हिन्दू धर्म में शिव जी का विशेष स्थान है। वे दया और करुणा के देवता हैं। उन्हें महादेव कहा जाता है। उनका स्वभाव भोला होने के कारण उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। बताया जाता है कि जो भी श्रद्धालु भक्ति से शिव जी की पूजा अर्चना करते हैं उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
भगवान शिव को निलकंठ क्यों कहा जाता है?
शिवपुराण के अनुसार ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय निकले विष से इस दुनिया को खतरा पैदा हो गया था। लेकिन उस विकट परिस्थिति में शिव जी ने जगत के कल्याण के लिए उस विष को अपने गले में धारण कर लिया। इस कारण उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगा और पुरी दुनिया आग की तरह तपने लगी। जिसके फलस्वरूप धरती पर रहने वाले प्राणियों का जीना दुर्लभ हो गया। सृष्टि के हित में विष के प्रभाव को ख़त्म करने के लिए देवताओं ने शिव जी को बेलपत्र खिलाये। बेल पत्र खाने से विष का प्रभाव कम हो गया तब से ही शिव जी को बेल पत्र चढाने की प्रथा बन गया।
भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढाते हैं
धार्मिक ग्रंथों में सभी देवी देवताओं की पूजा विधि अलग अलग बताई गई है। शिव जी को बेलपत्र चढाने के भी कुछ खास नियम हैं। इसके अनुसार शिव जी को बेल पत्र हमेशा चिकनी सतह की तरफ से उनके शिवलिंग पर अर्पित करनी चाहिए। कटी फटी या छिद्र वाली बेल पत्र शिवजी को नहीं चढ़ाना चाहिए। जिस पत्र में तीन से कम पत्ते हों वह भी शिव को अर्पित नहीं करनी चाहिए। मान्यता है कि 03 पत्तियों वाला बेलपत्र त्रिदेवों और शिवजी के त्रिशूल का रूप है। बेल पत्र चढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि हमेशा मध्यमा, अनामिका उँगलियों और अंगूठे से पकड़कर ही उसे शिवलिंग पर अर्पित करें। बेलपत्र को धोकर फिर से शिव जी को चढ़ाया जा सकता है। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित कर देने के बाद पुनः शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए। बताया जाता है कि बेलपत्र चढाने से शिवजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और सभी की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
सावन के महीने में सभी श्रद्धालु शिवजी की पूजा करने में जुट जाते हैं। शिव जी के मंदिरों में श्रावण और सोमवार की भीड़ देखते ही बनती है। शिवलिंग पर गंगाजल और बेलपत्र के साथ ही विभिन्न पूजन सामग्री चढ़ाई जाती है। बेलपत्र को संस्कृत में ‘बिल्वपत्र‘ भी कहा जाता है। यह भगवान शिव को काफी प्रिय है। माना जाता है कि बेल पत्र और जल से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं क्योंकि ऐसा करने से उनका मस्तिष्क शीतल रहता है। जलाभिषेक से शिवजी शीघ्र प्रसंन्न होते हैं।
बेलपत्र को तोड़ने के सम्बन्ध में भी कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए। बताया गया है कि चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, और अमावस्या की तिथियों को, संक्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र को पेंड़ से नहीं तोडना चाहिए। शिव जी को बेलपत्र बहुत प्रिय है अतः इन तिथियों या वार से पहले तोड़ा गया बेल पत्र ही शिव जी को अर्पित करना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि अगर नया बेलपत्र नहीं मिले तो किसी दूसरे के चढ़ाये बेलपत्र को धोकर भी अनेक बार उपयोग कर सकते हैं।
बेल पत्र तोड़ते समय इन बातों का ध्यान रखें
बेल पत्र को तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ को कोई हानि न हो सके। बिल्व पत्र तोड़ते समय वृक्ष को प्रणाम जरूर कर लेना चाहिए। शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाये हुए बेलपत्र की कभी उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए।बेल पत्र चढाने के महत्त्व को दर्शाने वाली एक अन्य कथा भी है। उस कथा के अनुसार एक भील नाम का डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए जंगल में लोगों को लूटने का काम करता था। एक बार की बात है वह राहगीरों को लूटने के लिए जंगल में गया।
वह एक वृक्ष के ऊपर चढ़कर छिप गया और यात्रियों का इंतजार करने लगा। लेकिन सुबह से रात हो जाने के बाद भी शिकार नहीं मिला। जिस पेंड पर वह चढ़ा हुआ था वह बिल्व का पेंड था। रात दिन पूरा बीत जाने के बाद वह परेशान हो गया और बेल के पत्ते को तोड़ तोड़ के नीचे फेंकना शुरू कर दिया। जो पत्ते वह फेंके जा रहा था वह शिवलिंग पर गिर रहे थे और इस बात से भील पूरी तरह से अनजान था। शिवलिंग पर पत्ते गिरने से शिवजी प्रसन्न हो गए और उसके सामने प्रकट हो गए। शिव जी ने डाकू से वरदान मांगने को कहा और इस तरह भील का कल्याण हो गया। उस समय से शिव जी पर बेलपत्र चढाने का महत्त्व और अधिक बढ़ गया।