भूमिका
आज के इस विडियो में हम बात करेंगे नेपाल से सटे सामरिक रूप से महत्त्व रखने वाले सुपौल जिले के बारे में. सांस्कृतिक रूप से यह जिला काफी समृद्ध माना जाता है. 14 मार्च साल 1991 में यह जिला सहरसा जिले से अलग होकर अपने वर्त्तमान अस्तित्व में आया. बता दें की यह जिला प्राचीन में मिथिला राज्य का हिस्सा था. इस जिले का प्रशासनिक मुख्यालय सुपौल शहर में हीं स्थित है.
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क्षेत्रफल और चौहद्दी
आइये अब हम सुपौल जिले के क्षेत्रफल और चौहद्दी के बारे में जानते हैं. इस जिले का क्षेत्रफल लगभग 2425 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यदि हम इस जिले के चौहद्दी की बात करें तो उत्तर की दिशा में नेपाल, दक्षिण की दिशा में सहरसा, पूरब की दिशा में अररिया जिला तो वहीँ पश्चिम की दिशा में मधुबनी जिला अवस्थित है. यहाँ की आबादी 2011 के जनगणना के अनुसार 2,229,076 है. वहीँ इस जिले में एक नगरपालिका, 4 अनुमंडल, 11 प्रखंड और 556 गाँव हैं.
इतिहास
आइये अब अपने इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम जानते हैं इस जिले के इतिहास के बारे में. इतिहास की चर्चा शुरू करने से पहले हम आपको बता दें की यह जिला अपने वर्त्तमान अस्तित्व में साल 1991 में आया. वर्ष 1991 से पहले यह जिला सहरसा से जुड़ा था. प्राचीन काल में देखे तो ये सभी जिले मिथिला राज्य के अंग के रूप में हीं थे. इसलिए सुपौल जिले का इतिहास मिथिला जिले से हीं थोड़ा बहुत जुड़ा देखने को मिलता है. जहाँ प्राचीन काल में यह क्षेत्र मिथिला राज्य का हिस्सा था, जिस पर आगे चल कर मगध और फिर मुग़ल सम्राटों द्वारा अपना आधिपत्य जमा लिया गया. चुकी यह क्षेत्र प्रशासनिक और सामरिक दोनों रूप से हीं अपना एक अलग महत्त्व रखता था इसलिए ब्रिटिश काल में वर्ष 1870 के आस–पास इस जिले को अनुमंडल का दर्जा दे दिया गया था. और फिर वर्ष 1991 में यह जिला अपने वर्त्तमान अस्तित्व में हमे देखने को मिला. और अब यह विकास के सीढ़ियों की तरफ बढ़ता जा रहा है.
प्रसिद्ध व्यक्ति
तो चलिए अब हम जानते हैं इस जिले के प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में.
प्रसिद्ध व्यक्ति की सूचि में हम सबसे पहले बात करेंगे रंधीर प्रसाद वर्मा की. ये एक भारतीय पुलिस ऑफिसर थे. इनका जन्म सुपौल जिले के जगतपुर गाँव में हुआ था. धनबाद में हो रहे एक बैंक डकैती को रोकते वक्त उनकी मृत्यु हो गयी थी. उनके इस वीरता के सम्मान में मृत्यु के बाद उन्हें अशोक चक्र से नवाजा गया था. साथ हीं साथ वर्ष 2004 में भी उनके सम्मान में भारत सरकार द्वारा उनके याद में स्मारक डाक टिकट को भी जारी किया गया था.
कैसे पहुंचे
चलिए अब अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम जानते हैं की सुपौल जिले में हम रेलवे, सड़क और हवाई मार्ग के जरिये कैसे पहुँच सकते हैं.
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रेल मार्ग
अपने इस चर्चा में हम सबसे पहले बात करेंगे रेल मार्ग की. तो इस जिले में रेल मार्ग के लिए कई रेलवे स्टेशन देखने को मिल जायेंगे. इस जिले से रेल मार्ग द्वारा आप बिहार के कई हिस्सों में सफ़र कर सकते हैं. इस जिले के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में सुपौल जिसका स्टेशन कोड SOU है. कदमपुरा रेलवे स्टेशन जिसका स्टेशन कोड KDRA है. सरायगढ़ जंक्शन जिसका स्टेशन कोड SRGR है आदि शामिल है. यदि आप पटना से सुपौल आना चाहे तो राजधानी पटना से सुपौल जाने के लिए रेल मार्ग की सुविधा आपको नहीं मिलेगी.
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सड़क मार्ग
आइये अब हम बात करते हैं सड़क मार्ग की. तो बता दें की यहाँ सड़क मार्ग के यातायात के अच्छे साधन हैं. यदि आप पटना से सुपौल जाना चाहे तो वाया NH 27 के जरिये आ सकते हैं. इसकी दुरी 255 किलीमीटर की है. जिसे तय करने में लगभग पौने छह घंटे तक का समय लग सकता है.यह सड़क NH 22 के जरिये हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सकरी ईस्ट, झंझारपुर, फुलपरास होते हुए NH327 A से सुपौल को जाती है.
अब हम जानते हैं स्टेट हाईवे 88 वाले मार्ग को. इस सड़क की दुरी 205 किलोमीटर तक में है. जिसे तय करने में 6 घंटे और 40 मिनट तक का समय लग सकता है. इस सड़क से सफ़र तय करने के लिए आपको NH22 से होते हुए हाजीपुर और फिर शःदुल्लापुर जाना होगा. यहाँ से आपको NH 322 मिलेगा इस सड़क के जरिये आप जन्दाहा और फिर आगे चल कर स्टेट हाईवे 88 के जरिये सिंघिया, पिपरा फिर बिरौल रोड बांका में स्टेट हाईवे 56 से बलुआहा रोड से NH 327 होते हुए सुपौल पहुँच सकते हैं.
अब आखिरी में हम जानेंगे वाया NH22 और NH27 के बारे में. इस सड़क की दुरी 254 किलोमीटर तक की है. जिसे तय करने में लगभग 6 घंटे तक का समय लग सकता है. तो बता दें की आप NH 22 से हाजीपुर, सराय, भगवानपुर, कुर्हानी, काकर चाक, जारंग ईस्ट, फिर सिमरी से NH27 होते हुए सकरी ईस्ट, झंझारपुर, फुलपरास और फिर मझारी, सरैयगढ़ और फिर 327A से होते हुए आप सुपौल पहुँच सकते हैं.
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हवाई मार्ग
आइये अब जानते हैं हवाई मार्ग के बारे में. तो बता दें की इस जिले का अपना कोई हवाईअड्डा नहीं है. लेकिन यदि आप पटना हवाई अड्डे पर देश के किसी भी कोने से आ सकते हैं और इस हवाई अड्डे से देश के कई प्रमुख नगरों और महानगरों के लिए विमाने उड़ान भर्ती हैं. पटना हवाई अड्डे पर आने के बाद पटना से आप सड़क मार्ग के जरिये सुपौल आसानी से पहुँच सकते हैं. सड़क मार्ग के जरिये कैसे जाना है इसकी चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं.
पर्यटन स्थल
चलिए अब हम जानते हैं सुपौल के पर्यटन स्थलों के बारे में. तो यहाँ के रुची के स्थान में हम सबसे पहले जानेंगे धरहरा में अवस्थित शिव मंदिर के बारे में. जिला मुख्यालय से इसकी दुरी 35 किलोमीटर तक में है. यह मंदिर कितना पुराना है इसकी कोई पुख्ता जानकारी तो नहीं है. लेकिन ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल या उससे भी अधिक पुराना है. कहा जाता है की अज्ञातवास के समय विराटनगर जाते वक्त पांडव पुत्र भीमसेन द्वारा यहाँ भगवान शिव की पूजा अर्चना की गयी थी. और तब से यह मंदिर लोगों के बीच भीमशंकर महादेव के नाम से प्रचलित हो गया.
आइये अब जानते हैं सुपौल जिले के राघोपुर थाना क्षेत्र के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर के बारे में. लोगों के बीच यह मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र है. यहाँ भक्तों का जमावड़ा अक्सर देखने को मिलता रहता है.
तो अब जानते हैं सुपौल के तिनटोलिया स्थित दुर्गा मंदिर के बारे में. इस मंदिर को लेकर लोगों के बीच ऐसी मान्यता प्रचलित है की सालों पहले यहाँ एक कदम के पेड़ के नीचे माँ दुर्गा की पूजा की जाती थी. आगे चल कर लोगों की सहमती से यहाँ मंदिर बनाने की बात हुई. मंदिर बनाने के लिए जब उस कदम के पेड़ को काटा गया तो उस पेड़ से रक्त की धारा बाहर आने लगी. और तब से उस पेड़ के साथ किसी ने भी कोई छेड़–छाड़ नहीं किया. तब से वह कदम का पेड़ जैसा था वैसा हीं है. साथ हीं लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना रहता है.
इसके अलावे यहाँ कपिलेश्वर मंदिर और कोशी नदी भी है. कोशी नदी के आस–पास लोगों के लिए पिकनिक का एक बढ़िया स्पॉट रहता है. बता दें की बिहार सरकार द्वारा भी सुपौल के कोशी नदी के आस–पास एक बढ़िया पर्यटन स्थल के रूप में उसे विकसित करने की बात चल रही है.
कृषि और अर्थव्यवस्था
सुपौल जिले में लोगों के आय का मुख्यस्रोत कृषि हीं है. वर्ष 2016-17 के एक सर्वे के अनुसार यहाँ का विकास दर 7.6 था. कोसी नदी के कारण यह जिला अक्सर बाढ़ की मार झेलता है. बावजूद इसके यहाँ का विकास दर राज्य के विकास दर के काफी करीब है. इसकी वजह है यहाँ के लोगों में अपने काम के प्रति मेहनत और लगन. यहाँ अच्छा खासा कृषि कार्य का व्यवसायीकरण देखने को मिलता है. यहाँ के किसान धान, गेंहू, मक्का के साथ–साथ मखाने और मशरूम की खेती भी करते हैं. इसके अलावे यहाँ के लोगों के आय का अन्य स्रोत पशुपालन भी है. यदि यह जिला बाढ़ के चपेट में नहीं आता तो शायद यहाँ की अर्थव्यवस्था बेहतरीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक होती.