skip to content

टीम इंडिया का वो काबिल खिलाड़ी जिसने खुद का करियर तबाह किया

Bihari News

क्रिकेट के लिहाज से 90 के दशक का भारतीय क्रिकेट कई मायनों में खास रहा है। इस दशक में भारतीय क्रिकेट ने बदलाव की बयार देखी। अजय जडेजा, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़  और सौरव गांगुली  जैसे दिग्गज खिलाड़ियों से सजी इंडियन क्रिकेट ने टीम की जीत और हार के आलावा क्रिकेट का एक काला चेहरा ऐसा भी देखा है। जिसे इंडियन क्रिकेट दागदार हुआ और ऐसा दागदार  की उसकी छीटें आज भी 90 के दशक की इंडियन  क्रिकेट काले पर्दे से भी नहीं ढकी जा सकती। लेकिन इसी दौर में एक ऐसा खिलाड़ी भी नजर आया जिसके अंदर अकूत प्रतिभा तो भरी थी लेकिन वो अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नही कर सका। और  उसका करियर एक झटके में अर्श से फर्श पर आ गया। उस खिलाड़ी की  अपनी एक गलती की वजह से उसका करियर महज कुछ मैचों के अंदर ही सिमट कर रह गया।

नमस्कार दोस्तों आप देख रहे हैं चक दे क्रिकेट की खास पेशकश, हैं और आज हम बात करने वाले है इंडियन क्रिकेट के ऐसे होनहार खिलाड़ी कि जिसके टैलेंट को देखकर  सचिन तेंदुलकर के कोच रहे रमाकांत आचरेकर ने भी खूब सराहा था। और उसे सचिन से भी बड़ा खिलाड़ी तक बता दिया था। वो कोई और नहीं विनोद कांबली है। जिसने 1996 के सेमीफाइनल मैच को फिक्स कह डाला था। और मैदान में रोते हुए उस खिलाड़ी की तस्वीर ने विश्व क्रिकेट में भूचाल सा ला दिया था। आज हम इसी होनहार खिलाड़ी विनोद कांबली की बात करने जा रहे है। साथ ही  विनोद कांबली के जीवन के अनसुने पहलुओं के बारे जानने की भी कोशिश करेंगे।

विनोद कांबली का जन्म 18 जनवरी 1972 को मुंबई में हुआ था। मुंबई में क्रिकेट उस दौर में एक अलग ही रूप में नजर आ रहा था। और इसी मुंबई से एक से बढ़कर एक होनहार और प्रतिभावान खिलाड़ी निकल रहे थे। सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसकर , चंदू बोर्ड, चेतन चौहान  और संजय मांजरेकर जैसे दिग्गज खिलाड़ी मुंबई से ही निकलकर टीम इंडिया के लिए खेले। 90 के दशक में एक ऐसा ही होनहार और काबिल क्रिकेटर मुंबई की गलियों से निकल रहा था  विनोद कांबली उन्ही में से एक थे। जो आगे चलकर भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बने। आपको बता दें कि विनोद कांबली और सचिन तेंदुलकर मुंबई के एक ही स्कूल में पढ़ते थे। और दोनो अच्छे दोस्त भी थे। दोनों ही क्रिकेट में आपका करियर बनाना चाहते थे। इसलिए दोनो कोच रमाकांत आचरेकर के पास जाकर क्रिकेट के गुण सीखने लगे। सचिन और विनोद सुर्खियों में तब आए जब  साल 1986 में दोनो के बीच एक स्कूली क्रिकेट के दौरान खेली गई हैरिस शील्ड ट्रॉफी में दोनो के बीच 664 रनों की नाबाद साझेदारी ने ना सिर्फ इतिहास रचा बल्कि इस पारी के बाद दोनों सुर्खियों में आ गए। 664 रनों की ये साझेदारी आज भी क्रिकेट प्रेमी के जहन में है। क्योंकि कांबली ने उस मैच में नाबाद  349 रन और सचिन ने नाबाद 326 रन बनाए थे। लेकिन इसी मैच की एक खास बात यह थी जिसे बहुत कम लोग जानते होंगे। कांबली ने इस मैच में शानदार  गेंदबाजी कर महज 37 रन देकर 6 विकेट झटके थे। और शायद यही वजह थी कि दोनो के गुरु रमाकांत आचरेकर सचिन तेंदुलकर से ज्यादा टैलेंटेड विनोद कांबली को मानते थे। जहां आज के दौर में दुनिया सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान कहती है तो वहीं विनोद कांबली की गिनती एक असफल खिलाड़ी के रूप में होती है। खैर इस कीर्तिमान के बाद सचिन तेंदुलकर को दो सालों बाद 1989  इंडियन टीम में जगह मिल गई। जहां उन्हे पाकिस्तान दौरे पर जाने वाली टेस्ट में रखा गया।  और विनोद कांबली को थोड़ा इंतजार करना पड़ा। वो कहते है ना कि किसी की प्रतिभा लंबे समय तक छिपी नही रह सकती । और घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन कर रहे कांबली को अपने लगातार प्रदर्शन का इनाम मिल गया।  और18 अक्टूबर 1991 को विल्स ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ विनोद कांबली को टीम इंडिया की कैप पहनने का गौरव हासिल हुआ। हालांकि इस मैच में कांबली को बल्लेबाजी का मौका नही मिल पाया। लेकिन इसी टूर्नामेंट के अगले मैच में वेस्ट इंडीज के खिलाफ़ कांबली ने 29 गेंदों पर नाबाद 30 रन बनाकर एक छोटी सी पारी में अपनी प्रतिभा के सबूत दे दिए। इसके बाद कांबली टीम इंडिया के नियमित सदस्य बन गए। इसके बाद विनोद कांबली को 29 जनवरी 1993 को इंग्लैंड के खिलाफ कोलकाता में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण करने का मौका मिला। प्रतिभा से लबरेज विनोद कांबली ने इसी सीरीज के तीसरे टेस्ट में मुंबई में कांबली ने 224 रनों की दोहरी शतकीय पारी खेलकर इतिहास रच दिया। आपको बता दें कि कांबली ने 21 साल 32 दिन की उम्र में दोहरा शतक जड़ा था। तब भारत की तरफ से सबसे काम उम्र में दोहरा शतक बनाने वाले बल्लेबाज बने थे।  इससे पहले 7 टेस्ट मैच में उनके नाम चार शतक थे। इतना ही नहीं कांबली टेस्ट में सबसे तेज 1000 रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज भी बने थे।  कांबली ने टेस्ट क्रिकेट की 14 पारियों में 1000 रन बनाए थे। इसके बाद कांबली पर बोर्ड और चयनकर्ताओं का भरोसा बढ़ता जा रहा था। यही वजह थी कि कांबली को टीम में नियमित कर दिया गया था। साल 1993 में जिम्बाब्वे के खिलाफ इकलौते टेस्ट में विनोद कांबली का तूफान फिर दुनिया ने देखा। उन्होंने इस टेस्ट में 227 रनों की शानदार पारी खेलकर सनसनी फैला दी। कांबली का ये दूसरा दोहरा शतक था। इसी साल विनोद कांबली ने श्री के खिलाफ दो टेस्ट मैचों में लगातार दो शतक भी ठोक डाले।  और भारत को यह टेस्ट सीरीज जिताने में अहम योगदान दिया। कांबली जिस समय रनों का अंबार लगा रहे थे तो वहीं उनके साथ सचिन तेंदुलकर को रन बनाने के लिए थोड़ा संघर्ष करना पड़ रहा था। तो वहीं  कांबली सबसे इतर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। फिर साल 1996 का विश्व कप आया। जिसकी मेजबानी पाकिस्तान ,श्री लंका के साथ भारत भी कर रहा था। इस पूरे विश्व कप में भारतीय टीम कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन की अगुआई में शानदार प्रदर्शन कर रही थी। और विश्व कप जीतने की प्रबल दावेदार भी मानी जा रही थी। लेकिन इसी विश्व कप के सेमीफाइनल में एक ऐसा वाकया हुआ जिसे इस दिन को भारतीय क्रिकेट का काला दिन कहा जाए तो शायद गलत नही होगा। दरअसल 13 मार्च 1996 को खेले गए सेमीफाइनल मैच को लेकर क्रिकेट प्रेमियों के मन में आज भी टीस उठती रहती है। टीम इंडिया का मुकाबला था श्री लंका से, जिसकी अगुवाई अर्जुन राणातुंगा कर रहे थे। पहले बल्लेबाजी करते हुए श्री लंका की टीम ने 251 रन बनाए थे। मतलब साफ था कि भारत को अगर फाइनल में पहुंचना है तो उसे किसी भी हालत में 252 रन बनाने होंगे। भारत के लिए यह कोई बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं था। क्योंकि टीम की बल्लेबाजी में गहराई थी। सचिन तेंदुलकर, नवजोत सिद्धू, संजय मांजरेकर , अजय जडेजा और मोहम्मद अजहरूद्दीन जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी मौजूद थे। दरअसल हुआ कुछ यूं कि 252 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम की शुरुआत बहुत खराब रही। नवजोत सिद्धू सिर्फ 3 रन बनाकर चलते बने। दूसरे छोर पर सचिन संजय मांजरेकर के साथ डटे रहे और सचिन उस मैच के इकलौते खिलाड़ी थे जिनके बल्ले से 65 रनों की एकमात्र अर्ध्यशतकीय पारी निकली थी। वहीं 7 बल्लेबाज ऐसे थे जिन्होंने दहाई का अंक भी नहीं छुआ था। नतीजा यह रहा कि पूरी टीम 34.1 ओवर में 120 रन पर सिमट गई। इससे पहले मैच के बीच में जब विनोद कांबली और अनिल कुंबले क्रीज पर थे तो दर्शकों को लगा भारत यह मैच हार जाएगा। तभी उन्होंने मैदान के स्टैंड में  आगजनी कर दी। सभी खिलाड़ियों को तुरंत मैदान से बाहर ले जाया गया। हैरानी तब हुई जब मैदान से बाहर जा दे कांबली की आंखों में आंसू थे। उधर मैच रेफरी ने श्री लंका को विजेता कर दिया। और भारत विश्व कप से बाहर हो गया। वह भारतीय विश्व कप इतिहास की  सबसे खराब तस्वीर थी। क्योंकि भारतीय टीम तब चैंपियन बनने की प्रमुख दावेदार थी। चार दिन पहले उसने क्वार्टर फ़ाइनल में प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को शिकस्त दी थी। मैच के कई साल बाद विनोद कांबली ने सेमीफाइनल मैच को लेकर कई सारे संदेह व्यक्त किए। तब उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि मैं जब भी उस सेमीफाइनल के बारे में सोचता हूं। या वो मैच मैं देखता हूं तो मेरी आंखों में आंसू आ जाते है। विश्व कप से पहले सभी क्रिकेट पंडित भारत को ही विजेता बता रहे थे। और हमने पूरे टूर्नामेंट में अच्छा भी किया था। क्वार्टर फाइनल में पाकिस्तान को भी हराया। और सेमीफाइनल में सचिन की बैटिंग तक सबकुछ सही जा रहा था। लेकिन सचिन के आउट होने के बाद टीम पत्तों की तरह  बिखर रही थी। मैने एक छोर पर पांच बल्लेबाजों को आउट होते देखा था। अगर इनमे किसी एक ने मेरा साथ दिया होता तो मैं मैच निकाल ले जाता। मैं इसलिए रोया कि मैने देश के लिए कुछ करने का एक मौका खो दिया। इतना ही नहीं मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि टॉस जीतकर आखिर कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन ने फिल्डिंग करने का फैसला क्यों लिया। क्योंकि मैच से पहले टीम मीटिंग में तय हुआ था कि टॉस जीतकर पहले बैटिंग करेंगे। लेकिन हुआ ठीक इसके उलट और मैं कुछ कह पता उससे पहले ही मुझे बाहर कर दिया गया। हमारे मैनेजर रहे अजीत वाडेकर को सबकुछ पता था। उन्होंने बाद में एक लेख में लिखा था कि विनोद कांबली को बली का बकरा बनाया गया था। वाडेकर ने आगे लिखा था कि कांबली की आंखों में आंसू इस बात का गवाह थे कि वो देश के लिए कुछ करना चाहते थे। इसके बाद कांबली के करियर में उतार चढाव आने लगे। मीडिया में खबरें आने लगी थी। कि टीम के कप्तान और बाकी खिलाड़ियों के साथ उनकी बनती नहीं है। कांबली के बारे में कई दिग्गजों का मानना है कि उन्हें जो स्टारडम मिला उसे वो संभाल नहीं पाए। इसलिए उनका करियर अर्श से फर्श पर जाने लगा। एक बार कांबली के बचपन के दोस्त सचिन तेंदुलकर ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए साक्षात्कार में कहा था कि अगर हम दोनो के बीच अनबन की बात करनी है तो मैं कहूंगा कि हमारा लाइफ स्टाइल अलग अलग था। यहां तक कि हमारे स्वभाव में भी अंतर था। मेरे परिवार की नजर हमेशा मुझ पर रही। इसलिए मुझे हमेशा जमीन से जोड़े रखा। मैं विनोद कांबली के बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैं इतना जानता हूं कि मेरे से कांबली की लाइफस्टाइल बहुत अलग है। और इसलिए कांबली का चमकदार करियर बहुत जल्द अर्श से फर्श पर आ गया। और वो टीम से अंदर बाहर होने लगे। क्या आप जानते है कि विनोद कांबली ने टीम से बाहर होने के बाद तकरीबन 9 बार वापसी की ।लेकिन वह एक भी बार दोबारा अपनी जगह पक्की करने में कामयाब नहीं हो पाए। कांबली ने एक बार आरोप लगाया कि उनके बर्बाद करियर के जिम्मेदार बोर्ड, चयनकर्ता और कप्तान थे। कांबली ने एक रियल्टी शो सच का सामना में कहा था कि टीम में उनके साथ भेदभाव हुआ है। जब मैं बुरे दौर से गुजर रहा था तो सचिन को मेरी मदद करनी चाहिए थी। सचिन जब रिटायर हुए तो उन्होंने अपनी स्पीच में कांबली का नाम तक नहीं लिया। विनोद कांबली की अगर निजी जिंदगी की बात की जाए तो वो भी काफी उतार चढ़ाव भरी रही है। विनोद कांबली की पहली पत्नी नाइला लुईस थी। नईला से तलाक के बाद कांबली ने मॉडल एंड्रिया हेविट से शादी की।  दोनों ने एक दूसरे को करीब 6 साल तक डेट किया और फिर साल 2006 में दोनो ने एक दूसरे के हो गए। इसके बाद 2010 में उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम जीजस क्रिस्टियानो कांबली रखा। कांबली ने साल 2014 में फिर ईसाई धर्म के रीति रिवाज से चर्च में शादी की। इस शादी में उनका बेटा बताती बना था। और इसी साल दोनो की एक बेटी हुई जिसका नाम जोहाना क्रिस्टियानो रखा। एंड्रिया हेविट ने कांबली पर मारपीट का आरोप लगाते हुए मुंबई के थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। फिलहाल अब सब ठीक है। कांबली ने 8 नवंबर 1998 को अपना आखिरी टेस्ट और 29 अक्टूबर 2000 को अपना आखिरी वनडे मैच खेला। कांबली ने साल 2011 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। कांबली इसके बाद टीवी पर क्रिकेट एक्सपर्ट के रूप में देखे गए है। साल 2019 में मुंबई टी 20 लीग में वो कोच थे। लेकिन कोविड की वजह से काम बंद हो गया। फिर सचिन ने उन्हें मुंबई के नेरुल के मिडलसेक्स ग्लोबल एकेडमी में कोच का काम दिलाया। कांबली ने क्रिकेट के बाद फिल्मों में काम किया , राजनीति में भी आए। लेकिन उनका सिक्का कहीं नही जमा।

चलते चलते विनोद कांबली के करियर पर नजर डालते है।

कांबली ने 17 टेस्ट मैचों में 54 की औसत से 1084 रन बनाए। टेस्ट में उनका सर्वाधिक स्कोर 227 रन है उन्होंने भारत के लिए 104 वनडे मुकाबले भी खेले है जिसमें 32 की औसत से 2477 रन बनाए है। वनडे में कांबली ने 2 शतक और 14 अर्धशतक भी जमाएं है। वनडे मैच में कांबली का सर्वाधिक स्कोर 106 रन है।

दोस्तों विनोद कांबली जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी के साथ दुर्व्यवहार किया गया है क्या  कांबली ने अपना करियर खुद बर्बाद किया या फिर इसके पीछे कोई और था। आप इन सभी चीजों को कैसे देखते है। अगर विनोद कांबली आपके फैवरिट खिलाड़ी हैं तो आप हमें अपनी राय विडियो में कमेंट करके बता सकते है। ऐसी ही इंट्रेस्टिंग विडियो और खबरों के लिए बने रहिए हमारे साथ , अगले अंक में फिर मिलेंगे एक और खिलाड़ी की जीवनी के साथ , अभी दीजिए इजाजत धन्यवाद

Leave a Comment