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क्या आप जानते हैं हनुमान जी ने लंका में लंका दहन के अलावा और क्या किया था?

Ratnasen Bharti

जब सीता माता की खोज के लिए हनुमान जी को लंका जाना था तब उस समय जामवंत जी ने उन्हें उनकी शक्तियों से परिचित कराया और वे फिर वायु मार्ग से लंका के लिए प्रस्थान किये। लंका जाने के रास्ते में और लंका पहुँचने के बाद हनुमान जी ने कुछ महत्वपूर्ण कार्य किये थे.

आइये जानते हैं हनुमान जी के पराक्रम भरे उन कार्यों को-

समुन्द्र को लांघना और सुरसा से भेंट

हनुमान जी को यह मालूम था कि समुद्र को पार करते समय कई तरह की कठिनायों का सामना करना पड़ेगा । समुद्र पार करने के क्रम में रास्ते में उन्हें सुरसा से भेंट हो जाती है। वह नागों की माता थी जिसने राक्षसी का वेश धारण कर रखा था। सुरसा ने हनुमान जी का रास्ता रोका और उन्हें खाने की बात कहने लगी।हनुमान जी के समझाने के बाद भी जब वह नहीं मानी तो हनुमान जी ने सुरसा को यह कह दिया कि ठीक है मुझे खा लो। लेकिन सुरसा ने जैसे ही हनुमान जी को निगलने के लिए अपना मुंह खोला वैसे ही हनुमान जी ने अपने शरीर का आकार बढ़ाना शुरू किया। जैसे जैसे सुरसा अपना मुंह बढाती जाती वैसे वैसे ही हनुमान जी भी अपना शरीर बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान जी ने अचानक ही अपना शरीर का आकार बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुँह में घुसकर तुरंत ही बाहर निकल आये। हनुमान जी की बुद्धिमानी से सुरसा प्रसन्न हो गयी और उसने हनुमान जी को आशीर्वाद देते हुए सफल होने की कामना की।

राक्षसी माया का वध

समुद्र में एक राक्षसी का भी निवास था। वह ऐसी राक्षसी थी जो अपनी माया के बल से आकाश में उड़ते हुए पक्षियों का शिकार कर लेती थी। आकाश में उड़ते हुए जीव जंतु की जल में परछाईं को देखकर वह उन्हें अपनी माया से उनको अपने उदरस्थ कर लेती थी। जब हनुमान जी ने उसके छल की बात जानी तो उन्होंने उसका वध कर डाला।

विभीषण से भेंट

सीता माता को खोजते हुए हनुमान जी लंका में विभीषण के महल में चले जाते हैं। विभीषण के महल पर वे श्री राम जी का नाम लिखा देखकर खुश हो जाते हैं। तब वे वहां विभीषण से मिलते हैं। तब हनुमान जी अपना परिचय हनुमान को देते हैं। हनुमान जी विभीषण को यह वचन देते हैं कि वे उन्हें राम से मिला देंगे।

सीता माता का शोक निवारण

लंका में घुसते ही उनका सामना लंकिनी और अन्य राक्षसों से होता है। वे उनका भी वध कर देते हैं। फिर सीता जी को खोजते हुए वे अशोक वाटिका पहुँच जाते हैं। हनुमान जी अशोक वाटिका में सीता मैया से मिलते हैं और उन्हें राम की अंगूठी देकर उनका शोक दूर करते हैं।

अशोक वाटिका को उजाड़ना

सीता माता से मिलने के बाद उनकी आज्ञा से हनुमान जी बगीचे में घुसकर फल खाने लगे। वहां उन्होंने ढेरों फल खा गए और वृक्षों को भी तोड़ दिया। उस वाटिका की रखवाली बहुत से राक्षस मिलकर करते थे उन राक्षसों से हनुमान जी की लड़ाई हुई। उसमे से कुछ राक्षसों को हनुमान जी ने मार डाला और कुछ ने अपनी जान बचाकर रावण के सामने उपस्थित होकर यह बताया कि एक वानर अशोक वाटिका को तहस नहस कर रहा है।

अक्षय कुमार का वध

रावण ने अपने पुत्र अक्षय कुमार को हनुमान को देखने के लिए भेजा। वह कई योद्धाओं को साथ लेकर हनुमान जी को मारने आया। हनुमान जी ने अक्षय कुमार को आते देखा तो उन्होंने एक पेड़ को हाथ में उठा लिया और उसे युद्ध की चुनौती दी उन्होंने अक्षय के साथ ही सभी को मार डाला।

मेघनाद से युद्ध

पुत्र अक्षय के वध की खबर से बौखलाकर रावण ने अपने दूसरे पुत्र मेघनाद को भेजा। रावण ने उससे कहा कि उस वानर को मारना नहीं बल्कि उसे बांधकर ले आना। हनुमान जी मेघनाद को देखते ही समझ गए कि यह बलवान योद्धा है। मेघनाद भी हनुमान जी को देखकर यह समझ गया कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। मेघनाद के साथ युद्ध में हनुमान जी बेहोश हो जाते हैं, उन्हें नागपाश से बांधकर रावण के पास लाया जाता है। रावण हनुमान जी से अपनी शक्ति का बखान करता है। हनुमान जी उसे यह कहते हैं कि तुम अपनी गलती मानकर राम की शरण में चले जाओ।

लंका दहन

हनुमान के मुंह से राम की महिमा सुनकर रावण चिढ जाता है और गुस्से में अपने सैनिको को आदेश देता है कि इस वानर की पूँछ में आग लगा दो। जब बिना पूँछ का यह वानर अपने स्वामी के समीप पहुंचेगा तो इसका स्वामी डरकर यहाँ नहीं आएगा। पूँछ में आग लगने के बाद हनुमान जी ने अपना रूप विशालकाय बना लिया और रावण के महल सहित पूरी लंका को जला दिया। विभीषण का घर उन्होंने नहीं जलाया था। पूरी लंका जलाने के बाद वे समुद्र में कूद पड़े और लौट गए।

राम को सीता की खबर देना

समुद्र में पूँछ की आग बुझाकर फिर छोटा सा रूप धारण कर हनुमान जी ने माता सीता से मिला और उनसे उनकी निशानी के रूप में उनकी चूड़ामणि ली और समुद्र लांघकर राम जी के पास आ गए। हनुमान जी ने राम के पास जाकर कहा कि – ‘हे नाथ ! माता सीता ने चलते समय अपनी चूड़ामणि उतारकर दी है। श्री रघुनाथ जी ने माता सीता की उस चूड़ामणि को ह्रदय से लगा लिया।

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