बिहार में जारी सियासी घमासान के बीच में कई तरह की बातें निकलकर सामने आ रही है. बता दें कि बिहार में इन दिनों सत्ता की कुर्सी को लेकर सबसे ज्यादा घमासान मचा है. विपक्ष की इच्छा होती है सत्ता तक पहुंचने की लेकिन जब सत्ता के साझेदार ही सत्ता तक पहुंचने की चाह रखें तो क्या हो? खैर बिहार में इन दिनों विपक्ष जितनी तेजी से नीतीश सरकार पर हमलावर हैं उतनी ही तेजी से राजद अपने नेता को सीएम की कुर्सी तक देखना चाह रही है. ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि क्या तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के बगैर बिहार की कुर्सी पर बैठ सकते हैं क्या? अगर हां तो फिर वह कौन सा समीकरण होगा जो तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी तक ले जाएगा.
तो आइए सबसे पहले समझते हैं बिहार विधानसभा में इन दिनों किस तरह की स्थिति है. बिहार विधानसभा में 243 विधानसभा की सीटें हैं. जिसमें सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत है. ऐसे में राजद विधायकों की संख्या 79 है. बिहार महागठबंधन की सरकार को अगर हम देखें जदयू को छोड़कर तो 79 विधायक राजद के, कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 विधायक होंगें. इस तरह से विधायकों की संख्या होती है 114 वहीं अगर हम जीतन राम मांझी के राजनीतिक रवैये को देखें तो वे अगर महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार में आते हैं और एक निर्दलीए विधायक इसमें शामिल होते हैं तो यह आंकड़ा 119 तक पहुंच सकती है. लेकिन अभी भी सरकार बनाने के लिए 3 विधायकों की जरूरत है. हालांकि वर्तमान सरकार में नीतीश कुमार अपने 43 विधायकों के साथ सरकार में शामिल हैं.
विधानसभा की वर्तमान राजनीति को देखें तो संख्या के हिसाब से राजद जदयू से बड़ी पार्टी है. लेकिन नीतीश कुमार के बिना राजद के लिए राह इतनी आसान नहीं होने वाली है. इसीलिए नीतीश कुमार भी इस बात को समझते हैं और बिहार की जितनी भी राजनीतिक पार्टियां है वह इस बात को अच्छे से समझ रही है. यही कारण हैं कि नीतीश कुमार जिस पार्टी का हिस्सा होते हैं वह सरकार में होती है. इसे हम इस तरह से भी कह सकते हैं कि बिहार कि सत्ता की चाभी नीतीश कुमार के पास है. 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ मिले तो सत्ता में रहे. अब महागठबंधन के साथ हैं तो सत्ता में हैं. बिहार में भले ही तीसरी पार्टी की भूमिका में हैं लेकिन सत्ता के केंद्र में नीतीश कुमार हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव कैसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकते हैं. इसके लिए तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार की पार्टी से 3 विधायकों को तोड़ना होगा. जोकि कि इतना आसान नहींहै. अगर तोड़ भी लिए तो दल बदल कानून के तहत आ जाएंगे. ऐसे में तेजस्वी यादव को इस बात का भी भान होना चाहिए. खैर इस मसले पर तेजस्वी यादव झारखंड से सीख ले सकते हैं क्योंकि झारखंड विधानसभा में विधानसभा स्पीकर ने दल बदल कानून को अपने पास तब तक रोक रखा जबतक कि विधानसभा का कार्यकाल पूरा नहीं हो गया. ऐसे में बिहार विधानसभा में विधानसभा स्पीकर भी राजद के हैं तो तेजस्वी यह काम कर सकते हैं लेकिन तेजस्वी अगर इस तरह से सरकार में आते हैं तो उनके ऊपर तोड़ जोड़कर सरकार बनाने का आरोप लगेगा जो तेजस्वी चाह नहीं रहे हैं. तेजस्वी ने पहले ही संकेत दे दिया है कि वे लंबा इंतजार करने के लिए तैयार हैं.
जिस तरह से राजद नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहे हैं उससे तो यही प्रतित होता है कि राजद जल्दबाजी में हैं और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री से हटा कर खुद सत्ता की कुर्सी पर बैठना चाह रही है लेकिन राजद अब तक में ऐसा क्यों नहीं कि हैं? तो आइए कुछ बिंदुओं में समझने की कोशिश करते हैं कि तेजस्वी क्यों नहीं नीतीश कुमार को हटा कर खुद मुख्यमंत्री बन रहे हैं.
सबसे पहले तो यह कि बिहार विधानसभा में सत्ता में आने के लिए 122 अंक को छुना होगा इसके लिए महागठबंधन के 3 अंक कम है वो तीन अंक अगर जदयू से आते हैं तो महागठबंधन की सरकार बन सकती है अन्यता मुश्किल है. और जदयू को तोड़ना राजद के लिए तेढ़ी खीर साबित होगा.
दूसरा मसला लालू यादव से जुड़ा हुआ है. लालू यादव इन दिनों अस्वस्थ हैं और ढलती उम्र के साथ पुराने केस एक बार फिर से खुलने लगे हैं. ऐसे में तेजस्वी यह नहीं चाहेंगे कि अब उनके पिता को ज्यादा परेशानी और झेलनी पड़े.
अपने पिता लालू यादव से दूर होने के बाद तेजस्वी यादव के राजनीतिक गुरु नीतीश कुमार ही हैं. जिनके मार्गदर्शन में तेजस्वी यादव ने पिछली सरकार में भी विधानसभा में काम किया और अभी भी नीतीश कुमार के साथ सत्ता के साझेदार हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव को अभी राजनीतिक के कई दांव सीखने हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को गिरा कर खुद सत्ता में बैठने की गलती नहीं करेंगे.
ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि नीतीश कुमार सत्ता की कुर्सी कब छोड़ेंगे. तो आपको बता दें कि नीतीश कुमार ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. हालांकि जदयू ने कहा है कि वे 2030 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रह सकते हैं. बाद में यह विवाद बढ़ा तो नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी उम्र 72 साल की हो गई है वे अब कब तक राजनीति करेंगे. इन सब से पहले 2020 के विधानसभा चुनाव के समय भी नीतीश कुमार ने राजनीति से संन्यास के संकेत दिये थे. हालांकि इन दिनों जिस तरह से नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव में जितनी दिलचस्पी दिख रही है उतना विधानसभा चुनाव को लेकर नहीं है. ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर देश में विपक्षी पार्टियों के वोट बैंक में बढ़ोतरी होती है और यह सीटों में बदलता है कि नीतीश कुमार जिस तरह से बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं उसी तरह से देश की प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी काबिजे हो सकते हैं. हालांकि इन सभी बातों को लेकर सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैं. क्योंकि आने वाले समय में राजनीति में किस तरह का बदलाव होगा कोई नहीं जानता है. फिर वही सवाल कि नीतीश कुमार सीएम की कुर्सी कब छोड़ेंगे तो यहकिसी को पता भी नहीं है और इसकी किसी तरह की संभावना बनती भी नहीं दिख रही है. रही बात तेजस्वी की तो तेजस्वी भी बिना नीतीश के सलाह पर इस तरह का फैसला नहीं करेंगे.