पश्चिम चंपारणः प्राकृतिक सुंदरता और संपदा का अनोखा संगम

Bihari News

  • भूमिका

बिहार प्रान्त के जिलों में एक जिला चंपारण भी है. जो अब दो जिलों में विभाजित हो चूका है. जिसे हम पश्चिमी चंपारण और पूर्वी चंपारण के नाम से जानते हैं. इन दोनों जिलों में से आज हम जानेंगे पश्चिमी चंपारण के बारे में. स्वतंत्रता संग्राम के समय भारत और नेपाल की सीमा से सटा बिहार का यह क्षेत्र अपने स्वाधीनता के संग्राम में काफी सक्रीय था. नील आन्दोलन के जरिये राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मशाल चंपारण जिले से हीं जलाई थी. पश्चिमी चंपारण का मुख्यालय बेतिया में है. बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत यह जिला आता है. बता दें की यह जिला भोजपुरी भाषी जिला है. जल और वनसंपदा से परिपूर्ण हिमालय के तराई प्रदेशों में बसा यह जिला अपने ऐतिहासिक कहानियों के लिए भी जाना जाता है. अपने इतिहास और भौगोलिक विशेषताओं को लेकर चंपारण पूरे बिहार हीं नहीं बल्कि भारत में भी अपना एक विशेष स्थान रखता है. चंपारण जिले का नाम दो शब्दों से मिल कर बना है. चंपा और अरण्य. इसका मतलब होता है चंपा के पेड़ों से भरापूरा जंगल.

  • इतिहास

आइये आज के इस विशेष चर्चा में हम बिहार के इतिहास के बारे में जानते हैं. यदि बिहार प्रान्त के इस जिले को ऐतिहासिक दृष्टि से देखे तो पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण दोनों का इतिहास एक हीं है. क्योकिं आज़ादी के समय तक ये जिले आपस में विभाजित नहीं थे. इस जिले में हीं चंपारण का बल्मिकिनगर भी स्थित है. इस जगह को माता सीता के शरणस्थली होने के कारण काफी पवित्र भी माना जाता है. वहीँ भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास की कहानी में चंपारण अपना एक अहम् योगदान भी रखता है. जब इस प्रान्त में राजा जनक का साम्राज्य था उस वक्त यह तिरहुत प्रदेश का अंग था. आगे चल कर यह क्षेत्र करीब छठी सदी ईसापूर्व में वैशाली साम्राज्य का हिस्सा बन गया. मालुम हो की वैशाली मौर्य वंश, कण्व वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश और गुप्त वंश के हीं अधीन रहा जब अजातशत्रु ने वैशाली पर जीत हासिल कर ली थी. उसके बाद पाल वंश का चंपारण पर सन 750 से 1155 तक शासन रहा. आगे चल कर सिमरांव के राजा नरसिंहदेव में मिथिला के साथसाथ पूरा चंपारण उनके अधीन आ गया. उसके बाद नरसिंह देव को हराकर बंगाल के गयासुद्दीन एवज ने 1213 से 1227 के बीच मुस्लिम शासन की स्थापना की. बेतिया राज का उदय और अस्त चंपारण के इतिहास में मुग़ल काल के बाद से हीं जुड़ा है. दरअसल गज सिंह और उज्जैन सिंह ने बादशाह शाहजहाँ के समय में हीं बेतिया राज की नीव डाली. बेतिया राज प्रकाश में तब आया जब मुगल कमजोर हुए. उसके बाद बेतिया राज ने अपने शानोशौकत के लिए अच्छीखासी ख्याति भी अर्जित की. फिर एक समय ऐसा भी आया जब 1763 में बेतिया राज अंग्रेजों के अधीन काम करने लगा. उस वक्त यहाँ के राजा धुरुम सिंह थे. बेतिया शहर के बीचोंबीच बेतिया राज के शान के प्रतिक का एक महल भी मौजूद है. जो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहता है.

  • प्रसिद्ध व्यक्तित्व

आइये अब अपने इस चर्चा में हम चंपारण जिले के प्रसिद्ध व्यक्तियों के बारे में जानते हैं. तो सबसे पहले हमारे महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सूचि में शामिल व्यक्ति हैं राजकुमार शुक्ल, प्रजापति मिश्र, शेख गुलाब, केदार पांडये, तारकेश्वर नाथ तिवारी, श्यामकांत तिवारी और असित नाथ तिवारी.

  • कैसे पहुंचे

आइये अब हम जानते हैं की चंपारण किनकिन मार्गों द्वारा हम पहुँच सकते हैं.

  • सड़क मार्ग

तो सबसे पहले हम जानते हैं सड़क मार्ग के बारे में. यदि हम राजधानी पटना से पश्चिमी चंपारण जाते हैं तो पटना से चंपारण की दूरी लगभग 230 किलोमीटर तक के रेंज में है. जहाँ आपको पहुँचने में लगभग छह घंटे तक का समय लग सकता है. वहीँ पटना, मोतिहारी और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों से भी पश्चिम चंपारण के प्रमुख शहर बेतिया, बगहा, नरकटियागंज, रक्सौल आदि के लिए अच्छी सुविधा है. बता दें की छपवा से शुरू होकर बेतिया होते हुए कुशीनगर को राष्ट्रिय राजमार्ग 28B भी जाता है.

  • रेल मार्ग

आइये अब हम जानते हैं रेलमार्ग के बारे में. सन 1888 में हीं पश्चिम चंपारण के मुख्यालय बेतिया को मुजफ्फरपुर के रेलमार्ग से जोड़ा गया था. यहाँ नरकटियागंज से रक्सौल होते हुए बैरगनिया तक भी रेलमार्ग जाता है. लगभग 220 किलोमीटर तक में पूर्व मध्य रेलवे के अंतर्गत आनेवाले इस रेलखंड की कुल लम्बाई है. जब से छितौनी में गंडक नदी पर पुल बना है तब से यहाँ का मुख्य रेलमार्ग गोरखपुर होते हुए दिल्ली के साथसाथ देश के महत्वपूर्ण नगरों से भी जुड़ गया है. यहाँ रक्सौल, बेतिया और नरकटियागंज प्रमुख रेलवे स्टेशनो में शामिल है.

  • हवाई मार्ग

चलिए अब हम मार्ग के आखिरी कड़ी में जानते हैं हवाई मार्ग के बारे में. यदि देशविदेश से लोग पश्चिम चंपारण हवाई मार्ग के जरिये पहुंचना चाहते हैं तो यहाँ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पटना का हवाईअड्डा है. इसकी दूरी लगभग 210 किलोमीटर तक के रेंज में है. इस हवाई अड्डे से दिल्ली, कोलकाता, राँची, मुम्बई आदि महत्वपूर्ण नगरों और महानगरों के लिए भी विमान कंपनी यात्रियों को सुगम सेवा प्रदान करवाती है. बीरगंज स्थित हवाईअड्डा भी जो की बिहार की सीमा से सटे नेपाल में स्थित एक शहर है वहां से भी काठमांडू के लिए विमान सेवा आसानी से उपलब्ध हो जाएँगी.

इसका क्षेत्रफल लगभग 5228 स्क्वायर किलोमीटर तक में फैला हुआ है. यदि यहाँ के आबादी की बात करें तो 39,350,42 यहाँ की आबादी है. यहाँ पर साक्षरता दर 55.70% तक है. वहीँ लैंगिक दर की बात करें तो प्रति 1000 पुरुष पर 909 महिलाएं हैं. यहाँ कुल तीन प्रमंडल, 18 प्रखंड और 1483 गाँव मौजूद हैं. बता दें की पश्चिम चंपारण में कुल 5 नगरपालिका क्षेत्र हैं.

यदि यहाँ के कृषि और अर्थव्यवस्था की बात करें तो यहाँ की मिटटी काफी उपजाऊ है. इसकी वजह गंडक और सिकरहना व इसकी सहायक नदियों का मैदान में होना है. यहाँ अधिकतर लोग कृषि या गृह उद्योग पर हीं आधारित हैं. यह जिला बासमती चावल और गन्ने के उत्पदान के लिए प्रसिद्ध है. अधिक गन्ने की खेती होने के कारण यहाँ कई सुगर मिल भी देखने को मिलते हैं. यहाँ के प्रमुख फसलों में मक्का, भदई और अगहनी धान, तिलहन, खेसारी व गेंहू शामिल हैं. इस जिले के सिंचाई के प्रमुख साधन में तिरहुत नहर, त्रिवेणी नहर और दोन नहर शामिल हैं.

आइये अब हम बात करते हैं यहाँ के व्यापार और उद्योग की. यहाँ सड़क मार्ग द्वारा नेपाल के लिए कपडे, पेट्रोलियम उत्पाद आदि चीजों का निर्यात होता है और उसके बदले नेपाल से चावल, लकड़ी और मसालों का आयात होता है. इस जिले में नरकटियागंज, रक्सौल, बगहा, बेतिया और चनपटिया जैसे शहर व्यापार के नज़रिए से अच्छे केंद्र हैं.

हमने अपने इस चर्चा में पश्चिम चंपारण के कई चीजो के बारे में तो काफी जानकारी ले ली. आइये अब हम जानते हैं यहाँ के पर्यटन स्थलों के बारे में.

  • यहाँ के पर्यटन स्थलों में हम सबसे पहले बात करते हैं बल्मिकिनगर राष्ट्रिय उद्यान एवं बाघ अभ्यारण्य के बारे में. यह अभ्यारण्य बिहार का एक मात्र राष्ट्रिय उद्यान है जो की नेपाल के राजकीय चितवन नेशनल पार्क से सटा हुआ है. बता दें की यह लगभग 880 किलोमीटर स्क्वायर से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है. बाल्मीकि नगर का यह राष्ट्रिय उद्यान बेतिया से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है. इस उद्यान में चीतल, हिरन, सांभर, तेंदुआ, नील गाय, जंगली बिल्ली, एक सिंगे गेंडे और जंगली भैंसे जैसे कई जंगली जानवर भी हमें देखने को मिलते हैं.
  • आइये अब हम दूसरे पर्यटन स्थल में जानते हैं बल्मिकिनगर आश्रम और गंडक परियोजना के बारे में. धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री राम के त्यागे जाने के बाद देवी सीता ने वाल्मीकिनगर राष्ट्रिय उद्यान के एक छोड़ पर महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में आश्रय लिया था. यहीं वो आश्रम है जहाँ सीता ने अपने दो पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया था. मालूम हो की हिन्दू महाकाव्य रामायण की रचना भी महर्षि वाल्मीकि ने हीं की थी. यहाँ 15 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी आश्रम के मनोरम परिवेश के पास हीं गंडक नदी पर बनी बहुउद्देशीय परियोजना के लिए होता है. चंपारण के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में भी यहाँ से निकाली गयी नहरों से सिंचाई की जाती है. यहाँ पर शिवपार्वती मंदिर भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं. इस मंदिर को बेतिया राज के द्वारा बनवाया गया था.
  • बल्मिकिनगर से पांच किलोमीटर की दूरी पर हीं त्रिवेणी संगम है. यह त्रिवेणी संगम एक तरफ नेपाल के त्रिवेणी गाँव और दूसरी तरफ चंपारण के भैंसालोटन गाँव के बीच नेपाल की सीमा पर स्थित है. बता दें की यहाँ गंडक के साथ सोनहा नदी और पंचनद का भी मिलन होता है.
  • चलिए अब हम जानते हैं भिखना ठोड़ी के बारे में. यह जगह जिले के उत्तर में गौनहा प्रखंड में स्थित नरकटियागंजभिखना ठोड़ी रेलखंड का अंतिम स्टेशन है. अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए चर्चित यह जगह नेपाल की सीमा पर बसा हुआ है. यहाँ पर ब्रिटिश कालीन पुराने बंगले के अलावे ठहरने की कई जगहें भी मौजूद है.
  • अब बाद बात करते हैं भीतहरवा आश्रम और रामपुरवा के अशोक स्तम्भ के बारे में. महात्मा गाँधी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत गौनहा प्रखंड के भीतहरवा गाँव के एक छोटे से घर में ठहरकर की थी. आज यह घर भीतहरवा आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है. यहाँ से कुछ हीं दूरी पर रामपुरवा में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया दो स्तंभ भी है. लेकिन यह स्तम्भ शीर्षरहित है. दरअसल इसके शीर्ष पर सिंह और वृषभ बने थे जिन्हें कोलकाता और दिल्ली के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है.
  • पश्चिमी चंपारण में नंदनगढ़, चानकीगढ़ और लौरिया का अशोक स्तम्भ भी काफी प्रसिद्ध है. यह नन्द वंश और चाणक्य द्वारा लौरिया प्रखंड के नंदनगढ़ और नरकटियागंज प्रखंड के चानकीगढ़ में बनवाये गए महलों का अवशेष है. जो अब टीलेनुमा दिखाई देता है. 2300 साल पुराना सिंह के शीर्ष वाला अशोक स्तम्भ नंदनगढ़ से एक किलोमीटर दूर लौरिया में स्थित है. इस विशाल स्तंभ की कलाकृति बेहतरीन कलाकृतियों में से एक है. जो की मौर्य काल के मूर्तिकारों की शानदार कलाकारी के नमूने को पेश करता है.
  • अब आखिरी में हम बात करते हैं सुमेश्वर के किले बारे में. यह किला रामनगर प्रखंड में समुन्द्र ताल से 2,884 फीट की ऊंचाई पर सोमेश्वर की पहाड़ी के खड़ी ढलान पर स्थित है. यहाँ पानी की जरूरत के लिए बनाया गया कुंड भी पर्यटकों को लुभान्वित करता है.

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