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यहाँ स्थित है बिहार का इकलौता शीशमहल

Bihari News

क्या आपको शीशमहल देखना है, इसके लिए आपको तो आमेर किला जयपुर जाना पड़ेगा. बिहारियों अगर आप जयपुर जितना दूर जाने का सोचकर मना करें उससे पहले मैं आपको बताना चाहूंगी की आपके लिए हमने इसका दुसरा विकल्प ढूंढ लिया है जो की आपके बिहार में ही स्थित है. देशभर में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपने धार्मिक महत्‍व, सुंदर वास्‍तुकला, शिल्‍पकला और ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध हैं. धार्मिक स्‍थलों को शांति, आस्‍था, परंपरा और प्रतिष्‍ठा का सूचक माना जाता है. आज हम आपको बिहार में स्थित एक ऐसे ही मंदिर के दर्शन के लिए लेकर चलेंगे जो अपने वास्तुकला, अपनी भव्यता, और अपनी खूबसूरती के लिए पूरे बिहार में प्रसिद्द है जहाँ स्थित है बिहार का इकलौता शीशमहल. जी हाँ नमस्कार आप देख रहे हैं बिहारी न्यूज़ बिहारी विहार के आज के इस सेगमेंट में हम निकलेंगे एक ऐसे मंदिर के सफ़र पर जिसकी खूबसूरती देखकर आप भी कहेंगे वाह वाह ! ये मंदिर है ऐतिहासिक नगरी बक्सर में. राजधानी पटना से महज 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित बक्सर जिला में है यह मंदिर आपको मेन सिटी बक्सर में ही मिल जाएगा.

यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है लेकिन यहाँ आपको सभी भगवान के चित्र दीवारों पर उकेरे हुए इल जाएंगे. जो इस अन्दिर की सुन्दरता को और भी बढ़ा देता है. कहा जाता है की यहाँ भगवान राम ने ताड़का का बद्ध किया था. इस मंदिर में रामायण की एकएक घटना दिखाने की कोशिश की गई है. इस मंदिर की वास्तुकला आपको मोहित कर देगी यह दक्षिण भारत की मंदिरों की संरचना की याद दिलाती है. यह मंदिर नवलखा मंदिर के नाम से प्रसिद्द है क्यूंकि ऐसा माना जाता है की आज से ५० वर्ष पहले इस मंदिर का निर्माण करीब 9 लाख की राशि से हुई थी इस वजह से इसका नाम नवलखा मंदिर पड़ा लेकिन भगवान् विष्णु को समर्पित इस मंदिर को दिव्यदेश कहा गया है. यानी की आध्यत्मिक दृष्टि से इस मंदिर को दिव्यदेश मंदिर कहा गया है.

अपनी वास्तुकला और शीशमहल के लिए मशहूर यह मंदिर सामान्य नहीं है इस मंदिर में श्रद्धालुओं की जितनी भीड़ उमड़ती है उतना ही पर्यटक भी इस मंदिर को देख आकर्षित होते हैं. दक्षिण भारतीय पद्धति से बना यह मंदिर पटना प्रमंडल का इकलौता मंदिर माना जाता है. इस मंदिर की प्रमुख विशेषता भगवान विष्णु के चार विग्रह को माना जाता है. पहला स्नान मूर्ति, भोग मूर्ति, भ्रमण मूर्ति, शयन मूर्ति. भगवान को दिन में दो बार अपने स्थल से उठकर पालकी पर विराजमान होते हैं और मंदिर के परिसर के चारों तरफ घूमते हैं. या फिर यूँ कहें की उन्हें दिन में दो बार पालकी पर घुमाया जाता है. इसी वजह से मंदिर को दिव्य देश कहा जाता है. यहाँ भगवान को तमिलनाडू का खास व्यंजन पोंगल का भोग लगाया जाता है. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वारा से अन्दर घुसते ही आपको सोने के आवरण चढ़े कलश थे. जिसे चोरों ने चूरा लिया था लेकिन कलश दुबारा लगाए गए. जिसे अब ढंक दिया गया है. यहां लगा गरूण ध्वज भी स्वर्ण पत्र जडि़त है.

अब बात करते हैं शीश महल की. मंदिर परिसर में ही स्थित शीश महल है. जिसे राजस्थान के कलाकारों ने तैयार किया है. यह छोटा है, लेकिन इसके आकर्षण का कोई जवाब नहीं. भगवान राम एवं कृष्ण के जीवन काल की झलक यहां आपको दिखेगी. यहाँ आपको धनुष यज्ञ, राम विवाह, बन गमन, राज्याभिषेक आदि के चित्र बने दिखेंगे. जो आपको आकर्षित और रोमंचित करेगी. भगवान कृष्ण के जन्म, कालिया मर्दन आदि की तस्वीरें बनी है. खासकर बच्चों को यह शीश महल बहुत ही भाता है.

इस मंदिर की स्थापना की बात करें तो मंदिर की स्थापना पूज्य त्रिदण्डी स्वामी जी महाराज की प्रेरणा से कराया गया. गंगा किनारे लक्ष्मीनारायण मंदिर में उनका आश्रम था. इसके पास ही मंदिर निर्माण कराया गया. पास में एक छोटा बगीचा है. जहां भगवान को चढ़ाने के लिए पुष्प व तुलसी के पौधे लगाए जाते हैं. यह मंदिर साल 1974 में बनकर तैयार हुआ. तब इसकी ख्याति और आकर्षण ने लोगो का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. इस मंदिर का निर्माण वासुदेव जी सोमानी ने कराया है. वे राजस्थान के रहने वाले थे. वे देश की सबसे बड़ी कपड़ा बनाने वाली मिल श्रीनिवास कॉटन के मालिक थे. कहा जाता है की उनके पुत्र रंगनाथ जी सोमानी मंदिर का खर्च वहन करते हैं. इसका संचालन ट्रस्ट के नियमानुसार होता है. यहां एक प्रबंधक, चार पुजारी, सफाई कर्मी और माली तैनात हैं. पुजारी भी यहाँ आपको दक्षिणी भारत के मिलेंगे.

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