इंटरनेशनल क्रिकेट में बनाए सिर्फ 328 रन, आज हैं भारतीय क्रिकेट टीम के बैटिंग कोच
एलन डोनल्ड ने खत्म कर दिया करियर वरना कहलाते महान क्रिकेटर
पंजाब की जितवाया रणजी ट्रॉफी, फर्स्ट क्लास में लगाया रनों का अंबार
कैसे सिर्फ 6 टेस्ट और 7 वनडे खेलने वाला खिलाड़ी बना टीम इंडिया का बैटिंग कोच ?
दोस्तों, खुश रहने का और महान बनने का एक ही सूत्र है वर्तमान में जीना. जो अपने अतीत और भविष्य के बारे में नहीं सोचते सही मायने में जिंदगी वही जीते हैं. इसके अलावा दूसरा और कोई उपाय ही नहीं है, ना कभी हुआ है और ना होगा. आज जिस खिलाड़ी की बात करेंगे, उसने कभी अपने अतीत और भविष्य की परवाह नहीं की और हमेशा वर्तमान में जीया. खिलाड़ी ने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि वो कहां खेल रहे हैं, किस लेवल पर खेल रहे हैं क्योंकि वो तो बस खेलना चाहते थे और खेलना जानते थे. इंटरनेशनल लेवल पर उन्हें गिने चुने मौके ही मिले जबकि घरेलु क्रिकेट में उन्होंने रनों का अंबार लगा दिया था. ये और बात है कि घरेलु क्रिकेट वाली चमक वो इंटरनेशनल लेवल पर नहीं बिखेर पाए लेकिन मौके भी उन्हें बेहद कम मिले. अब ये उनकी खराब प्रदर्शन के कारण था या फिर खराब किस्मत या फिर कुछ और ये तो कोई नहीं जानता मगर आज वह भारत जैसी टीम का बल्लेबाजी कोच है, वो भी पहली बार नहीं बल्कि दूसरी बार बने हैं. आज के अंक में बात होगी टीम इंडिया के बैटिंग कोच विक्रम राठौर के बारे में. इस लेख में हम विक्रम राठौर के जीवन से जुड़ी कुछ जानी–अनजानी और अनकही बातों को जानने की कोशिश करेंगे.
विक्रम राठौर का जन्म 26 मार्च, 1969 को पंजाब के जलंधर में एक राजपूत परिवार में हुआ था. बचपन से ही एक क्रिकेटर का सपना लिए विक्रम ने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई–लिखाई जलंधर के ही दयानंद मॉडल स्कूल से पूरी की. विक्रम ने काफी कम उम्र से ही खेलना शुरू कर दिया था और घरेलु क्रिकेट में पंजाब की तरफ से जबरदस्त खेल दिखाने वाले विक्रम राठौर ने 15 अप्रैल, 1996 को शारजाह में पाकिस्तान के खिलाफ विक्रम ने अपना वनडे अंतराष्ट्रीय डेब्यू किया था जबकि 6 जून, 1996 को इंग्लैंड के विरुद्ध अपना टेस्ट इंटरनेशनल डेब्यू किया था. विक्रम को भारत के लिए सिर्फ 6 टेस्ट और 7 वनडे खेलने का ही मौका मिला. इन 6 टेस्ट मैचों की 10 पारियों में उन्होंने 34.20 की औसत से 131 रन बनाए जबकि 7 वनडे मैचों में उन्होंने 27 की औसत से 193 रन बनाए थे. इंटरनेशनल आंकड़े उनकी काबिलियत का सही आकलन नहीं कर पाते, ये सही बात है कि इंटरनेशनल लेवल पर वो फ्लॉप हुए लेकिन उन्हें कुछ ही असफलताओं के बाद टीम से ड्रॉप कर दिया गया था और वापस कभी इंटरनेशनल लेवल के लिए योग्य नहीं माना गया.
विक्रम के लिए खेलना सबसे अधिक महत्वपूर्ण था, तभी तो उन्होंने ये परवाह नहीं की, कि वो किस लेवल पर खेल रहे हैं. इंटरनेशनल लेवल के उलट उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में रनों का अंबार लगा दिया. विक्रम राठौर ने 146 फर्स्ट क्लास मैचों में 11,473 रन बनाए, जिसमें उनके बल्ले से 33 शतक आए. राठौर इसमें और अधिक जोड़ते लेकिन भारत से खेलते हुए उनका कंधा जख्मी हो गया था और इसने उनके प्रदर्शन को प्रभावित किया था.
राठौर उस पंजाब क्रिकेट टीम का हिस्सा थे, जिसने 1992 में रणजी ट्रॉफी जीती थी. साल 2003 में विक्रम ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद इंग्लैंड में बसने का फैसला लिया. लेकिन बाद में उनको पंजाब क्रिकेट टीम की कोचिंग के लिए बुलाया गया, वो आए और सिर्फ पंजाब की ही नहीं बल्कि हिमाचल क्रिकेट टीम और ओडिशा के वाइजैक विक्टर्स के कोच भी रहे.
2011 में वह आईपीएल टीम किंग्स 11 पंजाब(जो अब पंजाब किंग्स है) के लिए सहायक कोच बने थे. इसके अलावा 2016 तक वह संदीप पाटिल के नेतृत्व वाली भारत की वरिष्ठ चयन समिति के सदस्य भी रहे थे. 2017 से 2019 तक विक्रम हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के निदेशक रहे थे.
वर्तमान में विक्रम राठौर भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की बल्लेबाजी कोच के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. 2019 के अगस्त में उनको कई उम्मीदवारों में से इस पद के लिए चुना गया था. विक्रम ने संजय बांगर की जगह ली थी. भारतीय राष्ट्रीय टीम के बल्लेबाजी कोच बनने से पहले राठौर ने राष्ट्रीय क्रिकेट संघ(NCA) में बल्लेबाजी सलाहकार के पद के लिए भी आवेदन किया था. राठौर ने भारत की राष्ट्रीय अंडर-19 क्रिकेट टीम के कोच बनने के लिए भी आवेदन किया था लेकिन उनका चयन स्थगित कर दिया गया था. विक्रम बल्लेबाजी के अलावा एक विकेटकीपर भी थे.
विक्रम राठौर ने कभी भी उन छह टेस्ट मैचों में उपस्थिति का आश्वासन नहीं दिया, जहां उन्होंने बल्लेबाजी की शुरुआत की थी. यह वास्तव में अफ़सोस की बात थी क्योंकि वह अपने करियर की शुरुआत में एक अच्छी संभावना के रूप में दिखाई दिए. बिना साहस के साहसी, और गेंद के एक धाराप्रवाह चालक, दाढ़ी वाले राठौर नब्बे के दशक की शुरुआत में पंजाब की बल्लेबाजी का आधार थे.
1996 में इंग्लैंड दौरे पर जाने के लिए विक्रम राठौर कुछ चुनिंदा खिलाड़ियों में से एक थे और उनका चुना जाना लाजमी भी था क्योंकि उससे पहले टूर मैचों में उन्होंने खूब रन बनाए थे, 58.38 की एवरेज से 759 रन, जिसमें Worcestershire के खिलाफ बिना मेहनत के 165 रनों की पारी और ओल्ड ट्रेफर्ड में खेले गए तीसरे वनडे में शानदार अर्धशतक शामिल था. लेकिन टेस्ट मैचों में वो फ्लॉप हो गए, 4 पारियों में उनका उच्चतम स्कोर 20 रन था. दूर से स्विंग होने वाली गेंद हमेशा स्लिप की ओर जाती है जिससे उनकी तकनीक की सीमाएं उजागर होती रही.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एकमात्र टेस्ट में भाग्य में थोड़े बदलाव के साथ एक और मौका मिला, लेकिन राठौड़ ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ घरेलू श्रृंखला के लिए खुद को बाहर पाया. यहां क्लिक करने पर किसी भी शुरुआती संयोजन का परीक्षण नहीं होने के कारण, राठौर ने वापसी श्रृंखला के लिए खुद को दक्षिण अफ्रीका के लिए उड़ान भरते हुए पाया. अंग्रेजी दौरे पर एक ही पैटर्न को फिर से लागू किया गया क्योंकि राठौर ने दो प्रांतीय खेलों में तीन अर्द्धशतक और एक शतक बनाया, लेकिन वह दो टेस्ट मैचों में एलन डोनाल्ड के खिलाफ असफल रहे – हालांकि वांडरर्स में एक उपयोगी 44 ने भारत को मदद की श्रृंखला का उनका सर्वोच्च ओपनिंग स्टैंड (90) दिया. वहां उनका अंतरराष्ट्रीय करियर समाप्त हो गया और घरेलू क्षेत्र में अपनी इच्छानुसार स्कोर करना जारी रखने के बावजूद, उन्हें फिर कभी भारतीय टीम के लिए नहीं माना गया.
1996 में इंग्लिश सरजमीं पर भारतीय टीम के लिए डेब्यू करने वाले विक्रम राठौर का घरेलु क्रिकेट में रिकॉर्ड बेहद शानदार है. पंजाब के इस बल्लेबाज ने अपने खेल के बलबूते टीम इंडिया में जगह भी बनाई लेकिन उसे कभी इंटरनेशनल लेवल पर दिखा नहीं पाए.
वर्ल्ड क्लास बॉलिंग के सामने राठौर अक्सर जूझते नजर आते थे, कमजोर फुटवर्क हमेशा उनकी बल्लेबाजी पर काला धब्बा लगाते दिखता. विक्रम स्थिति के अनुसार अपनी बल्लेबाजी को समायोजित करने में सक्षम नहीं थे जो हर वर्ल्ड क्लास बल्लेबाज में हम उम्मीद करते हैं, शायद इसी वजह से विक्रम इंटरनेशनल लेवल पर सफलता के झंडे नहीं गाड़ पाए, हालांकि ये और बात ये है कि उन्हें उतने मौके भी नहीं मिले थे. विक्रम राठौर को शायद इसका एहसास हो गया था कि वह उस प्रतिष्ठा को जी सकते हैं, जो घरेलु क्रिकेट में उनके प्रदर्शन के कारण मिली थी. अंततः अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पकड़ नहीं बना पाने के कारण उन्हें निराशा में अपने करियर को समाप्त करना पड़ा.
विक्रम की काबिलियत का और क्या प्रमाण होगा जब पूर्व भारतीय कप्तान राहुल द्रविड़ ने इंडिया–ए के बैटिंग कोच के लिए उनके नाम का सुझाव दिया था.
आज राहुल द्रविड़ टीम इंडिया के हेड कोच हैं और विक्रम राठौर बल्लेबाजी कोच. बल्लेबाजी कोच के लिए विक्रम राठौर का सीधा मुकाबला अजिंक्य रहाणे के निजी बल्लेबाजी कोच प्रवीण आमरे से था. हालांकि मौजूदा बल्लेबाजी कोच संजय बांगड़ भी दोनों को कड़ी टक्कर दे रहे थे. पहले ऐसा माना जा रहा था कि पूर्व भारतीय बल्लेबाज प्रवीण आमरे इस पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं. आमरे पहले भी दिल्ली कैपिटल्स की टीम से जुड़े रहे हैं और रहाणे के अलावा वो सुरेश रैना और रोबिन उथप्पा जैसे बल्लेबाजों के साथ भी काम कर चुके हैं. संजय बांगड़ की बात करें तो सूत्रों का कहना था कि यह बात सभी को पता थी कि कोच बांगड़ के रहते टीम इंडिया के कुछ सदस्य अपनी बल्लेबाजी में सुधार के लिए पूर्व भारतीय बल्लेबाजों से संपर्क किया था. यह बात बांगड़ के खिलाफ गई. विक्रम राठौर अगस्त, 2019 में पहली बार भारत के बल्लेबाजी कोच बने थे, बेहतरीन काम करने के बाद वापस उनको फिर से नवंबर, 2021 में उनको बल्लेबाजी कोच नियुक्त किया गया.
आपको क्या लगता है क्या विक्रम राठौर की कोचिंग में भारतीय टीम आगामी वर्ल्ड कप में शानदार प्रदर्शन कर पाएगी या नहीं ? कमेंट में जरुर बताएं.