उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले दिनों अपनी पार्टी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल की स्थापना कर दी और उस पार्टी के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए. इसके बाद मीडिया में यह खबर चलने लगी कि अब कुशवाहा क्या करेंगे. अपनी पार्टी तो उन्होंने बना ली है. लेकिन वे आगामी चुनाव में किसी पार्टी के साथ गठबंधन करेंगे या फिर वे अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे. कुशवाहा ने अभी इसको लेकर कोई साफ संकेत तो नहीं दिए है लेकिन हां इतना जरूर कहा कि चुनाव में राजनीतिक पार्टियों को परेशान जरूर करेंगे. बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने जदयू को परेशान किया था. जिसके बाद नीतीश कुमार ने कुशवाहा की पार्टी को अपनी पार्टी में विलय करवाया ताकि बिहार कि सियासत में लवकुश की थ्योरी को और भी मजबूत किया जा सके. लेकिन बाद के समय में कुशवाहा नीतीश कुमार से मुखर हो गए और तीसरी बार अपनी अलग पार्टी बना ली.

ऐसे में अब कहा जा रहा है कि कुशवाहा के द्वारा नई पार्टी की स्थापना करने के बाद अब कहा जा रहा है कि कुशवाहा किसे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं. राजनीतिक जानकार तो ये बताते हैं कि कुशवाहा और कुर्मी का साइलेंट वोट नीतीश कुमार के साथ रहा है. लेकिन अब जब कुशवाहा पार्टी के साथ नहीं है तो नीतीश कुमार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. बता दें कि पिछले चुनाव में भी कुशवाहा नीतीश कुमार से अलग होकर चुनाव मैदाना में थे और शावाहाद के इलाके में नीतीश कुमार एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुए जिसके बाद इस इलाके के कुशवाहा नेता को पार्टी में शामिल किया गया था. जिससे की कुशवाहा समाज पर पकड़ मजबूत कि जा सके. हालांकि यह वोट के रूप में कितना बदल पाएगा यह तो आने वाले समय में ही स्पष्ट हो पा पाएगा.

राजनीतिक जानकार यह मान रहे हैं कि बिहार में 7 से 8 प्रतिशत वोट कुशवाहा और कुर्मी समाज का है. इन वोटों का प्रभाव 12 से 13 जिलों में हैं. नीतीश कुमार यही चाह रहे थे कि उपेंद्र कुशवाहा इन वोटरों पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाते ताकि आने वाले चुनाव में कुशवाहा का वोट जदयू के पास होता लेकिन ऐसा नहीं हो सका और कुशवाहा ने उचित सम्मान नहीं मिलने का हवाला देते हुए अपने आप को जदयू से अलग कर लिया और एक नई पार्टी बनाते हुए अब अपने समाज के लिए काम करने की बात कह दी. राजनीतिक जानकार तो यह भी बताते हैं कि कुशवाहा को बिहार में एक राजनीतिक साथी की जरूरत है जिसके साथ चलकर वे एक ऊंचाई तक पहुंच सके इसीलिए तो उन्होंने बिहार की कई राजनीतिक पार्टियों के साथ हाथ मिलाया है. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि इन दिनों वे एक बड़े जनाधार की तलाश में हैं ताकि वे बीजेपी को दिखा सके कि हमारे पास इतना बड़ा जनाधार है. इसके बाद बीजेपी से गठबंधन हो सकता है.

लेकिन कई राजनीतिक जानकार यह भी बता रहे हैं कि बिहार महागठबंधन में जिस तरह का जातीय समीकरण बना हुआ है. उससे नीतीश कुमार को बहुत घटा नहीं होगा. यह भी कहा जा रहा है कि लव कुश में से अगर कुश निकल भी जाता है तो महागठबंधन में ऐसे जातीय समीकरण हैं कि महागठबंधन को यहां नुकसान होता दिखाई नहीं दे रहा है. लेकिन बीजेपी यह चाह रही है कि लोकसभा चुनाव में उनकी संख्या 17 से ऊपर बढ़े यानी कि वे 25 के आपसपास अपने आंकड़ें को देख रहे हैं. यहीं कारण हैं कि आरसीपी सिंह, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन पर मुखर होकर बोल रहे हैं. इन दिनों बीजेपी भी यही चाह रही है कि NDA के साथ जितनी पार्टियां जुड़ेंगी यह लोकसभा चुनाव के लिए उतना ही लाभकर होगा. क्योंकि पिछले दिनों NDA से कई पार्टियां अलग हुई है और बीजेपी के खिलाफ मुखर होकर बोल रही है. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि कुशवाहा अगर बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव मैदान में आते हैं तो कुशवाहा और बीजेपी दोनों को फायदा मिल सकता है. लेकिन कुशवाहा अगर अकेले चुनाव मैदान में आते हैं तो बीजेपी को यहां नुकसान हो सकता है. हालांकि बीजेपी इन दिनों वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं.

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