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राम से पहले इस बाहुबली राजा ने रावण को बनाया था बंदी

Ratnasen Bharti

रामायण की कथा के अनुसार लंकापति रावण काफी शक्तिशाली था। रावण भगवान शिव जी का महान भक्त था और अपनी तपस्या के बल पर उसने अनेक शक्तियां प्राप्त कर ली थी कहा जाता है कि उसने अपने पराक्रम के बल पर तीनो लोकों पर विजय प्राप्त कर लिया था। लेकिन एक ऐसा भी बाहुबली हुआ है जिसने रावण को भी युद्ध में पराजित कर उसे बंदी बना लिया था। आइये जानते हैं वह बाहुबली कौन था और क्या है उसकी रावण के साथ युद्ध की कहानी

पुराणों की कथा के अनुसार त्रेता युग में सहस्त्रबाहु अर्जुन नाम के एक बहुत प्रतापी और पराक्रमी राजा हुए थे। वे कार्तवीर्य अर्जुन , सहस्त्रबाहु अर्जुन या सहस्त्रार्जुन के नाम से भी जाने जाते थे। सहस्त्रबाहु को रावण से भी अधिक शक्तिशाली माना जाता है। सहस्त्रबाहु के पिता का नाम कार्तवीर्य था। वे भी प्रतापी राजा थे और उनकी अनेक रानियां भी थीं लेकिन फिर भी किसी को कोई संतान नहीं थी। अतः राजा और उनकी रानियों ने पुत्र की प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं प्राप्त हो सकी। तब उनकी एक रानी ने देवी अनुसुइया से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। तब देवी अनुसुइया ने उन्हें अधिक मास की शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को उपवास रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने को कहा। राजा और रानी ने विधि विधान के साथ एकादशी को व्रत उपवास करके भगवान विष्णु की पूजा की जिससे भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा।

तब राजा और रानी ने कहा कि प्रभु हमें ऐसा पुत्र प्रदान कीजिये जो सर्वगुणसम्पन्न हो और सभी लोकों में आदरणीय और पूजनीय हो तथा वह किसी से भी पराजित न हो। भगवान ने राजा से कहा कि ऐसा ही होगा। कुछ महीने के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया।

इस पुत्र का नाम कार्तवीर्य अर्जुन रखा गया जो सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना गया।

लंकापति रावण अत्यन्त शक्तिशाली था। उसकी शक्तियों से देवता भी डरते थे। कहा जाता है उसने कई देवताओं तक को बंदी बना लिया था और तीनो लोकों का विजेता बन गया था। इन्ही कारणों से रावण को अपनी वीरता का अहंकार हो गया था और उसने अत्याचार करना शुरू कर दिया था। अहंकार के कारण रावण स्वयं को सबसे अधिक शक्तिशाली मानने लगा और मनमाना आचरण करने लगा। किसी भी चीज को बलपूर्वक हासिल करना रावण का एकमात्र लक्ष्य रहता था। अहंकार में आकर रावण अधर्म और पाप का आचरण करने लगा जिस कारण देवता और आम जनमानस भयभीत और दुखी रहने लगे। रावण के इन्हीं अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान राम ने रावण का वध करने का निश्चय किया और लंका पर चढ़ाई कर युद्ध में रावण का वध किया था।

एक कथा आती है कि जब लंकापति रावण को सहस्त्रबाहु अर्जुन की वीरता के बारे में पता चला तो वह सहस्त्रबाहु अर्जुन को पराजित करने के लिए उनके नगर में आ पहुंचा। यहाँ पहुंचकर रावण ने नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव को प्रसन्न करने और वरदान प्राप्त करने के लिए तपस्या आरम्भ कर दी। थोड़ी दूर पर ही सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा के जल में स्नान कर रहे थे। वे अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीड़ा करने लगे और अपनी हज़ार भुजाओं से नर्मदा का जल प्रवाह रोक दिया। प्रवाह रोक देने से नदी का जल किनारों से बहने लगा जिससे रावण की तपस्या में विघ्न पड़ने लगा। इससे रावण को क्रोध आ गया और उसने सहस्त्रबाहु अर्जुन से युद्ध शुरू कर दिया। सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को युद्ध में बुरी तरह से परास्त कर दिया और उसे बंदी बना लिया।

रावण के बंदी होने की सूचना जैसे ही रावण के पिता को हुई तो वे घबरा गए और सहस्त्रबाहु अर्जुन के पास पहुंचे और रावण को मुक्त करने का आग्रह किया। रावण के दादा का नाम पुलस्त्य ऋषि था। दादा के कहने पर सहस्त्रबाहु ने रावण को मुक्त कर दिया।

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