जब किसी व्यक्ति में पढ़ने की चाह हो तो वह क्या कर सकता है ? आप भी कहेंगे पढ़ेगा और क्या करेगा. बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट हम बात एक ऐसे बिहारी के बारे में करेंगे जिसने अपनी पढ़ाई को विश्व रिकॉर्ड बनाया. जिसके नाम ले लेने बस से कामयाबी उसके पास चली आती है. जरा ध्यान से सुनिए उसके बाद आप भी कहेंगे वाह सच में कामयाबी इसके पास आ जाती है… महज 9 साल की उम्र में दसवीं की परीक्षा पास की, 11 साल की उम्र में बीएससी, 12 साल की उम्र में एमएससी, 21 साल की उम्र में इस व्यक्ति ने PHD कर ली और 22 साल में इन्होंने IIT बॉम्बे में पढ़ाना शुरू कर दिया. अब तक आप भी समझ ही गए होंगे हम बात कर रहे हैं तथागत अवतार तुलसी के बारे में…
प्रतिभावान इस छात्र का जन्म 9 सितंबर 1987 को हुआ था. विलक्षण प्रतिभा के धनी तथागत जब महज 6 साल के थे तो उन्होंनें गणित के बड़े बड़े सवाल उन्होंने बिना पेन पेंसिल उठाए ही हल कर दिया था. वे इन दिनों गणित के प्रति अपनी लगन के कारण मीडिया की सुर्खियों में लगातार आ रहे थे. साल 1994 में उस समय के मुख्यमंत्री के तौर पर रहे लालू प्रसाद यादव ने तथागत अवतार को बुलाया था और उन्हें पुरस्कार स्वरूप एक कम्पूयटर देने की घोषणा कर दी थी. कहते हैं तुलसी के जीवन में इन सभी चीजों का गहरा असर पड़ा था. तुलसी सातवीं क्लास की पढ़ाई नहीं करना चाहते थे. इसलिए वह सेल्फ स्टडी के बल पर सातवीं, आठवीं नौवी और हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की. उनके पिता ने 10 वीं क्लास की परीक्षा दिलाने के लिए सीबीएसई से अनुमति मांगी. लेकिन इस दौरान उन्हें इजाजत नहीं मिली थी. जिसके बाद उनके घर वालों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उन्हें परीक्षा देने का मौका मिला. इसके बाद 28 अप्रैल 1998 को पटना विश्वविद्यालय की तरफ से एक ऑफिसियल इंटरव्यू के बाद उन्हें डायरेक्ट B.Sc की परीक्षा देने की इजाजत मिल गई. लेकिन तथागत इस दौरान बीएससी के तीनों साल की परीक्षा एक साथ देना चाहते थे. जिसके लिए उन्हें उच्च न्यायालय के शरण में जाना पड़ा. जहां पर कोर्ट ने सारे नियम को तोड़ते हुए परीक्षा देने की अनुमति दे दी और इस तरह से कोई 10 साल का छात्र ग्रेजुएशन पास गया. इसके बाद साल 1999 में उन्होंने एमएससी में एडमिशन लिया. इस बार फिर परीक्षा देने का लफड़ा सामने आ गया. तब बिहार के राज्यपाल श्री बीएम लाल ने परीक्षा देने की अनुमति प्रदान कर दी. जिसके बाद बिहार के इतिहास में पहली बार कोई लड़का 11 साल की उम्र में पीजी की परीक्षा दे रहा था. वह सिर्फ परीक्षा ही नहीं दे रहा था वह परीक्षा पास भी हो गया. इसका मतलब हुआ कि 11 साल की उम्र में तथागत को पीजी की डिग्री मिल गई थी. इस उम्र में नॉमल छात्र मैट्रिक पास भी नहीं करता है, ऐसे में तथागत का इस तरह से आगे बढ़ना हर किसी को हैरान कर रहा था.
एमएससी की परीक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए या फिर रिसर्च करने के लिए आज भी यह नियम है कि नेट यानी की नेशनल एलिजविलिटी टेस्ट पास करना होता है. या फिर आप जूनियर रिसर्च फेलोशिप पास करते हैं तो आप इस दौरान फेलॉशिप भी पाते हैं. और लेक्चररशीप के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 19 साल की है लेकिन उस समय तक इनकी उम्र सीमा बस 12 साल की थी. ऐसे में उन्हें इस परीक्षा में बैठने में भी परेशानी हुई. हालांकि बाद के समय में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से परीक्षा में बैठने की इजाजत इन्हें मिल गई. हालांकि इस दौरान उन्हें नेशनल फिजिकल लॉबोरेटरिज यानी की एनपीएल के इंटरव्यू कमेटी की तरफ से सहमती की जरूरत थी. जिसके चलते उन्होंने साल 2000 के दिसंबर में उन्होंने नेट की परीक्षा दी. जिसका परिणाम आया साल 2001 में इस तरह से 12 साल की उम्र में नेट की परीक्षा पास करने वाला यह पहला छात्र बन गये और पूरे देश मे छा गए थे. इसके बाद उन्होंने बेंगलुरू से पीएचडी में एडमिशन लिया और इतने कम उम्र में पीएचडी पाने वाले कम उम्र के छात्र बन गए थे.
पीएचडी समाप्त होने के तुरंत बाद यानि की साल 2010 में उन्होंने IIT मुंबई में प्रोफेसर के तौर पर नियुक्ति हुई. लेकिन मुंबई में वातावरण सही नहीं होने के कारण वहां उनका रहना उतना आसान नहीं रह गया था लेकिन उन्होंने वहां पर कुछ दिनों के लिए काम किया. लेकिन बिमार होने के कारण उन्होंने उन्होने चार साल तक लगातार छुट्टी में रहे. और फिर पांचवे साल इन्होंने एक बार फिर से छुट्टी के लिए अर्जी लगाई लेकिन इस बार उनकी छुट्टी नामंजूर हो गई. तब उन्होंने कहा कि उनका तबादला मुंबई से दिल्ली कर दिया जाए. जहां वे पढ़ा भी सकेंगे और रिसर्च भी कर सकते हैं. लेकिन प्रशासनिक तौरपर इस तरह के बदलाव न होने की बात कही गई. जिसके बाद उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. हालांकि इस दौरान उन्होंने दूसरे IIT में पढ़ाने के लिए आवेदन किया था लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
जब उन्हें मुबंई IIT से बाहर निकाला गया तो उस समय उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि IIT में काम करते हुए उनकी नींद अनियमित हो गई थी. ये समस्या साल 2013 से बहुत तेजी से बढ़ गया था. जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी. जिसके बाद उन्होंने कहा कि जनवरी 2014 में उन्होंने एक्स्ट्रा आर्डिनरी लीव लेने के लिए आवेदन दिया जिसे संस्थान ने दिसंबर 2017 तक दिया था. इस दौरान मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि बंबई में उमस भरा मौसम है. जिसके आधार पर उन्होंने IIT दिल्ली में ट्रांसफर के लिए अर्जी बी दी थी. जिसे IIT नियम के तहत ठुकरा दिया गया था. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि साल 2015 में जब वे छुट्टी पर थे तो उन्होंने नौकरी के लिए दिल्ली, पटना, और कानपुर में आवेदन दिया था लेकिन वे सफल नहीं हो पाए थे.
इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि मैं जानता हूं कि आईआईटी में मेरा सबसे बेहतरीन साल 2010 से लेकर 2013 तक का रहा है. क्योंकि इस दौरान मैं स्वस्थय था. उन्होंने कहा कि मेरा पीएचडी में 85 साइटेशन मिला है इसका मतलब है कि उनकी पीएचडी भी बेहतर थी. इसी पीएचडी के आधार पर उन्हें कनाडा के इंसटीट्यूट ऑफ क्वानटम में जाने का ऑफर मिला था लेकिन आईआईटी बांम्बे में काम मिल जाने के कारण कनाडा नहीं जा सका. अब उन्होंने कहा कि मेरे लिए बेहतर होता मैं कनाडा गया होता.
आईआईटी बंबई से दिल्ली ट्रांसफर नहीं होने पर उन्होंने पीएम मोदी से नौकरी बचाने की अपील भी किया था. इस दौरान उन्होंने कहा था कि जिस तरह से साल 2004 में IAS और IPS का स्वास्थ्य का हवाला देकर कैडर चेंज हो जाता है उसी तरह से IIT में बदलाव क्यों नहीं हो सकता है.
तथागत के नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड दर्ज है. इतना ही नहीं बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगा कि उन्होंने महज 33 पन्ने में अपना PHD थीसिस लिखा था.
तथागत की नौकरी समाप्त होने के बाद वे पटना में निवास कर रहे हैं. वे बताते हैं कि जिस तरह से मैं बचपन से ही पढ़ने के पिछे भागता रहा जिसके कारण मेरे नाम कई विश्व रिकॉर्ड दर्ज है लेकिन अब उम्र की जिस दहलीज पर मैं खड़ा हूं मुझे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में हम तथागत अवतार तुलसी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं.