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वह खिलाड़ी जिसने भारतीय टीम को दिलवाया पहला विश्व कप

Bihari News

क्रिकेट की दुनिया में भारत से लेकर विश्व क्रिकेट तक में एक से लेकर एक खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने अपनी बल्लेबाजी, गेंदबाजी से विरोधी टिमों को धाराशाही कर दिया है. इस लिस्ट में आप कई खिलाड़ियों का नाम गिना सकते हैं जैसे सचिन तेंदुलकर, सुनिल गवास्कर, रिकी पॉन्टिंग जैसे कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपने बल्ले से जौहर दिखाया है. लेकिन आज हम चक दे क्लिक्स में बात एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में करने जा रहे हैं जिसके सामने बड़े से बड़े खिलाड़ी हार मान जाता था. जब वह बल्ले लेकर मैदान में उतरता था कि अच्छे अच्छे गेंदबाजों की एक न चलती थी. जब गेंदबाजी के बॉल पकड़े तो बल्लेबाजों की एक न चलने दी. और जब टीम की कमान उन्हें मिली तो विपक्षी टीमों की हर चाल को उन्होंने रोक दिया. या यूं कहें उनकी हर चाल पर इस खिलाड़ी ने पानी फेर दिया. जी हां आप सही समझ रहे हैं कि हम बात कर रहे हैं विश्व के महान ऑलराउंडर कपिल देव के बारे में.

जब भारत के क्रिकेट का जिक्र हो या फिर विश्व क्रिकेट का जिक्र हो कपिल देव का नाम बड़े ही गर्व के साथ लिया जाता है. कपिल देव ने बल्ले, गेंद और क्षेत्ररक्षण हर क्षेत्र में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है. कपिल देव ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे एक ऐसी टीम को भी चैंपियन बना सकते हैं जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा. कपिल देव के नेतृत्व में भारतीय टीम साल 1983 के विश्वकप विजेता टीम के सदस्य थे. और इस टीम को लेकर यह कहा जा रहा था कि यह टीम विश्व कप तो बाद में यह कोई मेगा इवेंट तक नहीं जीत सकती है लेकिन कपिल देव ने अपने खिलाड़ियों में वह जोश भरा जो सीधा विश्वकप के फाइनल तक का दरवाजा खोल दिया. इस महान खिलाड़ी का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता रामलाल इमारती लकड़ी के कॉन्ट्रैक्टर का काम करते थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि कपिल देव का परिवार आजादी से पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहता था लेकिन आजादी के बाद यह परिवार भारत आ गया और शुरुआती समय इन्होंने हरियाणा में गुजारा उसके बाद ये चंडीगढ़ चले गए. कपिल देव की शुरुआती पढ़ाई DAV में हुई उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे शिमला चले गए जहां उन्होंने सेंट एडवर्ड स्कूल में दाखिला करवाया. कपिल देव को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था. जब वे स्कूल और कॉलेज में गए तो यहां उन्होंने जमकर क्रिकेट खेला.

कपिल देव के घरेलू क्रिकेट की शुरुआत होती है साल 1975 से जब वे हरियाणी की तरफ से खेल रहे थे. हरियाणा और पंजाब के बीच में यह मुकाबला हो रहा था जिसमें 63 रन देकर 6 विकेट उन्होंने अपने नाम किया था. जिसके बदौलत हरियाणा जीतने में कामयाब रहा था. इसी साल इनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद 1976-77 में जम्मूकश्मीर के खिलाफ खेलते हुए उन्होंने 8 विकेट अपने नाम किया और 36 रन भी बनाए फिर बंगाल के खिलाफ इनका प्रदर्शन और भी बेहतरीन रहा उन्होंने 20 रन देकर 7 विकेट अपने नाम कर लिया. फिर क्या था कपिल देव की एंट्री भारतीय टीम में हो गई. उनका पहला टेस्ट मैच पाकिस्तान के खिलाफ खेला गया जिसमें उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा तो नहीं रहा था. लेकिन वेस्टइंडीज के खिलाफ उन्होंने 124 गेंद में 126 रन की शानदार पारी खेली. इतना ही नहीं वेस्टइंडीज के खिलाफ इस सीजन में उन्होंने कुल 17 विकेट अपने नाम भी कर लिया था. 1979 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2 बार 5 विकेट लेकर उन्होंने यह दिखा दिया था कि वे भारतीय टीम में लंबी रेस का घोड़ा है. इसी साल पाकिस्तान ने भारत का दौरा किया. इस सीरीज में उन्होने दो टेस्ट मैच में उन्होंने जीताऊं पारी खेली. इसी सीरीज के दौरान 25 मैचों में 100 टेस्ट विकेट और एक हजार रन पूरे करने वाले सबसे कम उम्र के क्रिकेटर बने थे. इसके बाद साल 1980-81 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया. तीन मैचो की सीरीज के आखिरी मैच में कपिल देव चोटिल हो गए उनका खेलना मुश्किल हो गया था. लेकिन उन्होने खेलने को लेकर हामी भर दी और उस मैच में उन्होने 28 रन देकर 5 विकेट अपने नाम कर दिया. कपिल की गेंदबाजी देख ऑस्ट्रेलिया की पूरी टीम हैरान रह गई थी. और यह सीरीज 1-1 की बराबरी पर ड्रा हुआ. इसके बाद भारत की टीम ने साल 1982 में इंग्लैंड का दौरा किया. जहां कपिल देव का प्रदर्शन शानदार रहा. इस सीरीज में उन्होंने कुल 292 रन और 10 विकेट अपने नाम किया और वे मैन ऑफ द सीरीज घोषित हो गए.

फिर आया साल 1983 यह साल भारत के लिए जितना महत्वपूर्ण था उतना ही कपिल देव के भी महत्वपूर्ण था. यह वह दौर था जब कपिल के बल्ले से रन निकल रहा था और गेंदबाजी में भी वे कमाल दिखा रहे थे. 1982 में भारतीय टीम के कप्तान रहे सुनील गवास्कर की जगह अब कपिल देव को जगह मिल गया था. भारतीय टीम कपिल देव की कप्तनी में विश्वकप जीतने के लिए तैयार हो चुकी थी. यह क्रिकेट इतिहास का 3 विश्वकप खेला जा रहा था. अभी ग्रुप स्टेज के मैच चल रहे थे और भारत और जिम्बाब्वे आमने सामने थी. आज जो जिम्बाब्वे की टीम हम देखते हैं वह टीम नहीं थी उस समय. उस दौर में जिम्बाब्वे की टीम एक मजबूत टीमों में गिना जाता था. अपने ग्रुप के तीन में से दो मैच भारत अब तक जीत चुका था. ऐसे में भारतीय टीम का चौथा मुकाबला जिम्बाब्वे के साथ था. भारत के लिए जीतना मुश्किल माना जा रहा था. कपिल देव ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया. लेकिन यह फैसला भारतीय टीम के लिए कारगर साबित नहीं हुआ. भारतीय टीम की स्थिति यह थी कि महज 17 रन के स्कोर पर टीम के 5 सलामी बल्लेबाज पवेलियन में बैठ चुके थे. जिम्बाब्वे की तरफ से केविन कुरान और पीटर रॉसन ने भारतीय बल्लेबाजी की हवा टाइट कर दी थी. एक समय तो ऐसा भी लग रहा था कि भारतीय टीम 50 रन के स्कोर पर सिमट जाएगी. लेकिन अभी पिक्चर बाकि है मेरे दोस्त वाली कहावत सिद्द हो गई. मैच मे एक छोर को कपिल ने संभाला और गिरते विकेट पर ब्रेक लगाया. कपिल देव ने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करना शुरू कर दिया. कपिल देव के साथ थे रोजर बिन्नी उन्होंने भी अपने कप्तान को गेयर बदलते देखा तो वे भी शुरू हो गए और उन्होंने भी खुलकर बल्लेबाजी करना शुरू कर दिया. स्थिति यह थी कि बिन्नी एक रन लेकर हर बार स्ट्राइक कपिल देव को दे रहे थे और कपिल देव जिम्बाब्वे के गेंदबाजों के ऊपर कहर बरपा रहे थे. रोजर बिन्नी 48 गेंद पर 22 रन बनाकर आउट हो गए लेकिन कपिल देव अभी दूसरे छोर से रन मशीन की तरह रन बना ही रहे थे उसके बाद आए मदन लाल जिन्होंने भी कपिल को ज्यादा समय तक खेलने का मौका दिया. वे 17 रन बना कर पवेलियन चले गए उसके बाद आए सैयद किरमानी इन्होंने भी कपिल देव का खुब साथ दिया और वे इस दौरान 24 रन बना सके. इस समय तक कपिल देव ने 138 गेंदों में 175 रन की शानदार पारी खेली. जिसमें कपिल देव ने 16 चौके और 6 छक्के शामिल थे. कपिल देव के इसी शानदार पारी के बदौलत भारतीय टीम 60 ओवर में कुल 8 विकेट के नुकसान पर 266 रन बना सकी थी. जवाब में बल्लेबाजी करने ऊतरी जिम्बाब्वे की टीम शुरुआत अच्छी रही जब विकेट गिरना शुरू हुआ तो वह आखिरी तक नहीं रूका. जिम्बाब्वे को जब जब रन बनाने वाला खिलाड़ी चाहिए था तब तब विकेट गिर गया जिम्बाब्वे की तरफ से मात्र केविन कुरान 73 रन की पारी खेल पाए और जिम्बाब्वे की पूरी टीम मात्र 235 रन पर सिमट गई और भारत इस तरह से यह मैच 31 रन से जीतने में कामयाव हो सका. इस मैच का दुर्भाग्य देखिए कि मैच का रिकॉडिग ही नहीं हो पाया था. उस समय की एक मात्र ब्रॉडकास्टर बीबीसी ने देश व्यापापी हड़ताल की घोषणा कर दी थी जिसके कारण इस मैच की रिकॉर्डिंग नहीं हो सकी थी. उस विश्वकप में भारतीय टीम दो मैच हारी थी एक ऑस्ट्रेलिया से और दूसरा वेस्टइंडीज से. 1983 के विश्वकप में भारत सेमीफाइनल में इंग्लैड को हराने में कामयाव हो गया था. लेकिन फाइनल जीतना इतना आसान नहीं था. उस समय के वेस्टइंडीज की गेंदबाजी और बल्लेबाजी विश्व में विख्यात थी. उनके तेज गेंदवाज के सामने विश्व के अच्छे अच्छे बल्लेबाज की बोलती बंद हो जाती थी. ऐसे में भारत ने फाइनल में एक लड़ाका की तरह यह मैच खेला जिसमें भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी करते हुए मात्र 183 रन के स्कोर पर ऑलआउट हो गई. भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव जिन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ 175 रन का स्कोर किया था वे इस मैच में महज 15 रन बनाकर पवेलिय आ गए थे. ऐसे में अब सबकुछ गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण पर निर्भर कर रहा था कि वे किस तरह से इस मैच को बचा पाते हैं. गेंदबाजी की जिम्मेदारी संभाली मदन लाल और मोहिंदर अमरनाथ ने. इन्होंने शानदार गेंदबाजी का प्रदर्शन किया. वेस्टइंडीज मात्र 140 रन पर ही ऑलआउट हो गई और भारत यह विश्वकप जीत गया. विश्वकप के शुरुआत में भारत के जीतने के चांस एक प्रतिशत भी नहीं थे लेकिन वह आज विश्वविजेता बना हुआ था. कपिल देव ने विश्वकप के 8 मैच में 303 रन बनाए और 12 विकेट भी अपने नाम किया था. वे विश्व के सबसे बेहतरीन ऑलराउंडर के रूप में गिने जाने लगे थे.

इसके बाद 1987 के विश्वकप में भारतीय टीम कपिल के नेतृत्व में खेली और सेमिफाइनल तक पहुंच सकी. समीफाइनल में भारत को इंग्लैंड के हाथों हार का सामना करना प़ड़ा. इसके बाद 1994 में उन्होंने क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी.

कपिल देव के ऊपर साल 1999 में मैच फिक्सिंग का आरोप भी लगा था जिसमें BCCI के पूर्व अध्यक्ष आई एस बिंद्रा ने आरोप लगाते हुए कहा था कि साल 1994 में श्रीलंका दौरे के दौरान मनोज प्रभाकर को अंडरपरफॉर्म करने के लिए पैसे की पेशकश की थी. इस आरोप के बाद कपिल देव को भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के कोच पद से इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि बाद में यह आरोप खारिज हो गया था.

एक नजर डाल लेते हैं उनके रिकॉर्ड के ऊपरः

  • 1994 में वह सर रिचर्ड हेडली के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए दुनिया में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने. उनके रिकॉर्ड को 1999 में वेस्टइंडीज के कर्टनी वॉल्श ने तोड़ा था.
  • ऑलराउंडर के 4000 टेस्ट रन और 400 विकेट हासिल करने वाले एकमात्र खिलाड़ी.
  • बिना रन आउट हुए एक करियर में सबसे अधिक पारियां (184).
  • 100 200 और 300 टेस्ट विकेट लेने वाले सबसे युवा क्रिकेटर.
  • एक टेस्ट पारी में 9 विकेट लेने वाले एकमात्र कप्तान.
  • 1994 में संन्यास लेने तक वनडे में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज थे (253 विकेट)
  • नंबर 6 पर बल्लेबाजी करते हुए सर्वोच्च एकदिवसीय स्कोर इन्होंने बनाया था (जिम्बाब्वे 1983 विश्व कप के खिलाफ)

कपिल देव को कई सम्मान से नवाजा भी गया है जिसमेंः

  • अर्जुन पुरस्कार (1979)
  • पद्म श्री (1982)
  • विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर (1983)
  • पद्म भूषण (1991)
  • विजडन इंडियन क्रिकेटर ऑफ सेंचुरी (2002)
  • आईसीसी क्रिकेट हॉल ऑफ फ़ेम (2010)

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