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मृत्यु के समय व्यक्ति के मुंह में क्यों डाला जाता है तुलसीपत्र और गंगाजल ?

Ratnasen Bharti

हिन्दू धर्म के अनुयायियों की परंपरा और आस्था को पूरी दुनिया में श्रद्धा के साथ देखा जाता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार बच्चे के जन्म लेने से लेकर बूढ़े होकर मरने तक अनेक प्रथा और परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है। हिन्दू धर्म में जन्म लेने से लेकर मृत्यु का अंतिम समय आने तक सोलह संस्कार का वर्णन मिलता है।

जन्म के साथ ही यमराज भी आते हैं

मानव जीवन का चार पुरुषार्थ माना गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है। इस पृथ्वी को मृत्यु लोक भी कहा गया है। हिन्दू धर्म शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार जिसका इस पृथ्वी पर जन्म हुआ है उसकी एक न एक दिन मृत्यु होना सुनिश्चित है। इस मृत्यु लोक में जन्म लेने वाले की मौत सुनिश्चित है। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु को कोई भी नहीं रोक सकता। प्रत्येक प्राणी को अपना नश्वर शरीर को त्यागकर जाना ही पड़ता है। किसी भी उपाय से ऐसा होने से बचा नहीं जा सकता। मृत्यु को अंतिम संस्कार माना जाता है। मृत्यु के सम्बन्ध में प्रत्येक धर्म की अलग अलग मान्यताएं हैं। परलोक और पुनर्जन्म की मान्यताओं पर विश्वास करने पर यह भी जानने की इच्छा होती है कि मृत्यु के बाद की यात्रा कैसी होती है? इस सम्बन्ध में दुनिया भर में अनेक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि जिस दिन जीव का जन्म होता है यमराज उसी दिन से उसके पीछे लगे रहते हैं और जैसे ही मौत का वक्त आता है उस जीवात्मा को पकड़कर यमराज अपने साथ लेकर परलोक चले जाते हैं

मृत्यु होने के समय इसलिए मुंह में डाला जाता है गंगाजल और तुलसीपत्र 

मृत्यु के समय होने वाली कुछ प्रक्रियाओं को प्रायः सभी लोग पूरा करते हैं। हिन्दू धर्म की परम्पराओं के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु होने के वक्त उस व्यक्ति के मुंह में गंगाजल और तुलसी का पत्ता जरूर डाला जाता है। मृत्यु के पहले या मृत्यु होने के बाद में भी जब भी अवसर मिलता है उस व्यक्ति के मुंह में तुलसीपत्र और गंगाजल जरूर डाला जाता है। यह कर्म प्रायः अधिकतर हिन्दू करते ही हैं।हिन्दू धर्म में मृतक के मुंह में गंगाजल और तुलसीदल को रखना अत्यंत महत्वपूर्ण और अनिवार्य माना जाता है ? मगर क्या आपको यह पता है कि मृत व्यक्ति के साथ ऐसा क्यों किया जाता है ? क्या है इसके पीछे छिपा कारण और इस प्रक्रिया का महत्व ? यदि आप नहीं जानते तो आज हम आपको बता रहें हैं। आप इस वीडियो को बिना स्कीप किये शुरू से अंत तक जरूर सुनिए ताकि आपको इस बात की पूरी जानकारी मिले। धार्मिक दृष्टिकोण से हिन्दू धर्म में तुलसी और गंगा की शास्त्रों में बड़ी महिमा गयी गयी है। किसी व्यक्ति के मरणासन्न स्थिति में पहुँचने पर या मृत होने पर उसके परिजन उसके मुख में तुलसी का पत्ता और गंगाजल जरूर डालते हैं। शास्त्रों के अनुसार तुलसी को श्री हरि विष्णु जी का ही स्वरुप माना जाता है। कहा जाता है कि वे विष्णु जी के सिर पर सजाई जाती हैं . माता तुलसी विष्णु के सिर पर सुशोभित की जाती हैं। धार्मिक एवं आध्यातिमिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी पत्र को धारण करने वाले को यमराज कष्ट नहीं देते।

यम के कोप का सामना करना पड़ता है

माना जाता है कि मृतक के मुख में तुलसीपत्र डालने से उस व्यक्ति को परलोक में यम के कोप का सामना नहीं करना पड़ता है। औषधीय दृष्टि कोण से भी तुलसी का पत्ता में कई गुण होते हैं और इनका सेवन करने से अनेक रोगों में लाभ होता है। व्यावहारिक दृष्टि से अक्सर ऐसा देखा गया है कि जो व्यक्ति मरणासन्न स्थिति में होते हैं उनके गले में कफ जमा हो जाने के चलते उनको सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और बोलने में भी कठिनाई होती है। तुलसी के पत्तों में कफ दूर करने का औषधीय गुण होता है। इसलिए शैया पर लेटे हुए व्यक्ति को यदि तुलसी पत्र का रस दे दिया जाता है तो उसके मुख से आवाज बाहर निकल सकती है और वह कुछ बोल पाने में सक्षम हो सकता है।

मृत्यु के समय कष्ट होता है

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि किसी प्राणी के मृत्यु के समय प्राण निकलते वक्त उसे अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि किसी के मृत्यु के वक्त तुलसीपत्र को उसके मुंह में डाल दिया जाता है तो उस प्राणी को प्राण त्यागते समय कष्ट कठिनायों से नहीं जूझना पड़ता है। इसी तरह हिन्दू धर्म में गंगाजल को अत्यंत पवित्र माना जाता है। क्योंकि गंगा नदी स्वर्ग की नदी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी भगवान विष्णु के चरणों से और भगवान शिव की जटाओं से निकली है। इसलिए हिन्दू धर्म में प्रायः सभी धार्मिक अनुष्ठान में गंगाजल का प्रयोग जरूर किया जाता है। बिना गंगाजल के कोई भी पूजा नहीं होती। हिन्दू धर्म में जल को शुद्धि कारक माना जाता है। किसी भी पूजा को करने वाले को शुद्ध जल से स्नान करके शुद्ध होकर पूजा करना अनिवार्य माना जाता है। गंगाजल के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व को देखकर मृत्यु के वक्त व्यक्ति के मुख में गंगाजल अवश्य डाला जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर से आत्मा के निकलकर अलग होते समय व्यक्ति को ज्यादा कठिनाई या कष्ट अनुभव नहीं होता है। मृतक के मुंह में गंगाजल डाल देने से यमदूत भी उस प्राणी को कष्ट नहीं देते हैं। और उस जीवात्मा के आगे की यात्रा निर्विघ्न पूरी होती है जो कि आत्मा की उन्नति के लिए अनिवार्य है।

व्यावहारिक दृष्टि से माना जाता है कि तुलसी दल देने और गंगाजल पिलाने से मृत व्यक्ति की भूख प्यास मिट जाती है और वह आगे की यात्रा तय करने के लिए तैयार हो जाता है। व्यावहारिक दृष्टि से तुलसी पत्ता और गंगाजल को मुंह में डालने के पीछे यह तर्क हो सकता है कि अपनी आगे की यात्रा पर जाने वाला व्यक्ति भूखा प्यासा न जाए। लोक मान्यता है कि घर से बाहर निकलते समय बिना खाये पिए नहीं जाना चाहिए। कुछ खा पीकर ही यात्रा करनी चाहिए। इसी तरह मृत्यु के बाद की अनंत यात्रा पर जाने वाले व्यक्ति तुलसीपत्र खाकर और गंगाजल पीकर अपनी आगे की यात्रा निर्विघ्न पूरी करे ऐसी शुभ कामना भी तुलसी पत्र और गंगाजल देने के पीछे निहित है।

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