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पिता का अंतिम संस्कार करके चला गया बल्लेबाजी करने और जीता दिया भारत को मैच 

Bihari News

आजादी के बाद पैदा होने वाले भारत के पहले टेस्ट क्रिकेटर

जो अपनी बेहतरीन क्लोज फील्डिंग के लिए हुआ मशहूर

भारत का सर्वश्रेष्ठ फील्डर, जिसने मात्र 27 मैचों में लपके 53 कैच

ऑलराउंडर जो बल्लेबाजी और गेंदबाजी के अलावा करता था हैरंतगेज फील्डिंग

पिता के चिता को आग देकर जो चले गए बल्लेबाजी करने के लिए

क्रिकेट हो या जिंदगी, बड़ा वही बनता है, जिसके कदम कठिनाईयों के आगे नहीं डगमगाते. आपको किसी भी महान इंसान के जीवनी में यह एक चीज सामान्य मिलेगी.  आज बताएंगे एक ऐसे खिलाड़ी की कहानी, जो आपको हैरान कर देगा. खिलाड़ी का साहस, खेल भावना और खेल के प्रति उत्साह आज के क्रिकेटरों के लिए मिशाल है. शोर्ट लेग में इनके जैसा फिल्डर खोजना आज तक संभव नहीं हो पाया. जो बल्लेबाजी और गेंदबाजी तो करता ही था, गेंदबाजी में वो तेज और स्पिन दोनों कलाओं में निपुण था. पिता की जब मौत हुई तो यह खिलाड़ी उनकी चिता को आग देकर सीधे ग्राउंड की तरफ भागा और अपनी टीम के लिए बल्लेबाजी करने उतरा और जीत भी दिलाई. आज के अंक में बात होगी भारत के एक असाधारण खिलाड़ी की, जिसकी कहानी हर क्रिकेट पीढ़ी के लिए एक आदर्श बना हुआ है. आज बात होगी भारत के पूर्व ऑलराउंडर एकनाथ सोलकर के बारे में. आज हम भारत के सर्वश्रेष्ठ फिल्डर एकनाथ सोलकर के जीवन से जुड़ी कुछ जानी-अनजानी और अनकही बातों को जानने की कोशिश करेंगे.

भारत के लिए 27 टेस्ट और 7 वनडे खेलने वाले ऑलराउंडर एकनाथ सोलकर का जन्म बोम्बे(अब मुंबई) में 18 मार्च, 1948 को हुआ था. सोलकर के नाम एक टेस्ट शतक है, जो दिखाता है कि वो बल्ले से भी समर्थ थे साथ ही वो गेंदबाजी भी करते थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि एकनाथ सोलकर तेज और धीमी दोनों तरह से गेंदबाजी करते थे. लेकिन सोलकर जाने जाते हैं बेहतरीन क्लोज फील्डिंग के लिए. उनके लिए गए कैचों ने भारत को द ओवल में 1971 में इंग्लैंड के खिलाफ भारत को जीत दिलाई थी, वह भारत की इंग्लैंड में पहली जीत थी. एकनाथ से जब एक बार उनके उम्दा फील्डिंग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था, “मैं सिर्फ गेंद देखता हूं.” ससेक्स में सोलकर के टीममेट टोनी ग्रेग कहते हैं, “वह सबसे अच्छा फॉरवर्ड शॉर्ट लेग फील्डर था जिसे मैंने कभी देखा है.”

केवल 27 मैचों में उनके 53 कैच, 20 या उससे अधिक टेस्ट में गैर-विकेटकीपरों के बीच प्रति टेस्ट मैच में कैच का सर्वश्रेष्ठ रेशियो है. वह क्रिकेट के सबसे मशहूर उद्धरणों में से एक के लिए जिम्मेदार है जेफ्री बॉयकॉट द्वारा निर्देशित : “i will out you bloody.”

एकनाथ सोलकर के पिता मुंबई के हिंदु जिमखाना के हेड ग्राउंड्समैन थे. जब ग्राउंड पर मुकाबले खेले जाते थे, एकनाथ स्कोरबोर्ड बदलने का भी काम करते थे. एकनाथ अपने 5 भाई-बहनों और माता-पिता के साथ एक कमरे वाले छोटे से घर में बड़े हुए.
हिंदु जिमखाना में उन्होंने खेल की बारीकियां सीखी. वो नेट्स में खिलाड़ियों को गेंदबाजी करते थे. इसी दौरान बोम्बे के विकेटकीपर माधव मंत्री की नजर सोलकर पर गई, जो सोलकर के उमंग और उत्साह से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने तुरंत सोलकर के स्कूलिंग की व्यवस्था की.

परिस्थितियों से सोलकर ने कभी हार नहीं मानी, वो कभी उनसे विचलित नहीं हुए. कठिनाइयों ने सोलकर को कभी नहीं डिगाया. उन्होंने अपने खेल पर कड़ी मेहनत की और एक साल बाद मुंबई के लिए फर्स्ट क्लास डेब्यू करने से पहले, 1964 में इंडिया स्कूल टीम, जिसमें सुनील गावस्कर और मोहिंदर अमरनाथ शामिल थे, की कप्तानी करने के लिए अपने नेचुरल एथेलिटीसज्म का सबसे अधिक उपयोग किया.

बतौर स्कूल क्रिकेटर, उन्होंने 1964 में श्रीलंका का दौरा किया था और 1965-66 में लंदन स्कूल्स के खिलाफ इंडियन स्कूल्स की कप्तानी की थी. इस टीम में भविष्य के भारतीय खिलाड़ी सुनील गावस्कर और मोहिंदर अमरनाथ थे. 1969 और 1970 में वो ससेक्स सेकंड 11 के लिए खेले जिसने उनको फर्स्ट 11 के लिए एलिजिबल बनाया, हालांकि वो फर्स्ट 11 से एक ही मुकाबला खेल पाए.

एकनाथ सोलकर ने 1969-70 में न्यूजीलैंड के विरुद्ध हैदराबाद में अपना टेस्ट अंतराष्ट्रीय डेब्यू किया था, जहां शोर्ट लेग पर उनकी हैरंतगेज फील्डिंग ने सबको हैरान कर दिया. आजादी के बाद पैदा होने वाले वो भारत के पहले टेस्ट क्रिकेटर हैं. उसी सीजन में ऑस्ट्रेलिया और फिर 1971 में वेस्टइंडीज के खिलाफ उन्होंने सफलता के नए मुकाम हासिल किए. 1971 में इंग्लैंड के खिलाफ इंग्लैंड में आबिद अली के साथ सोलकर को गेंदबाजी की शुरुआत करने भेजा गया. चार मैचों की टेस्ट सीरीज के पहले टेस्ट में सोलकर ने 67 रनों की पारी खेली थी, इस दौरान उन्होंने गुंडप्पा विश्वनाथ के साथ 92 रनों की साझेदारी कर भारत को पहली पारी में बढ़त दिलाई थी. ओवल में खेले गए तीसरे टेस्ट की पहली पारी में सोलकर ने 28 रन देकर 3 विकेट चटकाए थे और 44 रन बनाए थे यही नहीं 2 बेहतरीन कैच भी लपके थे और इस तरह भारत की जीत में उन्होंने विशेष भूमिका निभाई थी. फिर 1972-73 होम सीरीज में इंग्लैंड के खिलाफ दिल्ली में खेले गए पहले टेस्ट मैच में उन्होंने 75 रन बनाए थे. पांच मैचों की टेस्ट सीरीज में सोलकर ने कुल 12 कैच लपके थे.

लेकिन 1974 में जब भारतीय टीम इंग्लैंड दौरे पर गई थी, सोलकर का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था लेकिन जेओफ्री बॉयकॉट को उन्होंने लगातार 3 पारियों में आउट किया था. सोलकर के नाम टेस्ट क्रिकेट में एक शतक भी दर्ज है. 1975 में मुंबई टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ सोलकर ने शतक जड़ा था. 27 टेस्ट मैचों में 53 कैच लपकने के अलावा उन्होंने 25.42 की औसत से 1068 रन बनाए और 59.44 की औसत से 18 विकेट हासिल किए. वहीं अपने 16 साल के फर्स्ट क्लास करियर में उन्होंने 29.27 की औसत से 6,851 रन बनाए, जिसमें उनके बल्ले से 8 शतक निकले वहीं 30.01 के एवरेज से उन्होंने 276 विकेट भी चटकाए. यही नहीं इस दौरान सोलकर ने 190 कैच भी लपके. टेस्ट क्रिकेट में उनका काम था 4-5 ओवर गेंदबाजी कर नई गेंद की चमक को हटाना जिसके बाद स्पिनर्स के लिए काम आसान हो जाए.
1976 के अंत में 26 टेस्ट मुकाबलों में 52 कैच लेकर, वो एकमात्र नॉन-विकेटकीपर थे, जिनके नाम 50 से अधिक कैच दर्ज थे. यानी 2 कैच प्रति टेस्ट मैच. लेकिन अपने 27वें टेस्ट मैच में वो सिर्फ 1 कैच ही ले सके, और उनका 2 कैच/प्रति मैच का औसत नीचे चला गया. 27 टेस्ट में 53 कैच पर एकनाथ सोलकर का करियर समाप्त हुआ. 1977 में इंग्लैंड के खिलाफ एकनाथ सोलकर ने 1 जनवरी से 6 जनवरी तक ईडन गार्डन में अपना अंतिम टेस्ट मुकाबला खेला था. मुंबई के लिए रणजी ट्रॉफी में सोलकर ने अब्दुल इस्माइल को अपना बॉलिंग पार्टनर बनाया. 1973 रणजी फाइनल में टर्निंग पिच पर सोलकर ने स्पिन गेंदबाजी की और 5 विकेट चटकाकर मुंबई को एक प्रसिद्द जीत दिलाई थी.

टीम में सोलकर के समय भारत के गेंदबाजी आक्रमण में स्पिन का दबदबा था. इरापल्ली प्रसन्ना, एस वेंकटराघवन, बी चंद्रशेखर और बिशन सिंह बेदी की प्रसिद्ध चौकड़ी जीत के लिए काफी हद तक निर्भर थी और उनमें से चार ने बदले में सफलता हासिल करने में सोलकर पर बहुत भरोसा किया. बिशन सिंह बेदी ने एकनाथ सोलकर के बारे में कहते हैं, ‘उनका क्लोज-इन कैच वास्तव में डराने वाला था. हम उसके बिना पहले जैसे गेंदबाज नहीं होते.’

सोलकर के तन्यकता की सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक मुंबई और बंगाल के बीच 1969 के रणजी ट्रॉफी फाइनल की है. मुंबई में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में उस मैच के शुरू होने से ठीक छह दिन पहले, सोलकर के पिता हिंदू जिमखाना की सीढ़ियों पर फिसल गए थे और कोमा में चले गए थे. मैच खेलने या न खेलने के कष्टदायी निर्णय का सामना करते हुए, सोलकर ने अपना दुख अपने तक ही रखा और अपने पिता के बेहतर होने की उम्मीद की. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

सोलकर ने अंततः फैसला किया कि वह ऐसे महत्वपूर्ण समय में अपनी टीम को नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने तीन विकेट लिए और बंगाल ने पहले बल्लेबाजी की और 387 रन बनाए. लेकिन मुंबई की पहली पारी के दौरान उनकी अविश्वसनीय खेल-भावना सामने आई.

मुंबई ने दूसरे दिन के अंत में बोर्ड पर 300 रनों के साथ पांच विकेट गंवाए थे. उनके पास क्रीज पर सोलकर और मिलिंद रेगे के रूप में दो युवा खिलाड़ी थे, जिन्होंने पहली पारी में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की थी. लेकिन उस दिन सोलकर के पिता की अस्पताल में मौत हो गई थी. विनाशकारी नुकसान के बावजूद, उन्होंने अगली सुबह अंतिम संस्कार की चिता को जलाया और बल्लेबाजी करने के लिए चले गए. और वीरतापूर्वक, उन्होंने अपनी टीम को बढ़त हासिल करने और मैच जीतने में मदद करने के लिए 29 रन बनाए. तो ऐसे थे एकनाथ सोलकर और उनकी खेल भावना. एकनाथ सोलकर ने भारत के लिए 7 वनडे मुकाबले भी खेले, जिसमें उन्होंने 4 विकेट लिए और 27 रन बनाए. एकनाथ के छोटे भाई अनंत सोलकर भी महाराष्ट्र के लिए फर्स्ट क्लास मुकाबले खेले.
26 जून, 2005 को 57 साल की उम्र में जिंदादिल एकनाथ सोलकर हम सबसे जुदा हो गए. सोलकर की गिनती भारत के सर्वश्रेष्ठ फील्डरों में होती है. चक दे क्रिकेट की पूरी टीम एकनाथ सोलकर जी को कोटि कोटि नमन करती है. बेहतरीन ऑलराउंडर एकनाथ आपको कैसे लगते हैं ? कमेंट में हमें बताएं.

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