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आखिर भगवान श्री कृष्ण ने आधी रात में हीं क्यों लिया था जन्म ?

Ratnasen Bharti

भगवान विष्णु ने कृष्ण जी के रूप में आठवां अवतार लिया था. कंस के वध के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया था, जिसकी आकाशवाणी पहले ही हो गई थी.भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। अष्टमी तिथि को रात्रि में अवतार लेने का प्रमुख कारण उनका चंद्रवंशी होना है। भगवान राम सूर्यवंशी हैं, क्योंकि उनका जन्म सुबह में हुआ था और भगवान कृष्ण चंद्रवंशी हैं क्योंकि उनका जन्म रात्रि में हुआ था। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी हैं और चंद्रदेव उनके पूर्वज और बुध चन्द्रमा के पुत्र हैं। इसी कारण चंद्रवंश में पुत्रवत जन्म लेने के लिए कृष्ण ने बुधवार का दिन चुना था।

अष्टमी को जन्म लेने का एक कारण है

ज्योतिषियों के अनुसार रोहिणी चंद्रमा की प्रिय पत्नी और नक्षत्र हैं, इसी कारण कृष्ण भगवान ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। वहीं अष्टमी तिथि को जन्म लेने का भी एक कारण था. दरअसल अष्टमी तिथि शक्ति का प्रतीक है, और भगवान विष्णु इसी शक्ति के कारण पूरे ब्रह्मांड का संचालन करते हैं। श्री कृष्ण शक्तिसंपन्न, स्वयंभू और परब्रह्म हैं इसीलिए वो अष्टमी को अवतरित हुए। कृष्ण के रात्रि काल में जन्म लेने का कारण ये है कि चन्द्रमा रात्रि में निकलता है और उन्होंने अपने पूर्वज की उपस्थिति में जन्म लिया। भगवान कृष्ण ने जन्म के लिए जिस नक्षत्र और समय को चुना वह काफी मायनों में खास है।

इतना ही नहीं, ऐसा भी कहा जाता है कि उनके पूर्वज चंद्रदेव की भी अभिलाषा थी कि श्रीहरि विष्णु मेरे कुल में कृष्ण रूप में जन्म ले रहे हैं तो मैं इसका प्रत्यक्ष दर्शन कर सकूं. पौराणिक धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि कृष्णावतार के समय पृथ्वी से अंतरिक्ष तक समूचा वातावरण सकारात्मक हो गया था। प्रकृति, पशु पक्षी, देव, ऋषि, किन्नर आदि सभी हर्षित और प्रफुल्लित थे। यानी कृष्ण के जन्म के समय चारो तरफ सुरम्य वातावरण बन गया था। देवीदेवता मंगल गीत गाने लगे और ईश्वर का गुणगान करने लगे। प्रकृति, पशु, पक्षी, साधुसंत, किन्नर आदि सभी नाचने गाने लगे और ईश्वर के जन्म को लेकर हर्षित हुए। जब ईश्वर ने पृथ्वी पर जन्म लिया तब देवताओं ने स्वर्ग से फूल बरसाए थे. धर्मग्रंथों के अनुसार यह कहा जा सकता है कि श्री कृष्ण ने योजनाबद्ध रूप से पृथ्वी पर मथुरापुरी में अवतार लिया।

भगवान कृष्ण तीनों लोकों के तीन गुण सतगुण, रजगुण और तमोगुण में से सतगुण विभाग के प्रभारी हैं। भगवान कृष्ण में जन्म से ही सिद्धियां मौजूद थीं।

श्री कृष्ण के जन्म की कहानी

द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी , जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।

विवाह के बाद जब कंस देवकी और वसुदेव को उनके राज्य पहुंचाने जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई – , ‘हे कंस ! जिस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है , उसके गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान तेरी मृत्यु का कारण बनेगी। आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और वसुदेव को मारने के लिए दौड़ा। तब देवकी ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कहा कि उनकी जो भी संतान जन्म लेगी , उसे वो कंस को सौंप देगी। कंस ने बहन की बात मानकर दोनों को कारागार में डाल दिया।

कारागार में कृष्ण का जन्म

कारागार में देवकी ने एक एक करके सात बच्चों को जन्म दिया। लेकिन कंस ने उन सभी का वध कर दिया। अब आठवां बच्चा होने वाला था। तब कारागार में कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नन्द की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। उन्होंने वसुदेव देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव देवकी को पुत्र पैदा हुआ , उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ जो और कुछ नहीं सिर्फ माया थी। उसी समय माता यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया। इसी बीच कारागार में अचानक प्रकाश हुआ और भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए।

भगवान विष्णु की माया से कारागार के सभी ताले खुल गए थे और कारागार की सुरक्षा में खड़े सभी सैनिक गहरी नींद में सो गए. आकाश में घने बादल छा गए, तेज बारिश होने लगी और बिजली कड़कने लगी. इसके बाद कृष्णजी का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण ने कंस के कारागार से निकलने के लिए भी आधी रात का समय चुना। ताकि उनके पिता सुरक्षित स्थान पर भेज सकें। सभी पहरेदार सो गए। कारागार के दरवाजे खुल गए।

भगवान विष्णु ने वसुदेव से कहा कि आप इस बालक को अपने मित्र नन्द जी के यहाँ ले जाओ और वहां से उनकी कन्या को यहां ले आओ। भगवान विष्णु के आदेश से वसुदेव जी भगवान कृष्ण को सूप में अपने सिर पर रखकर नन्द जी के घर की ओर चल दिए। यमुना नदी ने भी शांत होकर उन्हें जाने का रास्ता दे दिया। वसुदेव भगवान कृष्ण को लेकर यमुना पार गोकुल नन्द जी के यहाँ सकुशल पहुँच गए और वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आ गए। जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली। वह तत्काल कारागार में आया और उस कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा। लेकिन वह कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में चली गई। फिर कन्या ने कहा – “हे मूर्ख कंस ! तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृन्दावन पहुंच गया है। अब तुझे जल्द ही तेरे पापों का दंड मिलेगा। वह कन्या कोई और नहीं स्वयं योग माया थीं।

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