वेंकटेश प्रसाद : एक ऐसा टैलेंट जिसे हमेशा नजरंदाज किया गया

कपिल देव की तरह बनना चाहता था ऑल राउंडर लेकिन सिस्टम ने कर दिया धराशाई

एक बास्केटबॉल खिलाड़ी कैसे बना टीम इंडिया का होनहार तेज गेंदबाज

पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट में बिना रन दिए 6 विकेट चटकाने का करनामा जिसने किया था

जब एयरपोर्ट पर छूट गया किट तो जवागल श्रीनाथ ने दिए थे अपने जूते

क्रिकेट एक ऐसा खेल जिसकी अपनी एक खूबी है जिसके लिए वो जाना जाता है और वो खूबी है अनिश्चिता.. यह सच है कि क्रिकेट संभावनाओं का भी खेल है। क्रिकेट की एक एक गेंद की भविष्यवाणी तो क्रिकेट पंडित भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन यही क्रिकेट पंडित किसी खिलाड़ी के खेल को बारीकी से परखकर बता सकते हैं कि इस खिलाड़ी में कितना हुनर और कितनी प्रतिभा है। एक बल्लेबाज की बैटिंग को देखकर या फिर एक गेंदबाज की गेंदबाजी को देखकर क्रिकेट पंडित और दिग्गज उनके भविष्य की कल्पना काफी हद तक कर सकते है। हम ऐसी बाते इसलिए कर रहे है क्योंकि 21वीं सदी में एक ऐसा भारतीय तेज गेंदबाज था जिसकी काबिलियत पर शक तो अच्छे अच्छे क्रिकेट पंडित भी नही कर पाए। क्योंकि यह गेंदबाज अपने हुनर, अपनी प्रतिभा और अपने टैलेंट से भरा पड़ा था। जिसने टीम के लिए लगातार अच्छा प्रदर्शन किया । और कम समय में बड़े बड़े कीर्तिमान हासिल किए। फिर भी उसके टैलेंट को नजरंदाज किया गया। यही वजह है कि एक सफल खिलाड़ी होने के नाते भी वो इंडियन टीम।के लिए महज 6 साल ही खेल पाया। लेकिन आज जब भी टीम इंडिया के बेस्ट तेज गेंदबाजों की बात होती है तो उसका नाम जरूर शामिल किया जाता है । वो खिलाड़ी कोई और नहीं वेंकटेश प्रसाद है

आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे पूर्व भारतीय तेज गेंदबाज की जिसकी घातक और करिश्माई गेंदबाजी को देखकर सभी दिग्गजों ने यही कहा था कि ये खिलाड़ी लंबी रेस का घोड़ा है। मगर टीम के सेलेक्टर से लेकर कोच और कप्तान ने उसके चमकते करियर पर ग्रहण लगा दिया। उसे इस तरह नजरंदाज किया गया जैसे राह चलते किसी अजनबी को। आज हम अपनी नई वीडियो में बात करने वाले है वेंकटेश प्रसाद की, जिसके टैलेंट को दबा दिया गया।

वेंकटेश प्रसाद का जन्म 5 अगस्त साल1969 को कर्नाटक के बैंगलोर शहर में हुआ था। इनका पूरा नाम बापू कृष्णराव वेंकटेश प्रसाद है। 6 फुट 3 इंच का ये ऊंचा लम्बा तेज गेंदबाज अपनी धारदार गेंदबाजी के लिए विख्यात था। वेंकटेश प्रसाद को बचपन से ही क्रिकेट के साथ अन्य खेलों भी दिलचस्पी थी। लेकिन क्रिकेट में कुछ ज्यादा हीलेकिन इनके पिता रामा राव चाहते थे कि वेंकटेश बॉस्केटबॉल खिलाड़ी बने। क्योंकि क्रिकेट उस दौर में क्रिकेट में कंपटीशन बहुत था। वेंकटेश ऊंचे लंबे कद के छरहरे थे इसलिए पिता उनको बोलते तुम्हारा भविष्य बॉस्केटबॉल में अच्छा रहेगा। लेकिन वेंकटेश को बचपन से ही तेज गेंदबाजी करना पसंद था। बेटे की जिद के आगे पिता को हार माननी पड़ी और फिर पिता ने बेटे से कहा तुम अपना पूरा फोकस क्रिकेट पर लगाओ। पिता का समर्थन वेंकटेश को हर कदम पर मिला। वेंकटेश ने अपनी स्कूली शिक्षा आईटीआई विद्या मंदिर से पूरी की। वेंकेट्श क्रिकेट के साथ पढ़ाई में भी रुचि रखते थे। यह बात इस तरह दर्शाती है कि वेंकटेश ने अपने कॉलेज की पढ़ाई एमएस रमैया प्रौद्योगिकी संस्थान कर्नाटक से पूरी की। साथ ही उन्होंने msrit से इंजीनियरिंग में स्नातक भी किया है। वेंकटेश जैसे जैसे बड़े हो रहे थे वो एक शानदार तेज गेंदबाज के रूप में खुद तैयार कर रहे थे। क्लब क्रिकेट में अपनी धारदार गेंदबाजी का मुजायरा कराने वाले वेंकटेश प्रसाद को साल 1993 में अपना फर्स्ट क्लास मैच खेलने का मौका मिला। इस सीजन में वेंकटेश ने 13 फर्स्ट क्लास मैच खेले। जिसमें उन्होंने 50 विकेट अपने नाम किए। इसके बाद वेंकटेश ने लिस्ट ए मैच खेले जहां उन्होंने 7 मैचों मे 9 विकेट हासिल किए। वेंकटेश की प्रतिभा देखकर उस दिन सब देखकर चकित रह गए। जब देवघर ट्रॉफी में साउथ जोन की तरफ से खेलते हुए उनकी टीम ने सिर्फ 87 रन बनाए। इतने कम स्कोर को डिफेंड करने के लिए गेंदबाजों के पास बहुत दबाव था। नॉर्थ जोन की पारी शुरू हुई तो वेंकटेश कहर बनकर टूटे। उन्होंने 18 रन देकर 6 विकेट चटकाए और पूरी टीम को 68 रन पर समेट दिया।

इतना शानदार प्रदर्शन करने के बाद वेंकटेश नेशनल टीम के चयनकर्ताओं के रडार पर आ चुके थे। 26 साल की उम्र में वेंकटेश प्रसाद को टीम इंडिया से खेलने का बुलावा आया। 2 अप्रैल 1994 को वेंकटेश को न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू करने का मौका मिला। लेकिन ये सीरीज वेंकटेश के एक रोचक किस्से की वजह से और यादगार बन गई थी। दरअसल हुआ कुछ यूं कि भारतीय टीम पहले से ही न्यूजीलैंड की धरती पर टेस्ट सीरीज खेल रही थी। इसके बाद वनडे क्रिकेट होने वाली थी । जिसके लिए वेंकटेश को टीम में चुना गया और वे न्यूजीलैंड चले गए। उनकी फ्लाइट ऑकलैंड में उतरी। और वो अपना सामान उतारना भूल गए। सूटकेस उनके पास था लेकिन किट बैग नही था। जब तक वो वापस एयरपोर्ट जाते फ्लाइट वहां से लॉस एंजिल्स जा चुकी थी। इसके बाद मैच के दौरान जवागल श्रीनाथ ने उन्हें अपने जूते दिए तब वेंकटेश ने मैच खेला। लेकिन उनका पदार्पण निराशाजनक रहा। पहले तीन वनडे में एक भी विकेट नहीं मिला। वेंकटेश को अगली सीरीज में ड्रॉप कर दिया गया। दो सालों तक वेंकटेश का करियर हिचकोले खा रहा था। लेकिन जवागल श्रीनाथ के साथ उनकी जुगलबंदी अच्छी थी। साल 1996 वो वक्त आया जब भारत विश्व कप की मेजबानी कर रहा था इसी विश्व कप में वेंकटेश भी खेल रहे थे। भारत और पाकिस्तान का मैच बैंगलोर में होना था ये वेंकटेश का होम ग्राउंड था। यहां वेंकटेश पर दबाव भी था साथ ही हीरो बनने का मौका भी। पाकिस्तान की टीम दिगज्जो से सजी थी। वेंकटेश पारी का 15 वा ओवर लेकर आए और कप्तान अमीर सोहेल ने चौका जड़ दिया। क्रीज पर सोहेल ने प्रसाद को इशारा किया कि तुम्हारी जगह बाउंड्री पर है अगली ही गेंद पर वेंकटेश ने बोल्ड कर दिया। इस मैच में प्रसाद ने 3 विकेट लिए और भारत मैच जीत गया। दूसरे दिन अखबार की सुर्खिया बल्लेबाजों की तारीफों से पटी थी उनके शानदार प्रदर्शन को नजरंदाज किया गया। इसके बाद 7 जून 1996 को उन्हे टेस्ट टीम में जगह दी गई। वेंकटेश को इंग्लैंड के खिलाफ डेब्यू करने का मौका मिला। लेकिन खास प्रदर्शन नही कर पाए। लेकिन अपने दूसरे टेस्ट में उन्होंने 76 रन देकर 5 विकेट हासिल किए। इसी सीरीज में गांगुली और राहुल द्रविड़ ने भी डेब्यू किया था। इस सीरीज में इन दोनो बल्लेबाजों का बल्ला खूब गरजा जिसके आगे वेंकटेश का प्रदर्शन छिप गया।

लेकिन साल 1999 में चेन्नई टेस्ट में वेंकटेश ने ऐसा प्रदर्शन किया जिसके बाद लगा वेंकटेश को क्रेडिट मिलेगा। दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच चेन्नई में टेस्ट खेला जा रहा था। आपको बता दें की राजनीतिक कारणों की वजह से पाकिस्तान दस सालों बाद भारत दौरे पर आई थी। पाकिस्तान टीम में सलीम मलिक, यूसुफ युहाना, इंजमाम उल हक , मोइन खान, वाकर युनुस, वसीम अकरम जैसे धुरंधरों से टीम सजी थी। इस टेस्ट की दूसरी पारी में वेंकटेश प्रसाद ने 6 विकेट हासिल किए वो भी बिना एक रन दिए। लेकिन इसी टेस्ट में सचिन तेंदुलकर ने शतकीय पारी खेली थी जिसके आगे वेंकटेश का प्रदर्शन फिर छिपकर रह गया। इतना ही नहीं इससे पहले साल 1996 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ वेंकटेश ने 6 विकेट लिए थे। उसे कोई सुर्खिया नहीं मिली। साल 1999 विश्व कप में भारत और पाकिस्तान के बीच मैनचेस्टर वनडे में वेंकटेश की धारदार गेंदबाजी के आगे पाकिस्तानी बल्लेबाज नतमस्तक हो गए थे इस मैच में उन्होंने 5 विकेट चटकाए।थे। प्रसाद की बड़ी ताकत यह थी की वह दोनो तरह से स्विंग करा सके थे। इसके बाद 2002 में श्री एक खिलाफ कैंडी टेस्ट में प्रसाद ने 5 विकेट लिए लेकिन उनकी काबिलियत फिर छिप गई। इस तरह वेंकटेश ने ना जाने कितने अच्छे प्रदर्शन किए लेकिन उन्हें नजरंदाज कर दिया गया।

वेंकटेश प्रसाद ने अपने क्रिकेट करियर में 33 टेस्ट, 161 वनडे मैच खेले है जिसमें उन्होंने करीब 300 विकेट चटकाए है। जिसमें 7 बार पांच विकेट और एक बार दस विकेट लेने का करनामा भी किया है। वेंकटेश इस बीच चोट से जूझते दिखे जिसके बाद साल 2005 को उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कह दिया। 2006 में उन्हे भारत की अंडर 19 टीम का कोच बनाया गया। जहां टीम उपविजेता थी। इसके बाद उन्हें 2007 में टीम इंडिया का गेंदबाजी कोच बनाया गया। फिर 2008 में आईपीएल की बैंगलोर ने उन्हें कोच नियुक्त किया।

दोस्तों क्या वेंकटेश एक साथ टीम और बोर्ड ने नाइंसाफी की है ? आप इसे कैसे देखते हैं 

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