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दो साल में खोया था एक पांव, अब भारत को दिलवा रहा है गोल्ड मेडल

Bihari News

बिहारी बेजोड़ के आज के सेगेमेंट में हम बात करने वाले हैं बिहार के एक ऐसे बेटे के बारे में जिन्होंने अपनी खेल प्रतिभा से भारत कानाम ऊंचा किया बिहार का नाम ऊंचा किया है. बिहार के बेटे ने ऊंची कूद की प्रतियोगिता में 1.86 मीटर की छलांग लगाकर पैरालंपिक में कास्य पदक अपने नाम किया है. बिहार के इस बेटे का नाम है शरद कुमार. शरद कुमार मुलरूप से मुजफ्फरपुर के मोतीपुर के रहने वाले हैं. लेकिन पढ़ाई लिखाई के लिए इनका पूरा परिवार पटना शिफ्ट हो गया था. आपको बता दें कि शरद कुमार पढ़ाई लिखाई में भी बहुत अच्छे थे और खेलने कुदने में भी. शरद के माता पिता सुरेंद्र कुमार और कुमकुम कुमारी बताती हैं कि शरद बचपन से ही किसी काम में अगर लग गया तो उसमें अपना वेस्ट देने की कोशिश करता था. यही कारण हैं कि पढ़ाई लेकर खेल तक में इसका प्रदर्शन बेहतर रहा है.

शरद कुमार का जन्म 1 मार्च 1992 को हुआ था. जब वे 2 साल के थे तो नकली पोलियो दवा पीने के कारण उनका बायां पैर पैरालाइस हो गया था. जिसके कारण वे दिव्यांग हो गए. लेकिन घर परिवार और खुद की हिम्मत के बदौलत उन्होंने अपने इस दिव्यांगपन को अपने जीवन पर हावी होने नहीं दिया. वे लगातार एक साधारण बच्चे की तरह रहे और अपने जीवन को आगे बढ़ाया. शरद की स्कूली शिक्षा सेंट पॉल स्कूल दार्जिलिंग में हुआ था. आपको जानकर हैरानी होगी कि जब शरद की उम्र महज 7 साल की थी तो उन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान ही हाई जम्प की शुरुआत कर दी थी. शुरुआती शिक्षा समाप्त होने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए. दिल्ली में इन्होने करोड़ीमल कॉलेज में पॉलिटिक्ल साइंस में अपना बैचलर पूरा किया उसके बाद आगे कि पढ़ाई के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय JNU से अपनी पीजी की पढ़ाई पूरी की.

अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए शरद कुमार बताते हैं कि यह बात साल 1995 की है जब वे दार्जिलिंग में एक स्कूल में पढ़ाई करने के लिए गए थे जहां पढ़ाई के साथ ही खेल का भी प्रशिक्षण दिया जाता था. उन्होने यह भी बताया था कि अपनी कक्षा में मैं अकेला दिवंयांग था. क्लास के साथी सब हमसे खुब प्यार करते थे. इसी दौरान स्कूल में एक एथलेटिक का आयोजन किया गया. लेकिन इस खेल में शरद कुमार हिस्सा लेने से मना कर दिया गय.तब गुस्से में आकर उन्होंने उस दिन ठान लिया था कि खुद पर काम करने और खेलों में शामिल हने की जरूरत है. हालांकि जब शरद खेलने के लिए मैदान में होते थे तो उनके सिनियर इन्हें प्रोत्साहित करते थे. शरद ने अपने बड़े भाई का जिक्र करते हुए बताया है कि मरे भाई ने मुझे हाई जम्मपर बनने के लिए प्रेरित, उन्होंने कहा कि जब मैं स्कूल में था तो मैंने स्कूल में पहले से बने हुए सारे रिकॉर्ड को तोड़ दया. जिसके बाद शरद को लगने लगा कि नहीं अब वह समय आ गया है जब बड़े खेलों में हिस्सा लिया जा सकता है. सेंट पॉल से निकलने के बाद उन्होंने दिल्ली के परालंपिक टीम के साथ जुड़कर प्रशीक्षण की शुरुआत कर दी.

शरद कुमार के पैरालंपिक में आने के पिछे भी एक कहानी है शरद बताते हैं कि जब वे चौथी क्लास में थे तो उनके एक शिक्षक डेनिस ने उन्हें पैरालिंपिक में हिस्सा लेने के लिए कहा. हालांकि शरद कुमार ने पैरालंपिक के बेहतरीन गुर सीखने के लिए शरद ने दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में दाखिला ले लिया. अब शरद यहां ऊंची कुद के तकनीक को सीखा करते थे. फिर वह साल भी आ गया जब शरद कुमार को अंतरराष्ट्रीय पटल पर खेलने का मौका मिल गया. साल 2010 में चीन के ग्वांगझू में होने वाले एशियाई पैरालंपिक खेलों में शरद का पदार्पण हुआ. जिसके बाद साल 2012 में लंदन पैरालिंपिक के लिए क्वालीफाई किया, जिससे उन्होंने अपनी ऊंची कूद के साथ 1.64 मीटर का अंक हासिल किया. इस दौरान जब उनकी उम्र 19 साल की थी तो उन्होंने मलेशियाई ओपन पैरा एथलेटिक्स चैंपयनशिप में 1.75 मीटर की ऊंचाई तक छलांग लगाकर विश्व के नंबर-1 खिलाड़ी बन गए थे. हालांकि साल 2012 शरद के लिए बहुत अच्छा नहीं रहा. इस साल जब उनके शरीर में मेडिकल टेस्ट किया गया तो उनके शरी में ड्रग जैसे नशीले पदार्थ पाए गए जिसके बाद उन्हें दो साल के लिए बैन कर दिया गया हालांकि इस पूरे घटना क्रम को लेकर बोलते हुए शरद कुमार ने बताया है कि मैंने अपने जीवन के उस दौर को याद नहीं करना चाहता. यह मेरे लिए एक बुरा सपना था. यह सब गलती से हुआ. मैं इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता. मुझे सकारात्मक परीक्षण किया गया था लेकिन मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया. मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं थी. यह वास्तव में एक कठिन समय था, इस दौरान मैं अंदर ही अंदर रोता था. अब मैं इसे एक बूरे सपने की तरह भूल गया हूं. उस दौरान मुझे शर्म आती थी कि मैं डोपिंग का केस लड़ रहा हूं. लेकिन मैं अधिकारियों को समझा नहीं सका.

खैर, शरद के जीवन से यह बुरा दौर दो साल के बाद यानी की साल 2014 में समाप्त हो गया. और इनकी जव वापसी हुई तो वह भी शानदार तरीके से. इन्होंने अपनी वापसी में सारे रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए 1.80 मीटर की छलांग लगा दी और स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया. इस दौरान उन्होंने एशियाई खेलों में सारे पुराने रिकॉर्ड को इन्होंने तोड़ दिया था. और दुनिया के नंवर 1 खिलाड़ी बने थे. इसके बाद साल 2016 में शरद कुमार ने रियो पैरालंपिक में 6 वें स्थान पर रहे थे. उसके बाद साल 2017 में हुए विश्व पैराएथलिटिक्स चैंपियनशिप में 1.84 मीटर की ऊंची छलांग लगाकर रजत पदक अपने नाम किया. इसके बाद साल 2018 में जर्काता में हुए पैरा एशियन गेम्स में शरद ने 1.90 मीटर की छलांग लगा दी और एक बार फिर से इनके नाम विश्व रिकॉर्ड दर्ज बन गया. साथ ही इस खेल का स्वर्ण पदक भी इनके नाम दर्ज हो गया. इस दौरान उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि ईमानदारी से कहूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मुझे यह महसूस करने में कुछ मिनट लगे कि मैंने स्वर्ण पदक जीत लिया है. मैं उस समय पोडियम पर भावुक हो गया था लेकिन रोना नहीं चाहता था. तिरंगा फहराते हुए और राष्ट्रगान को सुनते हुए देकना एक अद्भुत एहसास था. मैं अभी भी उस पल को महसूस कर सकता हूं.

शरद कुमार टोक्यों पैरालंपिक से पहले दो साल से अधिक का समय युक्रेन में विदेशी कोच निकितिन येवेन के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण लेकर आए थे. इसका पूरा खर्च भारत सरकार ने वहन किया था. जब शरद कोरोना काल के शुरुआती दिनों में युक्रेन में थे उस समय भारत सरकार ने उन्हें युक्रेन से भारत में लाया था.

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