बिहार एतिहासिक सांस्कृतिक और राजनितिक दृष्टिकोण से शुरू से ही भारत का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है. इसका इतिहास उतना ही पुराना है जितना पुराना अपना देश है. बिहार को 3000 वर्ष से लेकर अबतक भारत का गौरवशाली स्थान होने का दर्जा प्राप्त है. यह शहर कई प्रबुद्ध यात्रियों जैसे मेगास्थनिज, फाह्यान, ह्वेनसांग के आगमन का भी साक्षी है. तीसरी सदी ईसापूर्व में यह मगध राज्य बना. जहाँ अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त यहाँ के महान शासक हुए. इससे पहले जहाँ भगवान बुद्ध ने अपनी ज्ञान की प्राप्ति की बोधगया वो बिहार का अभिन्न अंग है. विष्णुपद मंदिर जहाँ भगवान विष्णु के चरण पादुका हैं. तख़्त श्री हर मंदिर पटना साहिब जहाँ सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह की जन्मस्थली है. उमगा मंदिर औरंगाबाद जिसका इतिहास ना जाने कितना साल पुराना है. और दुनिया भर में प्रसिद्दी पा रहा पटना का हनुमान मंदिर. ये सभी ऐसे एतिहासिक मंदिर हैं जिनका इतिहास हजारों साल पुराना है. जानेंगे ऐसे ही पांच मंदिरों के बारे में और उसके पीछे की कहानियों को.
हरिहर नाथ मंदिर
महाबोधि मंदिर
विष्णुपद मंदिर
तख़्त श्री हरमंदिर
हनुमान मंदिर
हरिहर नाथ मंदिर– सारण जिले का बाबा हरिहर नाथ मंदिर देशभर का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ एक ही लिंग में शिव और भगवान् विष्णु स्थापित है. हरि यानी की भगवान विष्णु और हर यानी की महादेव इसलिए इस मंदिर का नाम पड़ा हरिहर. कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थित लिंग की स्थापना आज से 14 हजार साल पहले हुई थी. कहा जाता है कि जब भगवान् ब्रम्हा विष्णु और महेश तीनों पृथ्वीलोक पर आए तब उन्हें गंडक नदी पर स्थित यह स्थान इतना प्रिय लगा की उन्होंने यहाँ यज्ञ करने की योजना बनाई. कहा जाता है कि उस वक़्त ब्रम्हा जी की दो पत्नियां थी छोटी वाली उनके साथ थी बड़ी वाली को आने में विलम्ब था और यज्ञ का शुभ मुहूर्त निकला जा रहा था. तभी शिव और विष्णु की सलाह पर ब्रम्हा जी जैसे ही अपनी दुसरी पुत्नी के साथ यज्ञ के लिए बैठे वैसे ही बड़ी वाली पत्नी आ जाती है. तब वह पूछती हैं कि मेरे बिना हवन करने का सुझाव किसका था. ऐसे में ब्रम्हा जी ने शिव और हरि का नाम लिया तभी क्रोधित हुई देवी ने उन्हें एक ही लिंग में हो जाने का श्राप दिया . तभी शिव और हरि पत्थर बन जाते हैं और ब्रम्हा जी उन्हें यहीं स्थापित कर देते हैं. तभी से यह लिंग यहाँ स्थापित है. यही नहीं यहाँ हरिहर क्षेत्र में लगने वाला मेला भी विश्वप्रसिद्ध है.
महाबोधि मंदिर– महाबोधि मंदिर, बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक, जो बुद्ध के ज्ञानोदय के स्थान को चिह्नित करता है. बिहार के गया शहर से करीब 12 से 13 किलोमीटर दूर बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर वह पुन्य भूमि है. जहां तथागत भगवान बुद्ध ने मानव के दुःखों के कारणों की तलाश की और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति की. जहाँ उन्होंने लोगो को बुद्धं शरणम् गच्छामि व धम्मं शरणम गच्छामि का मूल मंत्र दिया. महाबोधि मंदिर दुनियाभर के बौद्ध धर्मावलम्बियों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है. मंदिर के गर्भगृह में बुद्ध की सोने की चित्रित प्रतिमा, पाल राजाओं द्वारा निर्मित काले पत्थर कि प्रतिमा है. यहाँ भगवान बुद्ध को भूमिपुत्र मुद्रा या पृथ्वी को छूने वाले आसन में बैठा हुआ देखा जा सकता है. महाबोधि मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है. यह पावन स्थल दुनिया भर के बौद्ध तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है. महाबोधि मंदिर का निर्माण लगभग 260 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट महान अशोक द्वारा करवाया गया था. कहा जाता है की यहाँ स्थित बोधिवृक्ष जिसके नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की पार्प्ती हुई थी उसे सम्राट अशोक की पत्नी ने नष्ट कर दिया. सम्राट अशोक ने बोधिवृक्ष को वापस लगाया था. यह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि 1600 साल यह बौद्ध विहार जमीन के अंदर वैसे की वैसे मजबूत पाया गया. इस बोधगया महाविहार की खोज ब्रिटिश कमांडर सर एलेक्जैंडर कनिंगहम ने 1883 में की थी.
विष्णुपद मंदिर: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर तीन ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें पिंडदान के लिए सबसे उत्तम माना गया है। ये हैं: बद्रीनाथ का ब्रह्मकपाल क्षेत्र, हरिद्वार का नारायणी शिला क्षेत्र और बिहार का गया क्षेत्र। तीनों स्थान ही पितरों की मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं। लेकिन इनमें गया क्षेत्र का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ स्थित हैं कुछ ऐसे दिव्य स्थान जहाँ पिंडदान करने से पूर्वजों को साक्षात भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उन्हें मुक्ति मिलती है। इसी गया क्षेत्र में स्थित है अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर जो सनातन के अनुयायियों में सबसे पवित्र माना गया है। इस मंदिर में स्थित हैं भगवान विष्णु के चरणचिह्न जिनके स्पर्श मात्र से ही मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित जिस शिला या पत्थर पर भगवान शिव के पदचिह्न अंकित हैं, उसे धर्मशिला कहा जाता है। गया महात्म्य के अनुसार इसे स्वर्ग से लाया गया था। गरुड़ पुराण के पौराणिक गाथा के अनुसार एकबार गयासुर नाम का एक राक्षस ब्रम्हा जी को अपने तपस्या के बल पर खुश कर लेता है और वरदान में मांगता है कि मेरे darshan या स्पर्श मात्र से लोगो को मोक्ष की प्राप्ति हो जाए. और उसे यमलोक ना जाना पड़े. ब्रम्हा जी ने गयासुर को ये वरदान दे दिया जिसके बाद गयासुर समस्त पृथ्वीलोक में घुमघुम कर पापियों का उद्धार करना शुरू कर दिया. ऐसे में यमराज की मुश्किलें बढ़ गयी. यमराज ने भगवान् विष्णु से मदद मांगी तभी ना चाहते हुए भी भगवान विष्णु ने गयासुर का वद्ध किया. गयासुर के सिर पर एक पत्थर रखकर उसे अपने पैरों से दबा दिया। यह पत्थर वही धर्मशिला थी जिसे स्वर्ग से लाया गया था। पैरों से इस पत्थर को दबाने के कारण उस पर भगवान विष्णु के चरण के निशान अंकित हो गए और गयासुर को मोक्ष की प्राप्ति हुई। हालाँकि फिर भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जितनी भूमि पर गयासुर का शरीर है वह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाए और यहाँ पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो। तब से ही गया क्षेत्र पितरों की मुक्ति के लिए पवित्रतम पिंडदान क्षेत्र माना जाने लगा। मंदिर इसलिए भी विशेष हो जाता है क्योंकि यहाँ भगवान श्री राम और माता सीता भी यहाँ आए थे। यह वही स्थान है, जहाँ माता सीता ने महाराज दशरथ को पवित्र फल्गु नदी के किनारे बालू से बना पिंड अर्पित किया था।विष्णुपद मंदिर के शिखर पर 50 किलोग्राम सोने का कलश स्थापित किया गया है। इसके अलावा मंदिर में 50 किग्रा सोने से बनी ध्वजा भी स्थापित है। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह में 50 किग्रा चाँदी का छत्र और 50 किग्रा चाँदी का अष्टपहल है।
तख़्त श्री हरमंदिर: तख़्त श्री पटना साहिब गुरुद्वारा महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 18 वीं सदी में निर्मित हुआ था और कालांतर में कई बदलावों से गुजरा लेकिन इस गुरुद्व्रारे की महत्ता आज भी उतनी ही है जितनी निर्माण के समय में थी. साल 1839 में पटना साहिब गुरुद्वारा एक पुनर्निर्माण के दौर से गुजरा और एक शताब्दी तक उसी के रूप में जाना गया. पटना साहिब की भव्यता और दिव्यता को जो पहचान मिली वो आज तक व्याप्त है. गुरु गोविन्द सिंह बेहद ही लोकप्रीय और पूज्य गुरु हैं. उनका जन्म इसी स्थान पर 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था इस दिवस को बिहार ही नहीं बल्कि देशभर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. श्री पटना sahib का तख़्त पावन नदी गंगा के तट पर स्थित है. जो इस गुरुद्वारे की पवित्रता का मजबूत एहसास दिलाता है. यहाँ सिर्फ सिख समुदाय के लोग ही नहीं बल्कि यहाँ हर आयु, हर वर्ग और समुदाय के लोग आते हैं. श्री पटना साहिब का तख़्त सिख धर्म का वो आधिकारिक पवित्र आसन है जिसका पूरा सिख समुदाय में आदर होता है.
हनुमान मंदिर
बिहार में ऐसे कई दर्शनीय, ऐतिहासिक और तीर्थ स्थल मौजूद हैं जो कि आपके बिहार पर्यटन को यादगार बना सकते हैं उन्ही में से एक है पटना का महावीर मंदिर. महावीर मंदिर बिहार की राजधानी में स्थित एक ऐसा धार्मिक और पवित्र स्थल जहाँ पहुंचकर लोग खुद को सौभाग्शाली समझते हैं. यह देश के सर्वोत्तम और प्राचीन हनुमान मन्दिरों में से एक है. यह मंदिर उत्तर भारत का सबसे प्रसिद्द मंदिर है. महावीर मंदिर का निर्माण वर्ष 1730 में रेलवे स्टेशन पटना जंक्शन पर किया गया . साल 1985 के दौरान मंदिर को एकबार फिर से नए तरीके से निर्माण किया गया. पटना का यह हनुमान मंदिर सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि देशभर में मशहूर है. कहा जाता है कि यह मंदिर देश का इकलौता मंदिर है जहाँ हनुमान जी के दो विग्रह हैं. यह उत्तर भारत का सबसे प्रसिद्द मंदिर है यहाँ हनुमान जी को लगने वाला भोग नैवेद्यम इतनी प्रसिद्धि पा रहा है कि इसका निर्यात विदेशों में भी किया जा रहा है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि यह मंदिर आस्था और विश्वास का कितना महत्वपूर्ण स्थल है.
आपकी जानकारी में कौन सा ऐसा मंदिर है जो हजारों वर्ष पुराना है