर्फ और सिर्फ भाव और प्रेम के भूखे होते हैं। प्रेम के आगे वे किसी भी कर्मकांड, पूजा , मन्त्र या विधि विधान की बिलकुल भी अपेक्षा नहीं रखते। शालिग्राम पत्थर के अंदर विराजमान श्री हरि विष्णु भगवान ने कुछ दिनों के बाद उस साधु को रात्रि में स्वप्न में दर्शन दिया। स्वप्न में भगवान विष्णु ने उस साधु से कहा कि , ” मुझे सदन के पास बड़ा आनंद मिलता था। उसके मुख से निकले हुए शब्द मुझे बड़ा सुकून देते थे। मैं तुम्हारे पास बड़ा घुटन महसूस कर रहा हूँ। अच्छा होता तुम मुझे फिर से सदन के पास ही पहुंचा देते।  नींद से जागने के बाद वे साधु महाराज तत्काल ही उस शालिग्राम पत्थर को लेकर पुनः उस सदन कसाई के पास पहुँच गए। साधु जी ने सदन को उस पत्थर के बारे में विस्तार से बताया। साधु जी ने वह शालिग्राम पत्थर सदन को लौटा दी।. साथ ही अपने स्वप्न की बात भी बता दी। यह सब सुनकर सदन कसाई बहुत दुखी हुआ और वह ग्लानि से भर गया कि मैं कितना बड़ा पापी हूँ जो भगवान विष्णु के प्रतीक शालिग्राम भगवान का उपयोग अपवित्र कार्य में करते हुए उसे बाट के रूप में तराजू पर रखकर मांस तौलता रहा।

इस तरह विचार करने के बाद सदन ने मांस बेचने का काम हमेशा के लिए छोड़ दिया और हरिकीर्तन में जीवन बिताया जो श्री विष्णु भगवान को प्रसन्न करने वाला कर्म था।

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